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Swami Vivekananda Speech: पढ़िए स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए गए महान भाषण के मुख्‍य अंश

विश्व धर्म परिषद में अपने भाषण के प्रारंभ में जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकी भाइयों और बहनों कहा तो सभा के लोगों के द्वारा करतल ध्वनि से पूरा सदन गूंज उठा। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए।

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स्वामी विवेकानन्द का ऐतिहासिक शिकागो भाषण - Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

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स्वामी विवेकानन्द का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण

 स्वामी विवेकानंद.

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...

अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

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Chicago Speech

11 september 1893, this speech was given by swami vivekananda at parliament of world's religions, chicago on 11th of september 1893.

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Response to Welcome

It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of the millions and millions of Hindu people of all classes and sects.

Today is the 11th of September. on this day in 1893 #SwamiVivekananda shared his world-famous speech at the World's Parliament of Religions at Chicago and given the message "We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true". pic.twitter.com/Kd0LfPzpEk — Swami Vivekananda (@vivekexpress) September 11, 2021

My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honour of bearing to different lands the idea of toleration. I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth. I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shattered to pieces by Roman tyranny. I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation. I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: ‘As the different streams having their sources in different places all mingle their water in the sea, so, O Lord, the different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee.’

The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world, of the wonderful doctrine preached in the Gita: ‘Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to Me.’ Sectarianism, bigotry, and its horrible descendant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth. They have filled the earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization, and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honour of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal.

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शिकागो में शून्य पर ही क्यों बोले स्वामी विवेकानंद, जानिए

सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था।.

Rajesh Yadav

शिकागो में शून्य पर ही क्यों बोले स्वामी विवेकानंद : बेहद कम उम्र में अपने ज्ञान का लोहा मनवाने वाले और देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था। अधिकांश लोग जानते हैं कि स्वामी जी ने यहां पर शून्य पर भाषण दिया था, लेकिन बेहद कम लोग ही ऐसे हैं जिन्हें यह मालूम है कि उन्होंने शून्य पर ही क्यों भाषण दिया। तो जानिए शिकागो में शून्य पर क्यों बोले थे स्वामी जी।

विवेकांनद के कुछ विचार :  “ जीतना बड़ा संघर्ष होगा,जीत उतनी ही शानदार होगी “ “एक समय में एक काम करो,और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्‍मा उसमें डाल दो और बाकी सब भूल जाओ। “ “ जब तक आप खुद पर विश्‍वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्‍वास नहीं कर सकते।“

विवेकानंद शून्य पर ही क्यों बोले : : यह एक दिलचस्प कहानी है। विवेकानंद साल 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए थे। जब वो वहां पहुंचे तो आयोजकों ने उनके नाम के आगे शून्य लिख दिया था। जानकारी के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कुछ लोग उन्हें परेशान करना चाहते थे। जानकारी के मुताबिक विवेकानंद जब भाषण देने के लिए खड़े हुए तब उनके सामने दो पेड़ों के बीच में एक सफेद कपड़ा बंधा हुआ पाया जिसके बीच में एक ब्लैक डॉट था। स्वामी विवेकानंद पूरी बात को अच्छे से भांप चुके थे। इसलिए उन्होंने यहां पर अपने भाषण की शुरूआत शून्य से ही की। 

आगे पढ़ें: विवेकानंद को उनकी गुरु मां ने दी बड़ी सीख

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Swami Vivekananda Speech: इस युवा दिवस पढ़े स्वामी विवेकानंद की Iconic Speech

Swami Vivekananda Speech

Swami Vivekananda Speech: स्वामी विवेकानंद कोलकाता में जन्मे देश के महान सामाजिक नेताओं में से एक माने जाते हैं। यह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ इस भक्ति एवं कुशल वक्ता थे। यह 25 वर्ष की उम्र में ही सांसारिक मोह माया को त्याग संयासी बन गए। वह धर्म, दर्शन ,वेद, उपनिषद, साहित्य एवं पुराणों के ज्ञाता थे। प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को उनके जन्म जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि स्वामी विवेकानंद देश के सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत थे। इसलिए इनके जन्म जयंती को देश की युवाओं के लिए समर्पित कर दिया गया।संपूर्ण दुनिया में सनातन धर्म को पहचान दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। जैसे कि आप लोगों को पता है स्वामी विवेकानंद के जयंती के दिन कई स्कूल, कॉलेज एवं ऑफिस में भाषण प्रतियोगिता का कार्यक्रम होता है, ऐसे में यदि आप लोग भी भाषण प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है या लेने वाले हैं लेकिन आपको समझ में नहीं आ रहा है।

तो आईए  हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण | Chicago Speech of Swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द शिकागो भाषण पीडीएफ | Swami Vivekananda Chicago Speech PDF,स्वामी विवेकानन्द पर भाषण हिंदी में | Speech on Swami Vivekananda in Hindi, स्वामी विवेकानन्द पर भाषण | Speech on Swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द के बारे में भाषण | Speech About Swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द भाषण पीडीएफ | Swami Vivekananda Speech PDF, स्वामी विवेकानन्द का संक्षिप्त भाषण | Swami Vivekananda Short Speech, संबंधित जानकारी विस्तार पूर्वक प्रदान कर रहे हैं इसलिए आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।

Swami Vivekananda Speech in Hindi

स्वामी विवेकानंद ने वैसे तो कई जगह भाषण दिए हैं, लेकिन शिकागो में दी गई स्पीच काफी फेमस रही और आज भी लोग उनकी यह स्पीच सुनने को उत्सुक रहते हैं। बता दें कि स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त का निधन 1884 में हो गया था, जिसके चलते घर की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गई थी। मात्र 39 वर्ष की आयु में स्वामी जी का निधन हो गया था।

Also Read: स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में

स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda – Overview

संगीत, साहित्य और दर्शन में विवेकानंद की काफी रुचि थी। तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती उनका शौक था। स्वामी जी ने तो 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबिल, कुरान, धम्मपद, तनख, गुरूग्रंथ साहिब, दास केपीटल, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र और दर्शन की तमाम तरह की विचारधारा को घोंट दिया था। वे जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और दर्शनों के प्रति अविश्वास से भर गए। संदेहवादी, उलझन और प्रतिवाद के चलते किसी भी विचारधारा में विश्वास नहीं किया। नरेंद्र की बुध्दि बचपन से ही तेज थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे ब्रम्ह समाज में गए, लेकिन वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। 

Also Read: स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (पृष्ठभूमि, इतिहास और मृत्यु)

रामकृष्ण परमहंस की शरण में 

अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए ब्रम्ह समाज के अलावा कई साधु-संतों के पास भटकने के बाद अंत में वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। रामकृष्ण को गुरू बनाने के बाद उनका नाम विवेकानंद हुआ। 

Also Read: सुभाषचंद्र बोस जयंती कब और क्यों मनाई जाती है?

