ऊर्जा संकट पर निबंध Urja sankat essay in hindi

Urja sankat essay in hindi.

आज पूरी दुनिया में ऊर्जा का संकट मंडरा रहा है क्योंकि पूरी दुनिया को बदलने में ऊर्जा का बड़ा ही उपयोग किया गया है । आज हमारे पास जितने भी आयाम और साधन हैं उन साधनों को बनाने में ऊर्जा का उपयोग किया गया है । आज ऊर्जा का उपयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जिसके कारण ऊर्जा की कमी होती जा रही है ।

Urja sankat essay in hindi

ऊर्जा के स्त्रोतों को वैज्ञानिकों के द्वारा दो भागों में बांटा गया है ।

परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत- परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत में कोयला , पेट्रोल आदि आते हैं और विकास के लिए इन ऊर्जा का उपयोग किया जाता है । आज पूरी दुनिया में सभी लोग विकास के मार्ग पर चल चुके हैं । जैसे कि वैज्ञानिकों के द्वारा बनाए गए साधन मोटरसाइकिल , फोर व्हीलर जिनका उपयोग हम सभी करते हैं और अपना समय बचाते हैं । पेट्रोल का अधिक उपयोग होने के कारण यह समाप्त होने की दिशा में जा रहा है । ऐसे कई ऊर्जा के साधन है जिनका उपयोग हम सभी कर रहे हैं ।

अगर हम बात करें विद्युत ऊर्जा की तो विद्युत ऊर्जा को बनाने के लिए पानी , भाप का उपयोग किया जाता है और दुनिया के उपयोग के हिसाब से विद्युत बनाई जाती है । आज सभी लोग बिजली का उपयोग कर रहे हैं और बिजली के माध्यम से हमें कई फायदे हुए हैं जैसे टीवी , लैपटॉप आदि मनोरंजन के साधन हमको मिले हैं और इन साधनों को चलाने के लिए हमें बिजली की आवश्यकता होती है । अगर बिजली का उत्पादन नहीं होता तो यह दुनिया विकास नहीं कर पाती । हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि विकास के लिए ऊर्जा की बहुत ही आवश्यकता है । ऊर्जा के बिना हम विकास नहीं कर पाते और कई तरह के संसाधनों को हम प्राप्त नहीं कर पाते ।

अब हम बात करेंगे गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत के विषय में ।

गैर परंपरागत- ऊर्जा स्त्रोतों में सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा , ज्वारीय ऊर्जा , गोबर गैस ऊर्जा आदि आते हैं । जिनके माध्यम से हम ऊर्जा को बढ़ाते हैं । अब हम बात करते हैं पवन ऊर्जा के बारे में आज हम सभी ज्यादा से ज्यादा बिजली का उपयोग कर रहे हैं । बिजली की जितनी आवश्यकता हम सभी को है इतनी बिजली प्राप्त नहीं हो पा रही है । अगर हमें बिजली की कमी को पूरा करना है तो हम पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा के माध्यम से उस कमी को पूरा कर सकते हैं । इन स्त्रोतों का हमारे जीवन में बढ़ा महत्व है क्योंकि इन स्त्रोतों के बिना हम विकास नहीं कर पाते और पीछे रह जाते ।

एक तरफ जहां ऊर्जा से विकास हुआ है वहीं दूसरी तरफ कई तरह के नुकसान का सामना भी करना पड़ा है । जैसे कि पेट्रोल , कोयला जैसी संसाधनों से हम सभी प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं । जिसके कारण हमारा स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है । आज हमारे चारों तरफ प्रदूषण ही प्रदूषण है और हम सभी को यह कोशिश करना चाहिए कि हम इन संसाधनों का जरूरत के हिसाब से उपयोग करें जिससे प्रदूषण कम हो और हम सभी उर्जा संकट से आने वाले भविष्य में बच सके । परिवहन ऊर्जा स्त्रोतों में दिन प्रतिदिन उपलब्धि हासिल हो रही है और हम सभी परिवहन साधनों का उपयोग कर रहे हैं , क्योंकि हम इन संसाधनों के माध्यम से अपना कीमती समय बचाते हैं ।

आज हम सभी को यह कोशिश करना चाहिए कि ऊर्जा स्त्रोतों के द्वारा जो प्रदूषण फेल रहा है उस प्रदूषण को हम रोक सके और प्रदूषण को रोकने के लिए हमें स्वच्छ वातावरण बनाना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाना चाहिए । जिससे हमारे आसपास का वातावरण स्वच्छ रहे । परिवहन ऊर्जा के उपयोग के कारण आज हमारे चारों तरफ ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है इसके कारण हमारा मन मस्तिष्क दूषित होता जा रहा है । हमें कोशिश करना चाहिए कि हम सभी कम से कम वाहनों का उपयोग करें जिससे प्रदूषण कम हो सके और हमारे ऊपर जो ऊर्जा संकट के बादल मंडरा रहे हैं उनको हम कम कर सकें।

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ऊर्जा संकट पर निबंध | urja sankat essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम ऊर्जा संकट पर निबंध  इस विषय पर निबंध जानेंगे। भारत ऊर्जा संकट की लम्बी सुरंग में प्रवेश कर चुका है। इसे समझने के लिए दो प्रकार के समाचारों पर ध्यान दिया जा सकता है। ये समाचार प्रतिदिन ही समाचार-पत्रों में पढ़े जाते हैं। पहली है राजधानी दिल्ली सहित अधिकांश शहरों में लगातार बिजली की कटौती की खबरें। 

दूसरी, पेट्रोलियम यानि तेल के मद में बढ़ते घाटे की। जब देश की राजधानी दिल्ली इतने गम्भीर विद्युत संकट से गुजर रही हो तो शेष भागों की स्थिति का अनुमान सरलता से लगया जा सकता है। उधर तेल के मद में बढ़ रहा घाटा 20,000 करोड़ तक पहुँच जाने का अनुमान है। यदि इस घाटे की समस्या को तुरन्त दूर नहीं किया गया तो देश को भुगतान संतुलन की समस्या का सामना करना होगा और इसका असर तेलों की आपूर्ति पर पड़ेगा। वैसे भी हमें पेट्रोल, डीजल और किरोसिन तेल की कमी का सामना करना ही पड़ता है।

ऊर्जा संकट के पहलू-किसी भी देश के आर्थिक विकास और जीवन-स्तर में सुधार के लिए ऊर्जा की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। रोचक बात तो यह है कि भारत में व्यावसायिक ऊर्जा (कोयला, तेल, बिजली) की खपत प्रति व्यक्ति विश्व के औसत का मात्र आठवाँ हिस्सा है। इसके बावजूद विद्युत, रेल और कोयले की आपूर्ति में लगातार बाधाएँ अब भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य तत्व बन गयी हैं। ऊर्जा संकट के कारण हर क्षेत्र में उत्पादकता घटी है। उन्नति बुरी तरह प्रभावित हुई है। यह क्रम जारी है। एक अनुमान के अनुसार इस कारण देश को हर वर्ष उत्पादन के मद में 21,000 करोड़ रुपयों का घाटा सहना पड़ रहा है।

6 वर्ष पहले जब डॉ० मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की घोषणा की थी, तो दावा किया गया था कि इससे तीव्र उन्नति का मार्ग साफ होगा। उदारीकरण एक साल के अन्दर ही निजी क्षेत्रों में विदेशी तथा घरेलू कम्पनियों को विद्यत उत्पादन करने की अनुमति दे दी गयी, लेकिन आंध्र प्रदेश में एक लघु संयंत्र की स्थापना के अलावा इस दिशा में एक भी सफलता नहीं मिल पायी है। विद्युत परियोजनाओं का मामला पर्यावरण संरक्षण या भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के कारण अटका हुआ है।

इसी तरह तेल उत्पादन के क्षेत्र में भी भारत विदेशी निवेश के लिए कई तरह के प्रोत्साहन घोषित हुए पर अभी तक कोई नहीं दिखता। ऊर्जा संकट से निपटने के लिए गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इन असफलताओं के कारण भारत ऊर्जा संकट की अंधेरी सुरंग में पहुंच चुका है।

ऊर्जा संकट उत्पन्न करने वाले तत्त्व- भारत में ऊर्जा संकट के लिए मुख्य तौर पर कई तत्त्व जिम्मेदार हैं। ये हैं-ऊर्जा क्षेत्र में मूल्य निर्धारण की गलत-नीतियाँ, कुछ पेट्रोलियम उत्पादों पर अत्यधिक सब्सिडी, कृषकों को मुफ्त बिजली, भारत की उन्नति में ऊर्जा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र का वर्चस्व, समन्वित योजना बनाने में योजना आयोग की अक्षमता, राज्य विद्युत बोर्डों की दयनीय स्थिति, भ्रष्टाचार आदि।

विदेश में जहाँ तेल और बिजली की दरों का निर्धारण बाजार की प्रतियोगिता के द्वारा तय होता है, वहीं भारत में ऊर्जा क्षेत्र पर सार्वजनिक विभागों का कब्जा है। यहाँ मूल्यों का निर्धारण मुक्त बाजार में नहीं बल्कि, राजनीतिक दबावों के आधार पर सरकार द्वारा होता है।

कुछ पेट्रोलियम उत्पादों पर दी जा रही सब्सिडी भी संकट में इजाफा कर रही है। सब्सिडी मुख्यतः कृषि कार्यों के लिए दी जाती है। किरोसिन, डीजल तथा बिजली के मद में सब्सिडी दी जाती है। कई राज्य सरकारें तो किसानों को बिजली मुफ्त भी देती हैं। कृषि क्षेत्र के लिए बिजली की सब्सिडी 1994-95 में 11,477 करोड़ रुपए थी। जो 1995-96 में बढ़कर 13,581 करोड़ और 1996-97 में 15,349 करोड़ रुपया हो गई है। तेल के मद में भी घाटा 15,500 करोड़ रुपया हो गया है। तेल तथा बिजली के क्षेत्र में होने वाला घाटा कुल वित्तीय घाटे का करीब 41 प्रतिशत होता है।

राज्य विद्युत बोर्डों को भी सब्सिडी का कहर सहना पड़ता है क्योंकि ज्यादातर सरकारें सब्सिडी वाली राशि का भुगतान बोर्डों को करने की चिंता नहीं करतीं। 1994-95 में राज्य विद्युत बोर्डो का घाटा 6,332 करोड़ रुपए था जो 1995-96 में बढ़कर 7,557 और मार्च, 1997 तक दस हजार करोड़ से भी ज्यादा हो गया।

दीर्घकालीन रणनीति की आवश्यकता-ऊर्जा संकट से निपटने के लिए भारत को शीघ्र ही एक दीर्घकालीन रणनीति तैयार कर लेने की जरूरत है। यह रणनीति कम-कम सन् 2010 की सम्भावित मांग को ध्यान में रखकर तय करने की जरूरत है। भारत की उन्नति और ऊर्जा की माँग के बीच सम्बन्ध, सन् 2010 में ऊर्जा की माँग पूरी करने में विभिन्न ऊजा स्रोतों की भागीदारी, माँग पूरी करने के लिए आवश्यक कदम, ऊर्जा क्षेत्र में उदारीकरण तथा निजीकरण की गति क्या हो, बढ़ते तेल आयात का राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विदेशी नीति पर असर, गैर-पारम्परिक स्रोतों पर विचार, ऊर्जा संरक्षण, सब्सिडी प्रणाली में बदलाव तथा पर्यावरण का सवाल ।

हम दो स्थितियों पर विचार कर सकते हैं। पहली, अर्थव्यवस्था का विकास 5 प्रतिशत की दर से होने और दूसरी, 9 प्रतिशत की दर होने की स्थिति। अगर सभी गैर-पारम्परिक स्रोतों के साथ-साथ कोयला, परमाणु, प्राकृतिक गैस आदि का अधिकतम उपयोग किया जाए तो भी कम विकास (5 प्रतिशत) की स्थिति में तेल की आवश्यकता सन् 2010 में 16 करोड़ टन और ऊँची विकास दर की स्थिति में 52.5 करोड़ टन होगी। जबकि तेल की माँग सन् 195051 में 35 लाख टन थी, जो बढ़कर 1995-96 में 74 और 1996-97 में 81 करोड़ टन हो गयी। इस सदी के अंत तक यह मांग 111.3 करोड़ टन हो जाने की सम्भावना है।

तेल के आयात में कमी लाने के लिए सबसे पहले ऊर्जा की खपत कम करने की जरूरत होगी। या फिर तेल की खपत कम कर दूसरे स्रोतों का उपयोग बढ़ाना होगा। लेकिन तेल की खपत को नियंत्रित करने तथा भुगतान संतुलन बनाए रखने के लिए कहा जा रहा है कि बाजार की शक्तियों को वास्तविक मूल्य निर्धारण के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाये और सब्सिडी देने के तरीकों में परिवर्तन लाया जाये। पर यह सुझाव विवादों के ऊपर नहीं है।

भारत ज्यादातर तेल का आयात पश्चिमी एशिया के तेल उत्पादक तथा निर्यातके देशों से करता है। इन देशों में विश्व के कच्चे तेल भंडार का 76 प्रतिशत है। इनमें से भी मात्र पाँच देशों-सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात के पास 63 प्रतिशत भंडार है। जब तक कि पक्का समझौता न हो भारत के लिए इन देशों पर निर्भर रहना सही नहीं होगा, भारत को तेल के आयात के लिए दूसरे कम महत्त्वपूर्ण देशों के साथ ही साथ मिलना चाहिए। इसके लिए रूस, वेनेजुएला, मैक्सिको, कोलम्बिया, अंगोला, नाइजीरिया आदि देशों के नाम उल्लेखनीय हैं।

तेलों के सम्बन्ध में घाटा कम करने के लिए किसानों को किरोसिन और डीजल पर दी जा रही सब्सिडी पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत है। असीमित सब्सिडी को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। फिलहाल मात्र किरोसिन तेल पर 6,000 करोड़ रुपयों की सब्सिडी दी जा रही है, घरेल गैस पर भी काफी ज्यादा सब्सिडी दी जा रही है। इसका अधिकतम फायदा मुख्यतः अमीर उठा रहे हैं। इस पर भी पुनर्विचार होना चाहिए और तरीका बदला जाना चाहिए। फिर भी देश में ऊर्जा का संकट लगातार बढ़ रहा है। 

बिजली जाने पर सभी शहरों में जेनरेटरों का उपयोग और परिणामतः डीजल की खपत बढ़ी है। पेट्रोलियम सचिव विजय केलकर के अनुसार जेनरेटर में डीजल की खपत के मामले में भारत सबसे आगे है। इस समय समूचा देश बिजली की कमी को सहन कर रहा है, जबकि विद्युत उत्पादन बढ़ाने और तेल की खपत कम करने की जरूरत है।

भारत अपनी उत्पादन क्षमता का चालीस प्रतिशत से ज्यादा उपयोग नहीं कर पा रहा है। इससे ऊर्जा संकट से निपटने में दिक्कत आ रही है। नई विद्युत परियोजनाओं की गति पर्यावरण तथा भ्रष्टाचार के सवालों के बीच बाधित है। इस समय देश में कई विद्यत परियोजनाओं में लगतार देर हो रही है।

यह काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। 1040 मेगावाट वाले विशाखापट्टनम् प्लांट, नेवेली पावर प्रोजेक्ट (250 मेगावाट), भद्रावती (1072 मेगावाट) समेत अनेक छोटी-बड़ी परियोजनाओं का काम अभी तक आगे नहीं बढ़ पाया है। नतीजतन, विद्युत आवश्यकता की पूर्ति को प्रभावित कर रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन परियोजनाओं की मंजूरी, इनका काम सही अर्थों में गड़बड़ी से भरा है और इसी के चलते विरोध हो रहा है।

गैर-पारम्परिक स्रोतों से ऊर्जा हासिल करने और इसको बढ़ावा देने के लिए पूरे विश्व में प्रयास नहीं हो रहे हैं, लेकिन भारत में अभी तक इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं हो रहा है, जबकि यहाँ इसके लिए पर्याप्त सम्भावनाएं प्रस्तुत हैं। सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो-गैस, समुद्री ऊर्जा आदि गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत हैं।ऊर्जा संकट से निपटने का अच्छा उपाय और भी है। यह है-जनसंख्या नियन्त्रण। पर वह अलग से चर्चा का विषय है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।

ऊर्जा संरक्षण पर निबंध

Urja Sanrakshan Par Nibandh: देश में ऊर्जा का संरक्षण करना बहुत ही जरूरी हो गया है। ऊर्जा का संरक्षण वर्तमान में करने से भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए कई प्रकार की समस्याएं कम हो जाएगी। यदि वर्तमान में उर्जा संरक्षण नहीं किया गया तो भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को काफी समस्या का सामना करना पड़ेगा।

Urja-Sanrakshan-Par-Nibandh

आज का हमारा यह आर्टिकल जिसमें हम ऊर्जा संरक्षण पर निबंध (Energy Conservation Essay in Hindi) के बारे में जानकारी आपके सामने पेश करने वाले हैं।

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ऊर्जा संरक्षण पर निबंध | Urja Sanrakshan Par Nibandh

ऊर्जा संरक्षण पर निबंध (250 शब्द).

