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कृषि पर निबंध (Agriculture Essay in Hindi)

हमारा देश कृषि प्रधान देश है, और कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की नींव है। हमारे देश में कृषि केवल खेती करना नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। कृषि पर पूरा देश आश्रित होता है। लोगों की भूख तो कृषि के माध्यम से ही मिटती है। यह हमारे देश की शासन-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि से ही मानव सभ्यता का आरंभ हुआ। अक्सर विद्यालयों में कृषि पर निबंध आदि लिखने को दिया जाता है। इस संबंध में कृषि पर आधारित कुछ छोटे-बड़े निबंध दिए जा रहे हैं।

कृषि पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Agriculture in Hindi, Krishi par Nibandh Hindi mein)

कृषि पर निबंध – 1 (300 शब्द).

खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना, कृषि कहलाता है। कृषि में फसल उत्पादन, फल और सब्जी की खेती के साथ-साथ फूलों की खेती, पशुधन उत्पादन, मत्स्य पालन, कृषि-वानिकी और वानिकी शामिल हैं। ये सभी उत्पादक गतिविधियाँ हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार

भारत में, कृषि आय राष्ट्रीय आय का 1987-88 में 30.3 प्रतिशत था जोकि पचहत्तर प्रतिशत से अधिक लोगों को रोजगार देती थी। 2023 तक यह आंकड़ा 50% तक पहुंच गयाहै। मुख्य आर्थिक गतिविधि होने के बावजूद विकसित राष्ट्रों की तुलना में कृषि में शामिल उत्पादन के कारकों की उत्पादकता बहुत कम है। हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता भोजन का निर्माण, कृषि के द्वारा ही संभव होता है। कृषि में फसल उगाने या पशुओं को पालने की प्रथा का वर्णन है। किसान के रूप में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति कृषि उद्योग से सम्बंधित कहलाता है।

कृषि के क्षेत्र में नवीन प्रयोग

पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण कृषि क्षेत्रो में नविन उपकरणों का इस्तेमाल होने लगा है, परन्तु हमें धरती की उर्वरा शक्ति पर भी ध्यान देना चाहिए।

अर्थशास्त्री, जैसे टी.डब्ल्यू. शुल्ट, जॉन डब्ल्यू. मेलोर, वाल्टर ए.लुईस और अन्य अर्थशास्त्रियों ने यह साबित किया है कि कृषि और कृषक आर्थिक विकास के अग्र-दूत है जो इसके विकास में अत्यधिक योगदान देते है। कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए वर्तमान सरकार ने कई नए योजनाओ जैसे की सोलर पम्प, फूलो और फलों में अनुदान, पशु पालन में अनुदान जैसी कई योजनाएं लागु की है लेकिन ये भ्रस्टाचार के चलते शत प्रतिशत धरातल पर उतर नहीं पाती है और असल आवश्यक व्यक्ति इससे वंचित रह जाता है। इस सम्बन्ध में सरकार को नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

निबंध – 2 (400 शब्द)

लिस्टर ब्राउन ने अपनी पुस्तक “सीड्स ऑफ चेंजेस” एक “हरित क्रांति का एक अध्ययन,” में कहा है कि “विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में वृद्धि के साथ व्यापार की समस्या सामने आएगी।”

इसलिए, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन के लिए उत्पादन, रोजगार बढ़ाने और खेतों और ग्रामीण आबादी के लिए आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास होता है।

भारतीय कृषि की विशेषताएं :

(i) आजीविका का स्रोत – हमारे देश में कृषि मुख्य व्यवसाय है। यह कुल आबादी के लगभग 61% व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है। यह राष्ट्रीय आय में करीबन 25% का योगदान देती है।

( ii) मानसून पर निर्भरता – हमारी भारतीय कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है। अगर मानसून अच्छा आया तो कृषि अच्छी होती है अन्यथा नहीं।

( iii) श्रम गहन खेती – जनसंख्या में वृद्धि के कारण भूमि पर दबाव बढ़ गया है। भूमि जोत के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उपविभाजित हो जाते हैं। ऐसे खेतों पर मशीनरी और उपकरण का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

( iv) बेरोजगारी – पर्याप्त सिंचाई साधनों के अभाव में और अपर्याप्त वर्षा के कारण किसान वर्ष के कुछ महीने ही कृषि-कार्यों में संलग्न रहते हैं। जिस कारण बाकी समय तो खाली ही रहते है। इसे छिपी बेरोजगारी भी कहते है।

( v) जोत का छोटा आकार – बड़े पैमाने पर उप-विभाजन और जोत के विखंडन के कारण, भूमि के जोत का आकार काफी छोटा हो जाता है। छोटे जोत आकार के कारण उच्च स्तर की खेती करना मुमकिन नहीं होता है।

( vi) उत्पादन के पारंपरिक तरीके – हमारे देश में पारंपरिक खेती का चलन है। केवल खेती ही नहीं अपितु इसमें प्रयुक्त होने वाले उपकरण भी पुरातन एवं पारंपरिक हैं, जिससे उन्नत खेती नहीं हो पाती।

( vii) कम कृषि उत्पादन – भारत में कृषि उत्पादन कम है। भारत में गेहूं प्रति हेक्टेयर लगभग 27 क्विंटल का उत्पादन होता है, फ्रांस में 71.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और ब्रिटेन में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है। एक कृषि मजदूर की औसत वार्षिक उत्पादकता भारत में 162 डॉलर, नॉर्वे में 973 डॉलर और यूएसए में 2408 डॉलर आंकी गयी है।

( viii) खाद्य फसलों का प्रभुत्व – खेती किए गए क्षेत्र का करीब 75% गेहूं, चावल और बाजरा जैसे खाद्य फसलों के अधीन है, जबकि लगभग 25% खेती क्षेत्र वाणिज्यिक फसलों के तहत है। यह प्रक्रिया पिछड़ी कृषि के कारण है।

भारतीय कृषि मौजूदा तकनीक पर संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग करने हेतु संकल्पित हैं, लेकिन वे बिचौलियों के प्रभुत्व वाले व्यापार प्रणाली में अपनी उपज की बिक्री से होने वाले लाभ में अपने हिस्से से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार कृषि के व्यवसायिक पक्ष की घोर उपेक्षा हुई है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

आजादी के समय भारत में कृषि पूरी तरह से पिछड़ी हुई थी। कृषि में लागू सदियों पुरानी और पारंपरिक तकनीकों के उपयोग के कारण उत्पादकता बहुत खराब थी। वर्तमान समय की बात करें तो, कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों की मात्रा भी अत्यंत कम है। अपनी कम उत्पादकता के कारण, कृषि भारतीय किसानों के लिए केवल जीवन निर्वाह का प्रबंधन कर सकती है और कृषि का व्यवसायीकरण कम होने के कारण आज भी कई देशों से हमारा देश कृषि के मामले में पीछे है।

कृषि के प्रकार

कृषि दुनिया में सबसे व्यापक गतिविधियों में से एक है, लेकिन यह हर जगह एक समान नहीं है। दुनिया भर में कृषि के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।

( i) पशुपालन – खेती की इस प्रणाली के तहत पशुओं को पालने पर बड़ा जोर दिया जाता है। खानाबदोश झुंड के विपरीत, किसान एक व्यवस्थित जीवन जीते हैं।

( ii) वाणिज्यिक वृक्षारोपण – यद्यपि एक छोटे से क्षेत्र में इसका अभ्यास किया जाता है, लेकिन इस प्रकार की खेती इसके वाणिज्यिक मूल्य के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण है। इस तरह की खेती के प्रमुख उत्पाद उष्णकटिबंधीय (Tropical) फसलें हैं जैसे कि चाय, कॉफी, रबर और ताड़ के तेल। इस प्रकार की खेती एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में विकसित हुई है।

( iii) भूमध्यसागरीय (Mediterranean) कृषि – आमतौर पर भूमध्यसागरीय क्षेत्र के बीहड़ इलाकों में विशिष्ट पशुधन और फसल संयोजन होते हैं। गेहूं और खट्टे फल प्रमुख फसलें हैं, और छोटे जानवर, क्षेत्र में पाले जाने वाले प्रमुख पशुधन हैं।

( iv) अल्पविकसित गतिहीन जुताई – यह कृषि का एक निर्वाह प्रकार है और यह बाकि प्रकारों से भिन्न है क्योंकि भूमि के एक ही भूखंड की खेती साल दर साल लगातार की जाती है। अनाज की फसलों के अलावा, कुछ पेड़ की फसलें जैसे रबर का पेड़ आदि इस प्रणाली का उपयोग करके उगाया जाता है।

( v) दूध उत्पादन – बाजार के समीपता (Market proximity) और समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate) दो अनुकूल कारक हैं जो इस प्रकार की खेती के विकास के लिए जिम्मेदार हैं। डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों ने इस प्रकार की खेती का अधिकतम विकास किया है।

( vi) झूम खेती – इस प्रकार की कृषि आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा अपनाई जाती है, अनाज की फसलों पर प्रमुख जोर दिया जाता है। पर्यावरणविदों (Environmentalists) के दबाव के कारण इस प्रकार की खेती में कमी आ रही है।

( vii) वाणिज्यिक अनाज की खेती – इस प्रकार की खेती खेत मशीनीकरण के लिए एक प्रतिक्रिया है और कम वर्षा और आबादी वाले क्षेत्रों में प्रमुख प्रकार की खेती है। ये फसलें मौसम की मार और सूखे की वजह से होती हैं।

( viii) पशुधन और अनाज की खेती – इस प्रकार की कृषि को आमतौर पर मिश्रित खेती के रूप में जाना जाता है, और एशिया को छोड़कर मध्य अक्षांशों (Mid Latitudes) के नम क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। इसका विकास बाजार सुविधाओं से निकटता से जुड़ा हुआ है, और यह आमतौर पर यूरोपीय प्रकार की खेती है।

कृषि और व्यवसाय दो अलग-अलग धुरी है, लेकिन परस्पर संबंधित एवं एक दुसरे के पूरक हैं, जिसमें कृषि संसाधनों के उपयोग से लेकर कटाई, कृषि उपज के प्रसंस्करण (Processing) और विपणन (Marketing) तक उत्पादन का संगठन और प्रबंधन शामिल है।

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कृषि पर निबंध – Essay on Agriculture in Hindi

Essay on Agriculture in Hindi

Essay on Agriculture in Hindi :   इस लेख में 3 अलग-अलग प्रकार के कृषि पर निबंध लिखे गए हैं। यह निबंध हिंदी भाषा में लिखा गया है और शब्द गणना के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। आप नीचे दिए गए पैराग्राफ में 100 शब्दों, 200 शब्दों, 400 शब्दों, 500 और 1000 शब्दों तक के निबंध प्राप्त कर सकते हैं।

हमने अपने कृषि पर निबंध   के बारे में बहुत सी बातें तैयार की हैं। यह कक्षा 1, 2,3,4,5,6,7,8,9 से 10वीं तक के बच्चों को कृषि पर निबंध  लिखने में मददगार होगा।

कृषि पर निबंध (100 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 100 Words