स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण | Chicago Speech of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद ए 11 सितंबर 1893 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देकर पूरे विश्व में भारत के मजबूत छवि को पेश किए थे। ऐतिहासिक भाषण का चर्चा वर्तमान समय में भी होता रहता है। इतना ही नहीं इस भाषण के समाप्त होने के बाद सम्मेलन में बैठे सभी लोग 2 मिनट तक तालिया के द्वारा इनका भाषण का स्वागत किए थे। लेकिन हम में से कई लोगों को क्या पता नहीं है कि इस भाषण में स्वामी विवेकानंद जी ने क्या कहा था। हम आपको बता दे की स्वामी विवेकानंद जी ने इस भाषण में निम्नलिखित खास बातें कही थी जो इस प्रकार के हैं:-

  • स्वामी विवेकानंद जी ने सर्वप्रथम विश्व धर्म सम्मेलन को मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के द्वारा संबोधन करते हुए कहां की आपने स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है जिससे मेरा दिल भर आया है। मैं आप सभी को दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से शुक्रिया करता हूं, मैं आपको अभी धर्म के जननी की ओर से कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं।
  • उन्होंने कहा कि मेरा धन्यवाद उन लोगों को भी है जिन्होंने इस मंच पर खड़े होकर कहां की दुनिया में सहनशीलता का विचार भारत से फैला है।
  • मुझे अत्यंत गर्व है कि मैं उस देश से संबंध रखता हूं सभी धर्म के लोगों को शरण दी है।
  • उन्होंने कहा कि मुझे यह बताते हुए काफी गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में इसराइल के पवित्र स्मृतियों को संभाल कर रखे हैं जिनके धर्मस्थल को रोमन हमलावरों ने तोड़फोड़ के खंडहर में तब्दील कर दिया था इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
  • स्वामी विवेकानंद जी अपने भाषण में रहते हैं कि जिस प्रकार नदिया अलग-अलग जगह से निकालकर अलग-अलग जगह से होते हुए समुद्र में मिलती है प्रकार मनुष्य जाति अपनी इच्छा के अनुसार अपने रास्ते को चुनते हैं भले ही यह रास्ते दिखने में अलग-अलग लगते हैं लेकिन यह सब ईश्वर तक ही जाती है।
  • उन्होंने कहा कि लंबे समय से पृथ्वी को कट्टरता, सांप्रदायिकता, हठधर्मिता आदि अपने शिकंजे में जकड़ा हुए हैं। इन सभी ने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कई बार धरती खून से लाल हुई है इसके अलावा कितनी सभ्यता नष्ट हुई है न जाने कितने देश बर्बाद हो गए हैं।

स्वामी विवेकानन्द शिकागो भाषण | Swami Vivekananda Chicago Speech 

Swami Vivekananda Chicago Speech  :- स्वामी विवेकानंद के द्वारा 11 सितंबर 1893 में अमेरिका के शिकागो में  दिया गया भाषण विश्व प्रसिद्ध है उस भाषण को इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित किया गया हैं। स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी भाषा के माध्यम से किया था  उन्होंने अमेरिका के लोगों को मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों! शब्दों के माध्यम से संबोधित किया था आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं। धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं। मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन  सभी वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद व्यक्त करना चाहता हूं  जिन्होंने आपको यह बतलाया है कि दुनिया में सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करना आवश्यक हैं।  मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता की भावना में विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि हम सभी धर्म को सच्चा मानकर उसका आदर करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीडि़तों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने देश में उन सभी यहूदियों को  स्थान दिया था  जो रोमन लोगों अत्याचार के पीड़ित थे। ऐसे धर्म का अनुयाई होने में मुझे गर्व महसूस हो रहा है बाल अवस्था की  स्तोत्र की कुछ पंक्तियां सुनाता हूं जिसकी आवृत्ति मैं बचपन से कर रहा हूं और जिसकी आवृत्ति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि जिस तरह नदी अलग-अलग जगह और विभिन्न रास्तों से होकर आखिर में समुद्र में आकर मिल जाती हैं’ ठीक मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है लेकिन सभी रास्ते ईश्वर तक जाते हैं |

स्वामी विवेकानंद कहां की मौजूदा सम्मेलन अब तक की सबसे पवित्र सभा में से एक है इसमें मैं गीता के कुछ उपदेशों का विवरण देना चाहता हूं उन्होंने कहा कि जो भी ”जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं.” सांप्रदायिकता, कट्टरता और  और इसके भयंकर वंशजों ने अपने धार्मिक  हठ ने  काफी समय से इस खूबसूरत धरती को  अपने कब्जे में रखा है जिसके फल स्वरुप पूरी धरती हिंसा और लड़ाई झगड़ों से भर चुकी है न जाने कितनी बार धरती खून से लाल हुई है कितनी सभ्यताएं बर्बाद हो चुकी हैं और देश नष्ट हो चुके हैं यदि इस पृथ्वी पर कोई भी भयंकर राक्षस नहीं होता तो मानव समाज आज के वक्त और भी ज्यादा विकसित और आधुनिक होता लेकिन मेरा मानना है कि अब हम सबको मिलकर कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से करना होगा। 

स्वामी विवेकानन्द पर भाषण हिंदी में | Speech On Swami Vivekananda in Hindi

यहां उपस्थित सभी शिक्षकों और छात्रों को सुप्रभात। मैं यहां स्वामी विवेकानन्द पर भाषण देने आया हूं। स्वामी विवेकानन्द समकालीन भारत के एक प्रसिद्ध लेखक, विद्वान, विचारक, संत और दार्शनिक थे। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को आनंद के शहर कलकत्ता में हुआ था। उनका मूल नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक विद्वान व्यक्ति थे जिन्हें अंग्रेजी और फ़ारसी दोनों का गहन ज्ञान था। वह कलकत्ता के सर्वोच्च न्यायालय में एक सफल वकील थे। उनकी माँ एक धर्मपरायण महिला थीं जिनका प्रभाव उन पर बचपन से ही पड़ा। उन्होंने उनके चरित्र को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने सबसे पहले नरेन को अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया और उन्हें बंगाली वर्णमाला से परिचित कराया।  उन्होंने 1884-1885 में अंग्रेजी विषय में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उनकी माँ चाहती थीं कि वे कानून की पढ़ाई करें, लेकिन स्वामी विवेकानन्द की रुचि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की थी। वह अधिकतम समय साधु-संन्यासियों के साथ बातचीत करने में व्यतीत करता था और सत्य की खोज में अनावश्यक रूप से घूमता रहता था और उसे कभी भी शांति और संतुष्टि नहीं मिलती थी। फिर, वह श्री रामकृष्ण के संपर्क में आए, जिन्होंने उन्हें प्रभावित किया और वह उनके कट्टर अनुयायी बन गए।  भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक समाज पर  स्वामी विवेकानंद विवेकानंद के शिक्षा का विशेष प्रभाव रहा था।  उनकी शिक्षाएँ मुख्य रूप से उपनिषदों और वेदों पर केंद्रित थीं, और उनका मानना ​​था कि  मानवता के लिए ज्ञान शक्ति और ऊर्जा का महान स्रोत थे। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय धर्म और दर्शन के बारे में गहन ज्ञान प्राप्त किया। उनकी शिक्षा का मुख्य सिद्धांत यह था कि मानवता की सेवा का अर्थ ईश्वर की सेवा करना है। उन्होंने रामकृष्ण मिशन नामक एक समूह का निर्माण और स्थापना की, जो जरूरतमंदों, कमजोरों और दुखी लोगों की मदद करने करने का कार्य करता है  स्वामी विवेकानंद ने कहा था शिक्षा एक ऐसा उपकरण है जो बेहतर जीवन स्तर प्रदान करता है। किसी देश की प्रगति और समृद्धि सीधे उसके सामाजिक जीवन पर निर्भर करती है।  हालाँकि, 4 जुलाई, 1902 को उनकी मृत्यु हो गई।मेरे प्यारे दोस्तों, स्वामी विवेकानंद का नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित किया गया है उनकी शिक्षा और विचारधारा सदैव दुनिया में जीवंत रहेगी

स्वामी विवेकानन्द पर भाषण | Speech On Swami Vivekananda

प्रिय शिक्षकों और छात्रों!