मनुष्य विकास के राह पर तेजी के साथ अग्रसर कर रहा है, उसने समय के साथ खुद के लिए जीवन में सुख के सभी साधन एकत्रित कर लिया हैं। इतना कुछ होने के बाद भी और अधिक सुख पाने के लिए मनुष्य अभी भी खोज किये जा रहा है। समय के साथ मनुष्य की असंतोष प्रवृत्ति बढ़ती ही चली जा रही है। कारखाने, रेलगाड़ी, मोटर-गाड़ियां, हवाई जहाज, कार, दो पहिया वाहन, जेसीबी आदि सभी की खोज वैज्ञानिकों के खोज के द्वारा ही सम्भव हुआ है।

प्रकृति में संसाधन सीमित मात्रा मे होते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रकृति में उपलब्ध ऊर्जा भी सीमित मात्रा मे होती है। विश्व में जितनी अधिक जनसंख्या बढ़ रही है, उसके साथ-साथ उन सब की आवश्यकताएँ भी बढ़ती ही जा रही हैं। इन सभी प्रकार की मशीनों के संचालन के लिए ऊर्जा की बहुत आवश्कता होती है परंतु जिस गति से ऊर्जा की जरूरत बढ़ रही है।

उसको देखते हुए ऊर्जा के सभी संसाधनों को नष्ट करने की आशंका बढ़ने लगी है। खासकर ऊर्जा के उन सभी साधनों को जिन्हें हम पुन: निर्मित नहीं कर सकते है, जैसे पेट्रोल, डीजल, कोयला और खाना पकाने की गैस आदि।

अत: यह जरूरत के अनुसार हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दे सकते है। क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयास करने में सफल नहीं हुए तो सम्पूर्ण विश्व के लोग खतरे में पड़ सकते है। ऊर्जा संरक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि गैर-नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करने से हमारे पर्यावरण पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

विशेष तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड जैसे वायु और जल प्रदूषण के लिए जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति का उत्पादन किया जाता है और बिजली, स्टेशनों मे हीटिंग सिस्टम और कारों के इंजनों में तेल और कोयला, गैस का उपयोग बहुत अधिक मात्रा मे होने लगा है।

ऐसी स्थिति में यहाँ पर भारत को विकसित करने के लिए और ऊर्जा की मांग में बढ़ोतरी के कारण इससे निपटने की  बहुत कोशिश करता है। नवीन स्रोतों को विकसित करने के लिये इनके महत्व को समझाना जरूरी होता है। सभी देशों में सौर-ऊर्जा को अधिक महत्व दिया जा रहा हैं तथा इसको और अधिक मात्रा मे उपयोगी बनाने के लिये इसके विकास के लिये विश्व भर के सभी वैज्ञानिकों द्वारा इसकी खोज अभी भी जारी हैं। हमारे देश में पेट्रोलियम ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खाड़ी के तेल उत्पादक देशों में आयात करने के लिये किया जाता है।

Urja Sanrakshan Ka Nibandh

दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण का महत्व पर निबंध (500 शब्द)

आज के समय में हर कार्य जिस में मुख्य रूप से विद्युत ऊर्जा का प्रयोग होता है। लेकिन दैनिक जीवन में ऊर्जा को संरक्षित करना यदि व्यक्ति शुरू कर दें तो भविष्य के लिए ऊर्जा के अभाव जैसी समस्या दूर हो सकती है। दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण के प्रयास यदि शुरू किया जाए तो हर जगह आप उर्जा को संरक्षित कर सकते हैं।

दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण

सामान्य मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा की कमी नहीं है। लेकिन मनुष्य अपने लालच को पूरा करना चाहता है। इसलिए ऊर्जा की कमी देखने को मिलती है। लेकिन अपने लालच को पूरा करने की बजाय ऊर्जा संरक्षण पर ध्यान देना बहुत ही जरूरी है।

ऊर्जा एक प्रकार का प्राकृतिक संसाधन है, जो सीमित मात्रा में है। पूरी दुनिया में सिर्फ 1% भाग जहां से ऊर्जा उत्पादित होती है या ऐसा कह सकते हैं कि दुनिया के सिर्फ 1% भाग में ही ऊर्जा पाई जाती है। ऊर्जा संसाधनों को पुनः नवीनीकरण प्रक्रिया से नहीं गुजारा जा सकता। मतलब ऐसे कह सकते हैं कि ऊर्जा संसाधनों को पुनः उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि आने वाले 40 साल के पश्चात ऊर्जा के संसाधन पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे।

दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण के तरीके

यदि व्यक्ति ऊर्जा संरक्षण के बारे में सोचना शुरू करें तो बहुत सारे तरीके हैं, जिसके माध्यम से उर्जा को बचाया जा सकता है।

घर में उर्जा सरक्षण

व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण के तरीकों में सबसे पहले घर से ऊर्जा संरक्षण करना सीखना होगा। घर में जब जरूरत नहीं है। तब लाइट का उपयोग बिल्कुल ना करें एवं घर मे पंखा बंद रखें।

  • जहां कम रोशनी की जरूरत है, वहां कम वोल्ट का बल्ब लगाएं।
  • ठंडी हवा के लिए एयर कंडीशनर का प्रयोग करने की बजाए अपने घर के आस-पास पेड़ पौधे लगाएं।
  • कपड़ा वाशिंग मशीन में धोने की वजह अपने हाथ से दाएं और धूप में सुखाएं।

आज के समय में आपने देखा होगा कि व्यक्ति पैदल चलने की बजाय हर जगह पर बाइक या कार का प्रयोग करता है। ऐसे में आपको साइकिल पर शेयर करना चाहिए या पैदल चलकर अपने छोटे बड़े काम पूरे करने चाहिए ताकि ऊर्जा सुरक्षित की जा सके।

कृषि कार्यों में ऊर्जा सरक्षण

इसके अलावा कृषि कार्यों में भी व्यक्ति ऊर्जा को संरक्षित कर सकता है। खेती-बाड़ी के काम काजो में भी ऊर्जा का दुरुपयोग बहुत ज्यादा हो रहा है। जहां जरूरत है, वहां तो ऊर्जा का उपयोग होना ही चाहिए। लेकिन हद से ज्यादा दुरुपयोग करना भी भविष्य के लिए नुकसानदायक है। ऐसे में जहां पर आवश्यकता नहीं है, वहां कृषि उपकरणों का ज्यादा प्रयोग ना करें।

दैनिक जीवन में ऊर्जा संरक्षण का महत्व

ऊर्जा संरक्षण का महत्व के बारे में यदि हम बात करें तो आज के समय में जितनी उर्जा बचाई जा सके कि वह भविष्य के लिए काम आएगी। भविष्य में ऊर्जा की कमी आने वाली है। कई वैज्ञानिक प्रयोगों में भी सिद्ध हुआ है कि आने वाले 40 साल पश्चात धरती पर ऊर्जा की कमी महसूस होने लगेगी। इसलिए यदि वर्तमान समय से ही दैनिक जीवन में व्यक्ति ऊर्जा को बचाना शुरू कर दें तो भविष्य के लिए काफी ज्यादा बेहतरीन रहेगा।

आज की टेक्नोलॉजी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और टेक्नोलॉजी को बढ़ाने के लिए ऊर्जा का प्रयोग भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। लेकिन ऐसे में आपको ऊर्जा का प्रयोग कम करने का प्रयास करना होगा। तभी आने वाली पीढ़ी ऊर्जा की कमी जैसी समस्या से बच पाएगी।

ऊर्जा संरक्षण पर निबंध (1200 शब्द)

प्रकृति से हमें ऊर्जा के बहुत से स्रोत प्राप्त होते है, हमारे दैनिक जीवन में ऊर्जा के स्रोतों का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है। ऊर्जा के स्रोतों से हम सभी का जीवन सरल हो गया है। हम सभी के पास ऊर्जा स्रोत के बहुत से सांसधन मौजूद होते हैं जैसे लकड़ी, कोयला, पेट्रोल आदि इन सभी स्रोतों को एक ही बार उपयोग में लाया जा सकता है। पुनः इनका उपयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि इनकी प्रचूर मात्रा बहुत ही कम होती है।

आज के समय की सभी के जीवन मे ऊर्जा संरक्षण जरूरत बन गयी है। प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया ईधन एक अनमोल तोहफा है। ईधन पर मनुष्य हर तरह से निर्भर रहता है, इनकी मांगे दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मानव अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिये दिन-प्रतिदिन नये-नये उपकरणों की खोज करने में लगे होते हैं।

मनुष्य के जीवन में दिन-प्रतिदिन ईधन की जरूरतें कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही है। पहले गर्मियों के दिन मे पंखे का उपयोग होता था लेकिन समय के साथ जनसंख्या में जैसे-जैसे बढ़ोतरी हुई, वैसे-वैसे तापमान बढ़ने से अधिक गर्मी होने के वजह से अब लोग ज्यादातर एसी का उपयोग करने लगे है।

ऊर्जा संरक्षण का क्या है?

इसका अर्थ होता है कि ऊर्जा संरक्षण की बचत करना होता है। हमें ऊर्जा का उपयोग कम से कम करना चाहिए। किसी भी कार्य को पूरा करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग कर सकते है। जैसे-अगर आप कार से कही आते-जाते है, उसके जगह पर साईकिल या स्कूटी से आ-जा सकते है और कार मे लगने वाले ईधन की बचत की जा सकती है।और उस ऊर्जा का उपयोग ना करके उसका संरक्षण करना चाहिए।

ऊर्जा संरक्षण के नियम

इस नियम के अनुसार ऊर्जा को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही ऊर्जा को नष्ट किया जा सकता है। इसे केवल एक रूप से दूसरे रूप मे बदला जा सकता है। इसे ही ऊर्जा संरक्षण का नियम कहा जाता है। अर्थात यदि किसी क्रिया को करने मे जितनी ऊर्जा लुप्त होती है, उतनी ही ऊर्जा दूसरे रूपों मे उत्पन्न हो जाती है। ऊर्जा को किसी भी रूप मे समाप्त नहीं किया जा सकता है।

1841 में जुलियस रोबर्ट मेयर ने ऊर्जा संरक्षण के नियम का प्रतिपादन किया था, इन्हें ऊर्जा संरक्षण के नियम का जनक भी कहा जाता है।

  • यदि मोटर के द्वारा किसी यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल जा सकता है।
  • जनरेटर के माध्यम से यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है।
  • हीटर के द्वारा हम यांत्रिक ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में बदला जा सकता है।

ऊर्जा संरक्षण कब मनाया जाता है?

देश भर में प्रतिवर्ष 14 दिसम्बर को ऊर्जा संरक्षण दिवस ऊर्जा के रूप में मनाया जाता है। ऊर्जा संरक्षण दिवस के दिन ऊर्जा के महत्व को समझने के लिये इसे उत्सवपूर्वक मनाया जाता है। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे ऊर्जा की जरूरत भी बढ़ती जा रही है। इसलिए हर वर्षा ऊर्जा संरक्षण दिवस पर लोगों को ऊर्जा के महत्व के बारे में सभी को जागरूक करने के लिये हर वर्षा ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाते है।

ऊर्जा संरक्षण का उपयोग लोगों को सोच समझ कर करना चाहिए, जहाँ तक संभव हो सके तो ज्यादातर प्राकृतिक ऊर्जा का ही उपयोग करके काम चलाये।

हम सभी के जीवन मे इस्तेमाल किये जाने वाले ऊर्जा के कुछ ऐसे स्रोत होते हैं, जिनका एक बार उपयोग करने पर उसको पुनः उपयोग मे नहीं लाया जा सकता है, जैसे पेट्रोल, कोयला, डीजल, लकड़ी आदि। ये सभी प्रकार के साधन 40-50 वर्षा तक रहते है। हम सभी के जीवन मे ऊर्जा संरक्षण का बहुत महत्व होता है, इसलिए हमें ऊर्जा संरक्षण का बचाव करना चाहिए।

ऊर्जा संरक्षण से बचाव

जब आप कमरे में होते है तभी बल्ब, लाइट और पंखा जलाये अगर बाहर जाये तो बंद करके जाये तभी ऊर्जा की बचत की जा सकती है। ट्यूब लाइट और बल्ब और अन्य प्रकार के उपकरणों को अच्छी तरह से साफ करते रहना चाहिये। ऊर्जा की बचत करने के लिये सीएफएल बल्ब का उपयोग करना चाहिए, फ्रीज़ का दरवाजा काम पड़ने पर ही ओपन करे बार-बार फ्रीज़ को खोलने बंद करने से बिजली की खपत बढ़ती है।

खाना पकाते समय कुकर की फटकी बंद करके ही खाना पकाएं। प्रेसर कुकर का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने से ऊर्जा की बचत की जा सकती है।

देश भर में पेट्रोल की क़ीमत बढ़ रही है, कई जगहों पर 1 लीटर पेट्रोल 100₹ में मिलता है। हम सभी को ज्यादातर सार्वजनिक वाहनों का उपयोग अधिक करना चाहिए। साथ ही कार को एक वर्ष के अंदर ही समय-समय पर सर्विस कराते रहना चाहिए, जिससे कार के इंजन दक्षता सही से काम करता है और कार अधिक मात्रा में पेट्रोल भी नहीं खाती है। क्योंकि ज्यादा दिन तक कार की सर्विस ना कराने के वजह से कार, बाइक अधिक मात्रा में पेट्रोल लगने लगता है क्योंकि उसकी खपत बढ़ने लगती है, जिसके कारण से पेट्रोल ज्यादा लगने लगता है।