यह कृषि मानव सभ्यता की रीढ़ है, जो हमें जीविका के लिए आवश्यक भोजन और संसाधन प्रदान करती है। इसमें फसलों की खेती, पशुधन पालन और अन्य कृषि पद्धतियां शामिल हैं। बढ़ती आबादी को खिलाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और ग्रामीण आजीविका में भी योगदान देता है। प्रौद्योगिकी और कृषि तकनीकों में प्रगति के साथ, कृषि अधिक कुशल और टिकाऊ हो गई है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन, सीमित संसाधन और जिम्मेदार प्रथाओं की आवश्यकता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कृषि की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने और भविष्य की खाद्य मांगों को पूरा करने के लिए सतत और अभिनव दृष्टिकोण आवश्यक हैं।

कृषि पर निबंध (300 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 300 Words

कृषि मानव सभ्यता की रीढ़ है, हमारी खाद्य आपूर्ति की नींव और आर्थिक विकास के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। इसमें भोजन, फाइबर और ईंधन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए फसल की खेती, पशुधन पालन और जलीय कृषि सहित विभिन्न प्रथाओं को शामिल किया गया है।

कृषि के महत्वपूर्ण योगदानों में से एक खाद्य सुरक्षा है। लगातार बढ़ती वैश्विक आबादी को खिलाने के लिए किसान फसलों का उत्पादन करने और पशुओं को पालने के लिए अथक परिश्रम करते हैं। विविध फसलों की खेती और आधुनिक कृषि तकनीकों के कार्यान्वयन के माध्यम से, कृषि एक स्थिर और पर्याप्त खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करती है।

इसके अलावा, कृषि आर्थिक विकास और ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह रोजगार के अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि गतिविधियों पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त, कृषि व्यापार और निर्यात के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में योगदान करती है, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है और गरीबी को कम करती है।

कृषि समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और सतत विकास प्रदान करती है। चुनौतियों पर काबू पाने और कृषि की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए नवीन और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है। कृषि क्षेत्र में समर्थन और निवेश करके, हम समग्र रूप से ग्रामीण समुदायों और वैश्विक आबादी दोनों के लिए एक समृद्ध भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं।

Essay on Agriculture in Hindi

कृषि पर निबंध (1000 शब्द) – Essay on Agriculture in Hindi In 1000 Words

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। यह हजारों वर्षों से देश में है। यह पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, और नई तकनीकों और उपकरणों के उपयोग ने लगभग सभी पारंपरिक खेती के तरीकों को बदल दिया है।

साथ ही, भारत में, कुछ छोटे किसान अभी भी पुरानी पारंपरिक खेती के तरीकों का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके पास आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए संसाधन नहीं हैं। इसके अलावा, यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसने न केवल इसके विकास में बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी योगदान दिया है।

भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास

भारत कृषि पर बहुत निर्भर है। इसके अलावा, कृषि भारत में आजीविका का साधन नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है। साथ ही, सरकार इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है क्योंकि पूरा देश भोजन के लिए कृषि पर निर्भर है।

हजारों सालों से हम कृषि का अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन अभी भी, यह लंबे समय तक विकसित नहीं हुआ है। साथ ही आजादी के बाद हम अपनी मांग को पूरा करने के लिए दूसरे देशों से अनाज का आयात करते हैं। लेकिन, हरित क्रांति के बाद, हम आत्मनिर्भर हो गए और अपने अधिशेष को दूसरे देशों में निर्यात करना शुरू कर दिया।

साथ ही, पहले की तरह, हम खाद्यान्न की खेती के लिए लगभग पूरी तरह से मानसून पर निर्भर हैं, लेकिन अब हमने बांध, नहरें, नलकूप और पंप-सेट बनाए हैं। इसके अलावा, अब हमारे पास अच्छे उर्वरक, कीटनाशक और बीज हैं जो हमें पहले की तुलना में अधिक भोजन उगाने में मदद करते हैं।

जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, हम प्राप्त करते हैं –

1)बेहतर उपकरण, 2)बेहतर सिंचाई सुविधाएं और 3)विशिष्ट कृषि तकनीकों में सुधार होने लगा है।

साथ ही, हमारा कृषि क्षेत्र कई देशों की तुलना में मजबूत हुआ है, और हम कई खाद्यान्नों के सबसे बड़े निर्यातक हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि का इतिहास

स्वतंत्रता के बाद, भारतीयों ने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में अत्यधिक प्रगति की। भारतीयों की जनसंख्या तीन गुना हो गई है, और इसलिए खाद्यान्न उत्पादन भी हो गया है। 1960 से पहले घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीयों को आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

हालाँकि, 1965 और 1966 में भयंकर सूखे के बाद, भारत अपनी कृषि नीति में सुधार के लिए आश्वस्त था, जिसने भारत को हरित क्रांति में प्रवेश कराया। हरित क्रांति ने पंजाब को देश की रोटी की टोकरी बना दिया। प्रारंभ में, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों ने उत्पादन में वृद्धि देखी क्योंकि कार्यक्रम राज्यों के सिंचित क्षेत्रों पर केंद्रित था। सरकारी अधिकारियों और किसानों ने मिलकर काम किया और उत्पादकता और ज्ञान के हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित किया।

हरित क्रांति कार्यक्रम उत्पादन में वृद्धि करता है, जिससे भारत आत्मनिर्भर बना। 2000 तक भारतीय किसानों ने ऐसी किस्में अपनाईं जिनसे प्रति हेक्टेयर छह टन गेहूं का उत्पादन होता था। बांध बनाए गए थे और सिंचाई परियोजनाओं के विकास के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिसने स्वच्छ पेयजल का स्रोत भी प्रदान किया है।

गन्ना और चावल जैसी फसलों के लिए सरकार द्वारा दी गई न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी ने भूजल खनन को बढ़ावा दिया है, जिससे भूजल की कमी हुई है।

भारत में कृषि का महत्व

यह कहना अनुचित नहीं है कि हम जो भोजन करते हैं वह कृषि गतिविधि का उपहार है और यह भारतीय किसान ही हैं जो हमें यह भोजन प्रदान करने के लिए पसीना बहाते हैं।

1)देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। 2)इसके लिए एक बड़े कार्यबल और कार्यबल की आवश्यकता होती है, जो सभी कर्मचारियों का 80% है। कृषि क्षेत्र न केवल प्रत्यक्ष बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी भी है। 3)हमारे सभी निर्यात का 70% कृषि है। 4)प्राथमिक निर्यात वस्तुएं चाय, कपास, कपड़ा, तम्बाकू, चीनी, जूट उत्पाद, मसाले, चावल और कई अन्य सामान हैं।

कृषि के प्रतिकूल प्रभाव

1. जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन.

कई प्राकृतिक और मानव निर्मित प्रणालियाँ वैश्विक ऊर्जा संतुलन और पृथ्वी के वातावरण में परिवर्तन को प्रभावित करती हैं। ग्रीनहाउस गैसें ऐसा ही एक तरीका है। ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी की सतह से निकलने वाली कुछ ऊर्जा को अवशोषित और छोड़ती हैं, जिससे निचले वातावरण में गर्मी बनी रहती है।

2. वनों की कटाई

वनोन्मूलन का अर्थ है कि वृक्षों को उनके लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिए स्थायी रूप से वन से हटा दिया जाता है। इसमें कृषि या चराई के लिए भूमि की सफाई या ईंधन, निर्माण या निर्माण के लिए लकड़ी का उपयोग शामिल हो सकता है।

3. जेनेटिक इंजीनियरिंग

जेनेटिक इंजीनियरिंग के उपयोग और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की अवधारणा ने कृषि जगत को कई लाभ पहुँचाए हैं। फसलों को रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी बनाकर, रोगों और कीटों से निपटने के लिए कम रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

4. मीठे पानी की आपूर्ति और सिंचित पानी

सिंचाई के लिए पानी के सबसे लगातार स्रोत नदियाँ, जलाशय और झीलें और भूजल हैं। सिंचाई की आवश्यकता वाले अंतराल पर पौधों को नियंत्रित पानी का उपयोग कृषि फसलों को बढ़ाने, भूस्खलन, शुष्क क्षेत्रों में अशांत मिट्टी के वनों की कटाई और औसत वर्षा के दौरान कम वर्षा में मदद करता है।

5. प्रदूषण और संदूषण

प्रदूषण का मतलब है कि पदार्थ पृष्ठभूमि से ऊपर या केंद्रित नहीं होना चाहिए। प्रदूषण आवासों पर प्रतिकूल जैविक प्रभाव पैदा कर सकता है। भारत में कुछ किसान चावल काटने के बाद अपने धान के खेतों को जला देते हैं। जिसके कारण अधिकांश निकटतम कस्बों और शहरों को वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।

6. मृदा क्षरण और भूमि उपयोग के मुद्दे

उपजाऊ भूमि की हानि से मृदा अपरदन का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे नदियों और नालों में प्रदूषण और अवसादन बढ़ गया है, जिससे इन जलमार्गों को अवरुद्ध करके मछली और अन्य प्रजातियों के कटाव हो रहे हैं। और यहाँ तक कि निम्नीकृत भूमि में भी अक्सर पानी समा सकता है, जिससे बाढ़ आ सकती है।

7. सामान्य अपशिष्ट

कृषि अपशिष्ट विभिन्न कृषि गतिविधियों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट है। इसमें खेतों, मुर्गियों के घरों और बूचड़खानों से खाद और अन्य अपशिष्ट शामिल हैं; फसल कूड़े; उर्वरक भाग- खेतों से दूर; कीटनाशक जो पानी, हवा या मिट्टी में प्रवेश करते हैं; और खेतों से नमक और गाद।

स्थानीय बुनियादी ढांचे, स्थानीय संसाधनों, मिट्टी की गुणवत्ता, सूक्ष्म जलवायु के कारण प्रत्येक राज्य अलग-अलग कृषि उत्पादकता पैदा करता है। सिंचाई के बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज, स्वच्छ खाद्य पैकेजिंग आदि में सुधार करके भारतीय किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है, ताकि स्थानीय किसान अपने उत्पादन और आय में सुधार कर सकें।

सरकार ने वर्षों से किसानों को कम लागत लागत और उच्च उत्पादन आय के साथ उनकी उपज बढ़ाने में मदद करने के लिए कई सुधारों की घोषणा की है। हाल ही में सरकार ने 2022 तक किसान की आय को दोगुना करने की घोषणा की है। ईकॉमर्स भी एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से किसान अपनी आय बढ़ाने और अपने उत्पाद के व्यापक बाजार को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।

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भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi

भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi

इस लेख में आप भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi पढ़ेंगे। इसमें हमने भारतीय कृषि प्रणाली क्या है, इसके प्रकार, लाभ-हानी, आर्थिक मजबूती, जल सुविधा, भविष्य की योजनाएं जैसी कई विषयों को सम्मिलित किया गया है।

Table of Content

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 50% से भी अधिक की आबादी अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि व्यवसाय पर निर्भर है। भारतीय कृषि प्रणाली दुनिया में सबसे अनोखी मानी जाती है। 

अंतरराष्ट्रीय खाद्य व्यवसाय मंच पर भारत को एक अलग नजर से देखा जाता है। यह इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकि यहां की मिट्टी उपजाऊ है, इसी वजह से अपनी अनोखी कृषि प्रणाली के कारण ही भारत दुनिया में सबसे  अच्छे गुणवत्ता तथा पोषण युक्त व उपजाऊ खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने के लिए प्रसिद्ध है।