सभी के लिए शुभकामनाएं। और मुझे स्वामी विवेकानन्द पर भाषण देने का मौका देने के लिए आप सभी को धन्यवाद। देवियो और सज्जनो, अब मैं  मशहूर भारतीय दार्शनिक, समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता स्वामी विवेकानन्द के बारे में बात करना चाहता हूँ। वर्ष 1863 में स्वामी विवेकानन्द का जन्म कलकत्ता, भारत में हुआ था।  उन्होंने वेदांत का गहन अध्ययन किया और उसका प्रचार प्रसार पश्चिमी सभ्यता में भी किया था वह बंगाली रहस्यवादी और धार्मिक व्यक्ति रामकृष्ण के अनुयायी थे  1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द की उद्घाटन प्रस्तुति उनके सबसे प्रसिद्ध व्याख्यानों में से एक है।  उन्होंने अपने इस भाषण में  धर्म की सार्वभौमिकता के साथ-साथ सहिष्णुता के बारे में भी दुनिया को अवगत करवाया उन्होंने धर्म के बारे में कहा कि सभी धर्म एक लक्ष्य  पर पहुंचने के लिए अलग-अलग रास्ते का अनुसरण करते हैं लेकिन उनकी मंजिल एक ही होती हैं। हम सभी लोग स्वामी विवेकानन्द के दर्शन और शिक्षाओं से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं।  स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा पर विशेष जोर दिया था उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही समाज का समुचित विकास किया जा सकता है अंततः, स्वामी विवेकानन्द एक दूरदर्शी नेता थे जिनकी शिक्षाएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणा और दिशा के स्रोत के रूप में काम करती हैं।  ऐसे महान व्यक्तित्व को हमारा शत-शत प्रणाम हैं। वे 39 साल की छोटी अवधि के लिए जीवित रहे परंतु समाज विकास के लिए उन्होंने जिस प्रकार का कार्य किया है हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे मैं अपने भाषण का समापन स्वामी विवेकानंद के द्वारा बोले गए उनके महान विचारक कथन  ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए। के माध्यम से करेंगे 

स्वामी विवेकानन्द के बारे में भाषण | Speech about Swami Vivekananda

प्रिय दोस्तों-आप सभी को नमस्कार!

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में था। भारत के लोग स्वामी विवेकानन्द के जन्म के उपलक्ष्य में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। उनका जन्म बंगाल में कायस्थ जाति के एक उच्च-मध्यम वर्गीय कुलीन परिवार में हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्ता कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील थे। और उनकी माँ, भुवनेश्वरी देवी, एक धार्मिक विचारधारा वाली महिला थीं। स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व और विचार उनके पिता के विवेकशील दृष्टिकोण और माता के धार्मिक स्वभाव से अत्यधिक प्रभावित थे।

नरेंद्र जब छोटे थे तभी से उनका रुचि अध्यात्म में था। वह एक प्रखर पाठक थे और दर्शन, धर्म, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, कला और साहित्य उनके पसंदीदा विषय थे। उन्होंने पुराणों, वेदों, उपनिषदों आदि सहित धार्मिक ग्रंथों के प्रति भी तीव्र उत्साह प्रदर्शित किया। उन्होंने अपना ख़ाली समय ध्यान और आध्यात्मिक अध्ययन में बिताया।

मानवता की सेवा करके हम ईश्वर का अनुभव कर सकते हैं, यह उनके गुरु द्वारा साझा किए गए ज्ञान का सबसे बड़ा टुकड़ा है। वेदों और उपनिषदों के विषय पर उनके ध्यान ने हमारे देश की सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने एक ईश्वर के शाश्वत सत्य के विचार को फैलाकर लोगों के बीच नफरत से बचने का प्रयास किया। उनके अनुसार मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है और वह चाहता था कि लोग अपने आप पर विश्वास करें।

स्वामी विवेकानन्द भाषण पीडीएफ | Swami Vivekananda Speech PDF

स्वामी विवेकानंद के ऊपर भाषण का पीडीएफ यदि आप प्राप्त करना चाहते हैं तो आर्टिकल में हम आपको  उसका पीडीएफ उपलब्ध करवाएंगे जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।  

PDF Download :

स्वामी विवेकानन्द का संक्षिप्त भाषण | Swami Vivekananda Short Speech

स्वामी विवेकानन्द भारत के मशहूर वक्ताओं, संतों और दार्शनिकों में से एक हैं। वह रामकृष्ण मिशन के संस्थापक हैं,  जिसका प्रमुख उद्देश्य दुनिया में वेदांत का संदेश फैलाना और दूसरा  भारतीय लोगों की सामाजिक जीवन स्थितियों में सुधार करना। स्वामी विवेकानन्द एक क्रांतिकारी थे जो समाज में परिवर्तन लाने के इच्छुक थे। अपने प्रारंभिक जीवन में, वह 1828 में राम मोहन रॉय द्वारा स्थापित एक धार्मिक आंदोलन, ब्रह्म समाज के सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने कई सामाजिक आंदोलनों में भाग लिया और समाज से कम उम्र में विवाह की परंपरा को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया  स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद सभी धर्मों की एकता के पक्षधर रहे।

उन्होंने दुनिया को खुले तौर पर बताया कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की राह पर हैं। स्वामी विवेकानन्द के शब्दों के अनुसार, “जिस प्रकार अलग-अलग स्रोत वाली विभिन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार विभिन्न प्रवृत्तियाँ, भले ही वे टेढ़ी-मेढ़ी या सीधी दिखाई देती हों,  लेकिन सभी रास्ते  ईश्वर तक ही जाती हैं। 

स्वामी विवेकानंद का प्रसिध्द भाषण | Famous Speech of Vivekananda

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (chicago) (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जिक्र आता है, उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। 

शिकागो में स्वामी विवेकानंद का भाषण

vivekananda speech on zero in hindi

मेरे प्यारे अमेरिका के बहनो और भाइयो, 

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा ह्रदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं । और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। 

स्वामी जी आगे कहते हैं कि, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है, कि हमने अपने ह्रदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिसे मैने बचपन से याद कर रखा और दुहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों के द्वारा हर दिन दोहराया जाता है। 

Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे रास्ते देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, यह गीता में बताए गए इस सिध्दांत का प्रमाण है कि, “जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।“ 

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजे में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनास हुआ है और ना जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। 

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।  

स्वामी विवेकानंद के यादगार भाषण 

विवेकानंद पर वेदांत दर्शन, बुध्द के आष्टांगिक मार्ग और गीता के कर्मवाद का गहरा प्रभाव पड़ा। वेदांत, बौध्द और गीता के दर्शन को मिलाकर उन्होंने अपना दर्शन गढ़ा ऐसा नहीं कहा जा सकता। उनके दर्शन का मूल वेदांत और योग ही रहा । विवेकानंद मूर्तिपूजा को महत्व नहीं देते थे, लेकिन वे इसके विरोधी भी नहीं थे। उनके अनुसार, “ईश्वर” निराकार है। ईश्वर सभी तत्वों में निहित एकत्व है। जगत ईश्वर की ही सृष्टि है। आत्मा का कर्तव्य है कि शरीर रहते ही ‘आत्मा के अमरत्व’ को जानना। मनुष्य का चरम भाग्य ‘अमरता की अनुभूति’ ही है। राजयोग ही मोक्ष का मार्ग है। उनके यादगार भाषण ने लोगों का दिल जीत लिया। 

 FAQ’s Swami Vivekananda Speech in Hindi

Que. स्वामी विवेकानंद के अनुसार ईश्वर कैसा है .