हम ऊर्जा की बचत करना चाहते है तो बहुत आसान तरीके से बचत कर सकते है। घर पर कपड़ों पर रोज़ प्रेस करते है और हर रोज़ कपड़े प्रेस करने पर 1000 वाट ऊर्जा की खपत हो जाती है। रोज़-रोज़ कपड़ें में प्रेस करने के वजह एक हप्ते के कपड़ें इकट्ठा करके प्रेस कर लेने से ऊर्जा की बचत की जा सकती है।

ज़ब भी खाना पकाने के लिये रसोई घर में जाते है तो खाना बनाने से पहले सारी सामग्री इकठा करले फिर खाना बनाये ताकि समान ढूढ़ने में ऊर्जा को खपत होने से बचाया जा सके।

आज के आर्टिकल में हमने ऊर्जा संरक्षण पर निबंध (Urja Sanrakshan Par Nibandh) के बारे में संपूर्ण जानकारी आप तक पहुंचाई है।

हमें उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी उर्जा संरक्षण पर निबंध (Urja Sanrakshan Per Nibandh) आपको पसंद आई होगी। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • पर्यावरण संरक्षण पर निबंध
  • ईंधन संरक्षण पर निबंध
  • जल संरक्षण पर निबंध
  • प्रकति संरक्षण पर निबंध
  • वाहन प्रदूषण पर निबंध

Rahul Singh Tanwar

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ऊर्जा संकट और समाधान पर निबंध

ऊर्जा संकट और समाधान पर निबंध: मनुष्य सदैव ऊर्जा पर निर्भर रहता है। सच कहूँ तो, 21वीं सदी में जिस वास्तविक शक्ति के बारे में पूरी दुनिया में बात की जा रही है और उसे छोड़कर आज की दुनिया में जीवित रहना असंभव लगता है।

ऊर्जा क्षेत्र में संकट ने मानव समाज के लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है। ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है। केवल ऊर्जा ही एक ऊर्जा से दूसरी ऊर्जा में परिवर्तित होती है। उक्त रूपान्तरित सत्ता का पूर्व सत्ता में लौटना और क्रियान्वित होना संभव नहीं है।

ऊर्जा संकट क्या है?

कोयला, गैसोलीन और प्राकृतिक गैस की कमी आमतौर पर ऊर्जा संकट की व्याख्या करती है। जब कोयला जलता है तो उसमें मौजूद ऊर्जा प्रकाश और ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इस तापीय ऊर्जा द्वारा कुछ कार्य करने के बाद शेष ऊर्जा वायुमंडल में अवशोषित हो जाती है। कोयले की इस ऊर्जा का उपयोग हम वायुमंडल में परिवर्तित अवस्था में नहीं कर सकते। कोयले के जलने से यह धीरे-धीरे विघटित हो जाता है। इसलिए कोयले की कमी या संकट देखने को मिलता है।

urja sankat aur samadhan par nibandh

ऊर्जा संकट मुख्यतः निम्नलिखित चार कारकों पर निर्भर करता है।

  • पृथ्वी पर जीवाश्म ईंधन की मात्रा सीमित है। पृथ्वी के आंतरिक भाग में जीवाश्म ईंधन बनने में अरबों वर्ष लग गए। पृथ्वी पर जिस मात्रा में ईंधन का उपयोग हो रहा है, वह तुरंत पैदा होने की संभावना नहीं है। अब जगह-जगह जो नई खदानें खोजी जा रही हैं, वे सीमित ऊर्जा का ही हिस्सा हैं।
  • जनसंख्या वृद्धि – पूरे विश्व में जनसंख्या दिन-ब-दिन तीव्र गति से बढ़ रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण परिवहन के लिए वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसके लिए कोयले और पेट्रोलियम की जरूरत बढ़ती जा रही है। लोग भोजन पकाने के लिए जिस ईंधन गैस का उपयोग करते हैं, जनसंख्या में वृद्धि के कारण उसे अधिक ईंधन गैस की आवश्यकता होगी। जनसंख्या में वृद्धि के कारण उद्योग में भी वृद्धि हो रही है। ऐसे में फैक्ट्री चलाने के लिए कोयला और पेट्रोल की जरूरत होती है। बिजली की मांग को पूरा करने के लिए थर्मल पावर प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं। इन ताप विद्युत संयंत्रों को जलाने के लिए अधिक से अधिक कोयले की आवश्यकता होती है।
  • उद्योग एवं कृषि के विकास के कारण ऊर्जा संकट भी उत्पन्न हो रहा है। औद्योगिक संयंत्रों को चलाने के लिए ऊर्जा और ईंधन की आवश्यकता होती है। औद्योगिक और कारखाने के उत्पादों के परिवहन के लिए ईंधन के रूप में रेलवे, ट्रक, कोयला, डीजल और पेट्रोल की आवश्यकता होती है। कृषि के सुधार के लिए उर्वरक कारखानों और कीटनाशक कारखानों की आवश्यकता है। खाद्यान्न एवं उर्वरकों के परिवहन के लिए वाहनों की आवश्यकता होती है।
  • अक्सर ऊर्जा की बर्बादी होती है। कई फ़ैक्टरियाँ उन स्थानों से बहुत दूर स्थित हैं जहाँ से कच्चा माल प्राप्त होता है। कच्चे माल के परिवहन के लिए ईंधन की आवश्यकता होती है। भले ही आप ईंधन के स्रोत से दूर हों, ईंधन की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ जाती है।

पुराने इंजन और मशीनरी के उपयोग के कारण अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है। उचित यांत्रिक घर्षण के बिना, ऊर्जा भी बर्बाद होती है। यदि मशीनरी उचित कॉल बेयरिंग या उचित लुब्रिकेंट्स का उपयोग नहीं करती है, तो घर्षण बल बढ़ जाता है और अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है। इंजन और मशीनरी का उचित रखरखाव किया जाना चाहिए। देखभाल के अभाव में अधिक ईंधन की भी आवश्यकता होती है।

ऊर्जा संकट का समाधान न कर पाने के कारण हमें भविष्य में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इससे सभ्यता के विकास में बाधा पड़ेगी।

  • सीमित दहन को ध्यान में रखते हुए हमें ऊर्जा पर नियंत्रण रखना होगा। बिना वजह ऊर्जा बर्बाद न करें। विलासिता में रहते हुए, हम अक्सर कार, स्कूटर और मोटरसाइकिल का उपयोग करते हैं जहाँ ये सब की आवश्यक्यता नहीं होती है। जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है। इसके लिए सार्वजनिक और निजी प्रोत्साहन की आवश्यकता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए सख्त नियम होने चाहिए। कृषि एवं उद्योग की वृद्धि के लिए ऊर्जा नियंत्रण की योजना बननी चाहिए।
  • सौर ऊर्जा – कुछ प्रकार के दर्पणों का उपयोग करके सौर ऊर्जा की बचत की जा सकती है। इससे खाना पकाने की सुविधा मिलती है। फोटोवोल्टिक सेलों की सहायता से सौर ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • पवन ऊर्जा – पवन ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है और जनरेटर के माध्यम से इसे बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है। पवन टरबाइनों की सहायता से अब कुओं से पानी निकालकर कृषि में उपयोग किया जा रहा है।
  • तरंग एवं ज्वारीय शक्ति – गतिशील जल शक्ति का उपयोग करके जलविद्युत शक्ति उत्पन्न की जाती है।
  • बायोगैस – गोबर गैस की सहायता से खाना बनाया जा सकता है। इसके अलावा घर को रोशन करने के लिए गोबर गैस का भी उपयोग किया जाता है। इसलिए अधिक से अधिक बायोगैस संयंत्र बनाये जाने चाहिए।

मानव सभ्यता को नष्ट किये बिना प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा का उचित निवेश करना होगा। इसके लिए सरकारी एवं निजी प्रयास अपरिहार्य हैं। समाचार पत्रों, टेलीविजन तथा इंटरनेट के माध्यम से जनजागरूकता फैलाई जानी चाहिए।

  • जल संकट और समाधान पर निबंध
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
  • वायु प्रदूषण पर निबंध
  • ध्वनि प्रदूषण पर निबंध

ये था ऊर्जा संकट और समाधान पर निबंध । ऊर्जा संकट एक गंभीर समस्या है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि हम समृद्धि, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय की ओर बढ़ सकें। साथ ही, सभी स्तरों पर ऊर्जा बचत, सामुदायिक सहभागिता और समर्थन की आवश्यकता है ताकि हम एक टिकाऊ और स्थायी ऊर्जा भविष्य का निर्माण कर सकें।

ऊर्जा संकट एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है जो ऊर्जा संसाधनों की कमी या अपर्याप्त उपयोग की विशेषता है। यह आमतौर पर ऊर्जा की अधिक आपूर्ति के कारण होता है, जैसे ऊर्जा संसाधनों की कमी, ऊर्जा स्रोतों का संकट, तकनीकी कमी और ऊर्जा बर्बादी की बढ़ती मात्रा। परिणामस्वरूप, विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है, जैसे ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, उद्योग और घरेलू उपयोग में समस्याएँ। यह कई विकासशील और विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती हो सकती है।

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hindi essay on urja sankat

ऊर्जा संरक्षण पर निबंध- Essay on Energy Conservation in Hindi

In this article, we are providing information about Energy Conservation in Hindi- Short Essay on Energy Conservation in Hindi Language. ऊर्जा संरक्षण पर निबंध- Urja Sanrakshan Par Nibandh.

प्रकृति ने हमें ऊर्जा के बहुत से स्त्रोत दिए हैं जो कि हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। ऊर्जा को स्त्रोत हमारी जिंदगी को सरल बना दिया है। हमारे पास ऊर्जा को बहुत से संसाधन है जैसे कि पैट्रोल, लकड़ी, कोयला आदि। यह स्त्रोत एक बार ही प्रयोग में लाए जा सकते हैं और इनकी मात्रा बहुत सीमित है।

ऊर्जा सरंक्षण- हमारे पास ऊर्जा के स्त्रोत सीमित मात्रा में होने के कारण और उनके भविष्य में प्रयोग के लिए हमें ऊर्जा को सरंक्षित करके रखना होगा। अगर आज हम ऊर्जा को बचाऐंगे और नष्ट नहीं करेंगे तो ऊर्जा के स्त्रोत भविष्य के लिए बच जाऐंगे।

ऊर्जा का प्रयोग- बढ़ते हुई तकनीक और जनसंख्या वृद्धि के कारण ऊर्जा की माँग में वृद्धि हुई है। हम हर रोज बहुत सारे कार्यों में ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। वाहन चलाने के लिए पैट्रोल की जरूरत होती है, बिजली भी कोयले से उत्पन्न होती है और हम सब बिजली का बहुत ज्यादा प्रयोग करते हैं। ऊर्जा के स्त्रोत हमारे लिए बहुत जरूरी है।

ऊर्जा सरंक्षण के उपाय- अगर हम चाहते है कि हम भविष्य में भी ऊर्जा प्राप्त कर सके और ऊर्जा के स्त्रतों का लाभ उठा सके तो हमें इनका सोच समझकर प्रयोग करना होगा और साथ ही ऊर्जा के ऐसे स्त्रोत ढूंढने होंगे जिनका हमारे पास भंडार हो और वह कभी न खत्म होने वाले हो। हमने ऊर्जा के नए स्त्रोत खोज लिए हैं जैसे कि सौर ऊर्जा जो कि सूर्य की गर्मी से प्राप्त होती है और यह कभी खत्म नहीं होने वाली है और वातावरण के लिए हानिकारक भी नहीं है। पवन ऊर्जा जो कि तेज हवा से प्राप्त होती है। पैट्रोल, कोयले आदि जैसे ऊर्जा के स्त्रोतों को सरंक्षित करने के लिए हमें

निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-

1. हमें पंखे, लाईट आदि को बिना प्रयोग के खुला नहीं छोड़ना चाहिए। 2. हमें एलीडी बल्ब का प्रयोग करना चाहिए जिससे बिजली की खपत कम हो और कोयले को बचाया जा सके। 3. निजी वाहनों का प्रयोग छोड़कर सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। 4. थोड़ी दूर जाने के लिए साईकिल का प्रयोग करें और हो सके तो थोड़ा पैदल चले।

निष्कर्ष- बिजली और वाहन आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है। हमें ऊर्जा के स्त्रोत बचाकर सौर ऊर्जा जैसे स्त्रोत प्रयोग में लाने चाहिए। लोगों ने ऊर्जा के महत्व को समझा है और उसे बचाने के प्रयास में लगे हुए हैं। बच्चों को भी ऊर्जा को बचाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

#Energy Conservation Essay in Hindi

सौर ऊर्जा पर निबंध- Essay on Solar Energy in Hindi

पर्यावरण पर निबंध- Essay on Environment in Hindi

बिजली बचाओ पर निबंध- Save Electricity Essay in Hindi

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2 thoughts on “ऊर्जा संरक्षण पर निबंध- Essay on Energy Conservation in Hindi”

hindi essay on urja sankat

Shot niband hai thoda aur pada hona chahiye tha jankari thoda aur chahiye so me apse request karti hu ki please niband ko thoda laba banaye niband ka topk sab acha tha

hindi essay on urja sankat

My name is arsh malik me aapka bahut bda aabhari hu Thanks you yar jaan

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ऊर्जा संरक्षण पर निबंध | Essay on Energy Conservation in Hindi

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ऊर्जा संरक्षण पर निबंध | Essay on Energy Conservation in Hindi!