समान्यतः सामाजिक, आर्थिक एवं भौगोलिक दृष्टि के अनुरूप खेती करने के लिए आवश्यक सामग्री के मिश्रण तथा जो विधि फसल उत्पादन में सहायक होती है, उसे कृषि प्रणाली कहा जाता है। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो ऐसी पद्धति जिसकी सहायता से कृषि कार्यक्रम की जाती है, उसे कृषि पद्धति अथवा प्रणाली कहा जा सकता है। यह एक प्रकार से कृषि उत्पादन से जुड़ी एक निर्णायक इकाई होती है। 

क्योंकि भारत आज भी गांवों में बसता है, जहां बड़ी मात्रा में खेती की जाती है। आमतौर पर इतनी विविधताओं से भरे होने के कारण कृषि प्रणालियां भी विभिन्न प्रकार की देखी जाती हैं। 

प्रत्येक प्रणाली का अपना अलग महत्व होता है। इसके अलावा कृषि मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे खेती के लिए उपयोगी तकनीकी साधनों में आवश्यक बदलाव लाए जाएंगे। 

भारतीय कृषि प्रणाली के प्रकार Types of Indian Agricultural System in Hindi

उत्पादन, स्वामित्व एवं भौगोलिक दृष्टि के आधार पर भारतीय कृषि प्रणाली को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया:

राजकीय खेती (State Farming)

जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है, कि ऐसी भूमि जो सरकार के अंतर्गत आती है। राजकीय खेती में जो प्रबंधन और नियमित कार्य किया जाता है, वह सरकारी कर्मचारियों द्वारा होता है। 

बीज की अच्छी गुणवत्ता नापने तथा उसे बढ़ाने एवं नए-नए अनुसंधान से जुड़ी खेती काम करने के लिए यह प्रणाली चलाई जाती है। 

किसानों को सरकार की तरफ से उच्च गुणवत्ता वाले  बीज, दवाइयां और जरूरी फर्टिलाइजर्स प्रदान करने के लिए ऐसे राजकीय खेती स्थापित किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान जैसे कई राज्यों में बड़ी मात्रा में राजकीय खेती चलाई जाती है।

पूँजीवादी खेती (Capitalistic Farming)

पूंजीवादी खेती यह बहुत हद तक पुराने जमींदारी खेती से मिलती जुलती है। खेती की इस प्रणाली में बड़े पूंजीपति कर्मचारियों को वेतन प्रदान करके उनसे खेती करवाते हैं। 

आमतौर पर या तो पूंजीवादी खेती सीधे सरकार के अधिग्रहण से पूंजी पतियों को प्रदान की जाती है, या फिर वह भूमि स्वयं खरीद कर अपने लाभ के लिए खेती करवाते हैं। 

आज के समय में पूंजीवादी खेती की इस प्रणाली का महत्व कम होता दिखाई दे रहा है। अधिकतर वाणिज्य फसलों के लिए पूंजीवादी खेती स्थापित की जाती है। 

निगमित खेती (Corporate Farming)

भारत के अलावा निगमित खेती अमेरिका जैसे कुछ पश्चिमी देशों में भी प्रचलित है। यह प्रणाली बहुत हद तक पूंजीवादी खेती की प्रणाली से मिलती-जुलती है। 

केवल पूंजीपतियों के स्थान पर दूसरी छोटी बड़ी इंडस्ट्रियल कंपनियां लाभ के लिए निगमित खेती करवाते हैं। भारत के कुछ निश्चित राज्य में ही निगमित खेती की प्रणाली प्रचलित है।

काश्तकारी खेती (Peasant Farming)

काश्तकारी खेती को व्यक्तिगत खेती भी कहा जाता है, जिसमें पूरे खेती का स्वामित्व केवल एक किसान के नाम ही होता है। काश्तकारी खेती के अंतर्गत कोई भी कृषक सीधे राज्य सरकार से संपर्क करने में सक्षम होता है।

सरल भाषा में कहा जाए तो केवल एक व्यक्ति निश्चित भूमि का मालिक होता है, जिसके पास खेत से जुड़े सभी अधिकार प्राप्त होते हैं। 

जमींदारी खेती की प्रणाली का अंत होने के बाद भारत में काश्तकारी अथवा व्यक्तिगत खेती एक प्रचलित भारतीय खेती प्रणाली है।

सामूहिक खेती (Collective Farming)

सामूहिक अथवा संयुक्त खेती में कृषकों की कुल संख्या दो या उससे अधिक भी हो सकती है, जो आपस में परस्पर संसाधनों की साझेदारी करके कृषि कार्य करते हैं तथा उससे होने वाले लाभ और हानि को भी अनुपात में बांटते हैं। 

इस प्रकार की खेती में साझेदारी करने से खेत का आकार भी बहुत बड़ा होता है, जिसमें अच्छे फसल का उत्पादन होने से अधिक लाभ होने की संभावना भी रहती है।

सहकारी खेती (Co-operative Farming)

जरूरत अनुसार जब कोई किसान अपनी पूंजी, श्रम और लागत लगाकर अपनी भूमि पर लाभ के उद्देश्य से सामूहिक रूप से खेती करता है, तो उसे सहकारी खेती कहते हैं। सहकारी खेती भारतीय कृषि प्रणाली में सबसे प्रचलित प्रणालियों में से एक माना जाता है। 

इसके अंतर्गत कई विभिन्न प्रकार की प्रणालियों का समावेश होता है, जिनमे सहकारी उन्नत खेती, सहकारी काश्तकारी खेती, सहकारी सामूहिक खेती और सहकारी संयुक्त खेती शामिल हैं।

कृषि यंत्रीकरण (Agricultural Mechanisation)

कृषि यंत्रीकरण का वास्ता ऐसी खेती प्रणाली से है, जिसमें तकनीकी एवं मशीनों की मदद से कृषि कार्य किया जाता है । सामान्यतः मानव और पशुओं के श्रम से जो खेती की जाती थी, उसे कृषि यंत्रीकरण की पद्धति से परिवर्तित करके आधुनिक खेती में बदला जाता है। 

भारतीय कृषि प्रणाली के लाभ और हानि Advantages and Disadvantages of Indian Farming System in Hindi

बेहतरीन कृषि प्रणाली अपनाकर भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा फसल उत्पादन करने वाला देश बन गया है। भारत, अमेरिका, ब्राजील और चाइना विश्व के ‘फूड प्रोड्यूसर सुपर पावर्स’ कहे जाते हैं। चलिए जानते हैं, कि भारतीय कृषि प्रणाली के अंतर्गत देश को कौन-कौन से लाभ हो रहे हैं।

  • दुनिया के सबसे बड़े फ़सल उत्पादकों में शामिल
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय खाद्यों का दबदबा
  • उन्नत कृषि प्रणाली अपनाकर लोगों को रोजगार प्राप्ति में सहायता
  • मूल्य में सस्ते और बेहतरीन गुणवत्ता वाले फसल उत्पादन
  • पूरे विश्व का पेट भरने में सक्षम भारतीय कृषि प्रणाली  
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्नों के आयात-निर्यात को प्रभावित करने की क्षमता
  • सबसे बड़े फसल उत्पादकों में से एक, लेकिन न्यूनतम फसल निर्यातक देश
  • भारतीय कृषि प्रणाली में आधुनिक कृषि उपयोगी तकनीकों की कमी
  • किसानों के लिए मौसमी रोजगार एक बड़ी समस्या
  • अनिश्चित जलवायु बदलाव से निपटने के लिए तकनीकों का अभाव

भारत में कृषि से आर्थिक मजबूती Economic Strength from Agriculture in India

यदि वैश्विक स्तर पर भारतीय कृषि की बात करें, तो हमारा देश एक अन्नदाता की तरह पूरी दुनिया की भूख मिटा रहा है। इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी में 9.2% की बढ़ोतरी केवल कृषि क्षेत्र के योगदान से दिखा। 

अर्थव्यवस्था मजबूत होने के कारण पूरे देश में लोगों को रोजगार के साधन मुहैया हुए हैं। भारत में कृषि क्षेत्र में होने वाले नए बदलाव और अवसर के चलते देश का गौरव दुनिया में और भी बढ़ा है। 

पहले की तुलना में अब किसानों को पैदावार फसलो से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। पहले मंडी में बिचौलियों के जरिए ही किसान अपनी फसलों को दूसरे राज्यों में भेज पाते थे। 

लेकिन सरकार की नई योजनाएं और नीतियों के तहत तमाम आर्थिक सहायता जरूरतमंद किसानों तक पहुंचाई जा रही है। पिछले कुछ दशकों में कृषि के क्षेत्र में बहुत बड़ा उछाल आया है। हरित क्रांति के पश्चात भारत अब इस क्षेत्र में भी विश्व का सबसे मजबूत राष्ट्र बनने के नक्शे कदम पर है।

भारतीय कृषि प्रणाली में जल सुविधा Water Facility in Agriculture System in India Hindi

कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई होती है। कृषि प्रधान देश होने के कारण आवश्यक सुविधाएं होने भी अति आवश्यक है। कृषि के लिए पानी की आपूर्ति करना प्राथमिक कार्य होता है।

इसके लिए भारत में कृषि प्रणाली विकास को गति देने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। पहले कृषि केवल वर्षा ऋतु पर ही आधारित होती थी। आधुनिक युग में बारिश के विकल्प में सिंचाई के लिए कई दूसरे रास्ते मौजूद है।

वर्तमान में भारत में कुल 18.5 करोड हेक्टेयर जमीन खेती करने के योग्य है। कुल खेती योग्य भूमि में वर्तमान में केवल 17.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर ही कृषि की जा रही है।

हमारे देश में मुख्य तौर पर किसान सिंचाई के लिए कुओं तथा भूमिगत जल पर निर्भर रहते हैं। क्योंकि भारत उष्णकटिबंधीय देश है, जिसके कारण उच्च तापमान के कारण वास्पीकरण भी बहुत अधिक होता है। 

लिहाजा खेती करने के लिए जल की पर्याप्त मात्र में आपूर्ति नहीं हो पाती है, तो इसके उपाय में कृतिम सिंचाई ही एकलौता मार्ग बचता है। ज्यादातर जलाशयों की सहायता से जल की आपूर्ति की जाती है  वह प्राकृतिक होते हैं, इसलिए किसान इन्हें बिना अधिक पैसे खर्च किए भी स्वयं बना सकते हैं। 

इससे जल की सुविधा नियमित रूप से मिलती रहती है। भारत में सिंचाई के मुख्य स्रोत में सबसे अधिक उपयोग ट्यूबवेल से होता है। 

लगभग 45% से भी अधिक खेती करने के लिए ट्यूबवेल तकनीक का प्रयोग किया जाता है, इसके पश्चात कुओं से जल सिंचाई की प्रणाली भी भारत में प्रसिद्ध है। कुल उत्पादन में लगभग 19% से अधिक सिंचाई करने के लिए कुओं की सहायता ली जाती है। 

भारत में सबसे अधिक लगभग कुल में से 28% कुओं द्वारा सिंचाई करने की प्रणाली उत्तर प्रदेश में अपनाई जाती है। इसके पश्चात राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे कई स्थानों पर भी यह लोकप्रिय सिंचाई प्रणाली है।

भारतीय कृषि प्रणाली में नहर सिंचाई प्रणाली का समावेश भी होता है। सरकार द्वारा बनाए जाने वाले नदियों पर तमाम परियोजनाओं के जलाशय से बड़े और महत्वपूर्ण नहरों को सीधे पानी पहुंचाया जाता है। यह जल स्त्रोत किसानों को सिंचाई करने में बेहद मददगार होते हैं। 

