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कृषि पर निबंध (Agriculture Essay in Hindi)

हमारा देश कृषि प्रधान देश है, और कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की नींव है। हमारे देश में कृषि केवल खेती करना नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। कृषि पर पूरा देश आश्रित होता है। लोगों की भूख तो कृषि के माध्यम से ही मिटती है। यह हमारे देश की शासन-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि से ही मानव सभ्यता का आरंभ हुआ। अक्सर विद्यालयों में कृषि पर निबंध आदि लिखने को दिया जाता है। इस संबंध में कृषि पर आधारित कुछ छोटे-बड़े निबंध दिए जा रहे हैं।

कृषि पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Agriculture in Hindi, Krishi par Nibandh Hindi mein)

कृषि पर निबंध – 1 (300 शब्द).

खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना, कृषि कहलाता है। कृषि में फसल उत्पादन, फल और सब्जी की खेती के साथ-साथ फूलों की खेती, पशुधन उत्पादन, मत्स्य पालन, कृषि-वानिकी और वानिकी शामिल हैं। ये सभी उत्पादक गतिविधियाँ हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार

भारत में, कृषि आय राष्ट्रीय आय का 1987-88 में 30.3 प्रतिशत था जोकि पचहत्तर प्रतिशत से अधिक लोगों को रोजगार देती थी। 2023 तक यह आंकड़ा 50% तक पहुंच गयाहै। मुख्य आर्थिक गतिविधि होने के बावजूद विकसित राष्ट्रों की तुलना में कृषि में शामिल उत्पादन के कारकों की उत्पादकता बहुत कम है। हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता भोजन का निर्माण, कृषि के द्वारा ही संभव होता है। कृषि में फसल उगाने या पशुओं को पालने की प्रथा का वर्णन है। किसान के रूप में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति कृषि उद्योग से सम्बंधित कहलाता है।

कृषि के क्षेत्र में नवीन प्रयोग

पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण कृषि क्षेत्रो में नविन उपकरणों का इस्तेमाल होने लगा है, परन्तु हमें धरती की उर्वरा शक्ति पर भी ध्यान देना चाहिए।

अर्थशास्त्री, जैसे टी.डब्ल्यू. शुल्ट, जॉन डब्ल्यू. मेलोर, वाल्टर ए.लुईस और अन्य अर्थशास्त्रियों ने यह साबित किया है कि कृषि और कृषक आर्थिक विकास के अग्र-दूत है जो इसके विकास में अत्यधिक योगदान देते है। कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए वर्तमान सरकार ने कई नए योजनाओ जैसे की सोलर पम्प, फूलो और फलों में अनुदान, पशु पालन में अनुदान जैसी कई योजनाएं लागु की है लेकिन ये भ्रस्टाचार के चलते शत प्रतिशत धरातल पर उतर नहीं पाती है और असल आवश्यक व्यक्ति इससे वंचित रह जाता है। इस सम्बन्ध में सरकार को नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

निबंध – 2 (400 शब्द)

लिस्टर ब्राउन ने अपनी पुस्तक “सीड्स ऑफ चेंजेस” एक “हरित क्रांति का एक अध्ययन,” में कहा है कि “विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में वृद्धि के साथ व्यापार की समस्या सामने आएगी।”

इसलिए, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन के लिए उत्पादन, रोजगार बढ़ाने और खेतों और ग्रामीण आबादी के लिए आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास होता है।

भारतीय कृषि की विशेषताएं :

(i) आजीविका का स्रोत – हमारे देश में कृषि मुख्य व्यवसाय है। यह कुल आबादी के लगभग 61% व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है। यह राष्ट्रीय आय में करीबन 25% का योगदान देती है।

( ii) मानसून पर निर्भरता – हमारी भारतीय कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है। अगर मानसून अच्छा आया तो कृषि अच्छी होती है अन्यथा नहीं।

( iii) श्रम गहन खेती – जनसंख्या में वृद्धि के कारण भूमि पर दबाव बढ़ गया है। भूमि जोत के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उपविभाजित हो जाते हैं। ऐसे खेतों पर मशीनरी और उपकरण का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

( iv) बेरोजगारी – पर्याप्त सिंचाई साधनों के अभाव में और अपर्याप्त वर्षा के कारण किसान वर्ष के कुछ महीने ही कृषि-कार्यों में संलग्न रहते हैं। जिस कारण बाकी समय तो खाली ही रहते है। इसे छिपी बेरोजगारी भी कहते है।

( v) जोत का छोटा आकार – बड़े पैमाने पर उप-विभाजन और जोत के विखंडन के कारण, भूमि के जोत का आकार काफी छोटा हो जाता है। छोटे जोत आकार के कारण उच्च स्तर की खेती करना मुमकिन नहीं होता है।

( vi) उत्पादन के पारंपरिक तरीके – हमारे देश में पारंपरिक खेती का चलन है। केवल खेती ही नहीं अपितु इसमें प्रयुक्त होने वाले उपकरण भी पुरातन एवं पारंपरिक हैं, जिससे उन्नत खेती नहीं हो पाती।

( vii) कम कृषि उत्पादन – भारत में कृषि उत्पादन कम है। भारत में गेहूं प्रति हेक्टेयर लगभग 27 क्विंटल का उत्पादन होता है, फ्रांस में 71.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और ब्रिटेन में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है। एक कृषि मजदूर की औसत वार्षिक उत्पादकता भारत में 162 डॉलर, नॉर्वे में 973 डॉलर और यूएसए में 2408 डॉलर आंकी गयी है।

( viii) खाद्य फसलों का प्रभुत्व – खेती किए गए क्षेत्र का करीब 75% गेहूं, चावल और बाजरा जैसे खाद्य फसलों के अधीन है, जबकि लगभग 25% खेती क्षेत्र वाणिज्यिक फसलों के तहत है। यह प्रक्रिया पिछड़ी कृषि के कारण है।

भारतीय कृषि मौजूदा तकनीक पर संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग करने हेतु संकल्पित हैं, लेकिन वे बिचौलियों के प्रभुत्व वाले व्यापार प्रणाली में अपनी उपज की बिक्री से होने वाले लाभ में अपने हिस्से से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार कृषि के व्यवसायिक पक्ष की घोर उपेक्षा हुई है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

आजादी के समय भारत में कृषि पूरी तरह से पिछड़ी हुई थी। कृषि में लागू सदियों पुरानी और पारंपरिक तकनीकों के उपयोग के कारण उत्पादकता बहुत खराब थी। वर्तमान समय की बात करें तो, कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों की मात्रा भी अत्यंत कम है। अपनी कम उत्पादकता के कारण, कृषि भारतीय किसानों के लिए केवल जीवन निर्वाह का प्रबंधन कर सकती है और कृषि का व्यवसायीकरण कम होने के कारण आज भी कई देशों से हमारा देश कृषि के मामले में पीछे है।

कृषि के प्रकार

कृषि दुनिया में सबसे व्यापक गतिविधियों में से एक है, लेकिन यह हर जगह एक समान नहीं है। दुनिया भर में कृषि के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।

( i) पशुपालन – खेती की इस प्रणाली के तहत पशुओं को पालने पर बड़ा जोर दिया जाता है। खानाबदोश झुंड के विपरीत, किसान एक व्यवस्थित जीवन जीते हैं।

( ii) वाणिज्यिक वृक्षारोपण – यद्यपि एक छोटे से क्षेत्र में इसका अभ्यास किया जाता है, लेकिन इस प्रकार की खेती इसके वाणिज्यिक मूल्य के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण है। इस तरह की खेती के प्रमुख उत्पाद उष्णकटिबंधीय (Tropical) फसलें हैं जैसे कि चाय, कॉफी, रबर और ताड़ के तेल। इस प्रकार की खेती एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में विकसित हुई है।

( iii) भूमध्यसागरीय (Mediterranean) कृषि – आमतौर पर भूमध्यसागरीय क्षेत्र के बीहड़ इलाकों में विशिष्ट पशुधन और फसल संयोजन होते हैं। गेहूं और खट्टे फल प्रमुख फसलें हैं, और छोटे जानवर, क्षेत्र में पाले जाने वाले प्रमुख पशुधन हैं।

( iv) अल्पविकसित गतिहीन जुताई – यह कृषि का एक निर्वाह प्रकार है और यह बाकि प्रकारों से भिन्न है क्योंकि भूमि के एक ही भूखंड की खेती साल दर साल लगातार की जाती है। अनाज की फसलों के अलावा, कुछ पेड़ की फसलें जैसे रबर का पेड़ आदि इस प्रणाली का उपयोग करके उगाया जाता है।

( v) दूध उत्पादन – बाजार के समीपता (Market proximity) और समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate) दो अनुकूल कारक हैं जो इस प्रकार की खेती के विकास के लिए जिम्मेदार हैं। डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों ने इस प्रकार की खेती का अधिकतम विकास किया है।

( vi) झूम खेती – इस प्रकार की कृषि आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा अपनाई जाती है, अनाज की फसलों पर प्रमुख जोर दिया जाता है। पर्यावरणविदों (Environmentalists) के दबाव के कारण इस प्रकार की खेती में कमी आ रही है।

( vii) वाणिज्यिक अनाज की खेती – इस प्रकार की खेती खेत मशीनीकरण के लिए एक प्रतिक्रिया है और कम वर्षा और आबादी वाले क्षेत्रों में प्रमुख प्रकार की खेती है। ये फसलें मौसम की मार और सूखे की वजह से होती हैं।

( viii) पशुधन और अनाज की खेती – इस प्रकार की कृषि को आमतौर पर मिश्रित खेती के रूप में जाना जाता है, और एशिया को छोड़कर मध्य अक्षांशों (Mid Latitudes) के नम क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। इसका विकास बाजार सुविधाओं से निकटता से जुड़ा हुआ है, और यह आमतौर पर यूरोपीय प्रकार की खेती है।

कृषि और व्यवसाय दो अलग-अलग धुरी है, लेकिन परस्पर संबंधित एवं एक दुसरे के पूरक हैं, जिसमें कृषि संसाधनों के उपयोग से लेकर कटाई, कृषि उपज के प्रसंस्करण (Processing) और विपणन (Marketing) तक उत्पादन का संगठन और प्रबंधन शामिल है।

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essay on agriculture in india in hindi

भारतीय किसान पर निबंध- Essay on Indian Farmer in Hindi

In this article, we are providing information about Farmer in Hindi- भारतीय किसान पर निबंध- Essay on Indian Farmer in Hindi, Indian Farmers Life.

जरूर पढ़े- Bhartiya Kisan Par Nibandh & Essay on Farmer in Hindi for all classes

Indian Farmer Essay in Hindi ( 250 words )

भारत गांवों और किसानों का देश है। भारत कृषि प्रधान देश है। हम बहुत कुछ कृषि पर निर्भर करते हैं। हमारे अधिकांश उद्योग-धंधे भी कृषि पर आधारित हैं। हमारा किसान हमारी रीढ़ की हड्डी है। उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय किसान बहुत परिश्रमी है। वह अपने खेत-खलिहानों में जी-तोड़ मेहनत करता है, बीज बोता है, पानी देता है, फसल काटता है और फिर उसे बेचने मंडियों तक ले जाता है।

सुबह बहुत जल्दी वह उठ जाता है और रात को देर से सोता भाहल चलाने, खेतों को पानी देने, जानवरों की देखभाल करने, अनाज, फल, सब्जी आदि बाजार तक ले जाने में उसका सारा समय व्यतीत हो जाता है। विश्राम और सोने के लिये उसे बहुत कम समय मिलता है। लेकिन यह खेद की बात है कि आज भी वह निर्धन है। उसका हर स्तर पर शोषण हो रहा है। उसके बच्चों की शिक्षा, उपचार, स्वास्थ्य आदि की उचित व्यवस्था नहीं है। वह कर्ज के बोझ के नीचे दबा हुआ है।

धन और सस्ते ऋण के अभाव में वह अच्छे बीज, खाद, कृषि-यंत्र, सिंचाईं के उचित साधन आदि से वंचित रह जाता है। प्राकृतिक आपदाएं जैसे सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि से तो उसकी कमर ही टूट जाती है। अधिकांश किसान आज भी निरक्षर और अनपढ़ हैं। वे अंधविश्वास और कुरीतियों के शिकार हैं। उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक उन्नति और अधिक तथा ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। आशा करनी चाहिये कि निकट भविष्य में भारतीय किसान की स्थिति संतोषप्रद हो जायेगी।

10 Lines on Farmer in Hindi

भारतीय किसान पर निबंध- Essay on Indian Farmer in Hindi ( 500 words )

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ कि 65 प्रतिशत जनसंख्या खेती से जुड़ी हुई है। किसान मौसम की परवाह किए बिना सभी के लिए अनाज उगाते है जो कि मनुष्य की सबसे बड़ी जरूरत है। इसलिए किसानों को अन्नदाता भी कहा जाता है। बहुत से उद्योग भी कच्चे माल के लिए किसानों द्वारा उगाई गई फसलों पर निर्भर करते है। किसान का जीवन बहुत ही परिश्रम भरा होता है। वह सुबह से लेकर रात तक खेत के काम में ही लगा रहता है कभी बीज बोना,कभी सिंचाई ,कभी खाद डालना तो कभी कटाई।

हमारी अर्थव्यवस्था किसानों पर निर्भर करती है लेकिन उसके बावजुद भी किसान की हालत बहुत ही दयनीय है। बहुत से किसान आज भी गरीब, अशिक्षित है और साथ ही अपने बच्चों को भी पढ़ाने में असमर्थ है। दिन रात मेहनत करने के बाद भी वो सिर्फ अपनी आजीविका ही चला पाते है और अगर कभी बारिश न होने से सूखा पड़ जाए तो उनकी मुश्किलें और भी बढ़ जाती है। बहुत से तकनीकी उपकरणों ने किसानों का परिश्रम थोड़ा कम कर दिया है लेकिन छोटा और निर्धन किसान उन्हें खरीदने में असमर्थ है जिसके कारण विवश होकर अपने बच्चों को खेतों में काम करने लाना पड़ता है। गरीब किसान अपनी फसलों के लिए उत्तम बीज और अच्छी खाद नहीं खरीद पाता है। किसान साल के अधिकतर महीनों में खाली ही रहते है। किसानों को सिंचाई के लिए प्रयाप्त पानी भी नहीं मिल पाता है।

किसानों को खाद,बीज आदि खरीदने के लिए उधार लेना पड़ता है जिसका फायदा साहुकार उच्च दर का ब्याज लगाकर उठाते है। किसानों की फसलों का सही मूल्य नहीं लगता है। अशिक्षित होने के कारण किसानों को अपने अधिकारों का पता नही होता और उनके अधिकारों का जमकर शोषण किया जाता है। आर्थिक स्थिति खराब होने से बहुत से किसान आत्महत्या कर रहे है। सरकार को किसानों के लिए कम ब्याज पर पैसे दिलवाने चाहिए ताकि वो आसानी से बीज खाद आदि खरीद सके। साल के उस समय जब खेती नही होती कृषि स्कूल खोले जाने चाहिए जिसमें किसानों को पैदावार बढाने के तरीके बताए जाए और खेती से जुड़ी सभी जानकारी दी जाए। सरकार द्वारा गाँवों में भी स्कुल खोले जाने जिनमें प्राथमिक शिक्षा मूफ्त दी जाए ताकि किसानों के बच्चे भी पढ़ सके।

अगर किसान नही होंगे तो खेती भी नहीं होगी और उद्योग भी नहीं होंगे यानि कि देश गरीब होता जाएगा। किसान हमारे देश की अर्थव्यवस्था का निर्माण करते है और अगर वही गरीब होगे तो देश प्रगति कर ही नहीं सकता। लाल बहादुर शास्त्री जी ने ” जय जवाम,जय किसान” नारे से किसानों का महत्व बताया है। किसानों की प्रगति के लिए सरकार को उचित प्रबंध करने चाहिए।

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2 thoughts on “भारतीय किसान पर निबंध- Essay on Indian Farmer in Hindi”

essay on agriculture in india in hindi

Excellent Bhai ! bhai apane kisan ki puri samasya aur usase sambandhit jankari di hai > thanks

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This essay helped me a lot in my exam. Jai Jawan, Jai Kisan. 👍👍☺

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कृषि पर निबंध | Essay On Agriculture In Hindi

Essay On Agriculture In Hindi : नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज हम भारतीय कृषि पर निबंध फार्मिंग इन इंडिया पर सरल भाषा में निबंध, अनुच्छेद, भाषण, लेख उपलब्ध करवा रहे हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली कृषि व्यवस्था के प्रकार, इतिहास, महत्व, लाभ आदि के बारे में इस आर्टिकल में जानकारी दी गई हैं.

कृषि पर निबंध Essay On Agriculture In Hindi

कृषि पर निबंध | Essay On Agriculture In Hindi

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. कृषि और सहायक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-20 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जबकि लगभग 60 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. भारत में कृषि उत्पादन मानसून पर निर्भर करता हैं.

सभी जीवधारियों को भोजन की आवश्यकता होती हैं. अधिकांश भोज्य पदार्थ हमें कृषि, बागवानी एवं पशुपालन से प्राप्त होते हैं.

भोजन की आवश्यकता पूरी करने के लिए अन्न तथा अन्य कृषि उत्पादों की आवश्यकता होती हैं. ये पदार्थ किसान खेती करके प्रदान करता हैं.

एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते है, तो इसे फसल कहते हैं. फसलें विभिन्न प्रकार की होती हैं जैसे अन्न, सब्जियाँ एवं फल आदि. अन्न व अन्य फसल उत्पादन का कार्य कृषि उत्पादन कहलाता हैं. देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं.

फसल उगाने के लिए किसान को अनेक क्रियाकलाप करने पड़ते हैं. ये क्रियाकलाप अथवा कार्य कृषि पद्धतियाँ कहलाते हैं.

किसान, हल, कुदाली, फावड़ा, हंसिया, खुरपी, बैल, बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कम्बाइन, थ्रेसर आदि कृषि उपकरणों की सहायता से विभिन्न कृषि कार्य करता हैं. कृषि कार्य निम्न हैं.

मिट्टी तैयार करना या जुताई करना – फसल उगाने से पहले मिट्टी तैयार करना प्रथम चरण है. इसके लिए किसान मिट्टी को पलट कर उसे पोला बनाने का कार्य करता हैं. इससे जड़े भूमि में गहराई तक जा सकती हैं.

पोली मिट्टी में गहराई से घंसी जड़े भी सरलता से श्वसन कर सकती हैं. पोली मिट्टी में रहने वाले केंचुओं और सूक्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायता करती हैं.

ये जीव किसान के मित्र होते है, क्योंकि ये मिट्टी में ह्यूमरस का निर्माण करते हैं, जिससे वह अधिक उपजाऊ हो जाती हैं.

इसके अतिरिक्त मिट्टी को उलटने पलटने व पोला करने से पोषक पदार्थ ऊपर आ जाते हैं व पौधे उन पोषक पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं.

मिट्टी को उलटने पलटने एवं पोला करने की क्रिया जुताई कहलाती हैं. जुताई के कार्य के लिए हल, कुदाली व कल्टी वेटर आदि कृषि उपकरण काम में लिए जाते हैं.

बुआई करना : बुआई का आशय बीज बोने से हैं. इस प्रक्रिया में भूमि में वांछित फसल के अधिक उपज व गुणवत्ता वाले बीज बोए जाते हैं. बुआई के लिए काम आने वाले औजार निम्न हैं.