आधुनिक युग विज्ञान का युग है । मनुष्य विकास के पथ पर बड़ी तेजी से अग्रसर है उसने समय के साथ स्वयं के लिए सुख के सभी साधन एकत्र कर लिए हैं । इतना होने के बाद और अधिक पा लेने की अभिलाषा में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है ।

समय के साथ उसकी असंतोष की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कल-कारखाने, मोटर-गाड़ियाँ, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि सभी उसकी इसी प्रवृत्ति की देन हैं । उसके इस विस्तार से संसाधनों के समाप्त होने का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है ।

प्रकृति में संसाधन सीमित हैं । दूसरे शब्दों में, प्रकृति में उपलब्ध ऊर्जा भी सीमित है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ आवश्यकताएँ भी बढ़ती ही जा रही हैं । दिन-प्रतिदिन सड़कों पर मोटर-गाड़ियों की संख्या में अतुलनीय बुदधि हो रही है । रेलगाड़ी हो या हवाई जहाज सभी की संख्या में वृद्‌धि हो रही है । मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है ।

इन सभी मशीनों के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । परंतु जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के समस्त संसाधनों के नष्ट होने की आशंका बढ़ने लगी है । विशेषकर ऊर्जा के उन सभी साधनों की जिन्हें पुन: निर्मित नहीं किया जा सकता है । उदाहरण के लिए पेट्रोल, डीजल, कोयला तथा भोजन पकाने की गैस आदि ।

पेट्रोल अथवा डीजल जैसे संसाधनों रहित विश्व की परिकल्पना भी दुष्कर प्रतीत होती है । परंतु वास्तविकता यही है कि जिस तेजी से हम इन संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब धरती से ऊर्जा के हमारे ये संसाधन विलुप्त हो जाएँगे ।

ADVERTISEMENTS:

अत: यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नहीं होते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।

हमारे देश में भी ऊर्जा की आवश्यकता दिन पर दिन विकास व जनसंख्या वृद्‌धि के साथ बढ़ती चली जा रही है । ऊर्जा की बढ़ती माँग आने वाले वर्षो में आज से तीन या चार गुणा अधिक होगी । इन परिस्थितियों में भारत सरकार की ओर से ठोस कदम उठाने की अवश्यकता है । इस दिशा में अनेक रूपों में कई प्रयास किए गए हैं जिनस कुछ हद तक सफलता भी अर्जित हुई है । ‘बायो-गैस’ तथा अधिक वृक्ष उत्पादन आदि इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं । पृथ्वी पर ऐसे ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं है जो प्रदूषण रहित हैं ।

विश्व भर में ऊर्जा संरक्षण व ऊर्जा के नवीन श्रोतों को विकसित करने के महत्व को समझा जा रहा है । सभी देश सौर-ऊर्जा को अधिक महत्व दे रहे हैं तथा इसे और अधिक उपयोगी बनाने व इसके विकास हेतु विश्व भर के वैज्ञानिकों द्‌वारा अनुसंधान जारी हैं । जहाँ तक भारत की स्थिति है, हमारे देश में पेट्रोलियम ऊर्जा का एक बड़ा भाग खाड़ी के तेल उत्पादक देशों में आयात किया जाता है ।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कभी-कभी कच्चा तेल इतना महँगा हो जाता है कि इसे खरीद पाना भारतीय तेल कंपनियों के वश में नहीं होता । तब सरकार या तो तेल मूल्यों में वृद्‌धि कर इस घाटे की भरपाई करती है अथवा तेल कंपनियों को सीमा-शुल्क आदि में छूट देकर स्वयं घाटा उठाती है । दोनों ही स्थितियों में बोझ देश के उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है ।

हमें आशा है कि वैज्ञानिक ऊर्जा के नए संसाधनों की खोज व इसके विकास में समय रहते सक्षम होंगे । इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि सभी नागरिक ऊर्जा के महत्व को समझें और ऊर्जा संरक्षण के प्रति जागरूक बनें । यह निरंतर प्रयास करें कि ऊर्जा चाहे जिस रूप में हो उसे व्यर्थ न जाने दें ।

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Renewable Sources Of Energy Essay In Hindi

अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – Renewable Sources Of Energy Essay In Hindi

अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – essay on renewable sources of energy in hindi.

  • प्रस्तावना,
  • (क) सौर ऊर्जा,
  • (ख) पवन ऊर्जा,
  • (ग) जल ऊर्जा,
  • (घ) भू–तापीय ऊर्जा,
  • (ङ) बायोमास एवं जैव ईंधन,
  • (च) परमाणु ऊर्जा,
  • अक्षय ऊर्जा और हमारा राष्ट्र,

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – Akshay Oorja : Sambhaavanaen Aur Neetiyaan Nibandh

प्रस्तावना– पेट्रोल, डीजल, कोयला, गैस आदि की दिनोदिन घटती मात्रा ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि हमें अपनी कल की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए ऐसे संसाधनों को खोजना होगा, जो कभी समाप्त न हों और हमारा जीवन सुचारु रूप से बिना किसी ऊर्जा संकट के चलता रहे। ऊर्जा के कभी न समाप्त होनेवाले संसाधनों को ही हम अक्षय ऊर्जा के स्रोत के रूप में जानते हैं।

अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत– मानव एक विकासशील प्राणी है। उसने ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों की खोज की, जो आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन गए हैं। सबसे पहले मानव ने ऊर्जा के परम्परागत साधनों–कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि का प्रयोग किया, जो सीमित मात्रा में होने के साथ–साथ पर्यावरण के लिए हानिकारक भी हैं।

अक्षय ऊर्जा के स्रोत न केवल ऊर्जा के संकट मिटाने में सक्षम हैं, पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। भारत में अक्षय ऊर्जा के अनेक स्रोत उपलब्ध हैं; जैसे–सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू–तापीय ऊर्जा, बायोमास एवं जैव ईंधन आदि। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

(क) सौर ऊर्जा–भारत में सौर ऊर्जा की काफी सम्भावनाएँ हैं; क्योंकि देश के अधिकतर भागों में वर्ष में 250–300 दिन सूर्य अपनी किरणें बिखेरता है। सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। फोटोवोल्टेइक सेल सूर्य से प्राप्त होनेवाली किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है। हमारे देश में सौर ऊर्जा के रूप में प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार खरब यूनिट बिजली बनाने की सम्भावना मौजूद है, जिसके लिए पर्याप्त तीव्रगति से कार्य किए जाने की आवश्यकता है। भारत में विगत 25–30 वर्षों से सौर ऊर्जा पर कार्य हो रहा है।

वर्ष 2010 ई० में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा के माध्यम से देश को ऊर्जा के संकट से मुक्ति दिलाना है। आज देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष 5 हजार करोड़ लीटर डीजल का प्रयोग कर रहे हैं, सौर ऊर्जा के प्रयोग द्वारा इस डीजल को बचाया जा सकता है।

सौर ऊर्जा अभी महँगी है, इसलिए इसकी उपयोगिता का ज्ञान होते हुए भी लोग इसका प्रयोग करने से बचते हैं। अब सोलर कूकर, सोलर बैटरी चालित वाहन और मोबाइल फोन भी प्रयोग में लाए जा रहे हैं। लोग धीरे–धीरे इसकी महत्ता समझ रहे हैं। कर्नाटक के लगभग एक हजार गाँवों में सौर ऊर्जा के प्रयोग का अभियान चल रहा है। आनेवाले समय में सौर ऊर्जा निश्चित ही भारत को प्रगति के मार्ग पर ले जाने में सहायक होगी।

(ख) पवन ऊर्जा–पवन या वायु ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीन काल में पवन ऊर्जा का प्रयोग नाव चलाने में किया जाता था। लगभग 2 हजार वर्ष पूर्व सिंचाई और अनाज कूटने आदि में पवन ऊर्जा के प्रयोग का प्रणाम मिलता है। चीन, अफगानिस्तान, पर्शिया, डेनमार्क, कैलिफोर्निया में पवन ऊर्जा का उपयोग बिजली बनाने में किया जा रहा है।

भारत में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान आदि प्रदेशों में पवन ऊर्जा के विद्युत् उत्पादन का कार्य चल रहा है। भारत में पवन ऊर्जा की काफी सम्भावनाएँ हैं। इस समय भारत में पवन ऊर्जा का नवीन और ऊर्जा मन्त्रालय के अनुसार भारत में वायु द्वारा 48,500 मेगावॉट विद्युत् उत्पादन की क्षमता है, अभी तक 12,800 मेगावॉट की क्षमता ही प्राप्त की जा सकी है।

पिछले दो दशकों में विद्युत् उत्पादक पवनचक्कियों (टरबाइनों) की रूपरेखा, स्थल का चयन, स्थापना, कार्यकलाप और रख–रखाव में तकनीकी रूप से भारी प्रगति हुई है और विद्युत् उत्पादन की लागत कम हुई है। पवन ऊर्जा द्वारा पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता; क्योंकि इसमें अपशिष्ट का उत्पादन नहीं के बराबर होता है विकिरण की समस्या भी नहीं होती है। आनेवाले समय में पवन ऊर्जा के सशक्त माध्यम बनने की पूरी सम्भावनाएँ हैं।

(ग) जल ऊर्जा–जल अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक है। इसमें नदियों पर बाँध बनाकर उनके जल से टरबाइनों द्वारा विद्युत् उत्पादन किया जाता है। भारत में बाँध बनाकर जल विद्युत् का उत्पादन दीर्घकाल से हो रहा है। इसके अलावा समुद्र में उत्पन्न होनेवाले ज्वार–भाटा की लहरों से भी विद्युत् उत्पादन किया जा सकता . है। भारत की सीमाएँ तीन–तीन ओर से समुद्रों से घिरी हैं; अतः अक्षय ऊर्जा स्त्रोत का प्रयोग बड़े पैमाने पर कर सकता है।

(घ) भू–तापीय ऊर्जा–यह पृथ्वी से प्राप्त होनेवाली ऊर्जा है। भू–तापीय ऊर्जा का जन्म पृथ्वी की गहराई में गर्म, पिघली चट्टानों से होता है। इस स्रोत से ऐसे स्थानों पर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के गर्म क्षेत्र तक एक सुरंग खोदी जाती है, जिनके द्वारा पानी को वहाँ पहुँचाकर उसकी भाप बनाकर टरबाइन चलाकर बिजली बनाई जाती है।

भारत में लगभग 113 संकेत मिले हैं, जिनसे लगभग 10 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन होने की सम्भावना है। भू–तापीय ऊर्जा से विद्युत् उत्पादन लागत जल ऊर्जा से उत्पन्न विद्युत् जितनी ही है। भारत को भू–तापीय ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यक संसाधन जुटाने पड़ेंगे, तभी इस ऊर्जा का लाभ उठाया जा सकेगा।

(ङ) बायोमास एवं जैव ईंधन–कृषि एवं वानिकी अवशेषों (बायोमास / जैव पदार्थों) का प्रयोग भी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। भारत की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या जैव पदार्थों का प्रयोग खाना बनाने के लिए ईंधन के रूप में करती है। लकड़ी, गोबर और खरपतवार प्रमुख जैव–पदार्थ हैं, जिनसे बायोगैस उत्पन्न की जाती है। गन्ने, महुए, आलू, चावल, जौ, मकई और चुकन्दर जैसे शर्करायुक्त पदार्थों से एथेनॉल बनाया जाता है।

इसे पेट्रोल में मिलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत सरकार इसका 10 प्रतिशत तक पेट्रोल में मिश्रण करना चाहती है, जिसके लिए प्रतिवर्ष 266 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरूरत होगी, किन्तु एथेनॉल बनाने वाली चीनी मिलों ने अभी 140 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की पेशकश ही सरकार से की है।

इसके अतिरिक्त कृषि से निकलनेवाले व्यर्थ पदार्थों; जैसे खाली भुट्टे, फसलों के डंठल, भूसी आदि और शहरों एवं उद्योगों के ठोस कचरे से भी बिजली बनाई जा सकती है। भारतवर्ष में उनसे लगभग 23,700 मेगावॉट बिजली प्रतिवर्ष बन सकती है, परन्तु अभी इनसे 2,500 मेगावॉट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है।

(च) परमाणु ऊर्जा–भारत के डॉ. होमी भाभा को भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का जनक माना जाता है। भारत में पाँच परमाणु ऊर्जा केन्द्रों पर 10 परमाणु रिएक्टर हैं, जो देश की कुल दो प्रतिशत बिजली का उत्पादन करते हैं। यद्यपि परमाणु ऊर्जा पर्यावरण के लिए घातक नहीं है, लेकिन इससे सम्बन्धित कोई भी दुर्घटना अवश्य ही मानव–जीवन के लिए घातक सिद्ध होती है।

इसका सबसे अधिक खतरा उत्पादन के पश्चात् निकलनेवाला रेडियोधर्मी अपशिष्ट कचरा है, जिसे समाप्त करना दुष्कर होता जा रहा है; अत: यह अक्षय ऊर्जा का स्रोत होते हुए भी इसका प्रयोग दीर्घकाल तक नहीं किया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा और हमारा राष्ट्र–अक्षय ऊर्जा वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए श्रेष्ठ साधन है; क्योंकि इससे हमारा पर्यावरण स्वच्छता के साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा भी प्राप्त होती है।

इसी कारण विभिन्न देशों में अपने–अपने अक्षय ऊर्जा स्रोत बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा दिखाई देने लगी है। वैश्विक रुझानों को देखते हुए भारत अक्षय की प्रतिस्पर्धा का सक्रिय भागीदार है। वह निरन्तर अक्षय ऊर्जा स्रोतों की अपनी श्रेणियाँ विस्तृत करने के प्रयास में जुटा है। भारत ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता 74 गीगावॉट तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें 2020 तक सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाकर 20 GW करने और बिजली की कुल खपत का 15 प्रतिशत हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

वर्तमान में भारत की संस्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता लगभग 30 गीगावॉट है और भारत इस क्षेत्र में अग्रणी है। भारत की अक्षय ऊर्जा विकास योजना में घरेलू ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करना भी शामिल है। इस योजना से जहाँ क्षेत्रीय विकास होगा, वहीं रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। पर्यावरण सुरक्षा भी इसके माध्यम से हो सकेगा और ग्लोबल वार्मिंग के अन्तर्गत अधिक कार्बन डाइ–ऑक्साइड उत्सर्जन के अन्तरराष्ट्रीय दबाव से भी हम मुक्त हो सकेंगे।

उपसंहार– अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा जो योजनाएँ चलाई जा रही हैं; उनसे यह आशा बँधती है कि हम निकट भविष्य में अपनी ऊर्जा–प्राप्ति और पर्यावरण–सुरक्षा की समस्या का समाधान खोजने में अवश्य ही सफल होंगे। हम इस क्षेत्र में अन्य विकासशील देशों को सहयोग करके न केवल विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकेंगे, वरन् विश्व–समुदाय के मध्य स्वयं को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में भी सफल होंगे।

सड़क सुरक्षा-जीवन रक्षा Summary In Hindi

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Hindi Essay on “Urja Sanrakshan” , ”ऊर्जा संरक्षण” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

ऊर्जा संरक्षण

Urja Sanrakshan

                                आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य विकास के पथ पर बड़ी तेजी से अग्रसर है। उतने समय के साथ स्वंय के लिए सुख के सभी साधन एकत्र कर लिए हैं। इतना होने के बाद और अधिक पा लेने की अभिलाषा में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पहले से कही अधिक बढ़ गई है। समय के साथ उसकी असंतोष की पृवत्ति बढ़ती जा रही है। कल-कारखानें, मोटर-गाड़ियाँ, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि सभी उसकी इसी प्रवृति की देन हैं। उसके इस विस्तार से संसाधनों के समाप्त होने का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

                                प्रकृति में संसाधन सीमित हैं। दूसरे शब्दों में, प्रकृति में उपलब्ध ऊर्जा भी सीमित है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ आवश्वकताएँ भी बढ़ती जा रही है। दिन-प्रतिदिन सड़को पर मोटर-गाड़ियों की संख्या में अतुलनीय वृद्धि हो रही है। रेलगाड़ी हो या हवाई जहाज सभी की संख्या में वृद्धि हो रही है। मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इन सभी मशीनों के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। परंतु जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के समस्त संसाधनों के नष्ट होने की आंशका बढ़ने लगी है। विशेषकर ऊर्जा के उन सभी साधनों की जिन्हें पुनः निर्मित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए प्रट्रोल, डीजल, कोयला तथा भोजन पकाने की गैस आदि।

                                  पेट्रोल अथवा डीजल जैसे संसाधनों रहित विश्व की परिकल्पना भी दुष्कर प्रतीत होती है। पंरतु वास्तविकता वहीं है जिस तेजी से हम इन संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब धरती से ऊर्जा के हमारे ये संसाधन विलुप्त हो जाएँगे। अतः यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नही होेते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।