इसके अलावा देश की सरकार किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए समय-समय पर कई नए सौगात देती रहती है और परियोजनाओं की सहायता से किसानों को लाभ पहुंचाने का काम करती है।

कृषि के लिए भारत सरकार की योजनाएं Govt. Yojanas For Krishi Development

हम सभी जानते हैं, कि भारत में लगभग 60% से भी ज्यादा जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि पर आश्रित हैं। इसके अलावा कृषि अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान भी देता है। 

ऐसे में सरकार कृषि के लिए समय-समय पर नई योजनाएं संचालित करती रहती है, जिससे देशभर में किसानों को उनकी समस्याओं का निदान तथा परियोजनाओं का सही लाभ मिल सके। चलिए जानते हैं, कि अब तक कृषि के लिए भारत सरकार ने किस प्रकार की महत्वपूर्ण योजनाओं का संचालन किया है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पुणे: वर्ष 2018 में शुरू की गई यह योजना भारत सरकार के सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है। इस योजना के तहत किसानों को आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: 18 फरवरी 2016 में यह योजना संचालन में आई थी। अनिश्चित वातावरण के कारण अक्सर किसानों की फसलें तेज बारिश, आंधी, तूफान और कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो जाती हैं, ऐसे में किसानों की साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल जाती है। 

ऐसी समस्याओं के कारण किसान कई बार आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी समस्या का निराकरण करने के लिए यह योजना बनाई है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना: वर्ष 1998 में भारत सरकार ने यह योजना अस्तित्व में लाई थी, जिसका उद्देश्य किसानों को क्रेडिट कार्ड की मदद से पर्याप्त मात्रा में लोन उपलब्ध करवाना था। 

इस धनराशि से किसान आवश्यक बीज, कीटनाशक दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें खरीद सके इसके लिए यह योजना बहुत ही लाभकारी है।

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना: यह योजना किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक है। केंद्र सरकार किसानों को पेंशन योजना प्रदान कर रही है। 

इसके अंतर्गत 60 वर्ष की आयु के बाद किसानों को न्यूनतम ₹3000 पेंशन के रूप में प्रदान किए जाएंगे। लगभग ₹200 प्रति माह इकट्ठा करने के बाद 60 वर्ष के बाद यदि किसी कारणवश किसान की मृत्यु हो जाती है, तो 50% एक्स्ट्रा धनराशि को उसके परिवार वालों को प्रदान कर दिया जाएगा।

यह थी कुछ सबसे महत्वपूर्ण कृषि योजनाएं इनके अलावा स्मान किसान योजना, पीएम कुसुम योजना, डेयरी उद्यमिता विकास योजना, पशुधन बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना , राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन योजना,  स्वायल हेल्थ कार्ड योजना और जैविक खेती योजना की तरह ढेरों ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें केंद्र सरकार के जरिए किसानों को प्रत्यक्ष लाभ मिलता है।

भारतीय कृषि के लिए भविष्य की योजनाएं Future Plans for Agriculture System in India in Hindi

कृषि क्षेत्र को केवल सकल घरेलू उत्पाद से जोड़कर ही नहीं देखना चाहिए। यह तो केवल एक क्षेत्र है, जो अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है, लेकिन यदि कृषि क्षेत्र में जरूरी बदलाव और स्थिरता ना लाई गई, तो इससे देश के अधिकतर औद्योगिकी इकाइयां डगमगा सकती हैं। 

उदाहरण स्वरूप लघु व ग्रामीण उद्योग, वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग जैसे कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें कृषि क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

भारतीय कृषि के लिए भविष्य की योजनाएं बनाना और उसे पूरे देश में संचालित करना जरूरी है। केंद्र सरकार किसानों की चुनौतियां को देखकर भविष्य में आने वाली योजनाओं कि समझ लेती हैं। 

हालाकी सरकार ने मौसम की अनियमितता से किसानों को राहत पहुंचाने के लिए योजनाएं तो कई सारी बनाई है, लेकिन तब भी भारी बारिश, बाढ़ अकाल तथा ऐसे कई कारणों से किसानों का ही नुकसान होता है। इस समस्या के निराकरण के लिए भारत सरकार भविष्य में कई योजनाएं ला सकती है।

इसके अलावा कृषि के साथ ही डेयरी उद्योग को भी बढ़-चढ़कर बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार की तरफ से सिंचाई के लिए नई नई परियोजनाएं बनाए जा रहे हैं। 

महत्वपूर्ण नदी घाटी परियोजनाओं की सहायता से सिंचाई योग्य आवश्यक जल सुविधा पहुंचाने के साथ ही तकनीकी में काम आने वाले इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करके किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। 

केंद्र सरकार के अधीन कृषि मंत्रालय समय-समय पर नई योजनाओं के विषय में लोगों को स्वयं सूचित करती रहती है।

2 thoughts on “भारतीय कृषि प्रणाली पर निबंध Essay on Indian Agricultural System in Hindi”

परिचय लाभ और हानि आर्थिक मजबूती जल सुविधा कृषि के प्रकार इत्यादि ये सब में लाइन से पोस्ट कीजिए

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कृषि पर निबंध

Essay on Agriculture in Hindi

कृषि पर निबंध : Essay on Agriculture in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘कृषि पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है। यदि आप कृषि पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

कृषि पर निबंध : Essay on Agriculture in Hindi

प्रस्तावना :-

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जहाँ ज्यादातर लोग कृषि को ही अपनी आजीविका के रूप में करते है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। इतने विकास और परिवर्तन के बाद भी भारत में कृषि एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है।

कृषि बहुत ही आवश्यक होती है। इसी से ही हमें भोजन की प्राप्ति होती है। कृषि के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। कृषि हम सभी के आहार का एक मुख्य स्रोत है। इसी से इंसानों और जानवरों के लिए खाना प्राप्त होता है।

कृषि का महत्व :-

कृषि का हम सभी के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसी से हमें अनाज व सब्जियां प्राप्त होती है। यह इंसानों के खाने के साथ-साथ जानवरों को भी चारा प्रदान करता है। कृषि इस प्रकृति द्वारा हमें दिया गया एक वरदान है।

हम अपने भोजन के लिए पूरी तरह इस कृषि पर ही निर्भर है। कृषि हमें खाने की आवश्यकता की पूर्ति के आलावा हमारे शरीर को ढकने के लिए कपड़ें की आवश्यकता की भी पूर्ति करती है।

इससे हमें कपड़ें बनाने के लिए कपास भी मिलता है और जुट भी इसी से प्राप्त होता है। यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। देश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कृषि पर ही निर्भर है।

कृषि में समस्या :-

  • ज्ञान की कमी :- कृषि के लिए हमें कृषि से सम्बन्धित सभी जानकारियों का पता होना चाहिए। यदि हमें इनकी पूरी तरह जानकारी नहीं है, तो सम्पूर्ण खेती ख़राब हो सकती है। खेती करने से पहले उसके बारे में आवश्यक जानकारियाँ एकत्रित करना बहुत जरुरी है।
  • जलवायु की समस्या :- भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर जलवायु समय-समय पर बदलती रहती है। कभी तापमान बहुत अधिक हो जाता है, तो कभी वर्षा बहुत कम या बहुत ज्यादा और कभी ठण्ड काफी हो जाती है। यें सभी फसलों के लिए हानिकारक है। जलवायु के इन परिवर्तनों से कईं बार फ़सलें ख़राब भी हो जाती है। ऐसे समय में कृषि करने में काफी समस्यायों और इसके नुकसानों को भी झेलना पड़ता है।
  • जागरूकता की कमी :- आज विकास के साथ कृषि के ऐसे तरीके आ गए है, जिनसे हम आसानी से खेती कर सकते है और अधिक फसलें भी ऊगा सकते है। लेकिन इसके लिए जागरूकता का होना अतिआवश्यक है। आज आधुनिक तकनीक से दुनियाभर में कृषि करना काफी सरल हो गया है। लेकिन, भारत में आज भी ज्यादातर किसानों के पास आधुनिक साधन नहीं है। वें आज भी पुराने तरीके से ही खेती कर रहे है। जिससे उन्हें फायदा कम होता है।
  • रासायनिक खाद का प्रयोग :- आजकल फसलों को कीड़ो से बचाने के लिए किसान रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे है। यह उस धरती के लिए ही नहीं बल्कि, मनुष्य के लिए भी घातक होता है। यदि किसान इनका उपयोग न करें तो उनकी फसलों की कीड़े खा जाते है। जिससे उन्हें कईं समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • सिंचाई की समस्या :- कृषि को करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। इसलिए, खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। जिन जगहों पर पानी की समस्या होती है। वहां खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था करना काफी मुश्किल होता है। खेती के लिए सिंचाई सबसे महत्वपूर्ण होती है।
  • औजारों की कमी :- कईं किसान इतने गरीब होते है कि वें खेती के लिए आवश्यक औजार व बीज भी नहीं खरीद पाते है। जिनके बिना खेती करना मुमकिन नहीं है।

कृषि के प्रभाव :-

कृषि के दोनों प्रकार के प्रभाव निम्नलिखित है:-

सकारात्मक प्रभाव :-

  • भोजन प्राप्ति :- कृषि से हम सभी को जीने के लिए भोजन प्राप्त होता है। यह हमें जीवित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे जानवरों के लिए भी भोजन प्राप्त करता है। इसी से हमें सब्जियां व अनाज प्राप्त होते है।
  • कपड़े की प्राप्ति :- खेती से ही हमें कपास व जुट जैसी वस्तुएँ प्राप्त होती है। जो कपड़े बनाने में सहायक होती है। हमें कपडें के लिए भी सिंचाई पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
  • ठंडा वातावरण :- जिस स्थान पर खेती होती है, उस स्थान का वातावरण काफी ठंडा हो जाता है। क्योंकि, खेती में बार-बार सिंचाई की जाती है। इससे आसपास की जगह भी ठंडी हो जाती है।

नकारात्मक प्रभाव :-

  • मृदा प्रदूषण :- आजकल कृषि में फसल को कीड़ों से बचाने के लिए रसायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है, जो कि मृदा के लिए हानिकारक होती है। इससे मृदा प्रदूषण बढ़ता है।
  • जंगलों की कटाई :- कईं बार खेती की जगह बनाने के लिए लोग जंगलों को काट देते है, जिससे इस प्रकृति को भी काफी नुकसान होता है। जंगलों की कटाई करना इसका एक बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव है।
  • वायु प्रदूषण :- कईं जगह फसलों को उगने के बाद उनकी कटाई की जाती है। कटाई के बाद जो कचरा बचता है उसे किसान जला देते है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। जिससे आसपास की जगह का तापमान भी बढ़ता है।

कृषि एक बड़ा ही आवश्यक व्यवसाय है। यह भारत में कईं लोगों को रोजगार भी प्रदान करता है और इस देश की अर्थव्यवस्थ में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है।

यह कृषि हम सभी को जीवित रहने के लिए आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करती है। आज समय बदलने के साथ ही हमें कृषि के विकास के लिए भी आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है।

कृषि के लिए हमें आधुनिक तकनीकी का इस्तमाल करने की आवश्यकता है। इससे किसानों को मेहनत भी कम करनी पड़ेगी और उन्हें लाभ भी अधिक होगा।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

अगर इस लेख के द्वारा आपको किसी भी प्रकार की जानकारी पसंद आई हो तो, इस लेख को अपने मित्रों व परिजनों के साथ  फेसबुक  पर साझा अवश्य करें और हमारे  वेबसाइट  को सबस्क्राइब कर ले।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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Essay on the Indian Agriculture | Hindi

agriculture essay in hindi

Here is an essay on the Indian agriculture system especially written for school and college students in Hindi language.