Ans. स्वामी विवेकानंद के अनुसार ईश्वर निराकार है।

Que. स्वामी विवेकानंद ने किसे मोक्ष का मार्ग कहा है ?

Ans. स्वामी विवेकानंद ने राजयोग को मोक्ष का मार्ग कहा है।

Que. स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में भाषण कब दिया ?

Ans. 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में भाषण दिया था।

Que. स्वामी विवेकानंद के प्रसिध्द भाषण की शुरुआत कैसे हुई ?

Ans. मेरे अमेरिका के भाइयो और बहनों से प्रसिद्ध भाषण की शुरुआत हुई थी।

इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं

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Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi: दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्याख्यानों में से एक, स्वामी विवेकानंद जी के भाषण की तारीख 11 सितंबर। क्या था वो भाषण जिसने अमेरिका को नहीं पूरे पश्चिम को भारत का मुरीद बना दिया। नरेंद्र नाथ दत्त, जिन्हें पूरा विश्व विवेकानंद के नाम से याद करता है। 11/9 क्यों याद किया जाना चाहिए, क्योंकि उस दिन भारत के एक युवा सन्यासी ने पश्चिम के सूट-बूट वालों को बौना साबित किया था। क्योंकि उस दिन सनातन संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित किया गया था। सितंबर 11 को न्यूयार्क के लिए नहीं, शिकागो के लिए याद किया जाना चाहिए। विध्वंस के लिए नहीं विश्व शांति के लिए याद किया जाना चाहिए। आतंकवाद के लिए नहीं, सनातन संवाद के लिए याद किया जाना चाहिए। Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

शब्दों के जादूगर: विवेकानंद के संवाद का ये जादू शब्दों के पीछे छिपी चिर पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म व उस युवा के त्यागमय जीवन का था। जो शिकागो से निकला व पूरे विश्व में छा गया। उस भाषण को आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। इस भाषण से दुनिया के तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके।

स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था। और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे। यह ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था।  Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

अमेरिकी बहनों और भाइयों, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया के सबसे पौराणिक भिक्षुओं की तरफ से धन्यवाद देता हूँ। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूँ, और मैं आपको सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से धन्यवाद देता हूँ। मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी, जिन्होंने ने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों के सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की शुद्धतम स्मृतियाँ बचा कर रखीं हैं, जिनके मंदिरों को रोमनों ने तोड़-तोड़ कर खंडहर बना दिया, और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने महान पारसी देश के अवशेषों को शरण दी और अभी भी उन्हें बढ़ावा दे रहा है। भाइयों मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है, और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है-

‘रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम… नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव…’ इसका अर्थ है –

जिस तरह से विभिन्न धाराओं की उत्पत्ति विभिन्न स्रोतों से होती है उसी प्रकार मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, वो देखने में भले सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मलेन, जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, स्वयं गीता में बताये गए एक सिद्धांत का प्रमाण है। ‘‘जो भी मुझ तक आता है; चाहे किसी भी रूप में, मैं उस तक पहुँचता हूँ, सभी मनुष्य विभिन्न मार्गों पे संघर्ष कर रहे हैं जिसका अंत मुझ में है।’’

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सांप्रदायिकता, कट्टरता, और इसके भयानक वंशज, हठधर्मिता लम्बे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, कितनी बार ही ये धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता। लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है, मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिता, हर तरह के क्लेश, चाहे वो तलवार से हो या कलम से, और हर एक मनुष्य, जो एक ही लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है; के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

चिर पुरातन नित्य नूतन के वाहक | Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

अतीत को पढ़ो, वर्तमान को गढ़ो और आगे बढ़ो यही विवेकानंद जी का मूल संदेश रहा। जो समाज अपने इतिहास एवं वांग्मय की मूल्यवान चीजों को नष्ट कर देता है, वह निष्प्राण हो जाते हैं और यह भी सत्य है कि जो समाज इतिहास में ही डूबे रहते हैं, वह भी निष्प्राण हो जाते हैं। वर्तमान समय में तर्क और तथ्य के बिना किसी भी बात को सिर्फ आस्था के नाम पर आज की पीढ़ी के गले नहीं उतारा जा सकता।

भारतीय ज्ञान को तर्क के साथ प्रस्तुत करने पर पूरी दुनिया आज उसे स्वीकार करती हुई प्रतीत भी हो रही है। विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 शिकागो भाषण में इस बात को चरितार्थ भी करके दिखाया था। जहां मंच पर संसार की सभी जातियों के बड़े-बड़े विद्वान उपस्थित थे। डॉ. बरोज के आह्वान पर 30 वर्ष के तेजस्वी युवा का मंच पर पहुंचना। भाषण के प्रथम चार शब्द अमेरिकावासी भाइयों तथा बहनों’ इन शब्दों को सुनते ही जैसे सभा में उत्साह का तूफान आ गया और 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया।

युवा दिलों की धड़कन | Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

उम्र महज 39 वर्ष, अपनी मेधा से विश्व को जीतने वाले, युवाओं को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले, अपनी संस्कृति व गौरव का अभिमान विश्व पटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद जिनमें सब कुछ सकारात्मक है नेगेटिव कुछ भी नहीं। कल्पना कीजिए विवेकानंद के रुप में उस एक नौजवान की। गुलामी की छाया न जिसके विचार में थी, न व्यवहार में थी और न वाणी में थी। भारत माँ की जागृत अवस्था को जिसने अपने भीतर पाया था। ऐसा एक महापुरुष जो पल- दो पल में विश्व को अपना बना लेता है। जो पूरे विश्व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। जो विश्व को अपनत्व की पहचान दिलाता है और जीत लेता है। वेद से विवेकानंद तक, उपनिषद से उपग्रह तक हम इसी परंपरा में पले बढ़े हैं। उस परंपरा को बार-बार स्मरण करते हुए, सँजोते हुए भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सद्भावना के सेतु को जितना बल हम दे सकते हैं, उसे देते रहना होगा।

कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के निमार्ता थे, तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह इसलिए कि स्वामीजी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु भारतवासियों के मनों में एक स्वाभिमान का माहौल निर्माण किया। आज शिकागो भाषण के दिन विवेकानंद के जीवन को पढ़ने के साथ ही उसे गुनने की भी जरूरत है।

हम भाग्यवान है कि हमारे पास एक महान विरासत है। तो आईए, उस महान विरासत के गौरव को आधार बना युवा मन के साथ संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़े। आज चारों ओर जिस प्रकार का बौद्धिक विमर्श दिखाई दे रहा है, उसमें युवा होने के नाते अपनी मेधा व बौद्धिक क्षमता का परिचय हम को देना ही होगा। यही वास्तव में आज हमारी ओर से सच्ची आहुति होगी। इसके लिए अपनी सर्वांगीण तैयारी कर देश के लिए जीना इस संकल्प को और अधिक बलवान बनाना होगा। स्वामी विवेकानंद जी भी कहते थे “बस वही जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं”।

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स्वामी विवेकानंद पर भाषण

Speech on Swami Vivekananda in Hindi: स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे। इसके साथ साथ वो एक विपुल विचारक, महान वक्ता और परम देशभक्त थे।

साल 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद पूरी दुनिया में उनको ख्याति मिली थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी साल 1863 को हुआ था और उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1904 के दिन हुई थी।

Speech-on-Swami-Vivekananda-in-Hindi

हम इस आर्टिकल में आपको  स्वामी विवेकानंद पर स्पीच ( Speech on Swami Vivekananda in Hindi )  के बारे में बेहद सरल भाषा में माहिति प्रदान करेंगे। यह भाषण हर कक्षा के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होगा।