  • ओरणा – कीप के आकार के इस औजार में बीजों को कीप के अंदर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पाइप से गुजरते है. ये सिरे मिट्टी को भेदकर बीज को भूमि में स्थापित कर देते हैं. ओरणा को हल के पीछे बांधकर बिजाई की जाती हैं.
  • सीड ड्रिल – इसके द्वारा बीजों को समान दूरी व गहराई बनी रहती हैं. यह ट्रैक्टर द्वारा संचालित होती हैं. सीड ड्रिल द्वारा बुआई करने से समय एवं श्रम दोनों की बचत होती हैं. बीजों के बीच आवश्यक दूरी होना आवश्यक हैं. इससे पौधों को सूर्य का प्रकाश, पोषक पदार्थ एवं जल पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होते हैं.
  • पाटा चलाना – खेती करते समय यह आवश्यक है कि बुआई के बाद बीज मिट्टी द्वारा ढक जाए. अतः पाटा चलाकर मृदा के ढेलों को तोडा जाता हैं. तथा बोये गये बीजों को भी इस क्रिया से दबाया जाता हैं.
  • खाद एवं उर्वरक मिलाना- सामान्यतया पौधों के लिए सोलह पोषक तत्व आवश्यक माने जाते हैं. ये तत्व हैं कार्बन, हाइड्रो जन, ओक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा, सल्फर, क्लोरिन, जिंक, बोरोन, ताम्बा और मोलिविडनम. इनके अभाव में पौधों पर इनके अभाव के लक्षण प्रदर्शित होते हैं. अधिक मात्रा में होने पर ये हानि भी पहुचाते हैं. प्रत्येक जाति के पौधों के लिए इनकी अलग अलग मात्रा निर्धारित करते हैं. उक्त पोषक तत्वों को हम खाद या उर्वरक के रूप में पौधों को देते हैं.

भारतीय कृषि का इतिहास History of Agriculture in India

आज हमारे देश में कृषि का जो स्वरूप देखने को मिल रहा हैं वह परम्परागत एव आधुनिक कृषि का संयुक्त रूप हैंइसे विकसित करने में कई सदियाँ लगी हैं.

कुछ सदी पूर्व तक हम अपने लोगों का पेट भरने योग्य अन्न नहीं उपजा पाते थे, मगर कृषि के क्षेत्र में आई हरित क्रांति एवं आधुनिक तकनीक के उपयोग ने न केवल हमे कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि अब हम आयात के स्थान पर बड़ी मात्रा में अन्न का निर्यात करते हैं.

भारत में कृषि का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव सभ्यता का. आदिमानव भोजन के प्रबंध के लिए वनों एवं जगली जीवों के शिकार पर निर्भर था, वह अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दर दर भटकता रहता था.

मगर कृषि व फसल उगाने के ज्ञान के बाद वह एक स्थान पर संगठित रहकर खेती करने लगा. माना जाता हैं. कि पश्चिम एशिया में सर्वप्रथम मानव ने गेहूं और जौ की फसल उगानी शुरू की. वह कृषि के साथ साथ गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि पशुओं को भी पालने लगा था.

लगभग 7500 ई पू मानव ने प्रथम बार कृषि करना आरम्भ किया था, 3000 ई पू आते आते वह उन्नत तरीकों के साथ खेती करने लगा. इस दौर में मिश्र व सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों ने कृषि को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाया था,

वैदिक काल में लोहे के हथियारों के उपयोग ने इसे अधिक सुविधाजनक बना दिया. धीरे धीरे सिंचाई की पद्धतियों का जन्म हुआ, अब नदी या अन्य जल स्रोतों के निकट अधिक खेती की जाने लगी.

नदी के किनारे कृषि करने के दो फायदे थे एक तो सिंचाई के लिए जल आसानी से उपलब्ध था, वही भूमि की उर्वरता भी अधिक थी, अतः इन स्थानों पर चावल व गन्ने की बुवाई बड़े स्तर पर की जाने लगी.

अंग्रेजी काल से पूर्व तक भारतीय कृषक अधिकतर खाद्यान्न फसलें उगाते थे. अंग्रेजों ने किसानों को वाणिज्यिक कृषि से परिचय करवाया,

जिसके परिणामस्वरूप न केवल किसानों की आमदनी बढ़ी बल्कि देश के व्यापारियों को भी व्यापक स्तर पर कच्चा माल आसानी से मिलने लगा.

जूट, नील, चाय, रबर तथा कोफ़ी की वाणिज्यिक खेती की जाने लगी. इसका बड़ा नुकसान यह हुआ कि भारत में खाद्य संकट उत्पन्न हो गया.

कृषि के प्रकार

  • मिश्रित कृषि – कृषि एवं पशुपालन एक साथ साथ करना.
  • शुष्क या बारानी कृषि – शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल का सुनियोजित संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व शीघ्र पकने वाली फसलों की कृषि करना.
  • झुमिंग कृषि- पहाड़ी व वन क्षेत्रों में वन एवं पेड़ पौधों को जलाकर जमीन साफ़ करना तथा उस पर 2-3 वर्ष खेती करने के पश्चात उसे छोड़कर किसी अन्य स्थान पर इसी तरह कृषि कार्य करना.
  • समोच्च कृषि – पहाड़ी क्षेत्रों में समस्त कृषि कार्य और फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत करना ताकि वर्षा से होने वाले मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके, समोच्च कृषि कहलाती हैं.
  • पट्टीदार खेती- ढालू भूमि में मृदा क्षरण को कम करने वाली तथा अन्य फसलों को एक के बाद एक पट्टियों में ढाल के विपरीत इस प्रकार बोना कि मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके.
  • कृषि वानिकी – कृषि के साथ साथ फसल चक्र में पेड़ों, बागवानी व झाड़ियों की खेती कर फसल व चारा उत्पादित करना.
  • रोपण कृषि – एक विशेष प्रकार की खेती जिसमे रबड़, चाय, कहवा आदि बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं.
  • रिले क्रोपिंग – एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें लेना.

  • भारतीय कृषि का इतिहास महत्व
  • नए कृषि कानून क्या है विवाद
  • आदिमानव का इतिहास

उम्मीद करता हूँ दोस्तों Essay On Agriculture In Hindi का यह निबंध आपकों पसंद आया होगा,

यहाँ हमने कृषि पर निबंध के बारे में जानकारी दी हैं. यह जानकारी आपकों कैसी लगी हमें कमेंट कर जरुर बताएं.

One comment

Thank you very much. For providing facts of agriculture .

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  • निबंध ( Hindi Essay)

essay on agriculture in india in hindi

Essay on Indian Agriculture in India

भारत एक बहुत बड़ा देश है जिसमें लाखों लोग अपना जीवन बसर खेती किसानी द्वारा करते हैं। भारत में जितना खेती किसानी (Essay On Indian Agriculture in Hindi) किया जाता है किसी और देश में उतनी खेती किसानी नहीं होती है। भारत एक बहुत बड़ा देश है जिसके अंदर करोड़ो लोग रहते हैं। आदि भारत के लोग तो बस खेती किसानी से अपना गुजर-बसर करते हैं और आधे लोग उस खेती किसानी पर निर्भर है जिसके द्वारा उन्हें अनाज और अन्य पानी मिलता है। हर तरफ हरियाली ही हरियाली और खेती किसानी फैली हुई है। आजकल हर कोई सिर्फ किसान पर निर्भर है क्योंकि यदि वे आने नहीं उठाएंगे तो किसी को भी खाने को एक दाना नहीं मिलेगा और जीवन यापन करने के लिए भोजन होना, भोजन की जरूरत इंसान जानवर पेड़ पौधे पक्षी हर किसी को पड़ती है। पूरी दुनिया में धरती का आधा भाग केवल खेतीबाड़ी से और हरियाली से भरा पड़ा है। उसमें हर प्रकार की खेती की जाती है। उसी खेती बाड़ी में देश विदेशों का भी फसल उगाया जाता है जो कि देश विदेशों में भेजा जाता है और बेचा जाता है।

यहां हर कोई खेती किसानी और कृषि क्षेत्र में अपनी-अपनी रुचि बढ़ाते जा रहे हैं। ऐसे में हर जगह हर तरफ हरा भरा खेत और खेती किसानी का कार्य चलता देख कर मन में बहुत प्रसन्नता होती है। हर जगह हर कोई खेती किसानी कर रहा है परंतु उन्हें इससे होने वाले लाभ का कोई हिसाब नहीं है। यहां हर किसी को हर काम का केवल उतना ही मूल्य मिलता है जितना मैं उसका जीवन यापन हो सके। ऐसे में हमारे किसान और उनकी मुसीबतें बढ़ती जाती है।

भारत एक बहुत बड़ा देश है जिसकी जान पहचान विदेश और दूसरे बड़े-बड़े देशों से भी है। हर कोई भारत को बहुत नाम और आदर्श देखता है। भारत में हर कोई अच्छा स्वभाव रखने के लिए जाना जाता है हर किसी से अच्छा व्यवहार करने के लिए यहां के लोगों का नाम लिया जाता है यदि किसी को उदाहरण के रूप में कुछ अच्छा कहा जाए तो भारत के लोगों का उदाहरण देते हैं। परंतु यहीं पर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने कार्यक्षमता और कार्यभार के वजह से प्रचलित है। इन्हीं सब कारणों की वजह से भारत एक ऐसा देश बन चुका है जिसमें हर कोई बच्चा और दूसरे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति (Essay on Indian Agriculture in Hindi) सब सुख और चैन की जिंदगी बिता रहे हैं। वैसे तो भारत में हर कोई कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है परंतु हर तरफ गरीबी और लाचारी छाई हुई है। खेती किसानी से प्रसिद्ध हुआ भारत आज लोगों के जवानों पर पहला नाम बनकर आता है जिसमें खेती किसानी को सबसे आगे रखा और माना जाता है।

हाल में ही भारत के कृषि क्षेत्र के वजह से भारत एक अंतर्राष्ट्रीय कृषि पूर्ण देश बन चुका है। इसके कारण हर तरफ हर कोई इस कृषि क्षेत्र का लाभ और उन्नत उठा रहा है। इसी सब कारणों से भारत आज देश-विदेश में सबसे ऊंचा नाम कमा रहा है कृषि क्षेत्र के मामलों में।

भारत में कई तरीके की खेती की जाती है जैसे कि अलग-अलग क्षेत्रों में समय और जगह के हिसाब से खेती और कृषि कार्य को सफल किया जाता है। ऐसे तो हर तरीके की खेती भारत में की जाती है पर उन सब के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। तापमान के हिसाब से लोग और किसान खेती को करते हैं जिससे उन्हें बहुत सारी सुविधाएं प्राप्त होती है। कुछ ऐसे भी खेती है जो भारत के निचले क्षेत्र में की जाती है जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, कन्नूर, केरला, विशाखापत्तनम आदि। इन सब देशों में किए जाने वाली खेती को साउथ हार्वेस्टिंग कहा जाता है जिसके अंदर चना, मटर और अन्य दालो का उत्पादन किया जाता है।

भारत में नॉर्थ साइड किए जाने वाले खेती को नॉर्थ हार्वेस्ट इन क्रॉप्स कहा जाता है जिसमें बाजरा साग और अन्य ठंडी चीजों का उत्पादन किया जाता है।

भारत में वेस्ट बंगाल, आसाम, सिलीगुड़ी, सिक्किम आदि क्षेत्रों में फलों का उत्पादन ज्यादा है और यही परचा पति का भी खेती किया जाता है। यहीं से भारत और विदेशों में चाय पत्ती और कॉफी पहुंचाई जाती है।

भारत के ईस्ट साइड में बसे हुए गुजरात, हैदराबाद, हरियाणा, मुंबई और आदि क्षेत्रों में सब्जियों की खेती बाड़ी की जाती है और वही से सारे देश में सब्जियां पहुंचाई जाती है। इन्हीं सब क्षेत्रों में धान, गेहूं, बाजरा, चना दाल, इन सब का भी उत्पादन किया जाता है।

ऐसे तो खेती किसान लोग अपने व्यवहार और व्यवस्था के हिसाब से करते हैं परंतु भारत में खेती-किसानी करना परंपरा माना जाता है। यहां हर कोई खेती किसानी से जुड़ा हुआ रहता है हर किसी को खेती-किसानी से अलग खुशी और आनंद का अवसर प्राप्त होता है।

पुरातत्व काल में जब खेती किसानी के कोई उपाय नहीं थे तो छोटे-मोटे जानवरों द्वारा ही खेती किसानी का कार्य पूर्ण किया जाता था। पहले तो खेती किसानी के और ही सबका ध्यान रहता था क्योंकि एकमात्र सहारा खेती किसानी हुआ करता था। उस समय जब कोई भी ऐसी बाहरी तकनीक नहीं हुआ करती थी तब खेती किसानी हल और जानवरों द्वारा अपने हाथों से सफल किया जाता था। यह बात है सन 1800 से सन 1900 के बीच की जब खेती किसानी के लिए लोग एक दूसरे पर निर्भर ना होकर कि अपना अपना काम स्वयं करते थे।

वैसे तो उस समय हर कोई अपनी अपनी खेती किसानी अपने अपने तरीके से करता था परंतु जैसे-जैसे समय बीतने लगा लोगों का मन खेती किसानी से उठने लगा। 1905 के आते आते जैसे-जैसे इंडस्ट्रीज फैक्ट्री और व्यवसाय के और छोड़ बढ़ने लगे लोगों का ध्यान खेती किसानी से हटने लगा। परंतु कुछ समय भी खेती किसानी हुआ करती थी थोड़ी-थोड़ी तकनीकों का उपयोग करके ही लोग खाद बनाते थे और घरेलू उपायों से ही खेती किसानी (Essay on Indian Agriculture in Hindi) को किया जाता था। ऐसे ही धीरे-धीरे बढ़ते बढ़ते जब सन 2000 आया तो आधे लोग तो खेती किसानी से अपना मुंह मोड़ चुके थे और बचे कुचे लोग खेती में बढ़ोतरी के आसार छोड़ने लगे थे।

अब जब खेती-किसानी से सबका मन भर चुका था तो सब लोग फैक्ट्री इंडस्ट्री की ओर दौड़ने लगे। परिणाम कुछ नहीं मिला परंतु खेती किसानी में बाधाएं आने लगी।किसानों की संख्या कम होने लगी जिससे खेती पर बहुत सारे प्रभाव पड़ने लगे। फसलें कम उगाए जाने लगी और जनसंख्या बढ़ती गई। धीरे-धीरे अकाल का संभावना बन चुका था तब जो गिने-चुने किसान बचे थे उन्होंने अपना सफल प्रयास किया और हरियाली को एक बार फिर से धरती पर उतारा। खेती किसानी की शुरुआत फिर से की गई और फिर से सब कुछ बराबर चलने लगा।

खेती किसानी से तो ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो किसानों को मिल सकते हैं मुनाफे के रूप में परंतु होने वाले नुकसान को बिल्कुल अनदेखा नहीं किया जा सकता। होने वाले नुकसान के कारण हाल में ही कुछ ऐसे भी किस्से सुनाएं दिए हैं जिनमें किसानों ने आत्महत्या करना नुकसान की भरपाई करने से ज्यादा आसान समझा। ऐसे ही बहुत सारे हमारे किसान भाई हैं जो फसल (Essay on Indian Agriculture in Hindi) में नुकसान होने के कारण उनकी भरपाई नहीं कर पाते और अपनी जान दे देते हैं। परंतु इनके जान देने से या फिर इनके हताश होने से उनका नुकसान तो नहीं कम होगा। बचने के लिए केवल एक ही उपाय है कि अच्छे से खेती करें और उसको अच्छे दाम में ना सही परंतु ऐसे दाम में बेच दे जिसमें उसे उस फसल को उगाने तक का कीमत वसूल हो जाए। ज्यादा मुनाफा के चक्कर में ना फसल बिकेगी और ना ही मुनाफा होगा बदले में ज्यादा नुकसान होने के कगार आ जाएगा। इससे ज्यादा अच्छा है कि जितना हो सके उतना अच्छा फसल करें और अच्छे दाम में बेच दे। अपने और अपने परिवार का पालन पोषण अच्छे से करें और कभी हताश होकर आत्महत्या जैसे अपराध को अंजाम ना दे।

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कृषि पर निबंध – Essay on Agriculture in Hindi

Essay on Agriculture in Hindi

Essay on Agriculture in Hindi :   इस लेख में 3 अलग-अलग प्रकार के कृषि पर निबंध लिखे गए हैं। यह निबंध हिंदी भाषा में लिखा गया है और शब्द गणना के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। आप नीचे दिए गए पैराग्राफ में 100 शब्दों, 200 शब्दों, 400 शब्दों, 500 और 1000 शब्दों तक के निबंध प्राप्त कर सकते हैं।

हमने अपने कृषि पर निबंध   के बारे में बहुत सी बातें तैयार की हैं। यह कक्षा 1, 2,3,4,5,6,7,8,9 से 10वीं तक के बच्चों को कृषि पर निबंध  लिखने में मददगार होगा।

कृषि पर निबंध (100 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 100 Words

यह कृषि मानव सभ्यता की रीढ़ है, जो हमें जीविका के लिए आवश्यक भोजन और संसाधन प्रदान करती है। इसमें फसलों की खेती, पशुधन पालन और अन्य कृषि पद्धतियां शामिल हैं। बढ़ती आबादी को खिलाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और ग्रामीण आजीविका में भी योगदान देता है। प्रौद्योगिकी और कृषि तकनीकों में प्रगति के साथ, कृषि अधिक कुशल और टिकाऊ हो गई है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन, सीमित संसाधन और जिम्मेदार प्रथाओं की आवश्यकता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कृषि की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने और भविष्य की खाद्य मांगों को पूरा करने के लिए सतत और अभिनव दृष्टिकोण आवश्यक हैं।

कृषि पर निबंध (300 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 300 Words

कृषि मानव सभ्यता की रीढ़ है, हमारी खाद्य आपूर्ति की नींव और आर्थिक विकास के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। इसमें भोजन, फाइबर और ईंधन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए फसल की खेती, पशुधन पालन और जलीय कृषि सहित विभिन्न प्रथाओं को शामिल किया गया है।

कृषि के महत्वपूर्ण योगदानों में से एक खाद्य सुरक्षा है। लगातार बढ़ती वैश्विक आबादी को खिलाने के लिए किसान फसलों का उत्पादन करने और पशुओं को पालने के लिए अथक परिश्रम करते हैं। विविध फसलों की खेती और आधुनिक कृषि तकनीकों के कार्यान्वयन के माध्यम से, कृषि एक स्थिर और पर्याप्त खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करती है।

इसके अलावा, कृषि आर्थिक विकास और ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह रोजगार के अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि गतिविधियों पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त, कृषि व्यापार और निर्यात के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में योगदान करती है, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है और गरीबी को कम करती है।

कृषि समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और सतत विकास प्रदान करती है। चुनौतियों पर काबू पाने और कृषि की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए नवीन और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है। कृषि क्षेत्र में समर्थन और निवेश करके, हम समग्र रूप से ग्रामीण समुदायों और वैश्विक आबादी दोनों के लिए एक समृद्ध भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं।

Essay on Agriculture in Hindi

कृषि पर निबंध (1000 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 1000 Words

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। यह हजारों वर्षों से देश में है। यह पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, और नई तकनीकों और उपकरणों के उपयोग ने लगभग सभी पारंपरिक खेती के तरीकों को बदल दिया है।

साथ ही, भारत में, कुछ छोटे किसान अभी भी पुरानी पारंपरिक खेती के तरीकों का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके पास आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए संसाधन नहीं हैं। इसके अलावा, यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसने न केवल इसके विकास में बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी योगदान दिया है।

भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास

भारत कृषि पर बहुत निर्भर है। इसके अलावा, कृषि भारत में आजीविका का साधन नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है। साथ ही, सरकार इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है क्योंकि पूरा देश भोजन के लिए कृषि पर निर्भर है।

हजारों सालों से हम कृषि का अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन अभी भी, यह लंबे समय तक विकसित नहीं हुआ है। साथ ही आजादी के बाद हम अपनी मांग को पूरा करने के लिए दूसरे देशों से अनाज का आयात करते हैं। लेकिन, हरित क्रांति के बाद, हम आत्मनिर्भर हो गए और अपने अधिशेष को दूसरे देशों में निर्यात करना शुरू कर दिया।

साथ ही, पहले की तरह, हम खाद्यान्न की खेती के लिए लगभग पूरी तरह से मानसून पर निर्भर हैं, लेकिन अब हमने बांध, नहरें, नलकूप और पंप-सेट बनाए हैं। इसके अलावा, अब हमारे पास अच्छे उर्वरक, कीटनाशक और बीज हैं जो हमें पहले की तुलना में अधिक भोजन उगाने में मदद करते हैं।

जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, हम प्राप्त करते हैं –

1)बेहतर उपकरण, 2)बेहतर सिंचाई सुविधाएं और 3)विशिष्ट कृषि तकनीकों में सुधार होने लगा है।

साथ ही, हमारा कृषि क्षेत्र कई देशों की तुलना में मजबूत हुआ है, और हम कई खाद्यान्नों के सबसे बड़े निर्यातक हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि का इतिहास

स्वतंत्रता के बाद, भारतीयों ने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में अत्यधिक प्रगति की। भारतीयों की जनसंख्या तीन गुना हो गई है, और इसलिए खाद्यान्न उत्पादन भी हो गया है। 1960 से पहले घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीयों को आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

हालाँकि, 1965 और 1966 में भयंकर सूखे के बाद, भारत अपनी कृषि नीति में सुधार के लिए आश्वस्त था, जिसने भारत को हरित क्रांति में प्रवेश कराया। हरित क्रांति ने पंजाब को देश की रोटी की टोकरी बना दिया। प्रारंभ में, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों ने उत्पादन में वृद्धि देखी क्योंकि कार्यक्रम राज्यों के सिंचित क्षेत्रों पर केंद्रित था। सरकारी अधिकारियों और किसानों ने मिलकर काम किया और उत्पादकता और ज्ञान के हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित किया।

हरित क्रांति कार्यक्रम उत्पादन में वृद्धि करता है, जिससे भारत आत्मनिर्भर बना। 2000 तक भारतीय किसानों ने ऐसी किस्में अपनाईं जिनसे प्रति हेक्टेयर छह टन गेहूं का उत्पादन होता था। बांध बनाए गए थे और सिंचाई परियोजनाओं के विकास के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिसने स्वच्छ पेयजल का स्रोत भी प्रदान किया है।

गन्ना और चावल जैसी फसलों के लिए सरकार द्वारा दी गई न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी ने भूजल खनन को बढ़ावा दिया है, जिससे भूजल की कमी हुई है।

भारत में कृषि का महत्व

यह कहना अनुचित नहीं है कि हम जो भोजन करते हैं वह कृषि गतिविधि का उपहार है और यह भारतीय किसान ही हैं जो हमें यह भोजन प्रदान करने के लिए पसीना बहाते हैं।

1)देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। 2)इसके लिए एक बड़े कार्यबल और कार्यबल की आवश्यकता होती है, जो सभी कर्मचारियों का 80% है। कृषि क्षेत्र न केवल प्रत्यक्ष बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी भी है। 3)हमारे सभी निर्यात का 70% कृषि है। 4)प्राथमिक निर्यात वस्तुएं चाय, कपास, कपड़ा, तम्बाकू, चीनी, जूट उत्पाद, मसाले, चावल और कई अन्य सामान हैं।

कृषि के प्रतिकूल प्रभाव

1. जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन.