भारतीय व्यवस्था की रीढ कहे जाने वाले किसान और मजदूर जिनके विषय में ऐसे कोई कानून नहीं है जो देश की किस्मत को बनाने, जो देश के महलों को बनाने वाले, जो इस देश के किसानों के बल पर अपना चूल्हा जलाते हैं जो इस देश के मजदूरों के बल पर अपनी इमारत बनाते हैं अपनी कम्पनी, कारखानों में उत्पादन कराते हैं जिन किसानों के बल पर भारत देश कृषि प्रधान देश कहलाता है लेकिन विड़म्बना इस देश की कही जा सकती है कि इस देश के किसानों को रक्षित करने के लिए तो कोई कानून आज आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी नहीं बन पाया है जबकि इस देश के नीतिकार उन किसानों द्वारा उगाये गये अनाज से ही अपना पेट भरते हैं ।

लेकिन क्षणिक भी विचार इन नीतिकारों को नहीं आता कि जिस अनाज को किसान उगाकर आपके महलों तक पहुंचाते हैं उन किसानों के विषय में कोई कानून बनाया जाना चाहिए अफसोस है देश की नीतियों पर और देश के नीतिकारों पर और धन्य है भारतीय व्यवस्था जो कमाये कोई और खाये कोई और, लेकिन कम से कम इतना तो नीतिकारों को सोचना ही चाहिए था कि इस देश के अन्नदाताओं को भी कोई कानून होना चाहिए था जो इस देश के अन्नदाता कानून की सुरक्षा में अपना व अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे ढंग से कर सकते लेकिन शुक्र हो भारतीय व्यवस्था का और उससे भी अधिक शुक्रगुजार है भारतीय नीतिकारों का जो किसी का भी ध्यान भारतीय कृषि पर नहीं गया ।

जबकि समस्त दुनिया जानती है कि भारत एक कृषि प्रधानदेश है लेकिन हो सकता है ये बहुत ही कम लोग जानते हों कि भारत बेशक कृषि प्रधान देश है लेकिन भारत में कृषि के प्रोत्साहन या लाभ के लिए क्या-क्या कार्य सरकार द्वारा किये गये उनका विवरण तो मिलना बहुत ही कठिन है आज आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी भारतीय किसान का भविष्य असुरक्षित है ।

तभी तो वर्तमान समय में किसान परिवारों के युवक-युवतियां कृषि पर ध्यान न देकर फैक्ट्रीयों में मजदूरी करना पसंद करते हैं लेकिन धन्य हो भारतीय व्यवस्था का कि वहां पर भी मजदूरों के लिए कानून तो बहुत कुछ हैं लेकिन उनका पालन होना तो मुश्किल ही नहीं असंभव सा है । अधिकतर फैक्ट्रीयों में श्रम कानूनों का उल्लंघन आम बात है ।

अर्थात भारतीय व्यवस्था को आगे बढाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले किसान और मजदूर ही इस देशमें असुरक्षित हैं अन्यथा इस देश के किसान परिवारों के युवक-युवतियां कृषि आधारित पढाई ही करते । कृषि में और अधिक शोध विशेषज्ञता हासिल करते और अपने परिवारों की पुश्तैनी जमीन पर अधिक उपयोगी कृषि कर आधुनिक किसान कहलवाना पसंद करते न कि फैक्ट्रीयों में मजदूरी कर अपनी उदरपूर्ति करते ।

लेकिन यह तभी सम्भव होता जब देश की नीतियां किसानों के हित में बनायी जाती और हरित क्रांति के साथ शुरू हुई कृषि क्रांति को आगे बढ़ाते लेकिन दुर्भाग्य इस देश के किसानों का कि आज तक कोई ऐसे कानून नहीं बन पाये जो इस देश के किसानों का हित कर सके ।

देश के नीतिकार सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी किसान हितों की भाषणबाजी करते हैं और चुनाव जीत जाते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद फिर किसी भी नीतिकार को किसानहित दिखायी नहीं देते हैं बल्कि किसानों की मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा कृषि मंडियों में बैठे कमीशन ऐजेंट कृषि फसलों की बिक्री के समय प्राप्त करते हैं और बेचारा किसान अपने आपको ठगा सा महसूस करता है ।

जबकि दुनिया की किसी भी वस्तु के उत्पादनकर्ता अपनी वस्तु की कीमत स्वयं तय करते हैं लेकिन भारतवर्ष में केवल किसान ही एकमात्र ऐसा उत्पादनकर्ता है जो अपनी उत्पादित वस्तु (फसल) का मूल्य स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता क्योंकि भारत देश में यदि सर्वाधिक असुरक्षित कोई वर्ग है तो वह है किसान, मजदूर वर्ग ।

ADVERTISEMENTS:

मजदूर वर्ग के लिए वैसे कानून तो बने हुए हैं लेकिन उनका पालन कराना सरकार के बूते की बात नहीं है क्योंकि देश में एक ऐसा वर्ग पनप आया है जिन पर नियंत्रण करना तो दूर उन तक पहुंचना भी टेढी खीर है और यदि पहुंच भी गये तो कार्यवाही करने के विषय में विचार करना भी बेईमानी होगा ।

भारतवर्ष का किसान वर्तमान समय में राजनेताओं की नेतागिरी करने का एकमात्र माध्यम बन गया है जिनके बल पर अच्छी खासी राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है । समाधान नहीं सूझ रहा केवल विरोध कर रहे हैं क्योंकि विरोध करना विपक्षी दलों का राजनीतिक कर्त्तव्य है ।

उ॰प्र॰ विधान सभा चुनावों से पहले देश के एक राष्ट्रीय नेता द्वारा पश्चिमी उ॰प्र॰ में किसानों के नाम पर अच्छी खासी राजनीति, जमीन अधिगृहण को लेकर की गयी । काफी हल्ला हुआ कई किसान घायल हुए कुछ के विरूध मुकदमें पंजीकृत हुए कई घर से बेघर हो गये समस्त पश्चिमी उ॰प्र॰ एक दिन के लिए रूक सा गया । लेकिन कोई स्थायी समाधान आज तक नहीं हुआ ।

ऐसे ही एक और आन्दोलन की जमीन तैयार करने में देश प्रदेश के कुछ नेता लगे जिनका एकमात्र उद्देश्य विरोध करना है कुछ समय पहले उ॰प्र॰ सरकार द्वारा घोषित महत्वाकांक्षी परियोजना गंगा एक्सप्रेस वे के विषय में देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा यह कहना हास्यप्रद लगा है कि 40,000 करोड़ रूपये को इस परियोजना में लगाने के स्थान पर किसानों की फसल व सिंचाई में लगाया जाये तो अधिक अनाज का उत्पादन होगा और प्रदेश दूसरे प्रदेशों से आगे निकल जायेगा ।

पता नहीं क्यों ऐसे नेता ऐसी योजनाओं के लाभ-हानि का गणित लगाने के स्थान पर अपनी राजनीति का गणित लगाकर मुददे तलाशते रहते हैं । परियोजना का अपना अलग महत्व है अगर समझा जाये तो उक्त गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना से समस्त उ॰प्र एक परिवार की तरह बध जायेगा उसमें बताया जा रहा है कि दिल्ली से इलाहाबद की दूरी मात्र छ: घंटे में सम्भव हो जायेगी ।

तो एक्सप्रेस वे के आस पास उद्योगों, रिहायशी कालोनियों, शिक्षण संस्थानों आदि की प्रबल सम्भावनाएं होंगी जिससे उ॰प्र॰ के पूर्वोत्तर जिलों से लोगों को रोजगार के लिए दिल्ली, नोएडा नहीं भागना पड़ेगा और उनको अपने पास ही रोजगार मिल सकेगा ।

तो क्या उक्त परियोजना किसान विरोधी होगी जब एक्सप्रेस वे के पास इंजीनियरिंग कालिज, मेडिकल कालेज, मैनेजमेन्ट कालेज व उद्योग लग सकेगें और उनका लाभ किसानों के बच्चों को भी मिलेगा । रही बात किसानों की जमीन छीनने की तो जमीन के बदले उनको वाजिब मुआवजा भी मिलेगा और एक किसान को क्या आमदनी इन खेतों से होती है इसका अंदाजा तो केवल किसान ही लगा सकता है नेता नहीं, दो हैक्टैयर जमीन पर खेती करने वाला किसान जो एन.सी.आर क्षेत्र में रहता है बैंक का लाखों रूपये का कर्जदार है पूर्वोत्तर या असिंचित क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों की तो हालत ही क्या होगी ।

इसका तो केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं कि जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र किसान परिवारों के बच्चे अब खेती छोड़कर फैक्ट्रीयों में मजदूरी करना पसंद करते हैं । बेशक कहा जाये कि भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन आंकड़े और सच्चाई कुछ अलग ही बयां करती है ।

वर्तमान में छोटे किसानों का खेती करना केवल मजबूरी वश हैं कि वो और कुछ कर ही नहीं सकते वरना खेती करना अब केवल घाटे का सौदा है आज का जागरूक युवा वर्ग खेती करना बिल्कुल नापसंद करता     है । एन.सी.आर. के एक गांव के शत प्रतिशत किसानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि वो केवल इस कारण परम्परागत खेती कर रहे हैं कि वो और कुछ कर नहीं सकते हैं वरना अब इस खेती में कुछ नहीं बचता है । तो क्या ऐसे किसानों के नाम पर राजनीति करना जो स्वयं खेती करना मजबूरी मानते हैं ? उचित है ।

अगर ऐसे किसानों के नाम पर आंदोलन करना है तो उनकी फसल का ऊंचा मूल्य दिलाने के लिए आंदोलन करो, उनकी परम्परागत खेती के स्थान पर आधुनिक औषधिय खेती, फूलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए आंदोलन करो उनको सस्ती दर पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज दिलाने के लिए आंदोलन करो, उनको सस्ती दर पर रसायनिक खाद दिलाने के लिए आंदोलन करो, उनके बच्चों को आधुनिक इंगलिस मीडियम शिक्षा दिलाने के लिए आंदोलन करो उनको सस्ती से सस्ती दर पर ऋण दिलाने के लिए आंदोलन करो न कि केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए ओर जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ।

ऐसा करते रहने से हम कदापि विश्व महाशक्ति नहीं बन पायेंगे और सदैव दूसरे राष्ट्रों की ओर मुंह ताकते रहेगें । इस देश के अन्नदाता की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का यदि आंकलन किया जाये तो पाया जाता है कि किसी किसान ने यदि कोई छोटा सा भी ऋण बैंक से ले लिया तो उसे भी चुकाने के लिए जमीनें बेंचनी पड़ती है और यदि कोई ऋण शाहूकार से ले लिया तो उसको तो चुकाते-चुकाते सम्पूर्ण जीवन ही निकल जाता है लेकिन ऋण चुकता नहीं हो पाता और अन्तत: किसान आत्महत्या करने को विवश हो जाता है तो क्या हम कह सकते हैं कि भारतवर्ष में किसानहित सुरक्षित है कदापि नहीं विश्व के अन्य देशों में किसानों को खाद्य, बीज, बिजली पानी में तो रियायत मिलती ही है साथ ही वहां की सरकारें किसानों से फसलों को ऊंचे दामों में खरीदकर जनता के लिए रियायत दर पर उपलब्ध कराती है ताकि उस देश का किसान आर्थिक रूप से कमजोर न हो ।