स्वामी विवेकानंद पर भाषण (500 शब्द)

आदरणीय महोदय और मेरे प्यारे साथियों,

सबको मेरा नमस्कार।

आप सभी ने मुझे इस मंच पर एक महान व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद के बारे में बोलने का मौका दिया। उसके लिए में आप सबका आभारी हूँ। आप सब भी स्वामी विवेकानंद के नाम से परिचित जरूर होंगे। स्वामी विवेकांनद वो महान हस्ती थे, जिन्होंने पूरी दुनिया को हिन्दू धर्म का परिचय करवाया और भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया।

साल 1863 को 12 जनवरी के दिन कोलकाता में उनका जन्म हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेन्द्र था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनकी माता द्वारा घर में धार्मिक कार्य अधिक होते थे, इसलिए पढ़ाई से ज्यादा उनकी रूचि अध्यात्मिक की और ज्यादा थी।

उन्हें बचपन से ही परमात्मा को पाने की तीव्र इच्छा थी। विवेकानंदजी की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी, इसलिए उन्होंने केवल 25 साल की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य और संगीत तमाम का ज्ञान ले लिया था।

फिर भी उनके किसी प्रकार का संतोष प्राप्त नहीं हुआ। अंत में उन्हें रामकृष्ण परमहंस की शरण मिली। रामकृष्ण ने नरेंद्र को जीवन की सही दिशा दिखाई और उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु बना लिया और केवल 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बनकर पूरी दुनिया में घूमने लगे।

साल 1983 के दौरान शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी, तब भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वामी विवेकानंदजी अपने विचार लोगों के सामने व्यक्त किये। भाईयों और बहनों शब्दों के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने वहां के लोगों का दिल जीत लिया।

चारों ओर तालियों की गड़गड़ाट होने लगी। अमेरिका में इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। उन्होंने पश्चिम में भी भारतीय आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया।

खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें स्वामी विवेकांनद नाम दिया और ये नाम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो गया। उन्होंने मानव जाति की सेवा के लिए और लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में उजागर करने के लिए रामकृष्‍ण मिशन और रामकृष्‍ण मठ की स्‍थापना की।

स्वामी विवेकांनद वो महान संत थे, जिन्होंने राष्ट्रीय चेतना को नया आयाम दिया और हिंदुओं को एक धर्म में विश्वास करना सिखाया। उनका जन्‍म दिन देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी जी हमेशा कहा करते थे की उठो, जागो और ध्येय प्राप्ति तक रुको नहीं। अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

उनके विचार आज भी कई युवा के लिए पथप्रदर्शक बने है। केवल 39 साल की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। सच में स्वामी विवेकांनद एक असाधारण पुरुष थे। हमें उनके अधूरे कार्य को पूरे करने की कोशिश करनी चाहिए।

अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हमें इस महापुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी जीवन को बहेतरीन बनाना चाहिए। अब मैं यहाँ मेरे शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। मुझे शांति से सुनने के लिए आप सबका धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Speech on Swami Vivekananda in Hindi (500 शब्द)

आदरणीय प्राचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे मित्रों,

यहाँ उपस्थित सभी श्रोतागणों को मेरी तरफ से राष्ट्रीय युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज 12 जनवरी को सभी भारतीय राष्ट्रीय युवा दिवस मना रहे है। यह दिन आध्यात्मिक विचारों वाले और एक असाधारण व्यक्तित्व को धारण करने वाले स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देने के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद एक प्रसिद्ध संत विचारक, दार्शनिक और लेखक और हिंदू नेता थे। उनके विशाल ज्ञान और आकर्षक चरित्र की वजह से वो ना सिर्फ भारत में बल्कि पश्चिम संस्कृति में भी काफी मशहूर थे।

उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में दत्ता परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेंद्र दत्त था। उनकी माता काफी धर्मपरायण व्यक्ति थी। उनके घर में रोज़ पूजा पाठ और कीर्तन होता था। नरेंद्र के जीवन को आकार देने में उनकी माता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

बचपन से ही उन्हें परमेश्वर के बारे में जानने की भारी उत्सुकता थी। वह अक्सर पवित्र मठाधीशों और भिक्षुओं से सवाल करते थे कि क्या उन सभी ने कभी भगवान को देखा है।

लेकिन उन्हें सिर्फ रामकृष्ण ने सही मार्ग बताया और भगवान के प्रति उनकी शंकाओं को दूर किया और रामकृष्ण परमहंस ने नरेन से कहा कि कोई भी ईश्वर को नहीं देख सकता क्योंकि वह एक सर्वशक्तिमान प्राणी है, लेकिन वह ईश्वर को एक समान रूप में देख सकता है। मनुष्य केवल मानवता की सेवा करके ईश्वर का अनुभव कर सकता है।

महज 25 साल की उम्र में उन्होंने सन्यास ले लिया और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। अपने गुरु की याद में उन्होंने मई, 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन जरूरतमंदों और गरीबों को स्वैच्छिक कल्याण कार्य प्रदान करती है।

स्वामी विवेकानंद अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले भारतीय और हिंदू भिक्षु भी थे। साल 1893 में उन्होंने शिकागो में आयोजित घर्म परिषद में हिन्दू धर्म के विचार को साझा किया। उनके विचार सुनकर वह मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। पहले दिन के संबोधन के बाद वो इतने मशहूर हुए कि अमरीका में भी उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।

ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना तल्लीन रहते थे कि वे अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं देते थे। अपने 39 साल के अल्प जीवन में उन्होंने लगभग 31 बीमारियों का सामना किया।

आखिर में 4 जुलाई, 1902 को उनका निधन हो गया। 39 वर्षों में, स्वामी विवेकानंद ने मानवता के लिए कई उत्कृष्ट कार्य किये, जिनकी वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है।

राष्ट्रीय युवा दिवस को मनाने के पीछे हमारा यह मकसद होता है कि हम स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ याद करें, बल्कि उनके जीवन से हम कुछ गुण अपने जीवन में भी उतारें।

स्वामी जी को युवा पर काफी विश्वास था उनका मानना था कि युवा में वो शक्ति होती है, जो देश की पूरी स्थिति बदल देती है। वो युवा को हमेशा यही कहते थे कि तुम जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। जितना कठिन तुम्हारा संघर्ष होगा तुम्हारी जीत उतनी ही शानदार होगी।

अब में यहाँ अपने शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। आप सब ने मेरे भाषण को शांति से सुना इसके लिए मैं आप सबका शुक्रियां अदा करना चाहता हूँ। धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानन्द का शिकागो में दिया गया भाषण

आदरणीय अतिथि और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

हमारे देश में समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार संतों और महापुरूषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुखद परिस्थितियों से मुक्ति दिलाकर पूरे विश्व को एक सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की भूमि गौरवान्वित और गौरवशाली हो गई है। इसने पूरी दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है।

स्वामी विवेकानंद का नाम उन महापुरुषों में है, जिन्होंने देश को प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया है, जो संपूर्ण मानव जाति के जीवन के अर्थ के सबसे मधुर दूतों में से एक हैं। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 फरवरी 1863 को महानगर कलकत्ता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। बचपन के दिनों में वो बहुत नटखट थे।

उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। पांच साल की उम्र में, लड़के नरेंद्रनाथ को मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट स्कूल में भेज दिया गया था। लेकिन पढ़ाई में रुचि न होने के कारण बालक नरेंद्रनाथ पूरा समय खेलकूद में ही व्यतीत करते थे। 1879 में, नरेंद्रनाथ को जनरल असेंबली कॉलेज में भर्ती कराया गया था।