                                हमारे देश में भी ऊर्जा की आवश्यकता दिन पर दिन विकास व जनसंख्या वृद्धि के साथ बड़ती चली जा रही है। ऊर्जा की बढ़ती माँग आने वाले वर्षों में आज से तीन या चार गुणा अधिक होगी। इन परिस्थितियों में भारत सरकार की ओर से ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इस दिशा में अनेक रूपों में कई प्रयास किए गए हैं जिनसे हमें कुछ हद तक सफलता भी अर्जित हुई है। ‘बायो-गैस‘ तथा अधिक वृक्ष उत्पादन आदि इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। पृथ्वी पर ऐसे ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं है जो प्रदुषण रहित हैं।

                                विश्व भर में ऊर्जा संरक्षण व ऊर्जा के नवीन श्रोतों को विकसित करने के महत्व को समझा जा रहा हैं। सभी देश सौर-ऊर्जा को अधिक महत्व दे रहे हैं तथा इसे और अधिक उपयोगी बनाने व इसके विकास हेतु विश्व भर के वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान जारी हैं जहाँ तक भारत की स्थिति है, हमारे देश में पेट्रोलियम ऊर्जा का एक बड़ा भाग खाड़ी के तेल उत्पादक देशों से आयात किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कभी-कभी कच्चा तेल इतना मंहगा हो जाता है कि इसे खरीद पाना भारतीय तेल कंपनियों के वश मंे नही होता। तब सरकार या तो तेल मूल्यों में वृद्धि कर इस घाटे की भरपाई करती है अथवा तेल कंपनियों को सीमा-शुल्क आदि में छूट देकर स्वयं घाटा उठाती हैं। दोनों ही स्थितियों में बोझ देश के उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है।

                हमें आशा है कि वैज्ञानिक ऊर्जा के नए संसाधनों की खोज व इसके विकास में समय रहते सक्षम होगें। इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि सभी नागरिक ऊर्जा के महत्व को समझें और ऊर्जा संरक्षण के प्रति जागरूक बनें। यह निरंतर प्रयास करें कि ऊर्जा चाहे जिस रूप में हो उसे व्यर्थ न जाने दें।

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सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) के महत्व पर निबंध | Solar Energy and its importance Essay in Hindi

सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) के महत्व पर निबंध Solar Energy (Saur urja) and its importance Essay in hindi

भारत  एक  तेजी  से  उभरने  वाली  अर्थव्यवस्था  हैं,  जिसमें  100  करोड़  से  भी  ज्यादा  लोग  शामिल  हैं  और  जिन्हें  ऊर्जा  की  बड़ी  मात्रा  में  आवश्यकता  हैं.  जिसकी  पूर्ति  भारत  सरकार  द्वारा  विभिन्न  नविनीकरणीय  और  अनविनीकरणीय  संसाधनों  का  उपयोग  करके  की  जा  रही  हैं.  हमारा  देश  बिजली  को  उत्पन्न  करने  एवं  उसकी  खपत  करने  में  विश्व  में  पांचवे  स्थान  पर  हैं.  हमारे  देश  में  बिजली  का  उत्पादन  हर  साल  बढ़  रहा  हैं,  पर  हम  इस  बात  से  भी  इंकार  नहीं  कर  सकते  कि  जनसंख्या  भी  साथ  में  बढ़  रही  हैं.

Table of Contents

सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) के महत्व Solar Energy (Saur urja) and its importance in hindi

देश  में  बिजली  का  53%  उत्पादन  कोयले  से  किया  जाता  हैं  और  ऐसा  अनुमान  लगाया  जाता  हैं  कि  वर्ष  2040 – 2050  तक  ये  भी  समाप्त  हो  जाएगा.  भारत  की  72%  से  अधिक  जनता  गाँवों  में  निवास  करती  हैं  और  इसमें  से  आधे  गाँव  बिना  बिजली  के  ही  अपना  जीवन  यापन  कर  रहे  हैं.  अब  भारत  ऐसी  स्थिति  में  आ गया  हैं  कि  अब  हम  ऊर्जा  के  अधिकाधिक  उत्पादन  के  लिए,  ऊर्जा  के  संरक्षण  के  क्षेत्र  में,  उसके  नविनीकरण  एवं  बचाव  के  लिए  कदम  उठाए.  इस  मांग  को  पूर्ण  करने  हेतु  सौर  ऊर्जा  का  उपयोग  सर्वोत्तम  उपाय  हैं,  जिससे  हम  ऊर्जा  की  मांग  एवं  पूर्ति  के  बीच  सामंजस्य  स्थापित  कर  सकते  हैं.

saur urja

सौर उर्जा क्या है (What is solar energy) :

सामान्य  भाषा  में  सौर  ऊर्जा  से  तात्पर्य  सूर्य  से  प्राप्त  होने  वाली  ऊर्जा  से  हैं.  सूर्य  की  किरणों  को  एक  बिंदु  पर  एकत्रित  करके  जब  ऊर्जा  उत्पन्न  की  जाती  हैं,  तो  ये  प्रक्रिया  सौर  ऊर्जा  उत्पादन कहलाती  हैं.  सौर  ऊर्जा  अर्थात्  सूर्य  की  किरणों  को  विद्युत  में  बदलना,  चाहे  वह  पी.  वी.  [ Photovoltaic ]  द्वारा  प्रत्यक्ष  रूप  से  हो  या  सी.  एस.  पी. [ Concentrated  Solar  Power ]  द्वारा  अप्रत्यक्ष  रूप  से. सी.  एस.  पी. में  सौर  ऊर्जा  उत्पन्न  करने  हेतु   लेंस  अथवा  दर्पणों  और  ट्रेकिंग  उपकरणों  का  उपयोग  किया  जाता  हैं  और  सूर्य  प्रकाश  के  एक  बहुत  बड़े  भाग  को  एक  छोटी  सी  किरण   पर  एकत्रित  किया  जाता  हैं.  सोलर पॉवर प्लांट  इसी  तरह  कार्य  करते  हैं.

भारत  एक  उष्ण – कटिबंधीय  देश  हैं,  जिसके  अनेक  लाभों  में  से  एक  लाभ  हमे  सूर्य  प्रकाश  के  रूप  में  भी  प्राप्त  होता  हैं.  उष्ण – कटिबंधीय  देश  होने  के  कारण  हमारे  यहाँ  वर्ष  भर  सौर  विकिरण  प्राप्त  की  जाती  हैं,  जिसमें  सूर्य  प्रकाश  के  लगभग  3000  घंटे  शामिल  हैं,  जो  कि  5000  ट्रिलियन  kWh  के  बराबर  हैं.  भारत  के  लगभग  सारे  क्षेत्रों  में  4 – 7 kWh  प्रति  वर्ग – मीटर  के  बराबर  हैं,  जो   कि  2300 – 3200  सूर्य  प्रकाश   के  घंटे  प्रति  वर्ष  के  बराबर  हैं. चूँकि  भारत  की  अधिकांश  जनता  ग्रामीण क्षेत्र  में  निवास  करती  हैं ,  अतः  वहाँ  सौर  ऊर्जा  की  उपयोगिता  बहुत  हैं.  साथ  ही  विकास  की  भी  संभावनाएँ  हैं  और  अगर  सौर  ऊर्जा  का  उपयोग  प्रारंभ  होता  हैं,  तो  वहाँ  घरेलू  कामों  में  कंडों  एवं  लकड़ियों  का  प्रयोग  होने  में  भी  कमी  आएगी.  जिससे   वायु  प्रदुषण  भी  नहीं  होगा.

भारत  में  सौर  ऊर्जा  उत्पन्न  करने  के  लिए  विशाल  कार्यक्षेत्र  उपलब्ध  हैं  क्योकिं  भारत  की  भूस्थली  ऐसे  स्थान  पर  हैं,  जहाँ  सूर्य  प्रकाश  पर्याप्त  मात्रा  में  पहुँचता  हैं. पृथ्वी  की  सतह  पर  प्रति  वर्ष  पहुँचने  वाले  सूर्य  प्रकाश  की  मात्रा  अत्याधिक  हैं.  पृथ्वी  पर  अनेक  अनविनीकरणीय  पदार्थों,  जैसेः  कोयले,  तेल,  प्राकृतिक  गैस  एवं  अन्य  खनन  द्वारा  प्राप्त  यूरेनियम  पदार्थों   का  एक  वर्ष  में  जितना  उपभोग  होता  हैं,  उसके  दोगुने  से  भी  ज्यादा  हर  वर्ष  सूर्य  प्रकाश  धरती  पर  पहुंचता  हैं  और  व्यर्थ  हो  जाता  हैं.

सौर ऊर्जा तकनीक (Solar energy technology )-:

सौर  ऊर्जा,  सौर  विकिरणों  एवं  सूर्य  के  ताप   के  प्रयोग  द्वारा  एक  विकसित  तकनीक  हैं.  इसके  और  भी  रूप हैं,  जैसे -:  सौर  ताप,  सौर  विकिरण  और  कृत्रिम  प्रकाश  संश्लेषण,  आदि.

भारत में सौर ऊर्जा से होने वाले लाभ (Saur urja benefits in india) – :

सौर  ऊर्जा  से  होने  वाले  फायदों  के  कारण  यह  और  भी  अधिक  उचित  प्रतीत  होता  हैं.  इसमें  से  होने  वाले  कुछ  लाभ  निम्न – लिखित  हैं -:

  • सौर ऊर्जा  कभी  ख़त्म  न  होने  वाला  संसाधन  हैं  और  यह  अनविनीकरणीय  संसाधनों  का  सर्वोत्तम  प्रतिस्थापन  हैं.
  • सौर ऊर्जा  वातावरण  के  लिए  भी  लाभकारी  हैं.  जब  इसे  उपयोग  किया  जाता  है,  तो  यह  वातावरण  में  कार्बन – डाई – ऑक्साइड  और  अन्य  हानिकारक  गैस  नहीं  छोड़ती,  तो  वातावरण  प्रदूषित  नहीं  होता.
  • सौर ऊर्जा  अनेक  उद्देश्यों  हेतु  प्रयोग  की  जाती  हैं , जैसे -: उष्णता  के  लिए,  सुखाने  के  लिए,  भोजन  पकाने  में  और  बिजली  के  रूप  में,  आदि.  सौर  ऊर्जा  का  उपयोग  कार  में,  हवाई  जहाज  में,  बड़ी  नावों  में,  उपग्रहों  में,  केल्कुलेटर  में  और  अन्य  उपकरणों  में  भी  इसका  प्रयोग  किया  जाना  उपयुक्त  हैं.
  • चूँकि सौर  ऊर्जा  एक  अनविनीकरणीय  ऊर्जा  संसाधन  हैं.  अतः  भारत  जैसे  देशों  में  जहाँ  ऊर्जा  का  उत्पादन  महँगा  पड़ता  हैं,  तो  वहाँ  ये  संसाधन  इसका  बेहतरीन  विकल्प  हैं.
  • सौर ऊर्जा  उपकरण  किसी  भी  स्थान  पर  स्थापित  किया  जा  सकता  हैं.  यहाँ  तक  कि  ये  घर  में  भी  स्थापित  किया  जा  सकता  हैं,  क्योंकिं  यह  ऊर्जा  के  अन्य  संसाधनों  की  तुलना  में  यह  सस्ता  भी  पड़ता  हैं.

भारत में सौर ऊर्जा से होने वाली हानियाँ (Solar power disadvantages) -:

  • हम रात  को  सौर  ऊर्जा  से  बिजली  उत्पादन  का  कार्य  नहीं  कर  सकते  हैं.
  • साथ ही  दिन  में  भी  जब  बारिश  का  मौसम  हो  या  बादल  हो  तो  सौर  ऊर्जा  के  द्वारा  बिजली  उत्पादन  का  कार्य  नहीं  किया  जा  सकता.  इस  कारण  हम  सौर  ऊर्जा  पर  पूरी  तरह  से  भरोसा  नहीं  कर  सकते.
  • केवल वही  क्षेत्र  सौर  ऊर्जा  उत्पादन  करने  में  सक्षम  हो  सकते  हैं,  जहाँ  पर्याप्त  मात्रा  सूर्य  प्रकाश  आता  हो.
  • सौर ऊर्जा  उत्पन्न  करने  के  लिए  हमे  सौर  उपकरणों  के  अलावा  इन्वर्टर  तथा  इसके  संग्रहण  के  लिए  बैटरी  की  आवश्यकता  होती  हैं.  वैसे  तो  सौर  उपकरण  सस्ते  होते  हैं,  परन्तु  साथ  में  उपयोगी  इन्वर्टर  और  बैटरी  इसे  महंगा  बना  देते  हैं.
  • सौर उपकरण  आकार  में  बड़े  होते  हैं,  अतः  इन्हें  स्थापित  करने  हेतु  बड़े  क्षेत्रफल  की  भूमि  की  जरुरत  होती  हैं  और  एक  बार  यदि  ये  उपकरण  लग  जाये  तो  वह  भू – भाग  लम्बे  समय  के  लिए  इसी  उद्देश्य  में  काम  में  लिया  जाता  हैं  और  इसका  उपयोग  किसी  और  कार्य  में  नहीं  किया  जा  सकता.
  • इस प्रकार  उत्पन्न  होने  वाली  ऊर्जा  की  मात्रा  अन्य  संसाधनों  की  तुलना  में  बहुत  ही  कम  होती  हैं,  जो  हमारी  आवश्यकताओ  को  पूरा  करने  में  असमर्थ  हैं.
  • सौर उपकरण  नाज़ुक  होते  हैं,  जिनके  रख – रखाव  का  ध्यान  रखना  बहुत  जरुरी  होता  हैं,  जिससे  इनके  बीमा  आदि  पर  व्यय  होने  से  अतिरिक्त  लागत  भी  होती  हैं,  जिससे  खर्च  बढ़  जाता  हैं.

भारत में सौर ऊर्जा (Saur urja in india)-:

भारत  में  भी  सौर  ऊर्जा  के  लाभों  को  ध्यान  में  रखकर  अनेक  प्रोजेक्ट  प्रारंभ  किये  गये  हैं -:

  • भारत के  थार  मरुस्थल  में  देश  का  अब  तक  का  सर्वोत्तम   सौर  ऊर्जा  प्रोजेक्ट  प्रारंभ  किया  गया  हैं,  जो  अनुमानतः  700 – 2100  GW  ऊर्जा  उत्पन्न  करने  में  सक्षम  हैं.
  • 1 मार्च,  2014  को  गुजरात  के  तत्कालीन  मुख्यमंत्री  ने  मध्यप्रदेश  के  नीमच  जिले  में  देश  का  सबसे  बड़ा  सौर  ऊर्जा  प्लांट  का  उदघाटन  किया  हैं.
  • केंद्र सरकार  ने  ‘ जवाहरलाल  नेहरु  राष्ट्रीय  सौर  ऊर्जा  परियोजना  [ JNNSM ] ’  को  शुरू  कर  वर्ष  2022  तक  20,000  MW  तक  ऊर्जा  उत्पादन  करने  का  लक्ष्य  निश्चित  किया  हैं.