वहां की सरकारें किसानों के हितों को सर्वोपरी मानती है लेकिन भारतवर्ष के सम्बन्ध में यदि देखा जाये तो यहां का किसान आपको फटे हाल मिल जायेगा उसके पैरों में न तो जूते-चप्पल होंगी न ही साफ-सुथरें कपड़े । केवल एक धोती और एक ही कुर्ता कच्चा मकान, खेतों की जुताई करने के लिए दो बैल चारा काटने के लिए एक ही हाथ से चलाने वाली मशीन, यही भारतीय किसान की तकदीर है ।

यदि कोई ऋण किसान ने ले लिया तो उसके ऐवज में उठायी गई फसल शाहूकार ले जाता है और भारतीय किसान अपने मुकद्‌दर को कोसता हुआ अपनी जिंदगी की गाडी को यू ही धकेलता रहता है और जब गाडी को धकेलने की सामर्थ्य समाप्त हो जाती है तब अपने जीवन का अंत कर इस दुनिया से अलविदा हो जाता है ।

उक्त परिस्थिति के लिए हम किसको जिम्मेदार ठहरायेंगे । उस किसान को या उस किसान की परिस्थिति को या किसान के प्रबन्धन को या देश की सरकारों को या प्रदेश की सरकारों को । क्योंकि कुछ न कछ और कहीं न कहीं तो त्रुटि है अन्यथा अमीरों के पेट के लिए अन्न उत्पन्न करने वाला किसान स्वयं गरीब नहीं होता ।

वास्तविकता यह है कि वर्तमान समय किसानों के लिए अनुकूल नहीं है । अब किसानों के पशुपालन की ही बात करें तो एक भैंस की कीमत आमतौर पर पचास हजार रूपये है जो प्रतिदिन दस किलो दूध देती है यदि कोई किसान एक भैंस भी कर्ज लेकर खरीदता है तो उस कर्ज को चुकाने में भी तीन वर्ष का समय लग जाता है और यदि भैंस बीमार हो गई या मर गई तो निश्चित रूप से जमीन बेचकर ही कर्जा चुकता होता है और भैंस के दूध का आंकड़ा लगाया जाए तो चौकाने वाले तथ्य उजागर होते हैं एक किसान अपने दूध की वास्तविक कीमत भी वसूल नहीं कर पाता ।

अपनी फसल की वास्तविक कीमत के लिए भी उसको मन मशोशकर ही रहना पड़ता है जिसके लिए उत्तरदायी है भारतीय कानून, जो किसानों के लिए तो बिल्कुल ही मौन है या यूं कहा जा सकता है कि भारतीय नीतिकार किसानों के हित की बात करना अपनी शान के विरूद्ध समझते हैं । इस देश के किसान कभी आत्महत्या नहीं करता यदि इस देश की कृषि नीति किसान हितों के विपरीत नहीं होती ।

निम्नांकित विवरणे से किसानहित उजागर होता है :

फसल सम्बन्धी विवरण धान के सम्बन्ध में प्रति हैक्टेअर:

बीज पौध तैयारी- 1000 रू॰, मजदूरी पौध लगाई- 5000 रू॰, खाद- 5000 रू॰, जुताई लागत- 4000 रू॰, पानी- 10,000 रू॰, कीटनाशक- 500 रू॰, मजदूरी फसल कटाई- 5000 रू॰, किराया फसल का मंडी तक पहुंचाना- 500 रू॰, अनुमानित उत्पादन- 40 क्विंटल,

बिक्री = 4 x 900 = 3600 रूपये

लागत- 31000, बिक्री- 36000, लाभ- 5000 रू॰

फसल सम्बंधी विवरण गेंहू के सम्बन्ध में प्रति हैक्टेयर:

बीज- 2700 रू॰, जुताई लागत- 5000 रू॰ खाद- 4000 रू॰, पानी- 4000 रू॰, कीटनाशक- 500 रू॰, मजदूरी फसल कटाई- 5500 रू॰, फसल थ्रेशर निकासी-

6000 रू॰, किराया- 500 रू॰, अनुमानित उत्पादन- 36 क्विंटल, बिक्री- 36000

लागत = 28200 – बिक्री 31600 लाभ – 3400

दूध उत्पादन सम्बन्धी विवरण प्रति पशु / प्रतिदिन:

पशु कीमत – 50000 रू॰, पशु कीमत ब्याज- 1500 प्रति माह, चारा 10 किग्राम-50 रूपये, खल 10 किलोग्राम = 150 रूपये, बिक्री / किलो- 20 रू॰ बिक्री से आय- 200

लागत प्रतिदिन- 250, आय- 200, हानि- 50 प्रतिदिन

भारतीय कृषि व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा तो उपयुक्त आंकड़ों से ही हो जाता है जिनसे पता चलता है कि भारतवर्ष कृषि प्रधान देश होने के बाद भी कृषि कितना लाभ का व्यवसाय है ।

इतना अवश्य है कि कृषि बेशक लाभ का व्यवसाय न हो लेकिन कृषि व पशुपालन से जुड़े लोगों को मनरेगा जैसी योजनाओं से जुड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कृषि में कम से कम उनकी मजदूरी तो निकल ही आती है । माना कि कोई लाभ न हो लेकिन मजदूरी तो निकल ही जाती है ।

उपरोक्त स्थिति से पता चलता है कि भारतीय कृषि व्यवस्था विश्व की सबसे अव्यवस्थित कृषि व्यवस्था है जिसमें न तो किसान का हित सुरक्षित है और न ही कृषि से जुड़े मजदूरों का क्योंकि भारतीय किसान ने यदि किसी वर्ष आलू अधिक उगा लिया तो सम्भव है उस वर्ष आलू सर्वाधिक कम दर पर बाजार में उपलब्ध है और किसी वर्ष यदि आलू की पैदावार कम हुई या बुवाई कम हुई तो निश्चित ही उस वर्ष दर बहुत अधिक होगी । ऐसी भिन्नता क्यों ? इस भिन्नता के लिए कौन जिम्मेदार है ।

भारतीय कृषि व्यवस्था ही तो है जो किसी भी फसल का मूल्य बुवाई से पहले निर्धारित नहीं करती जिसका नुकसान भुगतना पड़ता है भारतीय किसानों को यदि प्रत्येक वर्ष किसी भी फसल का मूल्य उसकी बुवाई से पहले निर्धारित कर दिया जाए तो निश्चित ही इस देश के किसानों को उसका लाभ मिलेगा साथ ही मूल्य निर्धारण करने मे किसानों की भी भागीदारी हो और मंडियों में कमीशन एजेन्टों के स्थान पर सीधे सरकार किसानों से अनाज खरीदे ।

दूध के विषय  में जो सत्यता है वह भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है जिसमे पशुपालक और ग्राहक के बीच का अन्तर भी चौकाने वाला है । पशुपालक से शुद्ध दूध दूधिया द्वारा बीरन रूपये प्रति किलो खरीदा जाता है लेकिन उसी दूध में पानी मिलाकर दूधिया ग्राहक को तीस रूपये  में बेच रहा है इतना भारी अन्तर दूध उत्पादक और पशुपालक के बीच है तो क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि इस देश का किसान पशुपालक लाभ का व्यवसाय कर रहा है और वह कृषि व पशुपालन के व्यवसाय में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है कदापि नहीं ।

भारतीय कृषि व्यवस्था से आजिज आकर अब भारतीय किसान कृषि व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसायों में लग रहे हैं न तो भारतीय कृषि व्यवस्था किसानों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर पा रही है और न ही उनका भविष्य सुरक्षित कर पा रही है तभी तो किसानों का खेती से मोहभंग हो रहा है और वे अन्य व्यवसायों की ओर रूख कर रहे हैं जो किसान व्यवसाय करने की स्थिति में है वे तो अन्य व्यवसाय कर रहे हैं और जो कोई दूसरा व्यवसाय नहीं कर सकते वे मजदूरी कर रहे हैं ये स्थिति वर्तमान भारत में किसानों की है जिसके लिए जिम्मेदार है भारतीय कृषि नीति और देश के नीतिकार, जो देश की पिच्छेत्तर प्रतिशत आबादी की जीविका के साधन और देश की जी॰डी॰पी॰ में समुचित भागीदारी रखने वाले कृषि क्षेत्र जो देश की आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी आज अपने आपको असहाय व असुरक्षित पाता है साथ ही पाता है अपने आपको कमीशन एजेन्टों से घिरा हुआ जो कृषि मंडियों में तैनात हैं और किसानों की फसलों का एक हिरसा उनकी तिजोरियों में जाता है । लेकिन बेचारा किसान करे भी तो क्या ? जब देश की कृषि नीति ही ऐसी है ।

भारतीय किसान कर्ज से दबा हुआ है किसानों की यह स्थिति किसी राज्य विशेष में नहीं है बल्कि ऐसी स्थिति समस्त भारतवर्ष में है वह उत्तर प्रदेश का विशेष क्षेत्र बुन्देलखण्ड हो या महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र जहा किसानों की स्थिति दयनीय लै ऐसा नहीं है कि उक्त दोनों क्षेत्रों के अलावा भारतीय किसान सम्पन्न समृद्ध और खुशहाल हैं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय किसान दरिद्रता, गरीबी, भुखमरी, कर्जदार जैसी गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हैं लेकिन फिर भी अपना जीवन जी रहे हैं जो ऐसे जीवन को जीने में थकान महसूस करते हैं वे अपनी इह लीला समाप्त कर दुनिया से रूखसत हो जाते हैं ।

भारतवर्ष में किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ स्थानों पर सुधार आ रहा है जहां उनकी जमीनों का अधिग्रहण कर विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस.ई.जेड.) बनाकर औद्योगिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन अज्ञानता, अशिक्षा व दूरद्रष्टिता के अभाव में ऐसे किसानों की स्थिति पहले से भी बदतर होती जा रही है क्योंकि सरकारें जमीन का अधिग्रहण कर अच्छा खासा मुआवजा भी दे रही हैं लेकिन किसानों को कुछ व्यवसाय करने, भविष्य की योजना बनाने या कोई व्यवसायिक प्रशिक्षण देने का कार्य सरकारें नहीं कर रही हैं जबकि यहां सरकारों का नैतिक व सामाजिक कर्तव्य बनता था कि वह अशिक्षित व गरीब किसानो को भविष्य के सपने दिखाकर कुछ व्यवसाय करने का प्रशिक्षण दिलाती और मुआवजे में मिलने वाली भारी भरकम राशि को उचित स्थान पर उचित व्यवसाय में लगाया जाता ताकि उन किसानों की स्थिति बद से बदतर ना होती ।

उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर का ग्रेटर नोएडा क्षेत्र को ही ले जहाँ एक-एक किसान को कम से कम दो-दो करोड़ रूपये तक जमीन के मुआवजे के रूप में मिले लेकिन अशिक्षा, अज्ञानता व सरकार के सही दिशा निर्देश के न होने के कारण किसानों द्वारा करोड़ों रूपये का दुरूपयोग किया गया और जिसके परिणाम स्वरूप उन किसानों की स्थिति बद से बदतर हो गई । माना किसी किसान को एक करोड़ रूपये मुआवजा मिला तो उसने किस प्रकार उस पैसे को खर्च किया :