स्वामी जी अपने पिता से नहीं लेकिन माता श्री के भारतीय धार्मिक लोकाचार का गहरा प्रभाव था। यही कारण है कि स्वामी जी अपने जीवन के शुरूआती दिनों से ही धार्मिक प्रवृत्ति में उलझे रहे और धर्म के प्रति आस्थावान बने रहे।

ईश्वर के ज्ञान की लालसा में अपने बेचैन मन की शांति के लिए उन्होंने तत्कालीन संत-महात्मा रामकृष्ण परमहंस जी के ज्ञान की छाया ग्रहण की। परमहंस ने स्वामी जी की योग्यता की परीक्षा ली।

उनसे साफ-साफ कहा- ‘आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। ईश्वर ने आपको केवल सभी मानव जाति के कल्याण के लिए भेजा है।’ स्वामी रामकृष्ण के इस उत्साही भाषण को सुनकर नरेंद्रनाथ ने अपनी भक्ति और श्रद्धा को ही अपना कर्तव्य समझ लिया। परिणामस्वरूप, वे परमहंस जी के परम शिष्य और अनुयायी बन गए।

पिता श्री की मृत्यु के बाद परिवार का भार संभालने के बजाय, नरेंद्र ने संन्यास के मार्ग पर चलने का विचार किया। लेकिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें कहा की, “साधारण तपस्वियों की तरह अपना कीमती जीवन एकांत में व्यर्थ न गवाएं।

ईश्वर को देखना है तो मनुष्य की ही सेवा करो।” और स्वामी जी ने  इस आदेश का पालन करते हुए अपने कर्तव्य पथ को उचित माना। वे ज्ञान और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विदेश भी घूमे।

1881 में नरेंद्रनाथ का त्याग करके स्वामी विवेकानंद बने। अमेरिका के शिकागो में धर्म सम्मेलन की घोषणा सुनकर वहां पहुंचे और अपनी अद्भुत विवेक क्षमता से सभी को चकित कर दिया।

11 सितंबर, 1883 को जब सम्मेलन शुरू हुआ और जब स्वामीजी सभी धर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों के सामने बोलने लगे, भाइयों और बहनों, तो वहाँ का सारा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएं भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वह आध्यात्मिकता, शांति और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रवर्तक थे। ऐसे महान व्यक्तित्व का अगर एक गुण भी हम अपने जीवन में उतार ले तो हमारा जीवन भी धन्य बन जायेगा। धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कैसे और कब हुई थी?

मेरे प्यारे श्रोतागणों,

सबको मेरा प्यार भरा नमस्कार।

आज मैं आपके साथ स्वामी विवेकांनद के बारे में कुछ विचार साझा करना चाहती हूँ। भारत में एक नई जागृति की शुरुआत करने वाले लोगों में स्वामी विवेकानंद का नाम प्रमुख है। हर भारतीय स्वामी विवेकानंद का नाम आज भी मान सम्मान के साथ लेते है।

उनका जन्म वर्ष 1863 में कलकत्ता में हिन्दु परिवार में हुआ था। माता पिता ने उनका नाम नरेन्द्र रखा था। नरेन्द्र बचपन से ही काफी जिज्ञासु प्रकार का बालक था। बुद्धिमान दिमाग और उच्च सोच जैसे उसे उपहार में मिला था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता अंग्रेजी और फारसी के अच्छे जानकार थे। वह कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक सफल वकील थे। उनकी मां एक करिश्माई महिला थी, जिन्होंने बचपन से ही नरेन को प्रभावित किया था। उन्होंने पहले नरेन को अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया, फिर उन्हें बंगाली वर्णमाला से परिचित कराया।

उन्होंने बी.ए. करने के बाद कानून का अभ्यास किया। उनकी माता उन्हें वकील बनाना चाहती थी। लेकिन नरेन्द्र को अध्यात्मिक की ओर ज्यादा रूचि थी। पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की स्थितिअच्छी नहीं थी। इसलिए वो आगे पढ़ाई नहीं कर पाया।

आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की चाह में नरेन्द्र सबसे अधिक समय साधु-संतों के साथ व्यतीत करते थे, जिसके दौरान वो स्वामी रामकृष्ण के संपर्क में आए। स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को काफी प्रभावित किया। नरेन्द्र उनका अनुयायी बन गया।

स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को बताया कि ईश्वर दर्शन के लिए एक मात्र उपाय मानवजाति की सेवा है। उन्होंने अपने गुरु के अंतिम समय तक उनकी सेवा की और उनकी याद में 1897 वर्ष को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

रामकृष्ण मिशन एक ऐसे साधुओं और सन्यासियों का संगठन है, जो रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को आम जनता तक पंहुचा सके और दु:खी और ज़रूरतमंदों की  नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। विश्व सर्व धर्म सम्मलेन, 1883 में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वामी विवेकानंद जी शिकागो गये।

लेकिन उन्हें वहां तुच्छ माना गया। काफी प्रयासों के बाद उन्हें मंच पर बोलने का मौका मिला। ‘मेरे भाइयों और बहनों’ सुनते ही वहां उपस्थित करीब 7 हज़ार लोगों ने उनके लिए जोरों से तालियां बजायी।

स्वामी विवेकानंद एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने कर्म योग, राज योग, वेदांत शास्त्र और भक्ति योग जैसी किताबें लिखी, जिसे लोग आज भी बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ते है।

ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना मशगूल हो गए थे कि वो अपनी सेहत का ध्यान नही रख पा रहे थे। जिसके चलते वो महज 39 वर्ष की आयु में ही 31 बीमारियों से ग्रसित हो गये थे।

उन्होंने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर सकेंगे और उनकी यह बात सच हो गई। 4 जुलाई 1902 के दिन उनकी मृत्यु 39 वर्ष की आयु में हुई।

स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के रूप में भारत में उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमें इस दिवस को सार्थक बनाने के लिए स्वामी विवेकानंद के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। मैं यही मेरे विचार समाप्त करना चाहती हूँ। शुक्रिया।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको स्वामी विवेकानंद पर भाषण हिंदी में (swami vivekananda par bhashan) पसंद आये होंगे। इसे आगे शेयर जरूर करें और कोई सुझाव या सवाल हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • गाँधी जयंती पर भाषण
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  • युवा दिवस पर प्रेरणादायी विचार

Rahul Singh Tanwar

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Swami Vivekananda's Speeches

ahireajay@gmail.com/Getty Images

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  • M.A., English Literature, University of North Bengal

Swami Vivekananda was a Hindu monk from India known for introducing many in the U.S. and Europe to Hinduism in the 1890s. His speeches at the World Parliament of Religions of 1893 offer an overview of his faith and a call for unity between the world's major religions.

Swami Vivekananda

Swami Vivekananda (Jan. 12, 1863, to July 4, 1902) was born Narendranath Datta in Calcutta. His family was well to do by Indian colonial standards, and he received a traditional British-style education. There is little to suggest Datta was especially religious as a child or teen, but after his father died in 1884 Datta sought spiritual counsel from Ramakrishna, a noted Hindu teacher. 

Datta's devotion to Ramakrishna grew, and he became a spiritual mentor to the young man. In 1886, Datta made formal vows as a Hindu monk, taking the new name of Swami Vivekananda. Two years later, he left monastic life for one as a wandering monk and he traveled widely until 1893. During these years, he witnessed how India's underprivileged masses lived in abject poverty. Vivekananda came to believe it was his mission in life to uplift the poor through spiritual and practical education. 