सौर उत्पादित वस्तुएँ (Saur urja equipment)-:

सौर  ऊर्जा  द्वारा  तथा  इसमें  सहायक  वस्तुओं  व  उपकरणों  का  निर्माण  किया  गया  हैं,  जिसमे  से  कुछ  निम्नानुसार  हैं -:

  • ब्रेनी इको  सोलर  होम UPS 1100,
  • सोलर DC सिस्टम  120,
  • सोलर पावर  कंडिशनिंग  यूनिट,
  • PV ग्रिड  कनेक्टेड  इन्वर्टर्स,
  • PWM टेक्नॉलोजी,
  • MPPT टेक्नॉलोजी
  • सोलर कन्वर्जन  किट,
  • सोलर शाइन  वेव  इन्वर्टर,
  • सोलर बैटरी,
  • सोलर स्ट्रीट लाइटिंग  सिस्टम,  आदि.

इस  प्रकार  सौर  ऊर्जा  हमारे  देश  में  विकसित  रूप  ग्रहण  कर  चुकी  हैं  और  हम  इससे  होने  वाले  फायदों  से  लाभान्वित  हो  रहे  हैं.

भारत में सौर उर्जा का गाँवों और शहरों में उपयोग

भारत के गांवों और शहरों में भी सौर उर्जा का उपयोग अब संभव हो गया है. एक समय था जब भारत के अनेक गांवों में बिजली नहीं थी. लेकिन तकनिकी विकास और सौर उर्जा की मदद से आज भारत के अनेक गांवों में बिजली है. हालाँकि आज भी भारत में अनेक गाँव ऐसे है जहाँ पर बिजली नहीं है लेकिन, सौर उर्जा की मदद से गांवो और शहरों में बिजली उत्पादन काफी तेजी से बढ़ा है और लोग सौर उर्जा की मदद से अपने घर को रौशन करने में सफल हुए है. सौर उर्जा या सौलर पैनल पर सरकार भी भारतियों की काफी मदद कर रही है.

  • विद्यांजली योजना की जानकारी
  • अनुष्का शर्मा जीवन परिचय
  • बिजली कैसे बचायें ? बिजली बचाओ पर लेख 

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सोलर एनर्जी, सौर ऊर्जा पर निबंध, महत्व | Solar Energy Essay in hindi

सौर ऊर्जा पर निबंध | saur-urja-Solar-Energy-Essay-in-hindi

सोलर एनर्जी, सौर ऊर्जा पर निबंध, सौर ऊर्जा का महत्व (Essay on Solar Energy in hindi, Solar Energy Essay in hindi)

आज का यह निबंध सौर ऊर्जा संयंत्र पर दिया गया है।  इस निबंध के माध्यम से आप बहुत ही सरल शब्दों में सौर ऊर्जा संयंत्र के बारे में जानेंगे। सौर ऊर्जा क्या होती है? सौर ऊर्जा संयंत्र के उपयोग? सौर ऊर्जा संयंत्र के लाभ और हानि? सौर आवश्यक है? सौर ऊर्जा का महत्व? आइये इन सभी के बारे में नीचे दिए निबंध से जानकारी प्राप्त करें।

प्रस्तावना : जैसा की आप सब जानते है की आने वाले समय में कोयले की कमी बहुत ज़्यादा होने वाली है और दिन पर दिन ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। भारत में 1.4 बिलियन के करीब आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। दैनिक जीवन में ऊर्जा के प्रयोग को कम करके उसका संरक्षण करना ही ऊर्जा संरक्षण कहलाता है।  पृथ्वी पर ऊर्जा के सीमित संसाधन है और इनका पुनर्निर्माण करने में काफी समय लग जाता है।  भविष्य में भावी पीढ़ी को ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकें।  इसके लिए ऊर्जा का संरक्षण करना अनिवार्य है।

विषय–सूची

सौर ऊर्जा पर निबंध व महत्व (Solar Energy Essay in hindi)

सौर ऊर्जा क्या है (what is solar energy).

सौर ऊर्जा का अर्थ है वह ऊर्जा जो सूर्य के द्वारा प्राप्त होती है उसे हम लोग सौर ऊर्जा कहते है। इस प्रकार के ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होगी क्योकि इनका स्त्रोत सूर्य है, और जब तक इस ब्रहमांड में सूर्य है ऐसी ऊर्जा हमेशा उपस्थित रहेगी और सबसे बड़ी बात है की इस ऊर्जा की लागत बहुत ही कम है और इसका इस्तेमाल करना आसान है।

सौर ऊर्जा को ग्रीन ऊर्जा भी कहा जाता है क्योकि इसके इस्तेमाल से हमारे पर्यावरण को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है। वही अगर अन्य ऊर्जा के श्रोत की बात करे तो उसके उपयोग से वातावरण में प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। 

सौर ऊर्जा पर निबंध | saur-urja-Solar-Energy-Essay-in-hindi

सौर ऊर्जा क्यों आवश्यक है?

सौर ऊर्जा हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और तेल, कोयला और ऊर्जा के अन्य परंपरागत साधन पर्यायवरण की समस्या उत्पन्न करते है। ऊर्जा हमारे समाज के अस्तित्व एवं विकास के लिये अत्यंत आवश्यक बन चुका है ऊर्जा की पर्याप्त आपूर्ति न होने पर मानव आकांक्षाए पूरी नहीं विकसित देशो में ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत 5-11 किलोवाट है, जबकि विकासशील देशो में यह केवल 1.5 किलोवाट के बीच है। यह ऊर्जा बिजली, ताप, प्रकाश, यांत्रिक ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि के इस्तेमाल की जाती है।

जीवश्म ईंधन हज़ारो सालों तक पृथ्वी के नीचे दबे पेड़-पौधे के जीवश्मों के रूप में होते है, इसलिए उनका भंडार असीमित नहीं है। समय बीतने के साथ साथ दुनियां की आबादी में और वृद्धि होगी इससे लोगो में ऊर्जा की मांग बढ़ेगी। भविष्य में भूमिगत ऊर्जा के कुछ अन्य भण्डारों का भी पता चल जाएगा। पर ऐसे स्थान बोहोत दूर होने के कारण उन्हें खोज पाना इतना आसन नहीं है।  ईंधन लकड़ी की स्थिति अभी से भयानक रूप ले चुकी है और देश में कुल क्षेत्रफल में वन क्षेत्र केवल 17 से 19 प्रतिशत रह गया है, जबकि आदर्श स्थिति के अनुसार यह 33 प्रतिशत से काम नहीं होना चाहिए।  जनसँख्या वृद्धि के कारण वनों पर दबाव अभी और बढ़ेगा।

सौर ऊर्जा का महत्व?

सौर ऊर्जा हमारे जीवन में अधिक महत्व रखती है क्योकि यह ऊर्जा का एक स्वच्छ और नवीकरणीय स्त्रोत है।  इस प्रकार यह किसी भी तरह से पृथ्वी को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। यह ऊर्जा के अन्य प्रदूषण स्त्रोतों पेट्रोलियम गैसों, डीजल, तेल आदि से काफी बेहतर विकल्प हैं। इसके इलावा इसमें कम रखरखाव लगता है। यह दैनिक आधार पर उपलब्ध है और साथ ही साथ इससे किसी तरह है प्रदूषण भी नहीं होगा।

सोलर पैनल सिस्टम को  बहुत अधिक सौर ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती।  इसके अलावा वे 5 से 10 साल की वारंटी के साथ आते है जो बहुत फायदेमंद है।  सबसे अच्छी बात यह है की इससे बिजली का बिल कम आता है।

हम इसका इस्तेमाल ज़्यादातर खाना बनाने और घरो को गर्म रखने के लिए करते है।  इस प्रकार यह उपयोगिता बिलो की लागत को  कम करता है और हमे कुछ पैसे बचने में मदद करता है।  इसके अलावा सौर ऊर्जा के कई अनुप्रयोग भी है। बोहोत सारे समुदाय और गांव अपने घरो और कार्यालयों और अन्य चीज़ो को बिजली प्रदान करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते है।  हम इसका उपयोग उन क्षेत्रों में भी कर सकते है जहा पावर ग्रिड तक नहीं पहुंच सकती।

सौर ऊर्जा संयंत्र के उपयोग?

1. प्रत्यक्ष उपयोग (Direct)

  • सूर्य के ताप से निकलने वाली ऊष्मा ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में रुपातंरित करके।

2 . अप्रत्यक्ष उपयोग (Ind irect Use)

  • वायु – ऊर्जा का उपयोग करके।
  • सामुद्रिक तरंगो की ऊर्जा का उपयोग करके।
  • बांध में एकत्रित जल की ऊर्जा का उपयोग करके।
  • कोयले व लकड़ी जलाने पर उससे निकलने वाली उष्मा का उपयोग करके।

सौर ऊर्जा संयंत्र के लाभ

(1) सौर ऊर्जा की मदद से बिजली का निर्माण होता है। सोलर पैनल की सहायता से सूर्य से निकलने वाली किरणों को ऊर्जा में बदला जाता है जिससे बिजली का निर्माण होता है। हमारे देश में काफी लोगो ने अपने घरो और अन्य जगहों पर सोलर पैनल लगवाने की समझदारी की है।

(2) लोग सरकार से बिजली ना ले कर खुद से बिजली का निर्माण करते है जिससे उन्हें बिजली के लिए पैसे खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती और ज़्यादा बिजली बनने से वह लोग बिजली बेच भी सकते है। सोलर पैनल  लगवाने के लिए सरकार ने लोगो को प्रेरित करना शुरू किया, सरकार ने लोगो को प्रेरित करने के लिए कई योजनाए भी चलाई जिससे लोग सूर्य से बिजली उत्पन्न कर सकें और बिजली की बचत हो सकें|

(3) सौर ऊर्जा से गैस की भी बचत होती है। सोलर कुक्कर की सहायता से खाना बनाया जा सकता है। सोलर कुक्कर में हम दाल चावल से लेकर कोई भी पकवान बना सकते है। इस सोलर कुक्कर को चलाने के लिए न किसी ईंधन की आवश्यकता है और ना किसी गैस की, यह कुक्कर सूर्य की किरणों से चलाया जा सकता है।

(4) सोलर कुक्कर केवल खाना बनाने के उपयोग में ही नहीं बल्कि अन्य चीज़ो के काम में भी आएगा जैसे – पानी को गर्म करना इत्यादि। धूप का प्रभाव अच्छा होने पर सोलर कुक्कर लगभग 200F तक गर्माहट बना सकता है।

(5) यह ऊर्जा का एक अच्छा रूप है जो निशुल्क होता है केवल शुरुवात में निवेश और रख-रखाव के इलावा इसमें किसी प्रकार के निवेश की आवश्यकता नहीं होती।

(6)  जब तक सूर्य मौजूद है तब तक पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध रहेगी, क्योकि ऊर्जा सूर्य से बनती है।

(7) सोलर एनर्जी को बैटरी में एकत्रित किया जा सकता है और इसमें उपयोगिता की लागत कम लगती है।

(8) एक महीने में हम सूर्य से जितनी ऊर्जा प्राप्त करते है वह ईंधन वाली ऊर्जा से अधिक है। एक मीटर की सतह पर गिरने वाली सौर ऊर्जा 60 वाट की पांच लैम्पो में बिजली प्रदान कर सकता है।

(9) सोलर एनर्जी के उत्पादन में पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि नहीं होती है।

(10) ग्रामीण क्षेत्रों में लोगो को बिजली की परेशानी का सामना करना पड़ता है लेकिन सौर ऊर्जा के उपयोग से अधिक से अधिक लोगो के पास बिजली पहुंच सकती है और उन्हें बिजली खरीदने के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे।

 सौर ऊर्जा संयंत्र की हानियाँ

  • सर्दियो के दौरान धूप का प्रभाव कम होता है जिसकी वजह से ऊर्जा बहुत कम बनती है और इसलिए ऊर्जा का उत्पादन भी बहुत कम होत है ।
  • शुरुआत में इस संयंत्र को लगाने के लिए शुरुआती निवेश पूंजी काफी अधिक है ।
  • इस सन्यंत्र कि एक कमी ओर है , इस सन्यंत्र को चलाने के लिये धूप कि आवश्यकता होती है और रात के समय यह बिजली नहीं बना पाएगा और इसीलिये पहले से संचित बिजली का उपयोग करना होगा।
  • इस पैनल को लगाने के लिये बहुत ज़्यदा स्थान की ज़रूरत होती है और साथ ही वह जगह छाया मुक्त होनी चाहिये परंतु जिन स्थानो पर धूप का प्रभाव कम होगा उन संस्थानों पर इस पैनल को लगाने को काई फायदा नहीं है ।
  • इस सन्यंत्र से तो कोइ प्रदूषण नही होगा पर इनकी संरचना मे बोहोत प्रदूषण होता है। सोलर सैल मे सिलिकोन होता है , और यह पर्यावरन के लिये हानिकारक होता है ।
  • इसमे इस पैनल किये जाने वाले उपकरण काफी महंगे और नजुक होते है ।
  • सोलर पैनल कि देख–रेख करना बहुत मुश्किल होता है क्योकि इसे समय – समय पर साफ – सफाई कि आवश्यकता होती है और इसे साफ करना इतना आसान नहीं है ।
  • यदि पैनल लगाते वक़्त इसकि दिशा का ध्यान नही रखा गया तो इस पैनल से नुक्सान हो सकता है ।
  • इस पैनल पर जितनी छाया होगी यह उतनी ही कम बिजली बनाएगा ।
  • यह पैनल बारिश के दिनो मे काम नही करेगा , इसे बारिश से बचाना होगा , यदि नही बचाया गया तो यह खराब हो सकता है।  
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जल संरक्षण पर निबंध (Save Water Essay in Hindi)

जल संरक्षण

भविष्य में जल की कमी की समस्या को सुलझाने के लिये जल संरक्षण ही जल बचाना है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों में जल की भारी कमी है जिसकी वजह से आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में अपने दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी लोग बर्बाद कर रहें हैं। हम सभी को जल के महत्व और भविष्य में जल की कमी से संबंधित समस्याओं को समझना चाहिये। हमें अपने जीवन में उपयोगी जल को बर्बाद और प्रदूषित नहीं करना चाहिये तथा लोगों के बीच जल संरक्षण और बचाने को बढ़ावा देना चाहिये।

जल संरक्षण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Save Water in Hindi, Jal Sanrakshan par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – जल का संरक्षण.