लकजरी गाडी – पन्द्रह लाख

कोठी – पचास लाख

लड़की की शादी – बीस लाख

पुराना कर्ज – लगभग आठ लाख

अन्य खर्च लकजरी सामान – तीन लाख

एक साल का खर्च (शराब आदि) – लगभग चार लाख

एक करोड़ प्राप्त – एक करोड खर्च

जितना पैसा किसान को मिला उतना ही उसने खर्च कर दिया अब वह पहले जैसा भी न रहा तो क्या हम आशा कर सकते हैं कि वह किसान अपना बाकी जीवन अच्छे से व्यतीत कर पायेगा, कदापि नहीं । क्योंकि न तो वह अपना कोई व्यवसाय कर पाया न ही कोई जमीन खरीद पाया वह तो केवल अपनी झूठी शान की खातिर अपने लकजरी शौक पूरा करने की खातिर अपनी जमीन का सम्पूर्ण मुआवजे को खर्च कर       गया ।

जिसका एक कारण सरकार द्वारा गरीब व अशिक्षित किसान को जगरूक न करना भी है जो केवल जमीन का पैसा देकर सरकार ने अपना कर्त्तव्य पूरा कर लिया ओर उस पैसे के कारण रिश्ते-नाते तक के भी कत्ल हो रहे हैं । भाई-भाई को मार रहा है । पुत्र पिता की हत्या कर रहा है । सामाजिक मूल्यों का पतन हो गया अर्थात पैसा ही सर्वोपरि हो गया है कुछ इस तरह – पैसा

चोरों की चोरी अब पैसे से हो रही

कानून की मार पैसे से बेकार

बच्चों की पढाई पैसे की लड़ाई

यार की यारी पैसे से प्यारी

गरीब की हिमायत पैसे की किफायत

बुद्धों का सहारा पैसा ही बेचारा

दुनिया का नजारा पैसा ही दिखा रहा

नलके की जगह बिसलरी पिला रहा

घोड़े के दम पर लोहा दौडा रहा

घर बैठे पढाई पैसे ने करायी

पत्नी जी घर पर पैसे ने रूलायी

गर्लफ्रेण्ड तो पैसे ने बनाई

पैसे की कमी में पत्नी भी पराई

बेवकूफों को बुद्धिमान पैसे ने बनाया

बुद्धिमानों को तो घर में बिठाया

बदमाशों को शरीफ पैसे ने बनाया

शरीफों को बदमाश भी पैसे ने बनाया

ईमानदारों की ईमानदारी पैसे ने छुड़ायी

बेइमानों को भी ईमानदारी सिखायी

कुरूपों को सुन्दर पैसे ने बनाया

सुन्दर को कुरूप भी पैसे ने बनाया

चोरों को शाहूकार पैसे ने बनाया

शाहूकार को भी चोरी पैसे ने सिखलायी

गूंडो को राजा पैसे ने बनाया

सच्चाई को जमीन में दबाया

झूठों के सिर पर ताज पहनाया

सच्चो को पानी दाने को तरसाया

स्वाभिमानी को नीचा पैसे ने दिखाया

चापलूसों को आगे पैसे ने बढ़ाया

बेटी को जिन्दा पैसे ने जलाया

बेटे को बाप से पैसे ने लडाया

इंसान को जानवर पैसे ने बनाया

पैसे को भगवान भी पैसे ने बनाया

हम जैसों को भीड़ में मिलाया

दुनिया को प्यार पैसे ने कराया

रिश्तेदारों को भी अलग पैसे इने कराया

गैरों को भी अपना, पैसे ने बनाया

भाई को भाई से, अलग पैसे ने कराया

माँ को बेटे से, बेगाना पैसे ने बनाया

बहन को भुलैया पैसे ने करायी

पैसे के दम पर तो अपनी भी पराई

पैसा ही सब कुछ पैसा ही माई

पैसा ही प्रेरणा पैसा ही कमाई

पैसा ही बहन और पैसा ही भाई ।।

जिसके लिए जिम्मेदार है भारतीय व्यवस्था । भारतीय कृषि व्यवस्था पूरी तरह चौपट है किसान हित कृषि नीति से नदारद है । कृषि नीति भी उद्योग नीति के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है जबकि किसानों के लिए कृषि नीति अलाभकारी ही सिद्ध हो रही है ।

भारतीय राजनीति में पिछले कुछ समय से एक परम्परा सी बन गई है कि सरकार कोई भी कार्य कोई भी नीति या कोई भी कार्यक्रम बनाये विपक्ष का एकमात्र उद्देश्य उसका विरोध करना मात्र है वो उस कार्यक्रम के गुणों या अवगुणों को अध्ययन करने के स्थान पर उसका विरोध करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं ऐसा वो अपनी राजनीति मजबूरियां या राजनीतिक वजूद तैयार करने या राजनीति चमकाने के लिए करते हैं देशहित के विषय में चिंतन करने का उनके पास समय कहां ?

मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि जब संचार घोटाले को लेकर देश के एक राजनीतिक दल द्वारा कई दिनों तक संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी लेकिन कुछ ही महीनों बाद उसी राजनीतिक दल द्वारा उसी व्यक्ति को एक राज्य में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था ।

क्या ये देशहित था कि एक तरफ तो आपने उसी व्यक्ति के विरोध में देश के नागरिको की खून पसीने की करोडो रूपये की कमाई को संसद की कार्यवाही रोक कर उसकी भेंट चढा दिया दूसरी तरफ आपने अपने राजनीतिक लाभ के लिए उसी व्यक्ति को मंत्री बनवा दिया ऐसा दो मुहा दृष्टि कौण क्यों ?

एक सरकार विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाकर देश का विकास करना चाहती है तो विपक्ष या कोई क्षेत्रीय दल उसका विरोध कर रहा है किसानों को भड़का रहा है केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए किसान मर रहे हैं । लेकिन कोई भी राजनीतिक दल समस्या का समाधान नही सुलझा रहा केवल विरोध कर रहे हैं क्योंकि विरोध करना विपक्षी दलों का राजनीतिक कर्त्तव्य है ।

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कृषि पर निबंध (Essay on Agriculture in Hindi): Agriculture Nibandh for Student Kids

  • By  श्वेता कुमारी

Agriculture Essay in Hindi: यहां कृषि पर सबसे सरल और आसान शब्दों में हिंदी में निबंध पढ़ें। नीचे दिया गया कृषि निबंध हिंदी में कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों के लिए उपयुक्त है।

Essay on Agriculture in Hindi (कृषि पर निबंध): Short and Long

भारत एक कृषि प्रधान देश है, वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर ही निर्भर है, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 10 करोड़ परिवार है जो कृषि पर निर्भर है, यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48 फीसदी है।

कृषि को एग्रीकल्चर भी कहते हैं। एग्रीकल्चर शब्द लैटिन भाषा के एग्री तथा कल्चर शब्द से मिलकर बना है जिसमें एग्री का अर्थ होता है क्षेत्र तथा कल्चर का अर्थ होता है खेती करना।

कृषि की प्रमुख शाखाएं निम्न है? 1. शस्य विज्ञान या एग्रोनॉमी – शस्य विज्ञान के अंतर्गत खाद्यान्न फसलों की खेती, उनकी बुवाई,कटाई, निराई, गुड़ाई, समय पर खाद डालना, सिचाई प्रणाली, रखरखाव इत्यादि सिखाया जाता है। 2. उद्यानिकी या हॉर्टिकल्चर – इसके अंतर्गत वानिकी फलो की खेती (पोमिक्लचर), सब्जी उत्पादन (ओलेरिकलचर) तथा अलंकृत बागवानी, किचन गार्डन इत्यादि बारे में हमें सिखाया जाता है। 3. मृदा विज्ञान – मृदा की जांच करना,मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों का पता करना,भूमि में किन आवश्यक तत्वों की जरूरत है उनका निर्धारणवमृदा सुधार के बारे में सिखाया जाता है। 4. पादप रोग विज्ञान – इसके अंतर्गत पौधों तथा मृदा में लगने वाले रोगों की जांच कर उनका उपचार किया जाता है। 5. मौसम विज्ञान – यह शाखा कृषको को मौसम के बारे में जानकारी देती है।

इस प्रकार कीट शास्त्र, पशुपालन, कृषि अर्थशात्र, भी कृषि विज्ञान की प्रमुख शाखाएं हैं।

6. कीट शास्त्र – कीट शास्त्र में फसलों को नुकसान पहुचाने वाले कीट जैसे टिड्डा, दीमक, इत्यादि की रोकथाम के बारे आवश्यक उपाय किये जाते हैं। 7. पशुपालन – पशुपालन जैसे गाय, भैस, बकरी, भेड़, मुर्गा इत्यादि का पालन कृषि केलिए आवश्यक है क्योंकि कृषि तथा पशुपालन एक दूसरे के पूरक है, कृषि से प्राप्त खाद्यान्न तथा चारे का प्रयोग पशु आहार के रूप में होता है और पशुओं से प्राप्त गोबर इत्यादि अपशिष्ट से खाद तैयार की जाती है जो भूमि की उर्वरा शक्ति की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, साथ ही गाय, भेस बकरी के दूध, बकरी, मुर्गी के मांस, अंडे के विक्रय से आर्थिक आय की प्राप्ति होती है। 8. कृषि अर्थशात्र – कृषि अर्थशात्र में हमेंप्रक्षेत्र प्रबंधन, आय-व्यय, आर्थिक समायोजन की जानकारी प्राप्त होती है।

भारत में कृषि तीन चरणों में की जाती है-

1. खरीफ की फसल – इस फसल की बुआई जून-जलाई में की जाती है तथा कटाई सितम्बर -अकटुबर में की जाती है, इस की प्रमुख फसल उड़द, मूंग, मुगफली, सोयाबीन, कपास, मक्का, अरहर रिजकाइत्यादि है। 2. रवी की फसल – इस फसल की बुआई अकटुबर – नवम्बर में हो जाती है तथा कटाई मार्च अप्रेल में कीजाती है। इस की फसल गेंहू, जौ, चना, सरसो ,मसूर, मटर बरसीम इत्यादि है। 3. जायद की फ़सल – इस फसल में तरबूज, खरबूज, ककड़ी इत्यादि की खेती होती है।

भारत आज आधुनिक समय में ग्रामीण इलाके का किसान नई तकनीकों, हाइब्रिडबीजो, नवीन प्रजातियों के अभाव में पिछड़ा है। सिचाई की पद्धतियों ड्रिप, बौछारी आदि प्रणालीओं की जानकारी न होना, साथ ही वर्षा की अनियमितता भी मुख्य कारण है, अतः आवश्यक है कि सरकार तथा कृषि विभाग द्वारा किसानों को नई- नई कृषि पद्धतियों की जानकारी देकर उन्हें उन्नत कृषि की ओर अग्रसर किया जाए।

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भारतीय कृषि पर निबंध ( Essay on Indian Agriculture In Hindi)

भारतीय कृषि पर निबंध ( Essay on Indian Agriculture In Hindi)

नमस्ते दोस्तों आज हम आज हम भारतीय कृषि पर निबंध ( Essay on Indian Agriculture In Hindi)  लिखेंगे। भारतीय कृषि पर निबंध का उपयोग बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

निबंध: कृषि (Essay on Agriculture in India in Hindi)

जीवन की सबसे पहली जरूरत भोजन है जो कृषि करने से मिलता। अगर कृषि नहीं होगी तो मानव को भोजन कैसे मिलेगा। आज पूरी दुनिया कृषि पर आश्रित है। भारत पहले कृषि के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था मगर हरित क्रांति से भारत कृषि में आत्म निर्भर बना गया है इसलिए भारत कृषि प्रधान देश कहलता है।