कई प्राकृतिक और मानव निर्मित प्रणालियाँ वैश्विक ऊर्जा संतुलन और पृथ्वी के वातावरण में परिवर्तन को प्रभावित करती हैं। ग्रीनहाउस गैसें ऐसा ही एक तरीका है। ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी की सतह से निकलने वाली कुछ ऊर्जा को अवशोषित और छोड़ती हैं, जिससे निचले वातावरण में गर्मी बनी रहती है।

2. वनों की कटाई

वनोन्मूलन का अर्थ है कि वृक्षों को उनके लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिए स्थायी रूप से वन से हटा दिया जाता है। इसमें कृषि या चराई के लिए भूमि की सफाई या ईंधन, निर्माण या निर्माण के लिए लकड़ी का उपयोग शामिल हो सकता है।

3. जेनेटिक इंजीनियरिंग

जेनेटिक इंजीनियरिंग के उपयोग और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की अवधारणा ने कृषि जगत को कई लाभ पहुँचाए हैं। फसलों को रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी बनाकर, रोगों और कीटों से निपटने के लिए कम रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

4. मीठे पानी की आपूर्ति और सिंचित पानी

सिंचाई के लिए पानी के सबसे लगातार स्रोत नदियाँ, जलाशय और झीलें और भूजल हैं। सिंचाई की आवश्यकता वाले अंतराल पर पौधों को नियंत्रित पानी का उपयोग कृषि फसलों को बढ़ाने, भूस्खलन, शुष्क क्षेत्रों में अशांत मिट्टी के वनों की कटाई और औसत वर्षा के दौरान कम वर्षा में मदद करता है।

5. प्रदूषण और संदूषण

प्रदूषण का मतलब है कि पदार्थ पृष्ठभूमि से ऊपर या केंद्रित नहीं होना चाहिए। प्रदूषण आवासों पर प्रतिकूल जैविक प्रभाव पैदा कर सकता है। भारत में कुछ किसान चावल काटने के बाद अपने धान के खेतों को जला देते हैं। जिसके कारण अधिकांश निकटतम कस्बों और शहरों को वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।

6. मृदा क्षरण और भूमि उपयोग के मुद्दे

उपजाऊ भूमि की हानि से मृदा अपरदन का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे नदियों और नालों में प्रदूषण और अवसादन बढ़ गया है, जिससे इन जलमार्गों को अवरुद्ध करके मछली और अन्य प्रजातियों के कटाव हो रहे हैं। और यहाँ तक कि निम्नीकृत भूमि में भी अक्सर पानी समा सकता है, जिससे बाढ़ आ सकती है।

7. सामान्य अपशिष्ट

कृषि अपशिष्ट विभिन्न कृषि गतिविधियों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट है। इसमें खेतों, मुर्गियों के घरों और बूचड़खानों से खाद और अन्य अपशिष्ट शामिल हैं; फसल कूड़े; उर्वरक भाग- खेतों से दूर; कीटनाशक जो पानी, हवा या मिट्टी में प्रवेश करते हैं; और खेतों से नमक और गाद।

स्थानीय बुनियादी ढांचे, स्थानीय संसाधनों, मिट्टी की गुणवत्ता, सूक्ष्म जलवायु के कारण प्रत्येक राज्य अलग-अलग कृषि उत्पादकता पैदा करता है। सिंचाई के बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज, स्वच्छ खाद्य पैकेजिंग आदि में सुधार करके भारतीय किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है, ताकि स्थानीय किसान अपने उत्पादन और आय में सुधार कर सकें।

सरकार ने वर्षों से किसानों को कम लागत लागत और उच्च उत्पादन आय के साथ उनकी उपज बढ़ाने में मदद करने के लिए कई सुधारों की घोषणा की है। हाल ही में सरकार ने 2022 तक किसान की आय को दोगुना करने की घोषणा की है। ईकॉमर्स भी एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से किसान अपनी आय बढ़ाने और अपने उत्पाद के व्यापक बाजार को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।

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भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi)

भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi)

आज   हम भारतीय कृषि पर निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) लिखेंगे। भारतीय कृषि पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

भारतीय कृषि पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

खेती और वानिकी के माध्यम से खाध पदार्थो का उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि प्रतेक मानव जीवन की आत्मा होती है। सम्पूर्ण मानव जाती का अस्तित्त्व ही कृषि पर निर्भर है और भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में कृषि करना केवल कृषि करना नहीं बल्कि एक कला है। कृषि पर ही पूरा देश आश्रित है। कृषि अगर नहीं, तो ना कोई अनाज होगा और ना ही हम मानव के लिए भोजन मिलेगा।

बिना कृषि के भोजन कहा से प्राप्त होगा। हमारे देश मे जमीन का कुल क्षेत्रफल का 11 प्रतिशत भाग ही कृषि करने योग्य है। जबकि भारत के 51 प्रतिशत क्षेत्रफल में कृषि की जाती है।

कृषि का अर्थ

कृषि का अंग्रेजी शब्द Agriculture है, जो की लेटिन भाषा के दो शब्द AGRIC+CULTURA से हुआ है। जिसमे AGRIC का शाब्दिक अर्थ मृदा या भूमि है, जबकि CULTURA का शाब्दिक अर्थ है कर्षण करना। अर्थात मृदा का कर्षण करना ही कृषि (AGRICULTURE) अथवा खेती कहलाता है।

कर्षण एक बहुत ही व्यापक शब्द है। जिसमे फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन व् वानिकी आदि सभी पहलुओं को सम्मिलित किया जा सकता है। कृषि एक प्रकार से एक कला, एक विज्ञान, एक वाणिज्य है। कृषि इन सब के जुड़ने से इनके योग से ही बनती है।

कृषि की परिभाषा

भूमि के उपयोग से फसल उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि वह कला है, जिसमे विज्ञान और उद्योग हे। जो मानव उपयोग के लिए पोधो व् पशुओ के विकास का प्रबंध करती है।

पी. कुमार एस. के.शर्मा तथा जसबीर सिंह के अनुसार

कृषि फसलोत्पादन से अधिक व्यापक है। यह मानव द्वारा ग्रामीण पर्यावरण का रूपांतरण है। जिससे कुछ उपयोगी फसलों एवं पशुओं के लिए सम्भव अनुकूल दशाएं सुनिश्चित की जा सकती है। इनकी उपयोगिता सतर्क चयन से बढ़ाई जाती है।

इनमें उन सभी पद्धतियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका प्रयोग कृषक कृषि के विभिन्न तत्वों को विवेकपूर्ण ढंग से संगठित करने और प्रशस्त उपयोग में करता है। अतः विस्तृत अर्थ में कृषि का अभिप्राय भौतिक वातावरण के पौधे, पशु पालन, वनारोपण, प्रबन्ध तथा मत्स्य पालन आदि करने से है।

इस प्रकार कृषि को ऊर्जा के रूपांतरण तथा पुनरोद्भव (regeneration) द्वारा भूतल पर जीविकोपार्जन (earning) हेतु फसलोत्पादन एवं पशुपालन क्रियाओं के रूप में देखा जा सकता है।

जवाहरलाल नेहरू जी के कृषि पर विचार

हमारे देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा उद्धत किया गया कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि इंतजार नहीं कर सकती। यह आश्चर्य की बात नहीँ है कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म मे देवी अन्नपूर्णा आहार और पोषण की देवी हैं।

भारतीय कृषि का हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान

कृषि हमारा प्राचीन और प्राथमिक व्यवसाय है। इसमें फसलों की खेती तथा पशुपालन दोनों ही सम्मिलित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान व् योगदान निम्नलिखित अर्थो से देखा जा सकता है।

हमारे देश की कृषि जंहा अपनी 2/3 जनसंख्या का भरण पोषण करती है, वही भारतीय कृषि से संसार की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या का पोषण हो रहा है। भारतीय कृषि में लगभग 2/3 श्रम शक्ति लगी हुई है।

इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में भी अनेक लोगो को रोजगार मिला है। लोग या तो दस्तकारी में लगे है, या गाँवों में कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे – छोटे उद्योग धंधो में लगे है। देश में वस्त्रो की जरूरतों को पूरा करने के लिए कच्चा माल कृषि से ही मिलता है।

कपास, जूट, रेशम, उन एवं लकड़ी की लुगदी से ही वस्त्रो का निर्माण होता है। चमड़ा उद्योग भी कृषि क्षेत्र की ही देंन है। कृषि उत्पादों पर निर्भर प्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग, जुट उद्योग, खाध तेल उद्योग, चीनी एवं तम्बाकू उद्योग आदि है। कृषि उत्पादों पर आधारित आय में कृषि का योगदान लगभग 34 प्रतिशत है।

भारतीय कृषि देश की बढ़ती जनसंख्या का भरण-पोषण कर रही है। कृषि पदार्थो से ही भोजन में कार्बोहाइट्रेड, संतुलित आहार हेतु प्रोटीन, वसा, विटामिन आदि प्राप्त होते है। संक्षेप में हम यहीं कह सकते है की भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

इसकी सफलता या विफलता का प्रभाव देश के खाध समस्या, सरकारी आय, आंतरिक व् विदेशी व्यापार तथा राष्टीय आय पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। इसीलिए कहा जाता है की मानव जीवन में जो महत्व आत्मा का है, वही भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का है।

कृषि की प्रमुख उपज

  • खरीफ की फसल

खाधान्न फसले

नकद या व्यापारिक फसले

खरीफ की फसले

ये वो फसले है जो वर्षा ऋतू के शुरू (जून -जुलाई) में बोई जाती है और दशहरे के बाद शरद ऋतू के अंत (अक्टूबर – नवंबर) तक तैयार हो जाती है। जैसे चावल, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, कपास, पटसन, तीली व् मूंगफली आदि।

रबी की फसले

ये वो फसले है जो शरद ऋतू के आगमन पर दशहरे के बाद (अक्टूबर – नवम्बर) में बोई जाती है और ग्रीष्म ऋतू के शुरू में (मार्च – अप्रेल) होली पर तैयार हो जाती है। जैसे गेंहू, चना, जौ, सरसो व् तम्बाकू आदि।

यह फसले विशेषतः ग्रीष्म ऋतू में पैदा की जाने वाली सब्जियों और हरे चारे की खेती आदि है।

ये वो फसले है जो भोजन के लिए मुख्य पदार्थ का कार्य करती है। जैसे चावल, गेंहू, ज्वार, मक्का, बाजरा चना, अरहर व् अन्य दाल।

ये वो फसले है जो प्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिए पैदा नहीं की जाती। किन्तु उन्हें बेचकर नकद राशि प्राप्त की जाती है। जैसे कपास, जुट, चाय, कॉफी, तिलहन, सोयाबीन, गन्ना, तम्बाकू व् रबर आदि।

भारत में कृषि विकास हेतु किये गए सरकारी प्रयासों के अंतर्गत सन 1966-67 में हरित क्रांति द्वारा तकनीकी परिवर्तन कर कृषि क्षेत्र में नए युग का शुभारम्भ हुआ था। हरित क्रांति का तातपर्य कृषि उत्पादन में उस तीव्र वृद्धि से है, जो अधिक उपज देने वाले बीजो, रासायनिक उर्वरको व् नई तकनीकों के प्रयोग के परिणामस्वरूप हुई है।

कृषि के प्रकार

हमारे देश भारत मे कृषि के प्रकार कुछ इस प्रकार है।

  • स्थानांतरित खेती
  • निर्वाह खेती
  • बागवानी कृषि
  • व्यापक कृषि
  • वाणिज्यिक कृषि
  • एक्वापोनिक्स
  • गीले भूमि की खेती
  • सुखी भूमि की खेती

कृषि और भारतीय किसान

भाग्यवादी होना भारतीय किसान के जीवन की सबसे बड़ी विडंबंना है। की वह कृषि उत्पादन और उसकी बर्वादी को अपना भाग्य और दुर्भाग्य की रेखा मानकर निराश हो जाता है। वह भाग्य के सहारे आलसी होकर बेठ जाता है। वह कभी भी नहीं सोचता है की कृषि कर्मक्षेत्र है। जंहा कर्म ही साथ देता है भाग्य नहीं।

वह तो केवल यही मानकर चलता है की कृषि – कर्म तो उसने कर दिया है, अब उत्पादन होना न होना तो विधाता के वश की बात है, उसके वश की बात नहीं है। इसलिए सूखा पड़ने पर पाला मरने पर या ओले पड़ने पर वह चुपचाप ईश्वराधीन का पाठ पढ़ता है।

इसके बाद तत्काल उसे क्या करना चाहिए या इससे पहले किस तरह से बचाव या निगरानी करनी चाहिए थी इसके विषय में प्रायः भाग्यवादी बनकर वह निशिचन्त बना रहता है। कृषि में किसान का सबसे अधिक महत्व होता है। क्योंकि कृषि पर निर्भर किसान ही हैं, जो कृषि को एक महत्वपूर्ण स्थान देता है।

रूढ़िवादिता ओर परम्परावादी होना भारतीय किसान के स्वभाव की मूल विशेषता है। यह शताब्दी से चली आ रही कृषि का उपकरण या यंत्र है। इसको अपनाते रहना उसकी वह रूढ़िवादिता नहीँ है तो ओर क्या है।

इसी अर्थ में भारतीय किसान परम्परावादी दृष्टिकोण का पोषक ओर पालक है, जिसे हम देखते ही समझ लेते हैं। आधुनिक कृषि के विभिन्न साधनों ओर आवश्यकताओ को विज्ञान की इस धमा चौकड़ी प्रधान युग मे भी न समझना या अपनाना भारतीय किसान की परम्परावादी दृष्टिकोण का ही प्रमाण हैं।

इस प्रकार भारतीय किसान एक सीमित ओर परम्परावादी सिधान्तो को अपनाने वाला प्राणी है। अंधविश्वासी होना भी भारतीय किसान के चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है।अंधविश्वासी होने के कारण भारतीय किसान विभिन्न प्रकार की सामाजिक विषमताओं में उलझा रहता है।

हरित क्रांति से कृषि का आत्मनिर्भर बनना

भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमण के कारण, जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण, समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था न हो सकने के कारण, नवीनतम उपयोगी औजारों व अन्य साधनों के प्रयोग न हो सकने के कारण तथा विदेशी शासकों की सोची- समझी राजनीति व कुचलो का शिकार होने के कारण कई बार अकाल का शिकार हुआ है।

जब लोंगो के भूखे मरने की नोबत आने लगी, तब देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात सोची जाने लगी और एक नए युग का सूत्रपात हुआ। जो की हरित क्रांति का युग था। तभी हरित क्रांति ने शीघ्रता से चारों ओर फैलकर देश को हरा भरा बना दिया।

अर्थात खाद्य अनाजों के बारे में देश को पूर्णया आत्मनिर्भर कर दिया है। हरित क्रांति से हमारे देश की कृषि ने एक अलग ही मुकाम पा लिया है, जो कि कृषि के लिए एक अलग ही मुकाम बनाने में कामयाब हुआ है।

कृषि हमारे देश की वो जड़ है, जिसके खत्म होते ही अनाज और बहुत सारे व्यक्तियो के रोज़गार का भी अतं हो जाएगा। क्योंकि कृषि करना ओर अनाज उगाना ना केवल किसान के लिए उसकी रोज़ी रोटी है, बल्कि उसके परिवार का भरण पोषण का एक बहुत जरुरी जरिया है। जिसके नहीँ होने से ना केवल उसके परिवार बल्कि पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ता है।

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तो यह था भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि भारतीय कृषि पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Indian Agriculture) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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भारत में कृषि पर निबंध | Essay on Agriculture in India in Hindi

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Essay on Agriculture in India in Hindi: इस लेख में, हमने भारत में कृषि पर एक निबंध प्रकाशित किया है। यहां आप हमारे लिए इसके इतिहास, फायदे और प्रतिकूल प्रभावों के बारे में भी पढ़ेंगे।

  • 2 भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास
  • 3 स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि का इतिहास
  • 4 भारत में कृषि का महत्व
  • 5.1 1. जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
  • 5.2 2. वनों की कटाई
  • 5.3 3. जेनेटिक इंजीनियरिंग
  • 5.4 4. मीठे पानी की आपूर्ति और सिंचित पानी
  • 5.5 5. प्रदूषण और संदूषण
  • 5.6 6. मृदा निम्नीकरण और भूमि उपयोग के मुद्दे
  • 5.7 7. सामान्य अपशिष्ट
  • 6.1 यह भी पढ़ें

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। यह देश में हजारों सालों से है। यह पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, और नई तकनीकों और उपकरणों के उपयोग ने लगभग सभी पारंपरिक कृषि विधियों को बदल दिया है।

मे भी इंडिया कुछ छोटे किसान अभी भी पुरानी पारंपरिक कृषि पद्धतियों का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके पास आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए संसाधन नहीं हैं। इसके अलावा, यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसने न केवल इसके विकास में बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी योगदान दिया है।

भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास

भारत कृषि पर बहुत निर्भर है। इसके अलावा, कृषि भारत में आजीविका का साधन नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है। साथ ही, सरकार क्षेत्र को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है क्योंकि पूरा देश भोजन के लिए कृषि पर निर्भर है।

हजारों वर्षों से हम कृषि का अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन फिर भी, यह लंबे समय तक विकसित नहीं हुआ है। भी, आजादी के बाद हम अपनी मांग को पूरा करने के लिए दूसरे देशों से खाद्यान्न आयात करते हैं। लेकिन, हरित क्रांति के बाद, हम आत्मनिर्भर हो गए और अपने अधिशेष को दूसरे देशों में निर्यात करना शुरू कर दिया।