धरती पर जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये जल का संरक्षण और बचाव बहुत जरूरी होता है क्योंकि बिना जल के जीवन सभव नहीं है। पूरे ब्रह्माण्ड में एक अपवाद के रुप में धरती पर जीवन चक्र को जारी रखने में जल मदद करता है क्योंकि धरती इकलौता अकेला ऐसा ग्रह है जहाँ पानी और जीवन मौजूद है।

जल का संरक्षण

पानी की जरुरत हमारे जीवन भर है इसलिये इसको बचाने के लिये केवल हम ही जिम्मेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र के संचालन के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि राजस्थान में लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं क्योंकि उन्हें पानी लाने के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है जो उनके पूरे दिन को खराब कर देती है इसलिये उन्हें किसी और काम के लिये समय नहीं मिलता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्डस् ब्यूरो के सर्वेक्षण के अनुसार, ये रिकार्ड किया गया है कि लगभग 16,632 किसान (2,369 महिलाएँ) आत्महत्या के द्वारा अपने जीवन को समाप्त कर चुकें हैं, हालांकि, 14.4% मामले सूखे के कारण घटित हुए हैं। इसलिये हम कह सकते हैं कि भारत और दूसरे विकासशील देशों में अशिक्षा, आत्महत्या, लड़ाई और दूसरे सामाजिक मुद्दों का कारण भी पानी की कमी है। पानी की कमी वाले ऐसे क्षेत्रों में, भविष्य पीढ़ी के बच्चे अपने मूल शिक्षा के अधिकार और खुशी से जीने के अधिकार को प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, पानी की कमी के सभी समस्याओं के बारे में हमें अपने आपको जागरुक रखना चाहिये जिससे हम सभी प्रतिज्ञा ले और जल संरक्षण के लिये एक-साथ आगे आये। ये सही कहा गया है कि सभी लोगों का छोटा प्रयास एक बड़ा परिणाम दे सकता है जैसे कि बूंद-बूंद करके तालाब, नदी और सागर बन सकता है।

जल संरक्षण के लिये हमें अतिरिक्त प्रयास करने की जरुरत नहीं है, हमें केवल अपने प्रतिदिन की गतिविधियों में कुछ सकारात्मक बदलाव करने की जरुरत है जैसे हर इस्तेमाल के बाद नल को ठीक से बंद करें, फव्वारे या पाईप के बजाय धोने या नहाने के लिये बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें। लाखों लोगों का एक छोटा सा प्रयास जल संरक्षण अभियान की ओर एक बड़ा सकारात्मक परिणाम दे सकता है।

निबंध 2 (400 शब्द) – जल को कैसे बचायें

जीवन को यहाँ संतुलित करने के लिये धरती पर विभिन्न माध्यमों के द्वारा जल संरक्षण ही जल बचाना है।

धरती पर सुरक्षित और पीने के पानी के बहुत कम प्रतिशत के आंकलन के द्वारा, जल संरक्षण या जल बचाओ अभियान हम सभी के लिये बहुत जरूरी हो चुका है। औद्योगिक कचरे की वजह से रोजाना पानी के बड़े स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। जल को बचाने में अधिक कार्यक्षमता लाने के लिये सभी औद्योगिक बिल्डिंगें, अपार्टमेंटस्, स्कूल, अस्पतालों आदि में बिल्डरों के द्वारा उचित जल प्रबंधन व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिये। पीने के पानी या साधारण पानी की कमी के द्वारा होने वाली संभावित समस्या के बारे में आम लोगों को जानने के लिये जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिये। जल की बर्बादी के बारे में लोगों के व्यवहार को मिटाने के लिये इसकी त्वरित जरुरत है।

गाँव के स्तर पर लोगों के द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिये। उचित रख-रखाव के साथ छोटे या बड़े तालाबों को बनाने के द्वारा बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। युवा विद्यार्थियों को अधिक जागरुकता की आवश्यकता है साथ ही इस मुद्दे के समस्या और समाधान पर एकाग्र होना चाहिये। विकासशील विश्व के बहुत से देशों में रहने लोगों को जल की असुरक्षा और कमी प्रभावित कर रही है। आपूर्ति से बढ़कर माँग वाले क्षेत्रों में वैश्विक जनसंख्या के 40% लोग रहते हैं। और आने वाले दशकों में ये परिस्थिति और भी खराब हो सकती है क्योंकि सबकुछ बढ़ेगा जैसे जनसंख्या, कृषि, उद्योग आदि।

जल को कैसे बचायें

रोजाना पानी को कैसे बचा सकते हैं उसके लिये हमने यहाँ कुछ बिन्दु आपके सामने प्रस्तुत किये हैं:

  • लोगों को अपने बागान या उद्यान में तभी पानी देना चाहिये जब उन्हें इसकी जरुरत हो।
  • पाइप से पानी देने के बजाय फुहारे से देना अधिक बेहतर होगा जो प्रति आपके कई गैलन पानी को बचायेगा।
  • पानी को बचाने के लिये सूखा अवरोधी पौधा लगाना अच्छा तरीका है।
  • पानी के रिसाव को बचाने के लिये पाइपलाइन और नलों के जोड़ ठीक से लगा होना चाहिये जो प्रतिदिन आपके लगभग 20 गैलन पानी को बचाता है।
  • कार को धोने के लिये पाइप की जगह बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें जो हर आपके 150 गैलन पानी को बचा सकता है।
  • फुहारे के तेज बहाव के लिये अवरोधक लगाएँ जो आपके पानी को बचायेगा।
  • पूरी तरह से भरी हुई कपड़े धोने की मशीन और बर्तन धोने की मशीन का प्रयोग करें जो प्रति महीने लगभग 300 से 800 गैलन पानी बचा सकता है।
  • प्रति दिन अधिक पानी को बचाने के लिये शौच के समय कम पानी का इस्तेमाल करें।
  • हमें फलों और सब्जियों को खुले नल के बजाय भरे हुए पानी के बर्तन में धोना चाहिये।
  • बरसात के पानी को जमा करना शौच, उद्यानों को पानी देने आदि के लिये एक अच्छा उपाय है जिससे स्वच्छ जल को पीने और भोजन पकाने के उद्देश्य के लिये बचाया जा सकता है।

निबंध 3 (600 शब्द) – जल बचाव के तरीके

पृथ्वी पूरे ब्रह्माण्ड का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ पानी और जीवन आज की तारीख तक मौजूद है। इसलिये, हमें अपने जीवन में जल के महत्व को दरकिनार नहीं करना चाहिये और सभी मुमकिन माध्यमों के प्रयोग से जल को बचाने की पूरी कोशिश करनी चाहिये। पृथ्वी लगभग 71% जल से घिरी हुई है हालांकि, पीने के लायक बहुत कम पानी है। पानी को संतुलित करने का प्राकृतिक चक्र स्वत: ही चलता रहता है जैसे वर्षा और वाष्पीकरण। हालांकि, धरती पर समस्या पानी की सुरक्षा और उसे पीने लायक बनाने की है जोकि बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है। जल संरक्षण लोगों की अच्छी आदत से संभव है।

Essay on Save Water in Hindi

हमें जल क्यों बचाना चाहिये

नीचे, हमने कुछ तथ्य दिये हैं जो आपको बतायेगें कि आज हमारे लिये साफ पानी कितना मूल्यवान बन चुका है:

  • बहुत सारे लोग जो पानी से होने वाली बीमारियों के कारण मर रहें हैं, 4 मिलियन से ज्यादा हैं।
  • साफ पानी की कमी और गंदे पानी की वजह से होने वाली बीमारियों से सबसे ज्यादा विकासशील देश पीड़ित हैं।
  • एक दिन के समाचार पत्रों को तैयार करने में लगभग 300 लीटर पानी खर्च हो जाता है, इसलिये खबरों के दूसरे माध्यमों के वितरण को बढ़ावा देना चाहिये।
  • पानी से होने वाली बीमारियों के कारण हर 15 सेकेण्ड में एक बच्चा मर जाता है।
  • पूरे विश्व में लोगों ने पानी के बॉटल का इस्तेमाल शुरु कर दिया है जिसकी कीमत $60 से $80 बिलियन प्रति साल है।
  • भारत, अफ्रीका और एशिया के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को साफ पानी के लिये लंबी दूरी (लगभग 4 कि.मी. से 5कि.मी.) तय करनी पड़ती है।
  • भारत में पानी से होने वाली बीमारी के वजह से लोग ज्यादा पीड़ित हैं जिसकी वजह से बड़े स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।

जल बचाव के तरीके

जीवनशैली में बिना किसी बदलाव के पानी बचाने के कुछ बेहतरीन तरीकों को हमने आपसे साझा किये। घर का कोई सदस्य घरेलू कार्यों के लिये रोज लगभग 240 लीटर पानी खर्च करता है। एक चार सदस्यों वाला छोटा मूल परिवार औसतन 960 लीटर प्रतिदिन और 350400 लीटर प्रतिवर्ष खर्च करता है। रोजाना पूरे उपभोग का केवल 3% जल ही पीने और भोजन पकाने के लिये उपयोग होता है बाकी का पानी दूसरे कार्यों जैसे पौधों को पानी देना, नहाना, कपड़े धोना आदि में इस्तेमाल होता है।

जल बचाव के कुछ सामान्य नुस्ख़े:

  • सभी को अपनी खुद की जिम्मेदारी को समझना चाहिये और पानी और भोजन पकाने के अलावा पानी के अधिक उपयोग से बचना चाहिये।
  • अगर धीरे-धीरे हम सभी लोग गार्डन को पानी देने से, शौच में पानी डालने से, साफ-सफाई आदि के लिये पानी की बचत करने लगेगें, प्रति अधिक पानी का बचत संभव होगी।
  • हमें बरसात के पानी को शौच, लाँड्री, पौधौ को पानी आदि के उद्देश्य लिये बचाना चाहिये।
  • हमें बरसात के पानी को पीने और भोजन पकाने के लिये एकत्रित करना चाहिये।
  • हमें अपने कपड़ों को केवल धोने की मशीन में धोना चाहिये जब उसमें अपनी पूरी क्षमता तक कपड़े हो जाएँ। इस तरीके से, हम 4500लीटर पानी के साथ ही बिजली भी प्रति महीने बचा लेंगे।
  • फुहारे से नहाने के बजाय बाल्टी और मग का प्रयोग करें जो प्रति वर्ष 150 से 200लीटर पानी बचायेगा।
  • हमें हर इस्तेमाल के बाद अपने नल को ठीक से बंद करना चाहिये जो 200 लीटर पानी हर महीने बचायेगा।
  • होली त्योहार के दौरान पानी के अत्यधिक इस्तेमाल को कम करने के लिये सूखी और सुरक्षित को बढ़ावा देना चाहिये।
  • जल बर्बादी से हमें खुद को बचाने के लिये अपने जीने के लिये जल की एक-एक बूंद के लिये रोज संघर्ष कर रहे लोगों की खबरों के बारे में हमें जागरुक रहना चाहिये।
  • जागरुकता फैलाने के लिये हमें जल संरक्षण से संबंधित कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • गर्मी के मौसम में कूलर में अधिक पानी बर्बाद न होने दें, केवल जरुरत भर का ही इस्तेमाल करें।
  • हमें पाइप के द्वारा लॉन, घर या सड़कों पर पानी डालकर नष्ट नहीं करना चाहिये।
  • पौधारोपण को वर्षा ऋतु में लगाने के लिये प्रेरित करें जिससे पौधों को प्राकृतिक रुप से पानी मिलें।
  • हमें अपने हाथ, फल, सब्जी आदि को खुले हुए नल के बजाय पानी के बर्तन से धोने की आदत बनानी चाहिये।
  • हमें दोपहर के 11 बजे से 4 बजे तक पौधों को पानी देने से बचना चाहिये क्योंकि उस समय उनका वाष्पीकरण हो जाता है। सुबह या शाम के समय पानी देने से पौधे पानी को अच्छे से सोखते हैं।
  • हमें पौधरोपण को बढ़ावा देना चाहिये जो सुखा सहनीय हो।
  • हमें पारिवारिक सदस्यों, बच्चों, मित्रों, पड़ोसियों और सह-कर्मचारियों को सकारात्मक परिणाम पाने के लिये अपने अंत तक यही प्रक्रिया अपनाने या करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।

धरती पर जीवन का सबसे जरूरी स्रोत जल है क्योंकि हमें जीवन के सभी कार्यों को निष्पादित करने के लिये जल की आवश्यकता है जैसे पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़ा धोने, फसल पैदा करने आदि के लिये। बिना इसको प्रदूषित किये भविष्य की पीढ़ी के लिये जल की उचित आपूर्ति के लिये हमें पानी को बचाने की जरुरत है। हमें पानी की बर्बादी को रोकना चाहिये, जल का उपयोग सही ढंग से करें तथा पानी की गुणवत्ता को बनाए रखें।

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विषय-सूचि

जल संकट पर निबंध, water crisis essay in hindi (500 शब्द)

भारत में कई सामाजिक समस्याएं हैं और कई राज्यों में जल संकट उनमें से एक है। लोगों के आरामदायक जीवन के लिए भोजन और पीने का पानी काफी आवश्यक है। जब ये दोनों दुर्लभ होते हैं तो कभी-कभी लोगों को अनकही पीड़ाएं झेलनी पड़ती हैं।

इस तथ्य के बावजूद कि कई बड़ी नदियाँ, उनमें से कुछ बारहमासी नदियाँ भारत के कुछ हिस्सों से होकर बहती हैं, भारत खेती और पीने के लिए पानी की कमी से ग्रस्त है। दक्षिण में कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, पेरिल्या और अन्य नदियाँ हैं। उत्तर में शक्तिशाली गंगा , ब्रह्मपुत्र, सिंधु, महानदी और अन्य नदियाँ हैं।

बहुत सारा पानी अप्रयुक्त समुद्र में चला जाता है। हालांकि हमारे पास बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं जैसे कि पानी, खनिज, बहुतायत से उगने वाली फसलें और इतने पर, हम अभी भी पीड़ित हैं, क्योंकि इन प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम लाभ के लिए उपयोग करने का हमारा ज्ञान अपर्याप्त है।

कभी-कभी पानी की कमी से जूझने वाले दो राज्य तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश हैं। कई शहरों और शहरों में पानी के जलाशय एक छोटी आबादी के लिए थे। यहां तक ​​कि सीवेज पानी ले जाने के लिए नालियों की योजना बनाई गई थी और एक छोटी आबादी के लिए बनाई गई थी। बढ़ती आबादी के साथ उपलब्ध पानी लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। जांच की जानी चाहिए कि लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए अधिक जलाशय बनाए जा सकते हैं या नहीं।

जब गर्मी काफी गंभीर होती है तो कभी-कभी पानी का एक बड़ा भंडार एक कुंड में सिकुड़ जाता है। इंसान और जानवर दोनों पानी के लिए तड़पते हैं। अगर बारिश होती है तो इतनी बारिश होती है की बाढ़ आती है। थैच से बने घर पानी में डूब जाते हैं। जब फसलों की अपर्याप्त उपज होती है तो अकाल पड़ता है। चावल, गेहूं, राग और गन्ना दुर्लभ हैं। वास्तव में हर प्रकार के अनाज में कमी है।

भारत में दो चरम सीमाएं हैं। राष्ट्र में पानी ख़त्म हो जाता है या भारी वर्षा होती है जिससे बाढ़ आती है। जबकि उत्तर कभी बाढ़ से ग्रस्त है, कभी-कभी दक्षिण अपर्याप्त जल आपूर्ति से ग्रस्त है। खेती किए गए खेतों में पर्याप्त पानी नहीं है और फसलों की उपज अपर्याप्त है। पर्याप्त पेयजल के बिना लोग पीड़ित हैं।

यदि उत्तरी और दक्षिणी नदियों को जोड़ा जा सकता है तो सभी राज्यों को बारहमासी पानी की आपूर्ति होगी। पहले दक्षिण की नदियों को जोड़ना होगा और फिर उत्तर की नदियों को जोड़ना होगा। फिर दक्षिणी और उत्तरी दोनों नदियों को जोड़ना होगा। यह एक विशाल परियोजना है। इस परियोजना में अरबों रुपये का खर्चा शामिल है।