The World Parliament of Religions

The World Parliament of Religions was a gathering of more than 5,000 religious officials, scholars, and historians representing the major world faiths. It was held Sept. 11 to 27, 1893, as part of the World's Columbian Exposition in Chicago. The gathering is considered to be the first global interfaith event in modern history. 

Excerpts From the Welcome Address

Swami Vivekananda delivered opening remarks to the parliament on Sept. 11, officially calling the gathering to order. He got as far as his opening, "Sisters and Brothers of America," before being interrupted by a standing ovation that lasted more than a minute.

In his address, Vivekananda quotes from the Bhagavad Gita and describes Hinduism's messages of faith and tolerance. He called on the world's faithful to fight against "sectarianism, bigotry, and its horrible descendant, fanaticism."

"They have filled the earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come..."

Two weeks later at the close of the World Parliament of Religions, Swami Vivekananda spoke again. In his remarks, he praised participants and called for unity among the faithful. If people of different religions could gather at a conference, he said, then they could co-exist throughout the world.

Concluding Address: Chicago, Sept 27, 1893

The World's Parliament of Religions has become an accomplished fact, and the merciful Father has helped those who labored to bring it into existence and crowned with success their most unselfish labor.
My thanks to those noble souls whose large hearts and love of truth first dreamed this wonderful dream and then realized it. My thanks to the shower of liberal sentiments that has overflowed this platform. My thanks to this enlightened audience for their uniform kindness to me and for their appreciation of every thought that tends to smooth the friction of religions. A few jarring notes were heard from time to time in this harmony. My special thanks to them, for they have, by their striking contrast, made general harmony the sweeter.
Much has been said of the common ground of religious unity. I am not going just now to venture my own theory. But if anyone here hopes that this unity will come by the triumph of any one of the religions and the destruction of the others, to him I say, "Brother, yours is an impossible hope." Do I wish that the Christian would become Hindu? God forbid. Do I wish that the Hindu or Buddhist would become Christian? God forbid.
The seed is put in the ground, and earth and air and water are placed around it. Does the seed become the earth, or the air, or the water? No. It becomes a plant. It develops after the law of its own growth, assimilates the air, the earth, and the water, converts them into plant substance, and grows into a plant.
Similar is the case with religion. The Christian is not to become a Hindu or a Buddhist, nor a Hindu or a Buddhist to become a Christian. But each must assimilate the spirit of the others and yet preserve his individuality and grow according to his own law of growth.
If the Parliament of Religions has shown anything to the world, it is this: It has proved to the world that holiness, purity, and charity are not the exclusive possessions of any church in the world and that every system has produced men and women of the most exalted character. In the face of this evidence, if anybody dreams of the exclusive survival of his own religion and the destruction of the others, I pity him from the bottom of my heart, and point out to him that upon the banner of every religion will soon be written in spite of resistance: "Help and not fight," "Assimilation and not Destruction," "Harmony and Peace and not Dissension."

After the Conference

The World Parliament of Religions was considered a side event at the Chicago World's Fair, one of the dozens that took place during the exposition. Swami Vivekananda's speeches were a highlight of the original World Parliament of Religions and he spent the next two years on a speaking tour of the U.S. and Great Britain. Returning to India in 1897, he founded Ramakrishna Mission, a Hindu charitable organization that still exists. He returned to the U.S. and U.K. again in 1899 and 1900, then returned to India where he died two years later.

On the 100th anniversary of the gathering, another interfaith gathering took place Aug. 28 to Sept. 5, 1993, in Chicago. The Parliament of the World's Religions brought 150 spiritual and religious leaders together for dialogue and cultural exchanges. 

  • The Complete History of Swami Vivekananda
  • The Mysticism of Rabindranath Tagore
  • The Top 5 Free Ebooks by Swami Vivekananda
  • The Ramayana: Summary by Stephen Knapp
  • Gandhi Quotes About God and Religion
  • The Spiritual Quest of George Harrison in Hinduism
  • Heaven and Hell in Early Hindu Belief
  • 30 Quotes In Praise of India
  • Rama and Sita
  • The Christ-Krishna Connection
  • A Review of the Book "Many Lives, Many Masters" by Dr. Brian Weiss
  • The Life of the Hindu Saint and Poet Sant Surdas
  • Swami Vivekananda Wallpapers
  • Quotations About God From Sri Ramakrishna
  • 15 Laws of Life from Swami Vivekananda
  • The 10 Avatars of the Hindu God Vishnu

Swami Vivekananda and His 1893 Speech

Photo of Swami Vivekananda in Chicago in 1893 with the handwritten words “one infinite pure and holy—beyond thought beyond qualities I bow down to thee”

Swami Vivekananda (1863–1902) is best known in the United States for his groundbreaking speech to the 1893 World’s Parliament of Religions in which he introduced Hinduism to America and called for religious tolerance and an end to fanaticism. Born Narendranath Dutta, he was the chief disciple of the 19th-century mystic Ramakrishna and the founder of Ramakrishna Mission. Swami Vivekananda is also considered a key figure in the introduction of Vedanta and Yoga to the West and is credited with raising the profile of Hinduism to that of a world religion.

Speech delivered by Swami Vivekananda on September 11, 1893, at the first World’s Parliament of Religions on the site of the present-day Art Institute

Sisters and Brothers of America,

It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world, I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of millions and millions of Hindu people of all classes and sects.

My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honor of bearing to different lands the idea of toleration. I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth. I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to Southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shat­tered to pieces by Roman tyranny. I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation. I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: “As the different streams having their sources in different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee.”

The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world of the wonderful doctrine preached in the Gita: “Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to me.” Sectarianism, bigotry, and its horrible descen­dant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth. They have filled the earth with vio­lence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honor of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal.

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स्वामी विवेकानंद पर भाषण

Speech on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद पर भाषण : Speech on Swami Vivekananda in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘स्वामी विवेकानंद पर भाषण’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप स्वामी विवेकानंद पर भाषण से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

स्वामी विवेकानंद पर भाषण : Speech on Swami Vivekananda in Hindi

सुप्रभात, आदरणीय प्रधानाचार्य जी, मेरे साथी अध्यापकगण एवं प्यारे बच्चों, आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार। मेरा नाम —— है और मैं इस विद्यालय में 12वीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ।

सबसे पहले मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि आप सभी ने मुझे इस मंच पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान दिया। आज भारत विश्व में जनसंख्या के मामले में दूसरे स्थान पर है और भारत आज युवाओं की संख्या के मामले में पहले स्थान पर आता है।

आज विश्व में भारत युवा देशों में से एक है। युवा, जिनमें बहुत शक्ति होती है, वे यदि चाहे तो कुछ भी कर सकते है। इसलिए प्रतिवर्ष 12 जनवरी के दिन युवा दिवस मनाया जाता है क्योंकि इस युवा दिवस के दिन को देश को तोहफे में देने वाले सबसे बड़े युवा स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस है।

उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। वह बचपन से बहुत बुद्धिमान व्यक्ति हुआ करते थे।उन्हे बचपन से ही क़िताबें पढ़ने का बहुत शोक था।

कहा जाता है कि उन्हें जब भी समय मिलता था, तो वह अपना खाली समय किताबें पढ़ने में व्यतीत किया करते थे। वह रामकृष्ण परमहंस जी से बहुत अधिक प्रभावित थे।

इसलिए, उन्होंने उन्हें अपना गुरु बना लिया। उनके गुरु से उन्होंने सीखा कि सभी जीवों में स्वयं परमात्मा का निवास है। उनका मानना था कि यदि हम सभी की सेवा करते है तो कहीं न कहीं वह भगवान की सेवा होगी।

रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु के पश्चात उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के बहुत अधिक दौरे किए और लगातार भारतीय लोगों की स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने लगे।

उनका एक प्रसिद्ध कथन, जिसमे उन्होंने कहा है कि “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”। इस कथन से आप उनकी सोच का अंदाजा लगा सकते है।

वह एक देशभक्त संन्यासी व्यक्ति थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगा दिया। विश्व ने उनकी प्रतिभा को तब जाना, जब सन 1893 अमेरिका में विश्व धर्म महासभा में उन्हें भाषण प्रस्तुत के लिए आमंत्रित किया गया।

उन्हें अपनी बात रखने के लिए मात्र 2 मिनट का समय दिया गया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों से” की। जिसके बाद पूरी महासभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी।

उसमें उन्होंने कहा था कि “जिस तरह भिन्न-भिन्न स्थानों से निकली नदियां, भिन्न-भिन्न मार्गों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं। ठीक उसी प्रकार मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग मार्गों का चुनाव करता है।

ये मार्ग देखने में भले ही भिन्न-भिन्न लगते हैं, लेकिन ये सभी मार्ग ईश्वर तक ही जाते हैं।” स्वामी जी की कुछ बातें विश्व गुरु भारत का चेहरा बनाती है। विवेकानंद जी के पास बहुत अधिक ज्ञान था और वह लगातार अपने ज्ञान को बढ़ाते रहते थे।

उन्होंने बचपन में ही हिंदू धर्म के सभी शास्त्रों को पढ़ लिया था। उन्होंने हिंदू धर्म के अलावा और भी सभी धर्मों का ज्ञान प्राप्त किया। इसके साथ-साथ उन्होंने भारत के अलावा विश्व के अनेक देशों में अपनी यात्रा की और वहां के रीति-रिवाजों को समझने के कोशिश की।

उन्होंने हिंदू धर्म के विस्तार पर ही नही, बल्कि गरीब व पिछड़े वर्ग के लोगों की सेवा भी की। आज युवा दिवस के मौके पर हम सभी न सिर्फ उन्हें याद करें या उनकी तस्वीर पर मालार्पण करें बल्कि, हम उनके ज्ञान, बातों व चरित्र के एक छोटे से हिस्से को अपने जीवन में उतारकर अपने जीवन को सफल बना सके।

यदि हम सभी उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के छोटे से हिस्से को भी अपने जीवन में उतार दें, तो हमें सफल होने से कोई नही रोक सकता है। इतना कहकर मैं अपने भाषण को समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ कि आपको मेरा यह भाषण पसंद आया होगा।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

अगर इस लेख के द्वारा आपको किसी भी प्रकार की जानकारी पसंद आई हो तो, इस लेख को अपने मित्रों व परिजनों के साथ  फेसबुक  पर साझा अवश्य करें और हमारे  वेबसाइट  को सबस्क्राइब कर ले।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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Swami vivekananda speech In Hindi: स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी इस घटना का करें जिक्र, पूरा सभागार हो उठेगा गुंजायमान

Swami vivekananda speech in hindi (स्वामी विवेकानंद भाषण हिंदी में 2023): प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जन्म जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता था। यही वह दिन था जब एक युवा तपस्वी ने भारत भूमि पर जन्म लिया था, जिसने भारत को विश्वगुरू के रूप में पुनर्स्थापित किया। इस अवसर पर यदि आप भी भाषण प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रहे हैं तो हमारे इस लेख पर एक नजर अवश्य डालें।.

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Updated Jan 12, 2023, 10:57 AM IST

Swami Vivekananda Speech In Hindi

Swami Vivekananda Speec: स्वामी विवेकानंद पर भाषण हिंदी में

  • स्वामी विवेकानंद जी की जन्म जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • 12 जनवरी 1863 को हुआ था स्वामी जी का जन्म।
  • भाषण के दौरान1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद का जिक्र करना ना भूलें।

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Swami Vivekananda Jayanti Speech in Hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती पर दे सकते हैं यह आसान भाषण

Swami vivekananda jayanti speech in hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस होने के चलते स्कूल, कॉलेजों में भाषण व निबंध प्रतियोगिताएं होती हैं। आप यहां से इसका उदाहरण देख सकते हैं।.

Swami Vivekananda Jayanti Speech in Hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती पर दे सकते हैं यह आसान भाषण

Swami Vivekananda Jayanti Speech : हर वर्ष 12 जनवरी को करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जाती है। इस दिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस ( National Youth Day )  के तौर पर भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के ओजपूर्ण विचार हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं इसलिए साल 1985 में भारत सरकार ने स्वामी जी के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। वह बेहद कम उम्र में विश्व विख्यात प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्‍व धार्मिक सम्‍मेलन में उन्‍होंने जब भारत और हिंदुत्‍व का प्रतिनिधित्‍व किया तो उनके विचारों से पूरी दुनिया उनकी ओर आकर्षित हुई। स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस होने के चलते स्कूल, कॉलेजों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें विवेकानंद से जुड़े भाषण, निबंध व पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिताएं भी होती हैं। अगर आप भाषण या निबंध प्रतियोगिता में हिस्से ले रहे हैं तो नीचे इसका उदाहरण देख सकते हैं। 

Speech On Swami Vivekananda Jayanti : यहां देखें भाषण का एक उदाहरण यहां उपस्थित प्रधानाचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों। सबसे पहले मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि आप सभी ने मुझे इस मंच से महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया। स्वामी विवेकानंद वो शख्स हैं जिससे आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के करोड़ो युवा प्रेरणा लेते हैं। उनके अनमोल विचार और कहीं गई बातें युवाओं में जोश फूंकने का काम करते हैं। यही वजह है की आज 12 जनवरी का दिन भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। सिर्फ 25 साल की उम्र में ही नरेन्द्रनाथ ने अध्यात्म का मार्ग अपना लिया था। आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के बाद उनको स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाने लगा। 

विवेकानंद की जब भी बात होती है तो अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में साल 1893 में दिए गए भाषण की चर्चा जरूर होती है। ये वो भाषण है जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया। स्वामी विवेकानंद ने अपना भाषण 'अमेरिका के भाईयों और बहनों' के संबोधन से शुरू किया तो पूरे दो मिनट तक हॉल में तालियां बजती रहीं। उस दिन से भारत और भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान मिली।

स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी, जिसकी वजह से उन्होंने 39 साल की बेहद कम उम्र में ही दम तोड़ दिया। लेकिन इतनी कम उम्र में वह विश्वभर में इतनी ख्याति बटोर गए जो हर युवा के लिए एक मिसाल है। उन्होंने सिखाया कि  युवावस्था कितनी महत्वपूर्ण होती है।

स्वामी जी कहते थे कि 'उठो और जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।' उनका मानना था कि जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। जो तुम सोचते हो, वो बन जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे। अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे।'   साथियों, आज युवा दिवस के मौके पर हम सभी न सिर्फ उन्हें याद कर श्रद्धांजिल दें, बल्कि हम उनके दिए ज्ञान, बातों, सीखों व चरित्र के एक छोटे से हिस्से को अपने जीवन में  भी उतारें। यदि हम सभी उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के छोटे से हिस्से को भी अपने जीवन में उतार दें, तो हमें सफल होने से कोई नही रोक सकता है। इतना कहकर मैं अपने भाषण को समाप्त करता हूं और आशा करता हूँ कि आपको मेरा यह भाषण पसंद आया होगा। धन्यवाद

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