साथ ही, पहले की तरह, हम खाद्यान्न की खेती के लिए लगभग पूरी तरह से मानसून पर निर्भर हैं, लेकिन अब हमने बांध, नहरें, नलकूप और पंप-सेट बनाए हैं। इसके अलावा, अब हमारे पास अच्छे उर्वरक, कीटनाशक और बीज हैं जो हमें पहले की तुलना में अधिक भोजन उगाने में मदद करते हैं।

जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, हमें मिलता है –

  • बेहतर उपकरण,
  • बेहतर सिंचाई सुविधाएं और
  • विशिष्ट कृषि तकनीकों में सुधार होने लगा है।

साथ ही, हमारा कृषि क्षेत्र कई देशों की तुलना में मजबूत हुआ है, और हम कई खाद्यान्नों के सबसे बड़े निर्यातक हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि का इतिहास

स्वतंत्रता के बाद, भारत ने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में अत्यधिक प्रगति की। भारत की जनसंख्या तीन गुना हो गया है, और इसलिए खाद्यान्न उत्पादन हुआ है। भारत को 1960 से पहले घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

हालाँकि, 1965 और 1966 में भीषण सूखे के बाद, भारत अपनी कृषि नीति में सुधार करने के लिए आश्वस्त था, जिसने भारत को हरित क्रांति की शुरुआत की। हरित क्रांति ने पंजाब को देश की रोटी की टोकरी बना दिया। प्रारंभ में, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों ने उत्पादन में वृद्धि देखी क्योंकि यह कार्यक्रम राज्यों के सिंचित क्षेत्रों पर केंद्रित था। सरकारी अधिकारियों और किसानों ने मिलकर काम किया और उत्पादकता और ज्ञान के हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित किया।

हरित क्रांति कार्यक्रम ने उत्पादन बढ़ाया, जिससे भारत आत्मनिर्भर बन गया। 2000 तक भारतीय किसानों ने प्रति हेक्टेयर छह टन गेहूं की पैदावार वाली किस्मों को अपनाया। बांध बनाए गए और सिंचाई परियोजनाओं के विकास के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिससे स्वच्छ पेयजल का स्रोत भी उपलब्ध हुआ है।

गन्ना और चावल जैसी फसलों के लिए सरकार द्वारा दी गई न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी से भूजल खनन को बढ़ावा मिला है, जिससे भूजल में कमी आई है।

भारत में कृषि का महत्व

यह कहना अनुचित नहीं है कि हम जो भोजन करते हैं वह कृषि गतिविधि का उपहार है और यह भारतीय किसान हैं जो हमें यह भोजन प्रदान करने के लिए पसीना बहाते हैं।

  • देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है।
  • इसके लिए एक बड़े कार्यबल और कार्यबल की आवश्यकता होती है, जो सभी कर्मचारियों का 80% है। कृषि क्षेत्र न केवल प्रत्यक्ष बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी भी है।
  • हमारे कुल निर्यात का 70% कृषि है।
  • प्राथमिक निर्यात वस्तुएं चाय, कपास, वस्त्र, तंबाकू, चीनी, जूट उत्पाद, मसाले, चावल और कई अन्य सामान हैं।

कृषि के प्रतिकूल प्रभाव

1. जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन.

कई प्राकृतिक और मानव निर्मित प्रणालियाँ वैश्विक ऊर्जा संतुलन और पृथ्वी के वायुमंडल में परिवर्तन को प्रभावित करती हैं। ग्रीनहाउस गैसें ऐसा ही एक तरीका है। ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी की सतह से उत्सर्जित कुछ ऊर्जा को अवशोषित और मुक्त करती हैं, जिससे निचले वातावरण में गर्मी बरकरार रहती है।

2. वनों की कटाई

वनों की कटाई का अर्थ है कि पेड़ स्थायी रूप से हैं जंगल से हटा दिया उनके लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए। इसमें कृषि या चराई के लिए भूमि को साफ करना या ईंधन, निर्माण या निर्माण के लिए लकड़ी का उपयोग करना शामिल हो सकता है।

3. जेनेटिक इंजीनियरिंग

आनुवंशिक इंजीनियरिंग के उपयोग और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की अवधारणा ने कृषि जगत को कई लाभ दिए हैं। फसलों को रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी बनाकर, रोगों और कीटों से निपटने के लिए कम रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

4. मीठे पानी की आपूर्ति और सिंचित पानी

सिंचाई के लिए पानी के सबसे आम स्रोत नदियाँ, जलाशय और झीलें और भूजल हैं। का उपयोग नियंत्रित पानी पौधों को अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे कृषि फसलों, भूस्खलन और शुष्क क्षेत्रों में अशांत मिट्टी के पुनर्वनीकरण और औसत वर्षा के दौरान कम वर्षा में मदद मिलती है।

5. प्रदूषण और संदूषण

प्रदूषण का अर्थ है कि पदार्थ पृष्ठभूमि से ऊपर या केंद्रित नहीं होना चाहिए। प्रदूषण से आवासों पर प्रतिकूल जैविक प्रभाव पड़ सकता है। भारत में कुछ किसान चावल काटने के बाद अपने धान के खेतों को जला देते हैं। जिसके कारण अधिकांश निकटतम कस्बों और शहरों का सामना करना पड़ता है वायु प्रदुषण।

6. मृदा निम्नीकरण और भूमि उपयोग के मुद्दे

उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से मृदा अपरदन का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे नदियों और नालों में प्रदूषण और अवसादन बढ़ गया है, जिससे इन जलमार्गों को अवरुद्ध करके मछलियों और अन्य प्रजातियों का क्षरण हो रहा है। और यहां तक ​​कि निम्नीकृत भूमि में भी अक्सर पानी जमा हो सकता है, जिससे बाढ़ आ सकती है।

7. सामान्य अपशिष्ट

कृषि अपशिष्ट विभिन्न कृषि गतिविधियों से उत्पन्न अपशिष्ट है। इसमें खेतों, मुर्गी घरों और बूचड़खानों से खाद और अन्य अपशिष्ट शामिल हैं; फसल कूड़े; उर्वरक भाग- खेतों से दूर; पानी, हवा या मिट्टी में प्रवेश करने वाले कीटनाशक; और खेतों से नमक और गाद।

स्थानीय बुनियादी ढांचे, स्थानीय संसाधनों, मिट्टी की गुणवत्ता, सूक्ष्म जलवायु के कारण, प्रत्येक राज्य अलग-अलग कृषि उत्पादकता पैदा करता है। सिंचाई के बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज, स्वच्छ खाद्य पैकेजिंग आदि में सुधार करके भारतीय किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की बहुत अधिक गुंजाइश है ताकि स्थानीय किसान अपने उत्पादन और आय में सुधार कर सकें।

सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई सुधारों की घोषणा की है ताकि किसानों को कम लागत और उच्च उत्पादन आय के साथ अपनी उपज बढ़ाने में मदद मिल सके। हाल ही में सरकार ने 2022 तक किसान की आय को दोगुना करने की घोषणा की है। ईकॉमर्स भी उन तरीकों में से एक है जिसके माध्यम से किसान अपने राजस्व को बढ़ाने और अपने उत्पाद के व्यापक बाजार को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।

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कृषि पर निबंध

Essay on Agriculture in Hindi

कृषि पर निबंध : Essay on Agriculture in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘कृषि पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है। यदि आप कृषि पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

कृषि पर निबंध : Essay on Agriculture in Hindi

प्रस्तावना :-

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जहाँ ज्यादातर लोग कृषि को ही अपनी आजीविका के रूप में करते है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। इतने विकास और परिवर्तन के बाद भी भारत में कृषि एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है।

कृषि बहुत ही आवश्यक होती है। इसी से ही हमें भोजन की प्राप्ति होती है। कृषि के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। कृषि हम सभी के आहार का एक मुख्य स्रोत है। इसी से इंसानों और जानवरों के लिए खाना प्राप्त होता है।

कृषि का महत्व :-

कृषि का हम सभी के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसी से हमें अनाज व सब्जियां प्राप्त होती है। यह इंसानों के खाने के साथ-साथ जानवरों को भी चारा प्रदान करता है। कृषि इस प्रकृति द्वारा हमें दिया गया एक वरदान है।

हम अपने भोजन के लिए पूरी तरह इस कृषि पर ही निर्भर है। कृषि हमें खाने की आवश्यकता की पूर्ति के आलावा हमारे शरीर को ढकने के लिए कपड़ें की आवश्यकता की भी पूर्ति करती है।

इससे हमें कपड़ें बनाने के लिए कपास भी मिलता है और जुट भी इसी से प्राप्त होता है। यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। देश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कृषि पर ही निर्भर है।

कृषि में समस्या :-

  • ज्ञान की कमी :- कृषि के लिए हमें कृषि से सम्बन्धित सभी जानकारियों का पता होना चाहिए। यदि हमें इनकी पूरी तरह जानकारी नहीं है, तो सम्पूर्ण खेती ख़राब हो सकती है। खेती करने से पहले उसके बारे में आवश्यक जानकारियाँ एकत्रित करना बहुत जरुरी है।
  • जलवायु की समस्या :- भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर जलवायु समय-समय पर बदलती रहती है। कभी तापमान बहुत अधिक हो जाता है, तो कभी वर्षा बहुत कम या बहुत ज्यादा और कभी ठण्ड काफी हो जाती है। यें सभी फसलों के लिए हानिकारक है। जलवायु के इन परिवर्तनों से कईं बार फ़सलें ख़राब भी हो जाती है। ऐसे समय में कृषि करने में काफी समस्यायों और इसके नुकसानों को भी झेलना पड़ता है।
  • जागरूकता की कमी :- आज विकास के साथ कृषि के ऐसे तरीके आ गए है, जिनसे हम आसानी से खेती कर सकते है और अधिक फसलें भी ऊगा सकते है। लेकिन इसके लिए जागरूकता का होना अतिआवश्यक है। आज आधुनिक तकनीक से दुनियाभर में कृषि करना काफी सरल हो गया है। लेकिन, भारत में आज भी ज्यादातर किसानों के पास आधुनिक साधन नहीं है। वें आज भी पुराने तरीके से ही खेती कर रहे है। जिससे उन्हें फायदा कम होता है।
  • रासायनिक खाद का प्रयोग :- आजकल फसलों को कीड़ो से बचाने के लिए किसान रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे है। यह उस धरती के लिए ही नहीं बल्कि, मनुष्य के लिए भी घातक होता है। यदि किसान इनका उपयोग न करें तो उनकी फसलों की कीड़े खा जाते है। जिससे उन्हें कईं समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • सिंचाई की समस्या :- कृषि को करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। इसलिए, खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। जिन जगहों पर पानी की समस्या होती है। वहां खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था करना काफी मुश्किल होता है। खेती के लिए सिंचाई सबसे महत्वपूर्ण होती है।
  • औजारों की कमी :- कईं किसान इतने गरीब होते है कि वें खेती के लिए आवश्यक औजार व बीज भी नहीं खरीद पाते है। जिनके बिना खेती करना मुमकिन नहीं है।

कृषि के प्रभाव :-

कृषि के दोनों प्रकार के प्रभाव निम्नलिखित है:-

सकारात्मक प्रभाव :-

  • भोजन प्राप्ति :- कृषि से हम सभी को जीने के लिए भोजन प्राप्त होता है। यह हमें जीवित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे जानवरों के लिए भी भोजन प्राप्त करता है। इसी से हमें सब्जियां व अनाज प्राप्त होते है।
  • कपड़े की प्राप्ति :- खेती से ही हमें कपास व जुट जैसी वस्तुएँ प्राप्त होती है। जो कपड़े बनाने में सहायक होती है। हमें कपडें के लिए भी सिंचाई पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
  • ठंडा वातावरण :- जिस स्थान पर खेती होती है, उस स्थान का वातावरण काफी ठंडा हो जाता है। क्योंकि, खेती में बार-बार सिंचाई की जाती है। इससे आसपास की जगह भी ठंडी हो जाती है।

नकारात्मक प्रभाव :-

  • मृदा प्रदूषण :- आजकल कृषि में फसल को कीड़ों से बचाने के लिए रसायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है, जो कि मृदा के लिए हानिकारक होती है। इससे मृदा प्रदूषण बढ़ता है।
  • जंगलों की कटाई :- कईं बार खेती की जगह बनाने के लिए लोग जंगलों को काट देते है, जिससे इस प्रकृति को भी काफी नुकसान होता है। जंगलों की कटाई करना इसका एक बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव है।
  • वायु प्रदूषण :- कईं जगह फसलों को उगने के बाद उनकी कटाई की जाती है। कटाई के बाद जो कचरा बचता है उसे किसान जला देते है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। जिससे आसपास की जगह का तापमान भी बढ़ता है।

कृषि एक बड़ा ही आवश्यक व्यवसाय है। यह भारत में कईं लोगों को रोजगार भी प्रदान करता है और इस देश की अर्थव्यवस्थ में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है।

यह कृषि हम सभी को जीवित रहने के लिए आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करती है। आज समय बदलने के साथ ही हमें कृषि के विकास के लिए भी आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है।

कृषि के लिए हमें आधुनिक तकनीकी का इस्तमाल करने की आवश्यकता है। इससे किसानों को मेहनत भी कम करनी पड़ेगी और उन्हें लाभ भी अधिक होगा।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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Essay On Agriculture In India :कृषि क्षेत्र पर निबन्ध

Meena Bisht

  • March 31, 2020
  • Hindi Essay

Essay On Agriculture In India : कृषि क्षेत्र पर हिन्दी निबन्ध

निबंध हिंदी में हो या अंग्रेजी में , निबंध लिखने का एक खास तरीका होता है। हर निबंध को कुछ बिंदुओं (Points ) पर आधारित कर लिखा जाता है। जिससे परीक्षा में और अच्छे मार्क्स आने की संभावना बढ़ जाती है।

हम भी यहां पर कृषि क्षेत्र पर निबंध को कुछ बिंदुओं पर आधारित कर लिख रहे हैं। आप भी अपनी परीक्षाओं में निबंध कुछ इस तरह से लिख सकते हैं। जिससे आपके परीक्षा में अच्छे मार्क्स आयें।

  Essay On Agriculture In India

कृषि क्षेत्र पर हिन्दी निबन्ध.

प्राचीन काल से ही भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है।किसान और कृषि भारत की संस्कृति में रचा बसा है।और यह भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं। इस देश में कृषि संबंधी कई त्योहार मनाए जाते हैं। जो या तो फसलों के पक जाने के बाद या फसलों की बुवाई के वक्त मनाए जाते हैं।

भारत की एक बड़ी आबादी की आजीविका कृषि संबंधी कार्यों पर ही निर्भर रहती है।किसान की असली जमा पूँजी उसकी जमीन ,फसल व पशुधन ही होता है। किसान कृषि क्षेत्र की असली रीढ़ होते हैं। जो मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं अर्थात भोजन का उत्पादन करते हैं।

क्या है कृषि क्षेत्र

एक ऐसा क्षेत्र जहां पर मनुष्य के जीवन की मूलभूत व पहली आवश्यकता यानि खाद्य पदार्थों जैसे अनाज , फल , सब्जियों आदि का उत्पादन किया जाता है। अनाज , फल ,सब्जी ही मनुष्य के जीवन की प्रथम आवश्यकता हैं । इनके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। खेती के माध्यम से खाद्यानों के उत्पादन को कृषि कार्य और इस क्षेत्र को कृषि क्षेत्र कहा जाता है। 

पहले के समय में कृषि क्षेत्र का मतलब सिर्फ कृषि और पशुपालन तक ही सीमित था। लेकिन अब बदलते समय में कृषि क्षेत्र पहले से कहीं बड़ा हो गया है। पशुपालन , फसल उत्पादन के अलावा फल सब्जी , दुग्ध उत्पादन , मौन पालन , मत्स्य पालन और कई ऐसे छोटे बड़े क्षेत्रों को भी अब कृषि क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है। 

भारत में वैदिक काल से ही कृषि क्षेत्र को महत्व दिया जाने लगा। जिसमे छोटे छोटे औजारों का प्रयोग कर फसलों का उत्पादन किया जाता था। लेकिन ब्रिटिश काल में खेती का पारंपरिक स्वरूप में बदलाव आया। उस समय आर्थिक फायदे के लिए कपास व नील की खेती को महत्व दिया जाने लगा। जिन्हें ब्रिटिश लोग भारत से बाहर भेजकर भारी मुनाफा कमाते थे। 

भारतीय कृषि क्षेत्र पर हरित क्रांति का प्रभाव (Essay On Agriculture In India)

हमारे देश में विशाल जनसंख्या निवास करती हैं। इसीलिए आजादी के कुछ वर्षों तक हमारे देश को अनाज की कमी से जूझना पड़ा।इस विशाल जनसंख्या का पेट भरने के लिए अनाज का आयात किया जाने लगा। साठ के दशक में खाद्यान्नों का अधिक उत्पादन करने के लिए कृषि क्षेत्र में एक अनोखा प्रयोग किया गया जिसे “हरित क्रांति” का नाम दिया गया। 

कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति एक क्रांतिकारी परिवर्तन था। जिसमें फसलों का अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए रासायनिक खादो व विषैले कीटनाशकों का प्रयोग किया गया। जिसकी वजह से खेतों में फसल लहलहाने लगी और किसानों के भंडार अनाज से भर गये।

भारत की विशाल जनसंख्या का पेट भरने के लिए अब खेतों में पर्याप्त अनाज उगने लगा।कुछ खाद्यान्नों के मामले में विदेशों पर निर्भरता भी खत्म हो गई। 

वहीं दूसरी ओर इसका परिणाम भी जल्दी सामने आने लगा। रासायनिक खादों व विषैले कीटनाशकों ने हमारी भूमि , हवा , पर्यावरण यहां तक कि मिट्टी को भी दूषित कर दिया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई और अब एक दौर ऐसा भी आया है।जब जमीनें बंजर हो गई हैं और खाद्यान्न भी कम उगने लगे हैं क्योंकि मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है। 

भारतीय कृषि क्षेत्र पर जैविक खेती का प्रभाव  

लेकिन हाल के वर्षों में कृषि क्षेत्र में फिर परिवर्तन आने लगा है। लोग जैविक खेती की तरफ बढ़ने लगे हैं।  जैविक खेती फसल उगाने की वह नई व आधुनिक तकनीक है जिसमें विषैले व धातक रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता हैं।

इसके बदले जैविक खाद , हरी खाद , गोबर खाद , गोबर गैस खाद , केंचुआ खाद , बायोफर्टिलाइजर्स का प्रयोग किया जाता है।जैविक खाद उस खाद को कहते हैं जो मुख्य रूप से पशुओं के गोबर ,मल मूत्र , हरी घास , फसलों  के अवशेषों व घर में निकलने वाले जैविक कूड़े को सड़ा कर तैयार की जाती हैं।

इस खाद में वो सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक होते हैं।खेती करने के इस नए तरीके को “जैविक खेती /Organic Farming ” कहते है।

जैविक खेती भूमि की उपजाऊ क्षमता व उर्वकता में लगातार वृद्धि करती है। रसायनों व कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभावों से पर्यावरण की रक्षा करती है।फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है।जैविक खेती से उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता लिए हुए होता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होता है।

कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीकों व आधुनिक उपकरणों का प्रयोग 

हालांकि कृषि क्षेत्र में आजादी के बाद कई क्रांतिकारी परिवर्तन आए। अब ज्यादातर किसान शिक्षित हो गये है। कृषि क्षेत्र में फसलों को उगाने लिए अब वैज्ञानिक तरीकों व नए नए उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा है।कुछ किसानों ने वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी प्रारंभ कर दी है। कृषि संबंधी कार्यों के लिए कृषि वैज्ञानिकों से समय-समय पर सलाह मशवरा लेते रहते हैं। ताकि उनके खेतों में अच्छी फसल सके। 

 खेत में अनाज बोने से पहले मिट्टी की जांच कर ली जाती है। मिट्टी के गुणों का पता होने के बाद ही मिट्टी के गुणों के अनुसार ही उस जमीन पर फसल बोई जाती है जिससे किसान को अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