भले ही नदियों को जोड़ने की परियोजना को इस साल पूरा कर लिया जाए, लेकिन इस परियोजना को पूरा होने में कई साल लग जाएंगे। परियोजना को एक बड़े वित्तीय परिव्यय की आवश्यकता हो सकती है। नदियों को जोड़ने में इंजीनियरिंग की समस्याएं हो सकती हैं क्योंकि एक नदी और दूसरे के बीच विशाल स्तर की भिन्नताएं हो सकती हैं। यदि भारत की नदियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं तो यह एक बेहतरीन इंजीनियरिंग उपलब्धि होगी।

water crisis

जल संकट पर निबंध, water crisis essay in hindi (800 शब्द)

पानी हमारे जीवन का केंद्र है, लेकिन हमारी योजना में केंद्र बिंदु नहीं रहा है जबकि हम तेजी से शहरी समाज में विकसित हुए हैं।

समय के माध्यम से, प्रारंभिक समाजों ने पानी के महत्व और आवश्यकता को समझा और इसके चारों ओर अपने जीवन की योजना बनाई। सभ्यताएँ पानी के कारण पैदा हुईं और खो गईं। आज, हमारे पास इस ज्ञान का लाभ है और हम अभी भी इसे महत्व देने और इसके आसपास के समाजों की योजना बनाने में विफल हैं।

भारत पर ध्यान दें। दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु और गंगा के आसपास विकसित हुई और अभी भी संपन्न है। लेकिन बहुत लम्बे समय के लिए नहीं। स्वतंत्रता के बाद, बड़े बांधों के माध्यम से पानी के नियंत्रण और भंडारण के माध्यम से पानी की शक्ति का दोहन करने के लिए उचित महत्व दिया गया था।

वह तो क्षण की माँग थी। हालाँकि, हमारे शहरों और कस्बों में बाद में पानी की जरूरत बनाम पानी की उपलब्धता की योजना के बिना विकास हुआ है। 1951 में, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगभग 5177 घन मीटर थी। यह अब 2011 में घटकर लगभग 1545 हो गया है (स्रोत: जल संसाधन प्रभाग, TERI)

भारत में पानी की कमी के कारण

अधिक जनसंख्या वृद्धि और जल संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण पानी की कमी ज्यादातर लोगों को होती है। पानी की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • कृषि के लिए पानी का अकुशल उपयोग। भारत दुनिया में कृषि उपज के शीर्ष उत्पादकों में शामिल है और इसलिए सिंचाई के लिए पानी की खपत सबसे अधिक है। सिंचाई की पारंपरिक तकनीकों में वाष्पीकरण, जल निकासी, छिद्र, पानी के प्रवाह और भूजल के अधिक उपयोग के कारण अधिकतम पानी की हानि होती है।
  • जैसे-जैसे अधिक क्षेत्र पारंपरिक सिंचाई तकनीकों के तहत आते हैं, अन्य उद्देश्यों के लिए उपलब्ध पानी के लिए तनाव जारी रहेगा। समाधान सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई के व्यापक उपयोग में है। पारंपरिक जल रिचार्जिंग क्षेत्रों में कमी।
  • तेजी से निर्माण पारंपरिक जल निकायों की अनदेखी कर रहा है जिन्होंने भूजल रिचार्जिंग तंत्र के रूप में भी काम किया है। हमें नए लोगों को लागू करते समय पारंपरिक जलवाही स्तर को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। पारंपरिक जल निकायों में जल निकासी और अपशिष्ट जल निकासी।
  • इस समस्या से निपटने के लिए स्रोत पर सरकारी हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है। नदियों, नालों और तालाबों में रसायनों और अपशिष्टों को छोड़ना। सरकार, गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कानूनों की सख्त निगरानी और कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
  • मॉनसून के दौरान पानी के भंडारण की क्षमता को बढ़ाने वाले बड़े जल निकायों में समय पर डी-सिल्टिंग संचालन में कमी। यह आश्चर्य की बात है कि राज्य स्तर पर सरकारों ने इसे वार्षिक अभ्यास के रूप में प्राथमिकता पर नहीं लिया है। यह कार्य अकेले पानी के भंडारण के स्तर को जोड़ सकता है।
  • कुशल जल प्रबंधन और शहरी उपभोक्ताओं, कृषि क्षेत्र और उद्योग के बीच पानी के वितरण में कमी। सरकार को प्रौद्योगिकी में अपने निवेश को बढ़ाने और मौजूदा संसाधनों के अनुकूलन को सुनिश्चित करने के लिए योजना स्तर पर सभी हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता है।

शहरी विकास के कारण समस्या बढ़ गई है, जिसके कारण भूजल संसाधन प्रभावित हुए हैं। पानी को न तो रीचार्ज किया जा रहा है और न ही उन तरीकों से संग्रहित किया जा रहा है जो पानी के प्राकृतिक अवयवों को बनाए रखते हुए इसके उपयोग का अनुकूलन करते हैं।

इसके अलावा, जल निकायों में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का प्रवेश पीने योग्य पानी की उपलब्धता को गंभीर रूप से सिकोड़ रहा है। समुद्री जीवन ज्यादातर इन क्षेत्रों में पहले से ही खो गया है। यह एक बहुत गंभीर उभरते हुए संकट की उत्पत्ति है। यदि हम समस्या के स्रोत को नहीं समझते हैं तो हम कभी भी स्थायी समाधान नहीं खोज पाएंगे।

एक उदाहरण के रूप में, हैदराबाद को लें। निज़ामों के इस शहर में समय के माध्यम से कई जल एक्वीफ़र्स और जल निकाय थे। उस्मानसागर और हिमायतसागर झीलें बनाई गईं और सौ वर्षों से शहर को पीने का पानी मुहैया करा रही हैं। सभी दिशाओं में अनियोजित निर्माण के साथ शहर में आबादी के अत्यधिक प्रवास ने पारंपरिक जलभृत पैदा किया, जो शहर के आसपास और आसपास मौजूद था।

राज्य के स्वामित्व वाले HMWS & SB द्वारा संचालित 50,000 से अधिक बोरवेल हैं और भूजल खींचने वाले निजी मालिक हैं। स्तर अब काफी गिर गए हैं। यदि भूजल पुनर्भरण नहीं कर सकता है, तो आपूर्ति ख़त्म हो जाएगी। संग्रह, भंडारण, उत्थान और वितरण के दौरान पानी की मांग लगातार बढ़ रही है।

पानी की कमी की समस्याओं को दूर करने के उपाय:

हमारे घरों में वाटर फ्री ‘पुरुष मूत्रालय का एक साधारण जोड़ प्रति वर्ष प्रति घर 25,000 लीटर पानी से अच्छी तरह से बचा सकता है। पारंपरिक फ्लश लगभग छह लीटर पानी बहाता है। अगर घर के लड़कों सहित सभी पुरुष सदस्य पारंपरिक फ्लश खींचने के बजाय वाटर फ्री यूरिनल ’का उपयोग करते हैं, तो पानी की मांग पर सामूहिक प्रभाव काफी कम हो जाएगा। इसे कानून द्वारा अनिवार्य किया जाना चाहिए और इसके बाद शिक्षा और जागरूकता दोनों घर और स्कूल में होनी चाहिए।

घर पर पकवान धोने के दौरान बर्बाद होने वाले पानी की मात्रा महत्वपूर्ण है। हमें अपने डिश धोने के तरीकों को बदलने और पानी को चालू रखने की आदत को कम करने की आवश्यकता है। यहां एक छोटा कदम पानी की खपत में महत्वपूर्ण बचत कर सकता है।

प्रत्येक स्वतंत्र घर / फ्लैट और समूह हाउसिंग कॉलोनी में वर्षा जल संचयन की सुविधा होनी चाहिए। यदि कुशलता से डिजाइन और ठीक से प्रबंधित किया जाता है, तो यह अकेले पानी की मांग को काफी कम कर सकता है।

गैर-पीने के प्रयोजनों के लिए अपशिष्ट जल उपचार और रीसाइक्लिंग। कई कम लागत वाली प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं जिन्हें समूह आवास क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।

बहुत बार, हम अपने घरों में, सार्वजनिक क्षेत्रों और कॉलोनियों में पानी लीक करते हुए देखते हैं। एक छोटे से स्थिर पानी के रिसाव से प्रति वर्ष 226,800 लीटर पानी का नुकसान हो सकता है! जब तक हम पानी की बर्बादी के बारे में जागरूक और सचेत नहीं होंगे, तब तक हम अपने सामान्य जीवन के साथ पानी की बुनियादी मात्रा का लाभ नहीं उठा पाएंगे।

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जबकि पानी एक अक्षय संसाधन है, यह एक सीमित संसाधन है। ग्लोब पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा वही है जो दो हजार साल पहले थी।

पानी की कमी:

इस तथ्य की सराहना करना महत्वपूर्ण है कि दुनिया का केवल 3 प्रतिशत पानी ताजा है और लगभग एक-तिहाई यह दुर्गम है। बाकी बहुत असमान रूप से वितरित किया गया है और उपलब्ध आपूर्ति उद्योग, कृषि और घरों से अपशिष्ट और प्रदूषण से दूषित हो रही है।

इन वर्षों में, बढ़ती आबादी, बढ़ते औद्योगीकरण, कृषि का विस्तार और जीवन के बढ़ते मानकों ने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। बांध और जलाशयों का निर्माण और कुओं जैसे भूजल संरचनाओं का निर्माण करके पानी एकत्र करने का प्रयास किया गया है। पुनर्चक्रण और पानी का विलवणीकरण अन्य विकल्प हैं लेकिन इसमें शामिल लागत बहुत अधिक है।

हालाँकि, इस बात का एहसास बढ़ रहा है कि ‘और अधिक पानी खोजने’ की सीमाएँ हैं और लंबे समय में, हमें उस पानी की मात्रा को जानना होगा जिससे हम उचित रूप से टैप करने की उम्मीद कर सकते हैं और इसे और अधिक कुशलता से उपयोग करना सीख सकते हैं।

यह मानव स्वभाव है कि हम चीजों को तभी महत्व देते हैं जब वे दुर्लभ हों या कम आपूर्ति में हों। जैसे कि हम नदियों, जलाशयों, तालाबों, कुओं आदि के सूख जाने पर पानी के मूल्य की सराहना करते हैं। हमारे जल संसाधन अब बिखराव के युग में प्रवेश कर चुके हैं। यह अनुमान है कि अब से तीस साल बाद, हमारी आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा पानी की कमी से पीड़ित होगा।

हमारी बढ़ती आबादी और प्रदूषण के कारण मौजूदा जल संसाधनों की घटती गुणवत्ता के कारण ताजे जल संसाधनों की बढ़ती माँगों और औद्योगिक और कृषि विकास को बढ़ावा देने की अतिरिक्त आवश्यकताओं के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जहाँ पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है और आपूर्ति बढ़ रही है ताजा पानी कम या ज्यादा स्थिर रहता है।

यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हमारे पास उपलब्ध पानी वैसा ही है जैसा पहले था, लेकिन जनसंख्या और परिणामस्वरूप पानी की मांग कई गुना बढ़ गई है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कमी के परिणाम अधिक कठोर होंगे। पानी की कमी तेजी से बढ़ते तटीय क्षेत्रों और बड़े शहरों में भी महसूस की जाएगी। कई शहर पहले से ही हैं, या होंगे, अपने निवासियों को सुरक्षित पानी और स्वच्छता सुविधाएं प्रदान करने की मांग का सामना करने में असमर्थ हैं।

पानी के तनाव और कमी के संकेतक आम तौर पर किसी देश या क्षेत्र में पानी की उपलब्धता को प्रतिबिंबित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। जब किसी देश या क्षेत्र में नवीकरणीय ताजे पानी की वार्षिक प्रति व्यक्ति 1,700 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है, तो इसे पानी के तनाव की स्थिति में रखा जाता है। यदि उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर से कम है, तो स्थिति को पानी की कमी के रूप में चिह्नित किया जाता है।

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और जब प्रति व्यक्ति उपलब्धता 500 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है, तो यह पूर्ण कमी (एंगेलमैन और रॉय, 1993) की स्थिति कहा जाता है। ये टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) द्वारा किए गए एक अध्ययन की निधि भी हैं। इस अवधारणा को मालिन फ़ॉकेंमार्क द्वारा इस आधार पर प्रतिपादित किया गया है कि 100 लीटर एक दिन (36.5 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष) बुनियादी घरेलू आवश्यकताओं के लिए लगभग प्रति व्यक्ति न्यूनतम आवश्यकता है और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, लगभग 5 से 20 गुना राशि की आवश्यकता होती है।

स्वतंत्रता के समय, यानी, 1,947 में, भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 6,008 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष थी। यह 1951 में एक साल में घटकर 5,177 क्यूबिक मीटर और 2001 में एक साल में 1,820 क्यूबिक मीटर पर आ गया। 10 वीं योजना के मध्यावधि मूल्यांकन (एमटीए) के अनुसार, 2025 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,340 क्यूबिक मीटर तक गिरने की संभावना है।

2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत की 77.9 प्रतिशत आबादी के पास सुरक्षित पेयजल है। 90.0 प्रतिशत पर, शहरी आबादी 73.2 प्रतिशत ग्रामीण आबादी से बेहतर थी। हालाँकि, ये आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं और वास्तविक तस्वीर तभी सामने आती है जब हम अलग-अलग शहरों को देखते हैं।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, कानपुर और मदुरै में 50 लाख घरों में पानी की कमी देखी गई है (तालिका 16.5 देखें)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) निर्दिष्ट करता है कि पानी की न्यूनतम आवश्यकता प्रति दिन 100-200 लीटर होनी चाहिए। यह औसत शहरी आंकड़ा, 90 लीटर से ऊपर का है।

तालिका 16.6 से पता चलता है कि कई शहरों विशेषकर दक्षिणी शहरों में पानी की सबसे अधिक कमी है। चेन्नई और बैंगलोर क्रमशः 53.8 और 39.5 प्रतिशत की कमी से पीड़ित हैं। आंध्र प्रदेश में भी चरम सीमा है: हैदराबाद में कमी 24.2 प्रतिशत, वैजाग में 91.8 प्रतिशत है। उत्तर में, दिल्ली में पानी की कमी 29.8 और लखनऊ में 27.3 प्रतिशत दर्ज की गई है।

मध्य भारत व्यापक क्षेत्रीय विविधताओं के साथ उत्तर की तुलना में अधिक पानी की कमी वाला है। उदाहरण के लिए, भोपाल में 26.4 प्रतिशत पानी की कमी है जबकि इंदौर और जबलपुर में क्रमशः 72.8 और 65.4 प्रतिशत की रिकॉर्ड दर है। पश्चिम में मुंबई, 43.3 प्रतिशत की कमी दर के साथ, इसी तरह कोलकाता में स्थित है, जो 44 प्रतिशत पर है।

शहरी भारत में लगभग 40 प्रतिशत पानी की माँग भूजल से पूरी होती है। इसलिए अधिकांश शहरों में भूजल तालिकाएं प्रति वर्ष 2-3 मीटर की खतरनाक दर से गिर रही हैं। एक अन्य कारक पानी का रिसाव है। दिल्ली अपने 83.0 किलोमीटर लंबे पाइपलाइन नेटवर्क में रिसाव के कारण कम से कम 30 प्रतिशत पानी खो देता है। मुंबई रिसाव के कारण अपना लगभग 20 प्रतिशत पानी खो देता है।

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