इसी के साथ साथ ही उन्नत किस्म के बीजों , जैविक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। ताकि मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहे और किसानों की मेहनत का उन्हें पूरा फायदा मिले। वैसे भी मार्केट में जैविक उत्पाद बहुत अच्छी कीमत पर बिकते हैं जिससे किसान की अच्छी आमदनी होती है। 

अब हाथ से अथाह मेहनत करने के बजाय आधुनिक उपकरणों का उपयोग कर खेती की जाती हैं। ताकि सारे काम कम मेहनत के आसानी से हो सके।  कटाई , बुवाई , सिंचाई और यहां तक कि अनाज निकालने के लिए भी आज आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। 

कृषि क्षेत्र के लिए सरकारी योजनाएं (Es say On Agriculture In India)

भारत में खेती व किसानों के लिए भी कई सरकारी योजनाएं चलाई जा रहे है। केंद्र सरकार का 2022 तक सभी किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य है। किसानों को बीज , मिट्टी की उर्वरा शक्ति , खाद की जानकारी दी जा रही है। वही नई तकनीकों का प्रयोग करने संबंधी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

कुछ तरह की खेती करने पर किसानों को सरकारी लोन तथा सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है। खेती के लिए सिंचाई हेतु ट्यूबवेल व सोलर पंप लगाने की भी व्यवस्था की गई है। इन सब के लिए किसान को सरकार की तरफ से सब्सिडी भी दी जा रही है।

सरकार अपनी तरफ से किसानों की मदद करने का हर संभव प्रयत्न कर रही है।बड़ी-बड़ी नदियों पर बांध बनाकर सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया जा रहा हैं।ताकि किसान सिंचाई के लिए अपने खेत में नहरों का पानी पहुंचा सके। 

कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था ( Essay On Agriculture In India)

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक उस देश की कृषि पर निर्भर करती है।आज भी दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिन की मजबूत अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है।

भारत की अर्थव्यवस्था में भी यही कृषि क्षेत्र अहम भूमिका निभाता है।और सरकार के खजाने को विदेशी मुद्रा से भरता है। हमारे देश की राष्ट्रीय आय का लगभग एक तिहाई भाग कृषि क्षेत्र से ही आता है। इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत हद तक कृषि पर आधारित है 

कृषि क्षेत्र से ही कई सामानों के लिए कच्चा माल उपलब्ध होता है। और कई उद्योग धंधे कृषि क्षेत्रों पर ही निर्भर करते हैं। 

आज भारत से कई खाद्य पदार्थों का निर्यात विदेश में किया जाता है। जूट , चाय , तंबाकू , कॉफी , मसाले , चीनी को निर्यात किया जाता है जिससे भारत को अच्छी खासी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं। भारत वैसे भी कृषि निर्यात के मामले में सातवें स्थान पर है। भारत में लगभग सभी तरह के खाद्य पदार्थों का उत्पादन किया जाता है। जैसे अनाज , दालें , बाजरा , तिलहन तेल ,फल ,सब्जी आदि।

भारत चावल , गेहूं , दालें , चाय , कॉफी ,फल , सूखे मेवे , मसाले , मिल्क उत्पाद , कपास और कई प्रकार के तेलों का उत्पादन प्रचुर मात्रा में करता है। भारत के कुछ प्रांत जैसे पंजाब में गेहूं का उत्पादन बहुत अधिक होता है। इसी तरह गन्ना और चावल का उत्पादन भी बड़े पैमाने में किया जाता है। भारत से कई देशों का चावल और गेहूं का निर्यात किया जाता है। 

घटता कृषि क्षेत्र

यह बड़े दुख की बात है कि हमारे देश में खेती योग्य भूमि साल दर साल कम होती जा रही है।शहरीकरण व विकास के नाम पर अनेक इमारतों , सड़कों आदि के निर्माण के लिए कृषि योग्य भूमि को या तो बेचा जाता हैं या उसका अधिग्रहण कर लिया जाता हैं।  जिसकी वजह से खेती योग्य भूमि कम होती जा रही है।

कृषि क्षेत्र पर बदलते मौसम चक्र का प्रभाव (Essay On Agriculture In India)

हर रोज बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या का पेट भरना अब किसानों के बस के लिए मुश्किल हो रहा हैं। उसके ऊपर से गड़बड़ाया हुआ मौसम चक्र। बेमौसम बारिश बरसात , बाढ़ , ओले , अत्यधिक गर्मी की वजह से फसलों को नुकसान पहुंचता है। जो किसान के लिए हर तरफ से नुकसान देय है।

इसका परिणाम अनाज उत्पादन में लागत ज्यादा और अनाज उत्पादन कम।जिस कारण किसान लगातार कर्ज में डूब रहा है। और कुछ किसान तो कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या जैसे रास्ता भी अपना रहे है।

कृषि क्षेत्र किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है।और कच्चा माल उपलब्ध करा कर वहां के कई उद्योग धंधों को गति प्रदान करती हैं। 

हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी बहुत हद तक कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर रहती है।कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र है। जिससे अपना कर कोई भी व्यक्ति स्वरोजगार की तरफ अग्रसर हो सकता है। इसी क्षेत्र से देश में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। 

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भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi

भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi

इस लेख में आप भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi पढ़ेंगे। इसमें हमने भारतीय कृषि प्रणाली क्या है, इसके प्रकार, लाभ-हानी, आर्थिक मजबूती, जल सुविधा, भविष्य की योजनाएं जैसी कई विषयों को सम्मिलित किया गया है।

Table of Content

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 50% से भी अधिक की आबादी अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि व्यवसाय पर निर्भर है। भारतीय कृषि प्रणाली दुनिया में सबसे अनोखी मानी जाती है। 

अंतरराष्ट्रीय खाद्य व्यवसाय मंच पर भारत को एक अलग नजर से देखा जाता है। यह इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकि यहां की मिट्टी उपजाऊ है, इसी वजह से अपनी अनोखी कृषि प्रणाली के कारण ही भारत दुनिया में सबसे  अच्छे गुणवत्ता तथा पोषण युक्त व उपजाऊ खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने के लिए प्रसिद्ध है।

समान्यतः सामाजिक, आर्थिक एवं भौगोलिक दृष्टि के अनुरूप खेती करने के लिए आवश्यक सामग्री के मिश्रण तथा जो विधि फसल उत्पादन में सहायक होती है, उसे कृषि प्रणाली कहा जाता है। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो ऐसी पद्धति जिसकी सहायता से कृषि कार्यक्रम की जाती है, उसे कृषि पद्धति अथवा प्रणाली कहा जा सकता है। यह एक प्रकार से कृषि उत्पादन से जुड़ी एक निर्णायक इकाई होती है। 

क्योंकि भारत आज भी गांवों में बसता है, जहां बड़ी मात्रा में खेती की जाती है। आमतौर पर इतनी विविधताओं से भरे होने के कारण कृषि प्रणालियां भी विभिन्न प्रकार की देखी जाती हैं। 

प्रत्येक प्रणाली का अपना अलग महत्व होता है। इसके अलावा कृषि मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे खेती के लिए उपयोगी तकनीकी साधनों में आवश्यक बदलाव लाए जाएंगे। 

भारतीय कृषि प्रणाली के प्रकार Types of Indian Agricultural System in Hindi

उत्पादन, स्वामित्व एवं भौगोलिक दृष्टि के आधार पर भारतीय कृषि प्रणाली को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया:

राजकीय खेती (State Farming)

जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है, कि ऐसी भूमि जो सरकार के अंतर्गत आती है। राजकीय खेती में जो प्रबंधन और नियमित कार्य किया जाता है, वह सरकारी कर्मचारियों द्वारा होता है। 

बीज की अच्छी गुणवत्ता नापने तथा उसे बढ़ाने एवं नए-नए अनुसंधान से जुड़ी खेती काम करने के लिए यह प्रणाली चलाई जाती है। 

किसानों को सरकार की तरफ से उच्च गुणवत्ता वाले  बीज, दवाइयां और जरूरी फर्टिलाइजर्स प्रदान करने के लिए ऐसे राजकीय खेती स्थापित किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान जैसे कई राज्यों में बड़ी मात्रा में राजकीय खेती चलाई जाती है।

पूँजीवादी खेती (Capitalistic Farming)

पूंजीवादी खेती यह बहुत हद तक पुराने जमींदारी खेती से मिलती जुलती है। खेती की इस प्रणाली में बड़े पूंजीपति कर्मचारियों को वेतन प्रदान करके उनसे खेती करवाते हैं। 

आमतौर पर या तो पूंजीवादी खेती सीधे सरकार के अधिग्रहण से पूंजी पतियों को प्रदान की जाती है, या फिर वह भूमि स्वयं खरीद कर अपने लाभ के लिए खेती करवाते हैं। 

आज के समय में पूंजीवादी खेती की इस प्रणाली का महत्व कम होता दिखाई दे रहा है। अधिकतर वाणिज्य फसलों के लिए पूंजीवादी खेती स्थापित की जाती है। 

निगमित खेती (Corporate Farming)

भारत के अलावा निगमित खेती अमेरिका जैसे कुछ पश्चिमी देशों में भी प्रचलित है। यह प्रणाली बहुत हद तक पूंजीवादी खेती की प्रणाली से मिलती-जुलती है। 

केवल पूंजीपतियों के स्थान पर दूसरी छोटी बड़ी इंडस्ट्रियल कंपनियां लाभ के लिए निगमित खेती करवाते हैं। भारत के कुछ निश्चित राज्य में ही निगमित खेती की प्रणाली प्रचलित है।

काश्तकारी खेती (Peasant Farming)

काश्तकारी खेती को व्यक्तिगत खेती भी कहा जाता है, जिसमें पूरे खेती का स्वामित्व केवल एक किसान के नाम ही होता है। काश्तकारी खेती के अंतर्गत कोई भी कृषक सीधे राज्य सरकार से संपर्क करने में सक्षम होता है।

सरल भाषा में कहा जाए तो केवल एक व्यक्ति निश्चित भूमि का मालिक होता है, जिसके पास खेत से जुड़े सभी अधिकार प्राप्त होते हैं। 

जमींदारी खेती की प्रणाली का अंत होने के बाद भारत में काश्तकारी अथवा व्यक्तिगत खेती एक प्रचलित भारतीय खेती प्रणाली है।

सामूहिक खेती (Collective Farming)

सामूहिक अथवा संयुक्त खेती में कृषकों की कुल संख्या दो या उससे अधिक भी हो सकती है, जो आपस में परस्पर संसाधनों की साझेदारी करके कृषि कार्य करते हैं तथा उससे होने वाले लाभ और हानि को भी अनुपात में बांटते हैं। 

इस प्रकार की खेती में साझेदारी करने से खेत का आकार भी बहुत बड़ा होता है, जिसमें अच्छे फसल का उत्पादन होने से अधिक लाभ होने की संभावना भी रहती है।

सहकारी खेती (Co-operative Farming)

जरूरत अनुसार जब कोई किसान अपनी पूंजी, श्रम और लागत लगाकर अपनी भूमि पर लाभ के उद्देश्य से सामूहिक रूप से खेती करता है, तो उसे सहकारी खेती कहते हैं। सहकारी खेती भारतीय कृषि प्रणाली में सबसे प्रचलित प्रणालियों में से एक माना जाता है। 

इसके अंतर्गत कई विभिन्न प्रकार की प्रणालियों का समावेश होता है, जिनमे सहकारी उन्नत खेती, सहकारी काश्तकारी खेती, सहकारी सामूहिक खेती और सहकारी संयुक्त खेती शामिल हैं।

कृषि यंत्रीकरण (Agricultural Mechanisation)

कृषि यंत्रीकरण का वास्ता ऐसी खेती प्रणाली से है, जिसमें तकनीकी एवं मशीनों की मदद से कृषि कार्य किया जाता है । सामान्यतः मानव और पशुओं के श्रम से जो खेती की जाती थी, उसे कृषि यंत्रीकरण की पद्धति से परिवर्तित करके आधुनिक खेती में बदला जाता है। 

भारतीय कृषि प्रणाली के लाभ और हानि Advantages and Disadvantages of Indian Farming System in Hindi

बेहतरीन कृषि प्रणाली अपनाकर भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा फसल उत्पादन करने वाला देश बन गया है। भारत, अमेरिका, ब्राजील और चाइना विश्व के ‘फूड प्रोड्यूसर सुपर पावर्स’ कहे जाते हैं। चलिए जानते हैं, कि भारतीय कृषि प्रणाली के अंतर्गत देश को कौन-कौन से लाभ हो रहे हैं।

  • दुनिया के सबसे बड़े फ़सल उत्पादकों में शामिल
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय खाद्यों का दबदबा
  • उन्नत कृषि प्रणाली अपनाकर लोगों को रोजगार प्राप्ति में सहायता
  • मूल्य में सस्ते और बेहतरीन गुणवत्ता वाले फसल उत्पादन
  • पूरे विश्व का पेट भरने में सक्षम भारतीय कृषि प्रणाली  
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्नों के आयात-निर्यात को प्रभावित करने की क्षमता
  • सबसे बड़े फसल उत्पादकों में से एक, लेकिन न्यूनतम फसल निर्यातक देश
  • भारतीय कृषि प्रणाली में आधुनिक कृषि उपयोगी तकनीकों की कमी
  • किसानों के लिए मौसमी रोजगार एक बड़ी समस्या
  • अनिश्चित जलवायु बदलाव से निपटने के लिए तकनीकों का अभाव

भारत में कृषि से आर्थिक मजबूती Economic Strength from Agriculture in India

यदि वैश्विक स्तर पर भारतीय कृषि की बात करें, तो हमारा देश एक अन्नदाता की तरह पूरी दुनिया की भूख मिटा रहा है। इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी में 9.2% की बढ़ोतरी केवल कृषि क्षेत्र के योगदान से दिखा। 

अर्थव्यवस्था मजबूत होने के कारण पूरे देश में लोगों को रोजगार के साधन मुहैया हुए हैं। भारत में कृषि क्षेत्र में होने वाले नए बदलाव और अवसर के चलते देश का गौरव दुनिया में और भी बढ़ा है। 

पहले की तुलना में अब किसानों को पैदावार फसलो से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। पहले मंडी में बिचौलियों के जरिए ही किसान अपनी फसलों को दूसरे राज्यों में भेज पाते थे। 

लेकिन सरकार की नई योजनाएं और नीतियों के तहत तमाम आर्थिक सहायता जरूरतमंद किसानों तक पहुंचाई जा रही है। पिछले कुछ दशकों में कृषि के क्षेत्र में बहुत बड़ा उछाल आया है। हरित क्रांति के पश्चात भारत अब इस क्षेत्र में भी विश्व का सबसे मजबूत राष्ट्र बनने के नक्शे कदम पर है।

भारतीय कृषि प्रणाली में जल सुविधा Water Facility in Agriculture System in India Hindi

कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई होती है। कृषि प्रधान देश होने के कारण आवश्यक सुविधाएं होने भी अति आवश्यक है। कृषि के लिए पानी की आपूर्ति करना प्राथमिक कार्य होता है।

इसके लिए भारत में कृषि प्रणाली विकास को गति देने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। पहले कृषि केवल वर्षा ऋतु पर ही आधारित होती थी। आधुनिक युग में बारिश के विकल्प में सिंचाई के लिए कई दूसरे रास्ते मौजूद है।

वर्तमान में भारत में कुल 18.5 करोड हेक्टेयर जमीन खेती करने के योग्य है। कुल खेती योग्य भूमि में वर्तमान में केवल 17.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर ही कृषि की जा रही है।

हमारे देश में मुख्य तौर पर किसान सिंचाई के लिए कुओं तथा भूमिगत जल पर निर्भर रहते हैं। क्योंकि भारत उष्णकटिबंधीय देश है, जिसके कारण उच्च तापमान के कारण वास्पीकरण भी बहुत अधिक होता है। 

लिहाजा खेती करने के लिए जल की पर्याप्त मात्र में आपूर्ति नहीं हो पाती है, तो इसके उपाय में कृतिम सिंचाई ही एकलौता मार्ग बचता है। ज्यादातर जलाशयों की सहायता से जल की आपूर्ति की जाती है  वह प्राकृतिक होते हैं, इसलिए किसान इन्हें बिना अधिक पैसे खर्च किए भी स्वयं बना सकते हैं। 

इससे जल की सुविधा नियमित रूप से मिलती रहती है। भारत में सिंचाई के मुख्य स्रोत में सबसे अधिक उपयोग ट्यूबवेल से होता है। 

लगभग 45% से भी अधिक खेती करने के लिए ट्यूबवेल तकनीक का प्रयोग किया जाता है, इसके पश्चात कुओं से जल सिंचाई की प्रणाली भी भारत में प्रसिद्ध है। कुल उत्पादन में लगभग 19% से अधिक सिंचाई करने के लिए कुओं की सहायता ली जाती है। 

भारत में सबसे अधिक लगभग कुल में से 28% कुओं द्वारा सिंचाई करने की प्रणाली उत्तर प्रदेश में अपनाई जाती है। इसके पश्चात राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे कई स्थानों पर भी यह लोकप्रिय सिंचाई प्रणाली है।

भारतीय कृषि प्रणाली में नहर सिंचाई प्रणाली का समावेश भी होता है। सरकार द्वारा बनाए जाने वाले नदियों पर तमाम परियोजनाओं के जलाशय से बड़े और महत्वपूर्ण नहरों को सीधे पानी पहुंचाया जाता है। यह जल स्त्रोत किसानों को सिंचाई करने में बेहद मददगार होते हैं। 

इसके अलावा देश की सरकार किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए समय-समय पर कई नए सौगात देती रहती है और परियोजनाओं की सहायता से किसानों को लाभ पहुंचाने का काम करती है।

कृषि के लिए भारत सरकार की योजनाएं Govt. Yojanas For Krishi Development

हम सभी जानते हैं, कि भारत में लगभग 60% से भी ज्यादा जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि पर आश्रित हैं। इसके अलावा कृषि अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान भी देता है। 

ऐसे में सरकार कृषि के लिए समय-समय पर नई योजनाएं संचालित करती रहती है, जिससे देशभर में किसानों को उनकी समस्याओं का निदान तथा परियोजनाओं का सही लाभ मिल सके। चलिए जानते हैं, कि अब तक कृषि के लिए भारत सरकार ने किस प्रकार की महत्वपूर्ण योजनाओं का संचालन किया है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पुणे: वर्ष 2018 में शुरू की गई यह योजना भारत सरकार के सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है। इस योजना के तहत किसानों को आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: 18 फरवरी 2016 में यह योजना संचालन में आई थी। अनिश्चित वातावरण के कारण अक्सर किसानों की फसलें तेज बारिश, आंधी, तूफान और कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो जाती हैं, ऐसे में किसानों की साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल जाती है। 

ऐसी समस्याओं के कारण किसान कई बार आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी समस्या का निराकरण करने के लिए यह योजना बनाई है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना: वर्ष 1998 में भारत सरकार ने यह योजना अस्तित्व में लाई थी, जिसका उद्देश्य किसानों को क्रेडिट कार्ड की मदद से पर्याप्त मात्रा में लोन उपलब्ध करवाना था। 

इस धनराशि से किसान आवश्यक बीज, कीटनाशक दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें खरीद सके इसके लिए यह योजना बहुत ही लाभकारी है।

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना: यह योजना किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक है। केंद्र सरकार किसानों को पेंशन योजना प्रदान कर रही है। 

इसके अंतर्गत 60 वर्ष की आयु के बाद किसानों को न्यूनतम ₹3000 पेंशन के रूप में प्रदान किए जाएंगे। लगभग ₹200 प्रति माह इकट्ठा करने के बाद 60 वर्ष के बाद यदि किसी कारणवश किसान की मृत्यु हो जाती है, तो 50% एक्स्ट्रा धनराशि को उसके परिवार वालों को प्रदान कर दिया जाएगा।

यह थी कुछ सबसे महत्वपूर्ण कृषि योजनाएं इनके अलावा स्मान किसान योजना, पीएम कुसुम योजना, डेयरी उद्यमिता विकास योजना, पशुधन बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना , राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन योजना,  स्वायल हेल्थ कार्ड योजना और जैविक खेती योजना की तरह ढेरों ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें केंद्र सरकार के जरिए किसानों को प्रत्यक्ष लाभ मिलता है।

भारतीय कृषि के लिए भविष्य की योजनाएं Future Plans for Agriculture System in India in Hindi

कृषि क्षेत्र को केवल सकल घरेलू उत्पाद से जोड़कर ही नहीं देखना चाहिए। यह तो केवल एक क्षेत्र है, जो अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है, लेकिन यदि कृषि क्षेत्र में जरूरी बदलाव और स्थिरता ना लाई गई, तो इससे देश के अधिकतर औद्योगिकी इकाइयां डगमगा सकती हैं। 

उदाहरण स्वरूप लघु व ग्रामीण उद्योग, वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग जैसे कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें कृषि क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

भारतीय कृषि के लिए भविष्य की योजनाएं बनाना और उसे पूरे देश में संचालित करना जरूरी है। केंद्र सरकार किसानों की चुनौतियां को देखकर भविष्य में आने वाली योजनाओं कि समझ लेती हैं। 

हालाकी सरकार ने मौसम की अनियमितता से किसानों को राहत पहुंचाने के लिए योजनाएं तो कई सारी बनाई है, लेकिन तब भी भारी बारिश, बाढ़ अकाल तथा ऐसे कई कारणों से किसानों का ही नुकसान होता है। इस समस्या के निराकरण के लिए भारत सरकार भविष्य में कई योजनाएं ला सकती है।

इसके अलावा कृषि के साथ ही डेयरी उद्योग को भी बढ़-चढ़कर बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार की तरफ से सिंचाई के लिए नई नई परियोजनाएं बनाए जा रहे हैं। 

महत्वपूर्ण नदी घाटी परियोजनाओं की सहायता से सिंचाई योग्य आवश्यक जल सुविधा पहुंचाने के साथ ही तकनीकी में काम आने वाले इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करके किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। 

केंद्र सरकार के अधीन कृषि मंत्रालय समय-समय पर नई योजनाओं के विषय में लोगों को स्वयं सूचित करती रहती है।

2 thoughts on “भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi”

परिचय लाभ और हानि आर्थिक मजबूती जल सुविधा कृषि के प्रकार इत्यादि ये सब में लाइन से पोस्ट कीजिए

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भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Bhartiya Kisan in Hindi

By: savita mittal

भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

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गांधी कहते थे–“ भारत का हृदय गांवों में बसता है , गाँवों की उन्नति से ही भारत की उन्नति सम्भव है। गाँवों सेवा और परिश्रम के अवतार ‘कृषक’ रहते हैं।” वास्तविकता भी यही है कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की घरी है। की कुल श्रमशक्ति का लगभग 61% भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका चलाता ब्रिटिशकाल में भारतीय कृषक अंग्रेजों एवं जमींदारों के अत्याचारों से परेशान एवं बेहाल थे।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में अधिक सुधार हुआ, किन्तु जिस प्रकार कृषकों के शहरों की ओर पलायन एवं उनकी आत्महत्या की सुनने को मिलती है, उससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी स्थिति में आज भी अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है। स्थिति विकट हो चुकी है कि कृषक अपने बच्चों को आज कृषक नहीं बनाना चाहते।

कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई ये पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक है। “” सी में पचासी जन यहाँ निर्वाह कृषि पर कर रहे, पाकर करोड़ों अर्द्ध भोजन सर्द आहे भर रहे। जब पेट की ही पड़ रही, फिर और की क्या बात है, ‘होती नहीं है भक्ति भूखे’ उक्ति यह विख्यात है।”

विश्व के महान् विचारक सिसरो ने भी कहा है-“किसान मेहनत करके पेड़ लगाते हैं पर स्वयं उन्हें ही उनके फल लब नहीं हो पाते।” निःसन्देह खून-पसीना एक कर दिन-रात खेतों में मेहनत करने वाले कृषकों का जीवन अत्यन्त उठोर व संघर्षपूर्ण है। अधिकतर भारतीय कृषक निरन्तर घटते भू-क्षेत्र के कारण गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे 1 दिन-रात खेतों में परिश्रम करने के बाद भी उन्हें तन ढकने के लिए समुचित कपड़ा नसीब नहीं होता।

सर्दी हो या गर्मी, हर हो या बरसात उन्हें दिन-रात बस खेतों में ही परिश्रम करना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें फसलों से उचित आय नहीं हत हो पाती। बड़े-बड़े व्यापारी कृषकों से सस्ते मूल्य पर खरीदे गए खाद्यान्न, सब्जी एवं फलों को बाजारों में ऊँची दरी हरेच देते हैं। इस प्रकार, कृषकों का श्रम लाभ किसी और को मिल जाता है और वे अपनी किस्मत को कोसते हैं।

किसानों की ऐसी दयनीय स्थिति का एक कारण यह भी है कि भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है और मानसून की निश्चितता के कारण प्राय: कृषकों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। समय पर सिंचाई नही होने के कारण भी उन्हें आशानुरूप फसल की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की कंमतों में वृद्धि के कारण कृषकों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है तथा उनके सामने दो वक्त की रोटी की समस्या जुड़ी हो गई है। कृषि में श्रमिकों की आवश्यकता सालभर नहीं होती, इसलिए वर्ष के लगभग तीन-चार महीने कृषकों को बाली बैठना पड़ता है। इस कारण भी कृषकों के गाँवों से शहरों की ओर पलायन में वृद्धि हुई है।

Indian Farmer Essay in Hindi

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देश के विकास में कृषकों के योगदान को देखते हुए कृषकों और कृषि क्षेत्र के लिए कार्य योजना का सुझाव देने हेतु वर्ष 2004 में डॉ. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषक आयोग’ का गठन किया गया। वर्ष 2006 में आयोग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कृषकों के लिए एक विस्तृत नीति के निर्धारण की संस्तुति की गई। इसमें कहा गया किसरकार को सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कृषकों को विशेषत: वर्षा आधारित कृषि वाले क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य उचित समय पर प्राप्त हो सके।

राष्ट्रीय कृषक आयोग की संस्तुति पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषक नीति, 2007 की घोषणा की । इसमें कृषकों के कल्याण एवं कृषि के विकास के लिए अनेक बातों पर बल दिया गया है। इसमें कही गई बातें इस प्रकार है-सभी कृषिन्न उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाए। मूल्यों में उतार-चढ़ाव से कृषकों की सुरक्षा हेतु मार्केट रिस्क स्टेबलाइजेशन फण्ड की स्थापना की जाए।

सुखे एवं वर्षा सम्बन्धी विपत्तियों से बचाव हेतु ‘एग्रीकल्चर रिस्क पण्टु स्थापित किया जाए। सभी राज्यों में राज्यस्तरीय किसान आयोग का गठन किया जाए। कृषकों के लिए बीमा योजना का विस्तार किया जाए। कृषि सम्बन्धी मामलों में स्थानीय पंचायतों के अधिकारों में वृद्धि की जाए। राज्य सरकारों द्वारा कृषि हेतु अधिक संसाधनों का आवण्टन किया जाए।

प्राय: यह देखा जाता था कि कृषकों को फसलों, खेती के तरीकों एवं आधुनिक कृषि उपकरणों के सम्बन्ध में उचित जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण खेती से उन्हें उचित लाभ नहीं मिल पाता था। इसलिए कृषको को कृषि सम्बन्धी • बातों की जानकारी उपलब्ध कराने हेतु वर्ष 2004 में किसान कॉल सेण्टर की शुरुआत की गई। इसके अतिरिक्त कृषि सम्बन्धी कार्यक्रमों का प्रसारण करने वाले ‘कृषि चैनल’ की भी शुरुआत की गई है।

केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण विकास बैंक के माध्यम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘रूरल नॉलेज सेण्टर्स’ की भी स्थापना की है। इन केन्द्रों में आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व दूरसंचार तकनीक का उपयोग किसानों को बांछित जानकारियाँ उपलब्ध कराने के लिए फेंक जाता है।

कृषकों को वर्ष के कई महीने खाली बैठना पड़ता है, क्योंकि वर्षभर उनके पास काम नहीं होता। इसलिए ग्रामीण लोगों को गाँव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम के अन्तर्गत, 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का शुभारम्भ किया गया। 2 अक्टूबर, 2009 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MANREGA) का नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MANREGA) कर दिया गया है।

यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक वयस्क सदस्य को वर्ष में कम-से-कम 100 दिन के रोजगार की गारण्टी देता है। इस अधिनियम में इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि इसके अन्तर्गत 33% लाभ महिलाओं को मिले।

इस योजना से पहले भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की गई थी, किन्तु उनमें भ्रष्टाचार के मामले अत्यधिक उजागर हुए। अतः इससे बचने के लिए रोजगार के इच्छुक व्यक्ति का रोजगार-कार्ड बनाने का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत जो रोजगार कार्ड जारी करती है, उस पर उसकी पूरी जानकारी के साथ-साथ उसका फोटो भी लगा होता है। पंजीकरण कराने के 15 दिनों के भीतर रोजगार न मिलने पर निर्धारित दर से सरकार द्वारा बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाता है।

रोज़गार के इच्छुक व्यक्ति को पाँच किलोमीटर के दायरे के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। यदि कार्यस्थल पाँच किलोमीटर के दायरे से बाहर हो, तो उसके स्थान पर अतिरिक्त भत्ता देने का भी प्रावधान है। कानून द्वारा रोजगार की गारण्टी मिलने के बाद न केवल ग्रामीण विकास को गति मिली है, बल्कि ग्रामीणों का शहर की ओर पलायन भी कम हुआ है। आज कोबिड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है, लेकिन मनरेगा इस सकट से उबारने के लिए प्रभावशाली भूमिका अदा कर रही है।

कृषकों को समय-समय पर धन की आवश्यकता पड़ती है। साहूकार से लिए गए ऋण पर उन्हें अत्यधिक ब्याज देना पड़ता है। कृषकों की इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उन्हें साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए वर्ष 1998 में ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ योजना की भी शुरुआत की गई। इस योजना के फलस्वरूप कृषकों के लिए वाणिज्यिक बैंको क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों से त्राण प्राप्त करना सरल हो गया है। वर्ष 2016 में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने को राहत पहुँचाने की दिशा में यह एक निर्णायक एवंसक प्रधानक चहल है। इसी प्रकार कृषकों के हितों को ध्यान में रखते हुए क 2019 में प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की गई है।

अर्थव्यवस्था को सही अर्थों में प्रगति की राह पर अग्रसर कर सकेंगे और तभी डॉ. रामकुमार वर्मा की ये पंक्तियाँ सार्थक सिद्ध होगी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इसलिए अर्थव्यवस्था में सुधार एवं देश की प्रगति के लिए किसानों की प्रगति है। इस सन्दर्भ में प्रो. मूलर की कही बात महत्त्वपूर्ण है- “भारत की दीर्घकालीन आर्थिक विकास की लड़ाई कृषकद्वारा जीती या हारी जाएगी।”

केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई विभिन्न प्रकार की योजनाओं एवं नई कृषि नीति के फलस्वरूप कृषको की स्थिति में सुधार हुआ है, किन्तु अभी तक इसमें सन्तोषजनक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। आशा है विभिन्न प्रकार के सरकारी प्रयासों एवं योजनाओं के कारण आने वाले वर्षों में कृषक समृद्ध होकर भारतीय “सोने चाँदी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार, हे ग्राम देवता नमस्कार”।

reference Indian Farmer Essay in Hindi

essay on agriculture in india in hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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Hindi Essay

Essay on Agriculture in Hindi | कृषि पर निबंध

Essay on agriculture in hindi.

कृषि पर निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) बच्चों और छात्रों के लिए सरल हिंदी और आसान शब्दों में लिखा गया है। यह (Essay on Agriculture in Hindi) हिंदी निबंध कृषि के बारे में बताता है कि इसकी कृषि हमारे लिए क्या है और यह हमारे लिए क्यों खास है। छात्रों को अक्सर उनके स्कूलों और कॉलेजों में कृषि पर निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) लिखने के लिए कहा जाता है। और यदि आप भी यही खोज रहे हैं, तो हमने कृषि पर 100 – शब्दों, 150 – शब्दों, 250 – शब्दों और 500 – शब्दों में निबंध दिया है।

छात्रों को सिखाने का एक प्रभावी तरीका हिंदी में कृषि पर एक निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) के माध्यम से होगा। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5 और 10 के लिए कृषि के इस विषय पर निबंध लेखन के माध्यम से बच्चे तथ्यों को इकट्ठा करना और उन्हें अपने शब्दों में लिखना सिख पाएंगे।

निबंध – 100 शब्द

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यह केवल आजीविका का साधन नहीं बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। प्राचीन काल से हम कृषि करते आ रहे हैं। आजादी के बाद अनाज की मांग को पूरा करने के लिए हमे दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन, हरित क्रांति ने भारत को आत्मनिर्भर बना दिया है।

किसान अन्न उगाने के लिए कृषि क्षेत्र में बहुत ही मेहनत करते हैं। हमारे किसान हमे अन्न देकर हर परिस्थिति में हमारे लिए खड़े रहते हैं। कृषि की सहायता के बिना मनुष्य जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। कृषि करने के कई प्रकार है जैसे स्थानांतरित खेती, अनाज खेती, मछली पालन, डेयरी फार्मिंग, आदि। पर्यावरण पर गलत प्रकार से कृषि करने के कुछ बुरे प्रभाव भी देखने को मिले हैं जैसे किटनाशक, उर्वरकों और खाद से प्रदूषण होना।

निबंध – 150 शब्द

कृषि का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। किसान खेतो में केवन अन्य नहीं उगाते, बल्कि यह दुसरो को रोज़गार और व्यापार के अवसर प्रदान करते है। कृषि के अंतिम उत्पादों के उपभोग हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करता है। इसकी सहायता के बिना मनुष्य का पेट भरना असंभव है। कृषि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करता है।

कृषि किसी भी देश के आर्थिक विकास में एक अहम् भूमिका निभाती है क्योंकि कई उद्योग अपने कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं। कृषि क्षेत्र में क्रांति आने से औद्योगिक क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है। इसके अलावा, जब कृषि क्षेत्र में उत्पादन में वृद्धि होगी तो रोजगार के अधिक अवसर भी पैदा होंगे और फसल उगाने से लेकर, कृषि विस्तार में प्रत्यक्ष रोजगार और अन्य क्षेत्रों में भी काम प्रदान करता है।

लेकिन कृषि को गलत तरीके से करने से इसके कई घातक परिणाम भी होते है। यह प्रदूषण का प्रमुख स्रोत भी है, क्योंकि कीटनाशक, उर्वरक और अन्य जहरीले कृषि रसायन पानी, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र, मिट्टी, और हवा को जहरीला कर सकते हैं।

निबंध – 250 शब्द

कृषि भारत में अधिकांश आबादी के लिए प्राथमिक आजीविका का स्रोत है। यहाँ पर 70 प्रतिशत से अधिक लोग कृषि पर निर्भर करते है। प्राचीन कल से कृषि अस्तित्व में है और आज के युग में यह नई तकनीकों और उपकरणों के साथ विकसित हुई है जिसने पुरानी पारंपरिक खेती के तरीकों को बदल दिया है।

आज भी कुछ किसान पारंपरिक खेती पद्धति का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके पास शिक्षा और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए संसाधनों और समझ की कमी है। आज के समय में भारत दूसरा सबसे बड़ा चावल, गेहूं, कपास, फल, चाय, और सब्जियां का उत्पादक है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के मसालों की कृषि होती है और दिनिया भर में इन मसालों को भेजा जाता है।

कृषि क्षेत्र की वृद्धि एवं विकास

हम कृषि लंबे समय से करते आ रहे है फिर भी यह अभी तक अविकसित रही। आजादी के बाद भी देश की मांग को पूरा करने के लिए हम दूसरे देशों से खाद्यान्न आयात करते थे। लेकिन, हरित क्रांति के कारण अब हम आत्मनिर्भर हो गए और अपना अधिशेष दूसरे देशों को निर्यात करते है। हमारी सरकार भी इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।

पहले हम कृषि के लिए पूरी तरह से मानसून पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब हमने नहरों, बांधों, ट्यूबवेलों और पंप-सेटों का निर्माण किया है। इसके अलावा, अब बेहतर किस्म के कीटनाशक, उर्वरक और बीज हैं जो अधिक अन्न उगाने में मदद करते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था का कृषि महत्वपूर्ण क्षेत्र है। कृषि क्षेत्र में लगातार हो रहे बदलाव, विकास और लागू की गई नीतियों के साथ यह अग्रसर हो रहा है। यह भारत की आर्थिक वृद्धि में हमेशा एक महत्वपूर्ण कारक बना रहेगा।

निबंध – 500 शब्द

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था और किसानो के रोजगार का प्रमुख क्षेत्र है। कृषि कार्य हजारों सालों से मौजूद है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह बहुत विकसित हुआ है। आज के युग में नई अविष्कारों, तकनीकों और उपकरणों के उपयोग ने खेती के लगभग सभी पारंपरिक तरीकों को बदल दिया है। लेकिन, आज भी कुछ किसान जानकारी के आभाव में कृषि के पुराने पारंपरिक तरीकों का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि वे आधुनिक तरीकों का उपयोग करने के में असमर्थ है। कृषि ने न केवल अपने बल्कि देश के अन्य क्षेत्र के विकास में भी योगदान दिया है।

आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका

देश के आर्थिक विकास में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह देश के आजीविका के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। आज भी 3/4 जनसंख्या कृषि पर आधारित है और पहले हम कृषि के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करते थे, लेकिन अब नहरों, बांधों, ट्यूबवेलों, और पंप सेटों का निर्माण हो चूका है।

कृषि क्षेत्र से उद्योगों को कच्चा माल की प्राप्ति होती है जिस पर दूसरे व्यवसाय निर्भर करते है, इसलिए अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर निर्भर करता है। कृषि अधिकांश लोगों को देश में रोजगार के अवसर प्रदान करती है। 

यह भारतीय निर्यात में योगदान देती है और विदेशी मुद्रा बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अन्य देशों को भारत मसाले, कॉफ़ी, तम्बाकू, चाय, और सब्जियाँ, आदि जैसी वस्तुओं का निर्यात करता है। 

कृषि के प्रकार

कृषि कई प्रकार की जाती है जैसा कि नीचे बताया गया है:

अनाज की खेती – यह जानवरों और मनुष्यों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए की जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार की फसलें बोने की प्रक्रिया होती है जिसे बाद में मौसम के अंत में काटा जाता है।

बागवानी एवं फलों की खेती – इस प्रक्रिया में फलों एवं सब्जियों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह मुख्य रूप से व्यवसाय के उदेश्य से किया जाता है।

डेयरी फार्मिंग – यह दूध के उत्पादन से संबंधित है। इस प्रक्रिया में मिठाई, दही, पनीर आदि जैसे उत्पादों का उत्पादन किया जाता है।

कृषि के नकारात्मक प्रभाव

हालाँकि कृषि देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार के दृष्टिकोण से बहुत फायदेमंद है लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। ये कृषि क्षेत्र में शामिल लोगों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं।

पहला, अधिकांश रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रयोग ने भूमि के साथ-साथ आस-पास के जल निकायों को भी प्रदूषित और जहरीला करते हैं। इसके इतेमाल से ऊपरी मिट्टी का ह्रास होता है और भूजल प्रदूषित होता है।

दूसरा, वनों की कटाई भी कृषि का नकारात्मक प्रभाव है कृषि भूमि फैलावे के लिए कई जंगलों को काटकर उन्हें कृषि भूमि में बदल दिया गया है। साथ ही, नदी के पानी का अधिक उपयोग सिंचाई के रूप में करने से कई छोटी नदियाँ और तालाब सूख जाते हैं जिससे प्राकृतिक का संतुलन में बाधा आती है।

कृषि ने देश को बहुत कुछ दिया है। अन्न से लेकर व्यवसाय तक, लेकिन कृषि के कुछ अपने फायदे और नुकसान हैं जिन्हें हम अनदेखा नहीं कर सकते। सरकार उचित कृषि की वृद्धि और विकास के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। साथ ही, सरकार को कृषि पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के लिए कुछ करने की आवश्यकता है।

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भारतीय किसान पर निबंध | Essay on Indian Farmers in Hindi

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भारतीय किसान पर निबंध | Essay on Indian Farmers in Hindi!

भारत गांवों का देश है । भारत की आत्मा गांवों और किसानों में बसती है । इसलिए भारत एक कृषि प्रधान देश भी कहलता है । यहां की 70-80 प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है । किसान हमारे लिए अन्न, फल, सब्दिया आदि उपजाता है ।

वह पशुपालन भी करता है । लेकिन भारतीय किसान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है । स्वतंत्रता के 50 से अधिक वर्षो के बाद भी वह गरीब, अशिक्षित और शक्तिहीन है । उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है । उसके परिवार के सदस्य भी दिन-रात खेत-खलिहान में जुटे रहते हैं । बड़ी कठिनाई से वह अपना और अपने बाल-बच्चों का पेट भर पाता है ।

अभी भी उसके पास वही बरसों पुराने खेती के साधन हैं ।उसे बहुत कुछ मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है । अगर समय पर अच्छी बरसात नहीं होती, तो उसके खेत सूखे पड़े रहते हैं । गांव में अकाल पड़ जाता है, और भूखों मरने की नौबत आ जाती है । वह अपने हाथों से कठोर परिश्रम करता है, खून-पसीना बहाता है, फिर भी वह गरीब और परवश है ।

उसकी आय इतनी कम होती है कि वह अच्छे बीच, खाद, औजार और पशु नहीं खरीद पाता । वह अशिक्षित है, और कई अंधविश्वासों और कुरुतियों का शिकार । सेठ-साहूकार इसका पूरा लाभ उठाकर उसका शोषण कर रहे हैं । वह अपनी संतान को पड़ाने के लिए भी नहीं भेज सकता । या तो गांव में स्कूल नहीं होता, या फिर बहुत दूर होता है ।

इसके अतिरिक्त वह बच्चों से खेत पर काम लेने के लिए विवश है । वह उन्हें पशु चराने जंगल में भेज देता है । सरकार ने भारतीय किसान की सहायता के लिए कुछ कदम उठायें हैं । उसे कम ब्याज पर कर्ज देने की व्यवस्था की गई है जिससे वह बीज, खाद आदि क्रय कर सके । परन्तु यह पर्याप्त नहीं है । सच तो यह है कि उस तक सहायता पहुंच नहीं पाती । बिचौलिये बीच में ही उसे हड़प लेते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

अशिक्षित होने के कारण वह अपने, अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं । दूसरे लोग सरलता से उसके आधिकारों का हनन कर लेते हैं । उसे शिक्षित किया जाना बहुत आवश्यक है । इसके लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य, मुफ्त और सर्वसुलभ बनाने की परम आवश्यकता है । हर गांव में उसके पास स्कूल खोले जाने चाहिये ।

स्कूलों में कर्मठ, ईमानदार और प्रशिक्षित अध्यापक लगाये जाने चाहिये । किसानों को कुए खुदवाने, बीच आदि खरीदने के लिए ऋण सुलभ होना चाहिये । वर्ष के बहुत समय वह निठल्ला बैठा रहता है । यह समय उसकी शिक्षा और कृषि संबंधी ज्ञान देने के लिए किया जा सकता है ।

जब तक भारतीय किसान निर्धन और अशिक्षित है, तब तक देश की उन्नति नहीं कर सकता । हर तरह से उसकी सहायता कर उसको स्वावलम्बी और शिक्षित बनाया जाना चाहिये । कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि वह कभी बेकार न बैठे और खेत खाली नहीं रहे । इसके लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था बहुत आवश्यक है ।

अधिकतर भारत के किसान खेतीहर मजदूर हैं, या उनके पास बहुत थोड़ी जमीन होती है । कई बार वह जमीन भी अनुपजाऊ होती है । प्राय: सिंचाई के साधन का अभाव रहता है । वह जो कुछ उपजाता है, उसका उचित मूल्य नहीं मिलता । कई बार उसकी फलस बिकती नहीं और पड़ी-पड़ी सड़ जाती है ।

हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हमें ‘जय किसान, जय जवान’ का नारा दिया था । यह हमारे किसानों के महत्व को रेखांकित करता है । परन्तु अभी भी उनकी हालत बड़ी दयनीय है । उनकी इस दशा को सुधारने के हर संभव प्रयत्न किये जाने चाहिये । उनकी उन्नति और विकास पर ही देश की समृद्धि टिकी है ।

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दा इंडियन वायर

भारतीय किसान पर निबंध

essay on agriculture in india in hindi

By विकास सिंह

essay on indian farmer in hindi

भारत किसानों की भूमि है। इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि अधिकांश भारतीय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि गतिविधियों में शामिल होते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

निम्नलिखित निबंधों में मैंने भारतीय किसानों द्वारा पेश की जा रही समस्याओं पर चर्चा करने की कोशिश की है और इस पर अपनी राय भी दी है। आशा है कि आपको मेरे निबंध मददगार मिलेंगे।

भारतीय किसान पर निबंध, essay on indian farmer in hindi (200 शब्द)

किसी ने सही कहा है, “भारत गांवों की भूमि है और किसान देश की आत्मा हैं।” मैं भी यही महसूस करता हूं। किसान बहुत सम्मानित हैं और हमारे देश में खेती को एक महान पेशा माना जाता है। उन्हें “अन्नदाता” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “अन्न देने वाला”। इस तर्क के अनुसार, भारत में किसानों को एक खुशहाल और समृद्ध होना चाहिए, लेकिन विडंबना यह है कि वास्तविकता इसके विपरीत है।

यही कारण है कि किसानों के बच्चे अपने माता-पिता के पेशे को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार, लगभग ढाई हजार किसान रोजी-रोटी की तलाश में खेती छोड़ कर शहरों की ओर पलायन करते हैं। अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो एक समय आ सकता है जब कोई किसान नहीं बचेगा और हमारा देश “खाद्य अधिशेष” से बदल जाएगा, जो अब हम “भोजन की कमी” के लिए कर रहे हैं।

मैं सोचता था कि जब वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो किसान को लाभ होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश पैसा मध्यम पुरुषों द्वारा हड़प लिया जाता है। अतः किसान हमेशा पराजित होता है। जब कोई बंपर फसल होती है, तो उत्पादों की कीमत गिर जाती है और कई बार उसे अपनी उपज सरकार को औने-पौने दामों पर या बिचौलियों को बेचनी पड़ती है और जब सूखा या बाढ़ आती है, तो हम सभी जानते हैं कि क्या होता है गरीब किसान।

किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। अगर कुछ तत्काल नहीं किया जाता है, तो बचाने के लिए कुछ भी नहीं रहेगा।

भारतीय किसान पर निबंध, essay on indian farmer in hindi (300 शब्द)

प्रस्तावना :.

मुझे लगता है कि किसान हमारे देश के लिए वैसी ही भूमिका निभाता है जैसा कि मानव शरीर के लिए रीढ़ की हड्डी निभाता है। समस्या यह है कि यह रीढ़ (हमारे किसान) कई समस्याओं से पीड़ित है। कभी-कभी, उनमें से कई एक दिन में दो वर्ग भोजन भी नहीं कर सकते हैं। सभी कठिनाइयों के बावजूद जो वे सामना करते हैं, इसके अनुसार वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनमें से कुछ नीचे चर्चा की गई है।

भारतीय किसान का महत्व:

वे देश के खाद्य निर्माता हैं: 

1970 के दशक के उत्तरार्ध से पहले भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन करने में सक्षम नहीं था। दूसरे शब्दों में, भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था। हम विदेशों से (मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से) बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात करते थे। यह कुछ समय के लिए अच्छा रहा लेकिन बाद में यूएसए ने हमें व्यापार पर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।

उन्होंने खाद्यान्न की आपूर्ति पूरी तरह से बंद करने की धमकी भी दी। तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने चुनौती स्वीकार की और “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया और कुछ कठोर उपाय किए, जिसके परिणामस्वरूप हरित क्रांति आई और उसकी वजह से हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गए और यहां तक ​​कि शुरू भी हो गया। अधिशेष का उत्पादन करता है।

भारत ने तब से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हमारे किसानों ने हमें कभी निराश नहीं किया, भले ही वे कई समस्याओं का सामना कर रहे हों। वे बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने में सक्षम हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदानकर्ता में से एक:   भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानों का योगदान लगभग 17% है। उसके बाद भी वे गरीबी का जीवन जीते रहे। इसके कई कारण हैं। यदि हम विभिन्न बाधाओं को दूर करने में सक्षम हैं, तो एक अच्छा मौका है कि यह प्रतिशत में सुधार होगा।

सभी किसान स्वंय सेवक हैं: किसान रोजगार के लिए किसी अन्य स्रोत पर निर्भर नहीं हैं। वे स्वयं कार्यरत हैं और दूसरों के लिए रोजगार भी पैदा करते हैं।

निष्कर्ष:

हम आजादी के बाद एक लंबा सफर तय कर चुके हैं लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना है। मुझे यकीन है, अगर हम ईमानदारी से काम करते हैं, तो हम उन समस्याओं को दूर करने में सक्षम होंगे जो हम आज का सामना कर रहे हैं और भगवान हमारे गांवों को तैयार करने के लिए उतने ही सुंदर और समृद्ध बन जाएंगे जितने कि बॉलीवुड फिल्मों में दिखाए जाते हैं।

भारतीय किसान का जीवन पर निबंध, essay on life of indian farmer in hindi (400 शब्द)

मेरे जैसे व्यक्ति, जो अपने पूरे जीवन के लिए शहरों में रहे हैं, गाँव के जीवन के बारे में बहुत गलत विचार रखते हैं। उनका मानना ​​है कि बॉलीवुड फिल्मों में जो दिखाया जाता है। मैं अलग नहीं था। मैंने यह भी सोचा कि गांवों में महिलाएं अपने डिजाइनर लहंगे में घूमती हैं। वे पानी लाने के लिए कुएँ पर जाते हैं और खुशी-खुशी यहाँ-वहाँ जाते हैं। मेरा यह भी मानना ​​था कि शाम को वे “सूर्य मितवा” या “मेरे देश की धरती” जैसे फिल्मी गीतों पर एक साथ नृत्य करते हैं।

एक भारतीय किसान का जीवन:

एक दिन मैंने अपने पिताजी से कहा, “इन गाँव के लोगों का जीवन कितना अच्छा है …”। इस पर मेरे पिताजी जोर से हंसे और मुझे सुझाव दिया कि हमारे पैतृक गाँव की यात्रा करें जो लखनऊ में है। पिछली बार जब मैं अपने गाँव गया था, तब मैं 4 साल का था। मुझे अपनी पिछली यात्रा से बहुत कम विवरण याद थे या यह कहना बेहतर था कि मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि एक गाँव कैसा दिखता था।

मैंने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ली और अपने पिता के साथ ट्रेन में सवार हो गया। मैं वास्तव में बहुत उत्साहित था। रेलवे स्टेशन पर हमें हमारे रिश्तेदार (मेरे चचेरे भाई) ने बधाई दी थी जो हमें रिसीव करने आए थे। मैंने उनसे पूछा, “हम घर कैसे जाएंगे”? इस पर उन्होंने अपनी बैलगाड़ी दिखाई। इस पर मेरी प्रतिक्रिया थी, “क्या!”। मेरे पिताजी ने मुझसे कहा, “बेटा, यह तो शुरुआत है …”।

सबसे पहले घर पहुंचने पर, मैंने अपने पेट का जवाब देने का फैसला किया। तो, मैंने पूछा, “शौचालय कहाँ है”? इस पर मुझे एक खुले मैदान में ले जाया गया। मुझे बताया गया कि गांव में शौचालय नहीं है और महिलाओं सहित सभी ग्रामीणों को खुले मैदान में जाना पड़ता है। उसके बाद मैंने चारों ओर नज़र रखने का फैसला किया। मुझे पुराने और फटे कपड़ों (निश्चित रूप से डिजाइनर नहीं) में पुरुषों और महिलाओं के साथ मिट्टी और बांस से बने टूटे हुए घर मिले, जो खेतों में बहुत मेहनत करते हैं ताकि उनके सिरों को पूरा किया जा सके।

एक प्रयुक्त हल और एक बैल की एक जोड़ी बैल हर घर में रहने वालों की कड़ी ज़िंदगी का प्रमाण है। अधिकतम घरों में बिजली का कनेक्शन नहीं था और यहां तक ​​कि जिन घरों में बिजली का कनेक्शन था उनमें तेल के लैंप का उपयोग किया गया था क्योंकि बिजली दुर्लभ थी। किसी के पास गैस कनेक्शन नहीं था, इसलिए भोजन लकड़ी या कोयले की आग पर पकाया जाता था जो धुआं उत्पन्न करता था और जिससे फेफड़ों के विभिन्न रोग होते थे।

मुझे एक बूढ़ी औरत खांसती हुई मिली। मैंने उससे पूछा, “क्या आप अपनी दवाइयाँ ले रहे हैं”? इस पर उसने एक रिक्त रूप दिया और कहा, “बेटा, मेरे पास दवा खरीदने या निजी अस्पताल में जाने के लिए पैसे नहीं हैं।” अन्य व्यक्तियों ने मुझे बताया कि पास में कोई सरकारी क्लिनिक नहीं है। यह सुनकर मैं सचमुच भावुक हो गया। भारतीय किसानों की दुर्दशा अकल्पनीय है क्योंकि वे मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव में पूरे वर्ष अथक परिश्रम करते हैं।

मैंने अपने चचेरे भाई के साथ जुड़ने का फैसला किया जो खेतों में काम कर रहा था। जब मैं वहाँ पहुँचा, तो मैंने उसे और कुछ किसानों को कुछ आदमियों के साथ बहस करते हुए पाया। मुझे बताया गया कि वे बैंक अधिकारी थे और किसानों को एक औपचारिक नोटिस (ईएमआई का भुगतान न करने) देने आए थे। मेरे चचेरे भाई ने मुझे बताया कि गांव में कोई भी निकाय इस बार ईएमआई का भुगतान करने में सक्षम नहीं था क्योंकि उनके पास इस बार खराब फसल थी।

मैंने अपना खाना खाया और सोने चला गया। कुछ समय बाद, मैं पानी पीने के लिए उठा। मुझे बंटू (मेरा चचेरा भाई का बेटा) मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ता हुआ मिला। मैंने पूछा, “इसकी देर है, सो जाओ।” इस पर उन्होंने जवाब दिया, “अंकल, मेरा कल एक टेस्ट है”। यह सुनकर मुझे लगा कि सब कुछ नहीं खोया है और अभी भी उम्मीद की एक किरण बाकी है।

हमारे गाँव और किसान वैसे नहीं हैं जैसा मैंने सोचा था लेकिन मुझे इस बात का एहसास है कि एक दिन यह गाँव बन जाएगा जैसा कि बॉलीवुड फिल्मों में दिखाया जाता है।

भारतीय किसान पर निबंध, essay on indian farmer in hindi (500 शब्द)

प्रस्तावना:.

भारत में विविध संस्कृति है। भारत में, लगभग 22 प्रमुख भाषाएँ और 720 बोलियाँ बोली जाती हैं। हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख जैसे सभी प्रमुख धर्मों के लोग यहां रहते हैं। यहां के लोग हर तरह के व्यवसायों में लगे हुए हैं लेकिन कृषि यहां का मुख्य व्यवसाय है। यही कारण है कि भारत को “कृषि प्रधान देश” के रूप में भी जाना जाता है।

एक भारतीय किसान की भूमिका:

यही कारण है कि हमारी आबादी का एक बड़ा प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान हमारे राष्ट्र की रीढ़ हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था के पीछे भी वे ताकत हैं। फिर भी भारतीय किसानों के साथ सब ठीक नहीं है। वे गरीबी और बदहाली का जीवन जीते रहे। फिर भी वे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसानों की कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में नीचे चर्चा की गई है।

खाद्य सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा है:  जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भोजन जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। यही कारण है कि पुराने समय में, खाद्यान्न को बड़ी मात्रा में किलों में संग्रहीत किया जाता था, ताकि युद्ध के समय में, जब दुश्मन द्वारा बाहरी आपूर्ति बंद कर दी जाएगी, तब भी खाने के लिए भोजन होगा। वही तर्क आज भी मान्य है। जैसा कि हम खाद्यान्न के मामले में “आत्मनिर्भर” हैं, कोई भी देश हमें ब्लैकमेल या धमकी नहीं दे सकता है। हमारे किसानों की मेहनत के कारण ही यह संभव हो पाया।

भारतीय अर्थव्यवस्था के चालक:  भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानों का योगदान लगभग 17% है। 2016-17 में भारतीय कृषि निर्यात लगभग 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

भारतीय किसानों की हालत सही नहीं है:

निर्यात के मूल्य के कारण भारतीय किसानों को समृद्ध होने की उम्मीद होती है, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। वे आत्महत्या कर रहे हैं, पेशे को छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, और एक दिन में 2 वर्ग भोजन का प्रबंधन भी नहीं कर पा रहे हैं।

बहुत सी चीजें हैं जिन्हें दोष दिया जाना है लेकिन एक बात सुनिश्चित है कि यदि समस्या जल्द ही ख़त्म नहीं हुई तो हम “खाद्य निर्यातक देश” से एक “खाद्य आयातक देश” बन सकते हैं जो अब हम हैं।

बड़े पैमाने पर आंदोलन और किसान आत्महत्याओं के कारण किसान समस्याओं के मुद्दे को उजागर किया गया है, लेकिन “क्या हम पर्याप्त कर रहे हैं”? यह दस लाख डॉलर का सवाल है जिसका हमें जवाब देना है। जब हमारे “अन्नदाता” को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है, तो वास्तव में यह चिंता की बात है।

आखिरी में मैं केवल यह कहना चाहूंगा कि, समय आ गया है कि हमें तत्काल कुछ करना होगा अन्यथा चीजें निश्चित रूप से सबसे खराब हो जाएंगी।

भारतीय किसान समस्या पर निबंध, essay on problems of indian farmers in hindi (600 शब्द)

यह एक बहुत ही संवेदनशील विषय है जिसे बहुत सावधानी से संभाला जाना चाहिए लेकिन क्या हम इसे ठीक से संभाल रहे हैं? यह एक मिलियन डॉलर का सवाल है। चूंकि समस्या जटिल है, इसलिए समाधान भी सीधा नहीं है, लेकिन अगर हम वास्तव में अपने देश को उथल-पुथल में जाने से बचाना चाहते हैं तो हमें इस समस्या को हल करना होगा।

हम चेतावनी के संकेत के लिए सावधान नहीं थे जो काफी समय से आ रहे हैं। अब, जब समस्या ने राक्षसी अनुपात लिया है, हम एक त्वरित समाधान की तलाश कर रहे हैं। मुझे दृढ़ता से लगता है कि इसका कोई त्वरित समाधान नहीं है।

जैसे-जैसे समस्या को बढ़ने में समय लगा है, उसी तरह से निपटाने में भी समय लगेगा। तो, यह उच्च समय है, हमें छाती पीटने में लिप्त होने के बजाय कुछ ठोस करना शुरू करना चाहिए।

समस्या की गंभीरता:

समस्या की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 3 लाख (सरकारी अनुमान, अन्य स्रोतों का कहना है कि यह 10 गुना अधिक है) किसानों ने 1995 से आत्महत्या की है। इन आत्महत्याओं का मुख्य कारण किसानों द्वारा लिए गए ऋणों को चुकाने में असमर्थता है। उसके द्वारा विभिन्न कारणों से। इस सूची में अव्वल रहने का संदिग्ध भेद महाराष्ट्र को जाता है।

एक अन्य अनुमान (सरकारी डेटा) के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत किसान कर्ज में हैं। अधिकतम गरीब हैं और कई गरीबी रेखा से नीचे जीने को मजबूर हैं। लगभग 95% किसान आधिकारिक MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे की उपज बेचने के लिए मजबूर हैं और उनकी औसत वार्षिक आय इक्कीस हजार रुपये से कम है।

यही कारण है कि कई किसान खेती छोड़ रहे हैं और अन्य व्यवसायों में जाने की कोशिश कर रहे हैं और यही कारण है कि कोई भी किसान बनना नहीं चाहता है।

कृषि के खराब होने का कारण:

ग्लोबल वार्मिंग (बाढ़ और सूखे) के कारण जलवायु में परिवर्तन :  ग्लोबल वार्मिंग और कुछ अन्य कारणों के कारण, पृथ्वी की जलवायु बदल रही है। यही कारण है कि बाढ़ और सूखे की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ी है, जिससे बड़े पैमाने पर फसल क्षति हुई है।

सिंचाई सुविधाओं का अभाव:  अधिकतम किसान बारिश पर निर्भर होते हैं क्योंकि उनके पास सिंचाई के उचित साधन नहीं होते हैं, जैसे, डीजल पंप सेट, नहर या बांध का पानी आदि। इसका मतलब है कि अगर यह खराब मानसून है तो उनकी फसल खराब होगी।

छोटी भूमि जोतना:  भारत में अधिकतम किसानों के पास भूमि के छोटे से बहुत छोटे भूखंड हैं, जिस पर वे खेती करते हैं। यह खेती को लाभहीन बनाता है।

महंगे बीज और उर्वरक:  कई किसानों के पास अच्छी गुणवत्ता के बीज और उर्वरक खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए, वे हीन गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करते हैं और इसी कारण प्रति एकड़ उत्पादन में कमी आती है।

ऋण आसानी से उपलब्ध नहीं है : खेती, किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह निवेश की आवश्यकता होती है, जो गरीब किसानों के पास नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति और कागजी कार्रवाई बहुत अधिक है। इसलिए, उन्हें निजी धन उधारदाताओं के पास जाना पड़ता है, जो उच्च ब्याज दर लेते हैं और अगर किसी कारण से फसल विफल हो जाती है, तो उनके लिए ऋण चुकाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

नए वैज्ञानिक तरीकों की जागरूकता का अभाव: अधिकांश किसानों की शिक्षा बहुत कम है या वे निरक्षर हैं। इसलिए, वे नई खेती और खेती के वैज्ञानिक तरीकों से अवगत नहीं हैं। यही कारण है कि सरकार ने टोलफ्री हेल्पलाइन नंबर शुरू किए हैं, जिस पर किसान अपनी समस्याएं पूछ सकते हैं।

विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार : विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार के कारण विभिन्न योजनाओं और योजनाओं का कार्यान्वयन प्रभावित होता है और इसलिए इसका लाभ किसानों तक नहीं पहुंचता है।

किसानों की दशा सुधारने के उपाय:

उचित बीमा:  चूंकि कई कारणों से फसल खराब हो सकती है, इसलिए किसानों को उचित बीमा सुविधाएं काफी फायदेमंद होंगी। यह बेहतर होगा कि सरकार द्वारा आंशिक या पूरे प्रीमियम का भुगतान किया जा सके क्योंकि कई किसान गरीब हैं और वे प्रीमियम का भुगतान नहीं कर सकते हैं।

नुकसान भरपाई:  समय-समय पर सरकार फसल खराब होने की स्थिति में किसानों को मुआवजा प्रदान करती है। मुझे लगता है कि यह एक अस्थायी उपाय है और स्थायी समाधान नहीं है।

आसान ऋण की उपलब्धता:  यह महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। यदि किसानों को आसान ऋण प्रदान किया जाता है, तो उनकी स्थिति में निश्चित रूप से सुधार होगा क्योंकि वे बाजार से अच्छी गुणवत्ता के बीज खरीदने में सक्षम होंगे।

भ्रष्टाचार में कमी:  यदि हम भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में सक्षम हैं तो विभिन्न योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंचेगा और उनकी स्थिति में सुधार होगा।

मैं इस बात से सहमत हूं कि इस समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है, लेकिन अगर हम अच्छी समझ के साथ काम करना शुरू करते हैं, तो एक मौका है कि एक दिन हमारे भारतीय किसान भी उतने ही समृद्ध हो जाएंगे जितना कि अमेरिकी किसान अब हैं।

[ratemypost]

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Nice😍🤩🤩🙂😇😇

Oh bhai bhai na 2000 words ka lekha joh ke bohot badi baat h

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Essay on Agriculture for Students and Children

500+ words essay on agriculture.

Agriculture is one of the major sectors of the Indian economy. It is present in the country for thousands of years. Over the years it has developed and the use of new technologies and equipment replaced almost all the traditional methods of farming. Besides, in India, there are still some small farmers that use the old traditional methods of agriculture because they lack the resources to use modern methods. Furthermore, this is the only sector that contributed to the growth of not only itself but also of the other sector of the country.

Essay on Agriculture

Growth and Development of the Agriculture Sector

India largely depends on the agriculture sector. Besides, agriculture is not just a mean of livelihood but a way of living life in India. Moreover, the government is continuously making efforts to develop this sector as the whole nation depends on it for food.

For thousands of years, we are practicing agriculture but still, it remained underdeveloped for a long time. Moreover, after independence, we use to import food grains from other countries to fulfill our demand. But, after the green revolution, we become self-sufficient and started exporting our surplus to other countries.

Besides, these earlier we use to depend completely on monsoon for the cultivation of food grains but now we have constructed dams, canals, tube-wells, and pump-sets. Also, we now have a better variety of fertilizers, pesticides, and seeds, which help us to grow more food in comparison to what we produce during old times.

With the advancement of technology, advanced equipment, better irrigation facility and the specialized knowledge of agriculture started improving.

Furthermore, our agriculture sector has grown stronger than many countries and we are the largest exporter of many food grains.

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Significance of Agriculture

It is not wrong to say that the food we eat is the gift of agriculture activities and Indian farmers who work their sweat to provide us this food.

In addition, the agricultural sector is one of the major contributors to Gross Domestic Product (GDP) and national income of the country.

Also, it requires a large labor force and employees around 80% of the total employed people. The agriculture sector not only employees directly but also indirectly.

Moreover, agriculture forms around 70% of our total exports. The main export items are tea, cotton, textiles, tobacco, sugar, jute products, spices, rice, and many other items.

Negative Impacts of Agriculture

Although agriculture is very beneficial for the economy and the people there are some negative impacts too. These impacts are harmful to both environments as the people involved in this sector.

Deforestation is the first negative impact of agriculture as many forests have been cut downed to turn them into agricultural land. Also, the use of river water for irrigation causes many small rivers and ponds to dry off which disturb the natural habitat.

Moreover, most of the chemical fertilizers and pesticides contaminate the land as well as water bodies nearby. Ultimately it leads to topsoil depletion and contamination of groundwater.

In conclusion, Agriculture has given so much to society. But it has its own pros and cons that we can’t overlook. Furthermore, the government is doing his every bit to help in the growth and development of agriculture; still, it needs to do something for the negative impacts of agriculture. To save the environment and the people involved in it.

FAQs about Essay on Agriculture

Q.1 Name the four types of agriculture? A.1 The four types of agriculture are nomadic herding, shifting cultivation, commercial plantation, and intensive subsistence farming.

Q.2 What are the components of the agriculture revolution? A.2 The agriculture revolution has five components namely, machinery, land under cultivation, fertilizers, and pesticides, irrigation, and high-yielding variety of seeds.

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भारतीय किसान पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

by StoriesRevealers | Aug 16, 2020 | Essay in Hindi | 0 comments

indian farmer essay in hindi

Indian Farmer Essay in Hindi : भारत एक कृषि प्रधान और विकासशील अर्थव्यवस्था वाला देश है, जिसकी 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 42 प्रतिशत भारतीय कृषि करते हैं। एक अर्थव्यवस्था जो कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है, किसानों के लिए यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। किसान यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत में खाद्य उत्पादन स्थिर न हो और सभी के लिए भोजन की उपलब्धता हो।

भारत शुरू में खाद्यान्न के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर था और हमें विदेशों से आयात करना पड़ता था। आयात करना भारत के लिए महंगा पड़ा क्योंकि इसके कारण देश का अधिकतर पैसा बाहर निकल गया, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अर्थव्यवस्था में वृद्धि की। भारत के पास आत्मनिर्भर बनने और घर पर खाद्य उत्पादन करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री के शासनकाल के दौरान, जय जवान जय किसान का नारा लोकप्रिय हुआ। 1965 में हरित क्रांति ने भारत में आत्मनिर्भरता की शुरुआत की और कृषि में वृद्धि हुई।  

Indian Farmer Essay in Hindi

indian farmer essay in hindi

हरित क्रांति ने भारतीय किसान की मदद की क्योंकि यह आधुनिक तरीकों को लेकर आया जिसने उत्पादकता बढ़ाने में मदद की। आज, भारत अपने अनाज का उत्पादन किसानों के योगदान के कारण कर रहा है। उनकी कड़ी मेहनत के कारण, भारत चावल, चीनी, कपास, आदि का एक प्रमुख निर्यातक है जो देश को कृषि में 7 वां सबसे बड़ा निर्यातक बनाता है। वे एक अरब से अधिक की आबादी के लिए और साथ ही हम पर निर्भर अन्य देशों के लिए खाद्यान्न प्रदान करते हैं।

हालांकि, किसानों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई किसान कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और साहूकारों के कर्ज का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। उच्च-ब्याज दरों के कारण, किसान उस लाभ का उपयोग करते हैं जो उन्हें ऋण का भुगतान करने के लिए मिलता है और उनके परिवारों के लिए बहुत कम पैसे बच जाते है। जमीन आसानी से उपलब्ध नहीं है। कई बार, भूमि विवाद होते हैं, और किराया महंगा होता है। किसानों को सूखे के दौरान सबसे अधिक नुकसान होता है क्योंकि फसलों के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं होता है। जलवायु परिवर्तन फसल उत्पादन को भी प्रभावित करता है। असफल मानसून की अवधि के दौरान, कई क्षेत्रों में उचित सिंचाई की सुविधा नहीं होती है। उर्वरक और कीटनाशक सस्ते नहीं हैं। कई किसान अनपढ़ हैं और तकनीक का उपयोग करना नहीं जानते हैं। किसानों की आत्महत्या में बढ़ती दर के साथ, उनके मुद्दों को संबोधित करना समय की आवश्यकता है।

कृषि में भ्रष्टाचार का उन्मूलन और ऋण को आसानी से उपलब्ध कराना और सस्ती ब्याज दरों को कम करने से उनकी समस्याओं को कम करने में मदद मिलेगी, और वे उर्वरक और कीटनाशक खरीद सकेंगें। जब फसल उत्पादन विफल हो जाता है, तो उन्हें कुछ मुआवजा प्राप्त करना चाहिए, ताकि वे गरीबी का सामना न करें। सरकार ने किसानों की मदद के लिए एक हेल्पलाइन स्थापित की है। बीमा भारतीय किसान की मदद करने का एक और तरीका है।

सरकार ने भारत में किसानों की मदद के लिए योजनाएं शुरू कीं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं

  • प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (PMKSY)
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
  • सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSA)
  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM)
  • परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)

कृषि उत्पादन में किसान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कई समस्याओं का सामना करते हैं, और कृषि ही एक चुनौतीपूर्ण और मुश्किल व्यवसाय है। पूरा देश किसानों पर निर्भर है और इस प्रकार उनके मुद्दों को हल करने, उन्हें समृद्ध बनने में मदद करने, जीवन की बेहतर गुणवत्ता और जीवन का उच्च स्तर निर्धारित करने के लिए आवश्यक है।

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Essay on Agriculture – The Backbone of the India

Students are often asked to write an essay on Agriculture – The Backbone of the India in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on Agriculture – The Backbone of the India

Introduction.

Agriculture is the primary source of livelihood for about 58% of India’s population. It provides raw materials to industries and is the backbone of the Indian economy.

Importance of Agriculture

Agriculture is important as it feeds the nation. It also creates vast employment opportunities. Industries like textiles and sugar depend on agriculture for raw materials.

Challenges in Agriculture

Despite its importance, agriculture faces challenges like lack of modern technology, dependence on monsoon, and low productivity. These need to be addressed for sustainable growth.

Agriculture is vital for India’s economic and social well-being. It’s the backbone of the nation and deserves attention and support.

250 Words Essay on Agriculture – The Backbone of the India

The significance of agriculture in india.

Agriculture, often referred to as the backbone of the Indian economy, plays a pivotal role in driving the country’s socioeconomic fabric. It contributes to around 17-18% of the country’s GDP and employs more than half of the total workforce, underpinning its significance in India’s economic structure.

Interdependence of Agriculture and Indian Society

The interdependence of agriculture and Indian society is profound, as it not only provides livelihoods but also ensures food security. The diversity of crops, ranging from cereals to fruits and vegetables, caters to the dietary needs of the vast population. Moreover, agriculture has a direct bearing on rural development, as it influences the rural economy and shapes the social dynamics in these areas.

Agriculture and Environmental Sustainability

In the context of environmental sustainability, agriculture plays a critical role. Traditional agricultural practices in India have always advocated for harmony with nature. However, the challenge lies in balancing the need for increased production with sustainable practices. Innovative strategies such as organic farming and precision agriculture are being adopted to address this.

The Way Forward

The future of Indian agriculture hinges on technological advancements, policy reforms, and a shift towards sustainable farming practices. Emphasizing research and development, improving access to credit, and strengthening the agricultural value chain are crucial steps in this direction.

In conclusion, agriculture remains the lifeblood of India’s economy and society. Its importance transcends beyond mere economic contributions, linking to social cohesion, food security, and environmental sustainability. As such, the need to prioritize and modernize this sector is more imperative than ever.

500 Words Essay on Agriculture – The Backbone of the India

Agriculture, often referred to as the backbone of India, is a significant part of the country’s economy, contributing to approximately 17% of the total GDP. It is the primary source of livelihood for about 58% of India’s population, emphasizing its crucial role in the socio-economic fabric of the country.

Historical Significance

India’s history is deeply intertwined with agriculture. The Indus Valley Civilization, one of the world’s oldest, was primarily agrarian. Over centuries, the agricultural practices evolved, and the advent of the Green Revolution in the 1960s marked a major turning point. It led to a substantial increase in crop yield, transforming India from a food-deficit country into a food-surplus nation.

The Modern Agricultural Landscape

Today, India is the world’s largest producer of pulses, rice, wheat, and spices. It’s the second-largest fruit producer and the third-largest in vegetables. Yet, the sector faces numerous challenges such as inadequate irrigation facilities, small and fragmented land-holdings, and lack of modern technology.

Technological Interventions in Agriculture

In the age of digital revolution, technology has started making its way into the agricultural sector. Precision farming, using AI and IoT, is enhancing productivity and reducing wastage. Drones are being used for crop monitoring, and mobile apps are providing real-time weather forecasts and market prices to farmers.

Agriculture and Climate Change

Climate change poses a significant threat to agriculture. Rising temperatures and erratic rainfall patterns can lead to a decrease in crop yield. However, sustainable farming practices like organic farming and rainwater harvesting can mitigate these adverse effects.

The Role of Government

The government plays a pivotal role in supporting agriculture. Policies like Minimum Support Price (MSP), crop insurance schemes, and subsidies on fertilizers aim to safeguard farmers’ interests. The recent farm bills have sparked debates about their potential impact on farmers’ income and the agricultural sector at large.

Agriculture and India’s Future

Agriculture’s role extends beyond mere food production. It is a key player in achieving the United Nations’ Sustainable Development Goals (SDGs). With the right mix of policies, technological interventions, and sustainable practices, agriculture can be the driving force in India’s journey towards sustainable development.

Agriculture, indeed, is the backbone of India. It is not just an economic activity but a way of life for a majority of Indians. It is the thread that binds the ‘Bharat’ to ‘India’. As we move towards a more technologically advanced future, it is essential to ensure that this sector is not left behind. With the right interventions, Indian agriculture has the potential to feed not just the nation but also the world.

That’s it! I hope the essay helped you.

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Why Genghis Khan, Muhammad Ghori and Babur came to Indian subcontinent? A new study pegs it on good monsoons, thriving agriculture

According to the study, severe drought spells in central asia forced foreign invaders to seek livable land in the indian subcontinent..

essay on agriculture in india in hindi

A new study has concluded that some of the most significant foreign invasions of the Indian subcontinent in the past 2,600 years coincided with good monsoons and favourable climatic factors. During this period, some central Asia-based invaders were Genghis Khan, The Hunas, Mahmud of Ghazni, Mohammad Ghori, and Babur.

It is well-established that the decline of the Harappan civilisation was linked to decreasing rainfall. This reaffirms that civilisations such as the Egyptian and Mesopotamian flourished under favourable climatic conditions.

essay on agriculture in india in hindi

The study, led by Naveen Gandhi from the Pune -based Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM), stated that invasions into the Indian subcontinent were associated with specific monsoons in both Central Asia and the Indian subcontinent. Unlike India, Central Asia does not enjoy annual monsoon rainfall.

Researchers derived paleoclimatic conditions of the past 2,500 years to study the monsoon variations over Central and South Asia between the 6th century BCE and the 16th century CE. Tree ring-based evidence from Kerala provided rainfall fluctuations from 1484 to 2003 CE.

In addition, the team obtained oxygen isotope details gathered from the mineral depositions of rock caves located in Kadapa in Andhra Pradesh and Dandak in Chhattisgarh . Similar oxygen isotope data was procured from four ancient rock caves in present-day Iran, Iraq, Kyrgyzstan and Uzbekistan, with some cave samples even dating back to 10,000 years.

Festive offer

“Inconsistent precipitation and a lack of systematic monsoon seasons, like those in the Indian subcontinent, have made a large geographical area along Central Asia desert-like with a high prevalence of aridity, thus limiting the chances of agriculture. The overall rich wealth and thriving agriculture facilitated by good monsoons and favourable climatic conditions could have attracted the invaders to the Indian subcontinent,” said Gandhi.

The paper published in the Journal of Earth System Science describes the strong monsoon that prevailed between 8000 and 3000 BC, contributing to wetter grasslands and pastures along the eastern parts of Central Asia. After that, a dramatic decline in the monsoon was observed over this region, affecting the overall rain- fed agriculture practices.

Grasslands in western Central Asia (closer to the Indian subcontinent) shifted from a dry to a wet period after 4000 BCE. However, subsequent dry spells during 650-490 BCE, 400-500 CE, 650-710 CE, and 950-1025 CE in parts of Central Asia coincided with weak monsoons. Central Asia experienced severe drought spells from 1190-1210 CE, forcing foreign invaders to seek livable land in the Indian subcontinent, according to the study.

The study concluded that at least eight of the 11 major invasions — including those by the Persian ruler Cyrus II, the Hunas, Genghis Khan, Mohammad Ghori and Babur, who laid the foundation of the Mughal empire in India — were timed when the Indian subcontinent experienced good monsoons and enhanced agriculture activities. This further indicates that the rulers targeted regions already thriving with agricultural activities and had prosperous living conditions and stable economies.

Besides, climate scientists argued that most of these Central Asian invaders had advanced access to regional-scale climatic information, aiding their launch of attacks on new and unconquered regions along Southern and Central Asia.

“The well-established trade routes linking the Indian subcontinent could have been used to share information about the climatic conditions in India with those living in the otherwise arid Central Asia regions,” Gandhi said.

  • agriculture

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    10 Lines On Agriculture in India Essay. Agriculture contributes to more than 15% of India's GDP and has provided employment to millions of people in the country. India is the second-highest producer of agricultural products in the world. Agriculture forms over more than 70% of India's export capacity.

  23. Essay on Agriculture

    The Significance of Agriculture in India. Agriculture, often referred to as the backbone of the Indian economy, plays a pivotal role in driving the country's socioeconomic fabric. It contributes to around 17-18% of the country's GDP and employs more than half of the total workforce, underpinning its significance in India's economic structure.

  24. Why Genghis Khan, Muhammad Ghori and Babur came to Indian subcontinent

    The study concluded that at least eight of the 11 major invasions — including those by the Persian ruler Cyrus II, the Hunas, Genghis Khan, Mohammad Ghori and Babur, who laid the foundation of the Mughal empire in India — were timed when the Indian subcontinent experienced good monsoons and enhanced agriculture activities.

  25. Farmers in India are hit hard by extreme weather. Some say expanding

    The Indian federal government's agriculture ministry has spent upwards of $8 million to promote natural farming and says farmers tilling nearly a million acres across the country have shifted to the practice. In March last year, India's junior minister for agriculture said he hoped at least 25% of farms across India would use organic and ...