भारत में कृषि से होने वाली पैदावार के कारण आज भारत अपने साथ साथ दुसरे देशो का भी पेट भर रहा है। पहले अकाल पड़ने के कारण हजारो लोग भुखमरी का शिकार हो जाते थे मगर आज सभी को पेट भरने के लिए सस्ते दामो पर अनाज उपलब्ध हो जाता है।

वर्तमान में कृषि में आधुनिक यंत्रो के उपयोग से कृषि में काफी बढ़ोतरी हुई मगर फिर भी आज किसानो को कृषि से सम्बंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हमारे देश मे जमीन का कुल क्षेत्रफल का 11 प्रतिशत भाग ही कृषि करने योग्य है जबकि भारत के 51 प्रतिशत क्षेत्रफल में कृषि की जाती है।

कृषि का अर्थ

कृषि का अंग्रेजी शब्द Agriculture है, जो की लेटिन भाषा के दो शब्द AGRIC+CULTURA से जुड़कर बना है। AGRIC का शाब्दिक अर्थ मृदा के क्षेत्र की भूमि है, जबकि CULTURA का शाब्दिक अर्थ है कर्षण या “मिट्टी की जुताई करना। अर्थात मृदा का कर्षण करना ही कृषि (AGRICULTURE) अथवा खेती कहलाता है।

कृषि का की परिभाषा

 कृषि के बारे में नेहरू जी के विचार

हमारे देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू लिखा है कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि इंतजार नहीं कर सकती। यह आश्चर्य की बात नहीँ है कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म मे देवी अन्नपूर्णा आहार और पोषण की देवी हैं।

कृषि का अर्थव्यवस्था में योगदान

भारत में कृषि क्षेत्र में वन, मछलीपालन, पशुपालन, दुग्ध उत्पादन को भी सम्मिलित किये जाने लगा है। हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसमें फसलों की खेती तथा पशुपालन दोनों ही सम्मिलित हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान व योगदान निम्न रूपों में देखा जा सकता है-

भारतीय कृषि से संसार की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या का पोषण हो रहा है। कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है। भारतीय कृषि में देश की लगभग दो-तिहाई श्रमशक्ति लगी हुई है। इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में भी अनेक लोगों को रोजगार मिला है। लोग या तो दस्तकारी में लगे हैं या गांवों में कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे-मोटे उद्योग-धंधो में लगे हैं।

देश में वस्त्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कच्चे माल कृषि से ही मिलते हैं। कपास, जूट, रेशम, ऊन एवं लकड़ी की लुग्दी से ही वस्त्रों का निर्माण होता है। चमड़ा उद्योग भी कृषि क्षेत्र की ही देन है।

कृषि उत्पादों को कच्चे माल के रूप में उपयोग करने वाले उद्योगों का आधार भी यही है। वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, खाद्य तेल उद्योग, चीनी एवं तम्बाकू उद्योग सभी कृषि उत्पादों पर आधारित हैं। कृषि उत्पादों पर आधारित आय में कृषि का योगदान लगभग 34 प्रतिशत है।

कृषि के माध्यम से मानव को बीमारी से बचने ओषधियों पेड़-पौधो और शरीर को लाभ पहुँचाने वाले खाद्य पदार्थो का उत्पादन किया जाता है भारतीय कृषि सभी देश की आधार शिला होती है जिस पर देश का विकास टिका होता है।

कृषि के माध्यम से हम भोजन प्राप्त करते है और भोजन करने के बाद ही मनुष्य कार्य करता है तभी देश की अर्थव्यवस्था काम करती है। अत: ये कहा जा सकता है की पूर्ण रूप से देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी है।

कृषि का महत्व

कृषि की उपलब्धता राष्ट्र को प्रभावित करती है। कृषि-उत्पादन मुद्रास्फीति दर पर अंकुश रखता है, उद्योगों की शक्ति प्रदान करता है, कृषक आय में वृद्धि करता है तथा रोजगार प्रदान करता है।

कृषि का आर्थिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक महत्व भी है। यह क्षेत्र निर्धनता उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकांश निर्धन लोग ही कार्यरत हैं और यदि कृषि क्षेत्र का विकास होगा तो निर्धनता भी स्वतः समाप्त हो जायेगी।

आज, भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है, हालांकि बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने का दबाव भी भारत पर निरंतर बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय पटल पर, विश्व में भारतीय कृषि के लिए, भविष्य में निहितार्थ रखेगा।

भारत की लगभग 58% आबादी के लिए कृषि आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। FY20 (PE) में, कृषि द्वारा GVA (सकल मूल्य वर्धित), मछली पकड़ने और वानिकी के साथ INR 19.48 लाख करोड़ (US $ 276.37 बिलियन) होने का अनुमान लगाया गया था। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में GVA में वृद्धि उसी वर्ष 4% पर आ गई।

भारतीय खाद्य उद्योग बहुत बड़ी वृद्धि के लिए तैयार है और हर साल विश्व खाद्य व्यापार में मूल्यवर्धन की अपार संभावनाओं के कारण अपना योगदान बढ़ाता जा रहा है, विशेष रूप से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंदर। भारतीय खाद्य और किराने का बाजार दुनिया का छठा सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसमें खुदरा बिक्री का 70% योगदान है।

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग देश के कुल खाद्य बाजार का 32% हिस्सा है, जो भारत में सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और उत्पादन, खपत, निर्यात और अपेक्षित विकास के मामले में पांचवें स्थान पर है।

2020 के अप्रैल-सितंबर की अवधि के लिए आवश्यक कृषि जिंसों का निर्यात 43% बढ़कर 53,626 करोड़ रुपये (US $ 7.3 बिलियन) हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 37,397 करोड़ रुपये (5.1 बिलियन अमरीकी डॉलर) था।

कृषि के प्रकार

विश्व में कृषि विभिन्न तरीकों से की जाती है। भारत में की जाने वाली कृषि के प्रकार

  • स्थानांतरित खेती
  • निर्वाह खेती
  • बागवानी कृषि
  • व्यापक कृषि
  • वाणिज्यिक कृषि
  • एक्वापोनिक्स
  • गीले भूमि की खेती
  • सुखी भूमि की खेती

कृषि की प्रमुख उपज

खरीफ की फसल

  • खाधान्न फसले
  • नकद या व्यापारिक फसले

रबी की फसल अक्टूबर से नवंबर महीने में बोई जाती है जबकि इसे फरवरी और मार्च में काटा जाता है।

फसल:-जौ, चना, मसूर, सरसों, मटर, तारामीरा, आलू

खरीफ की फसल को जून-जुलाई में बोते हैं जबकि इसे अक्टूबर में काटते हैं।

फसल:- चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूँग, मूँगफली, गन्ना, सोयाबीन, उडद, जूट, कपास, तम्बाकु, मटर

जायद की फसल  मार्च-अप्रैल में बोई जाती हैं और इसे जून में काटते हैं।

फसल:- तरबूज, खीरा, ककड़ी, मूंग, उड़द, सूरजमुखी

खाद्यान्न फसले

खाद्यान्न फसल उन फसलो को कहा जाता है जो भोजन का मुख्य स्त्रोत होती है। जैसे:- चावल, गेहूं मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा एवं मक्का आते है। इन सभी को हम पीस कर आटा बनाते है और इनका उपयोग किसी न किसी रूप में भोजन में करते है।

ऐसी फासले जिन्हें बेचने पर तुरंत लाभ मिलता है नकदी फसले कहलाती है।  इनमे फल और सब्जिया दोनों शामिल है जैसे:- जूट, कॉफी, कोको, गन्ना, केला, संतरा, आलू , टमाटर, कपास और आम ये नकदी फसलों के अंतर्गत आती है।

भारतीय किसान की स्थिति

भारत किए अधिकतर आबादी गाँव में निवास करती है गाँव में अधिकतर किसान रहते है जो खेती करते है इसलिए भारत में कृषि का अधिक उत्पादन होता है और इस वजह से भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है।

भारत में लगभग 70 प्रतिशत किसान है जो दिन रात मेहनत करके देश के लिए अन्न पैदा करते है क्योंकि बिना किसान खेती होना संभव नहीं है और खेती नहीं होगी तो अन्न नहीं होगा और अन्न नहीं होगा तो लोग जीवित कैसे रहेगे इसलिए किसान को अन्नदाता बोला जाता है।

आज वही भारतीय किसान बुरी दुर्दशा में है जो हमे भोजन देता है। अन्नदाता होते हुए किसान गरीब है और हर रोज  किसानआत्महत्या कर रहे है।

आजादी से लेकर आज तक किसानो की दशा में कुछ ज्यादा खास अंतर नहीं आया है। किसानो की स्थिति ख़राब होने के कारण कई किसान खेती छोड़ अपनी परिवार के पालन पोषण के लिए अपनी खेती की जमीन बेच रहे है। जिससे काम करने वाले मजदूरो की संख्या बढ़ रही है।

अपने एक कहावत जरुर सुनी होगी भारतीय किसान कर्ज में ही जन्म लेता है कर्ज में जीवन बिताता है और कर्ज में ही मर जाता है। यह कहावत आज भी जारी है क्योंकि किसान आज भी इसी तरह का जीवन जी रहे है।

किसान खेत में दिन-रात मेहनत करता है मगर इसकी कोई गारंटी नहीं की फसल बिना किसी नुकसान के अच्छी होगी क्योंकि अधिकतर किसान वर्षा के जल पर निर्भर है। ऐसे में किसान मेहनत से खेतो में फसल उगता है तो किसी न किसी वजह से उसकी फसल नष्ट हो जाती है।

किसान हमेशा कई समस्याओं से घिरा रहता है। कई बार जब  फसल बर्बाद हो जाती है तो किसान आत्महत्या कर लेता है और अगर फसल अच्छी हो भी जाये तो उसे मंडी में मुहं मांगी कीमत नहीं मिलती है और इसी वजह से लागत से कम आय होती है जो उसे गरीबी से निकलने नहीं देती है।

आज किसानो की दुर्दशा का मुख्य कारण गिरता भूजल स्तर, मानसून की अनियमितता, सुखा, कीमत में वृद्धि और ऋण का बोझ आदि के चक्र में किसान फंसकर रह जाता है।

भारतीय किसान बैंक, महाजनों, बिजोलिया आदि के चक्कर में फसकर किसान ऋण के कारण आत्महत्या कर रहे है। एक रिपोर्ट के अनुसार 1990 के बाद हर साल हजारो किसान आत्महत्या कर चुके है तो कई खेती छोड़कर अन्य धंधो में लग गये है और इसी वजह से कई बार किसानो के लिए आन्दोलन के लिए उतर जाते है मगर इसके बाद भी उनकी मांगे पूरी नहीं हो पाती है जिससे तंग आकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते है।

भारतीय किसानो की इस हालत से सरकार भी चिंतित है इसलिए किसानो के लिए कई योजनाये चलायी जा रही है जिसमे उन्हें खेती के लिए अधिक बिजली मुहैया करायी जा रही है ताकि किसानो अपनी खेती के कार्य को निरंतर रख सके। इसके अलावा सरकार किसानो के कर्ज को माफ़ करने की और लगातार कदम बढ़ा रही है।

किसानो के प्रति सरकार के इस कदम को काफी सराहा जा सकता है मगर ये समाधान हमेशा के लिए नहीं है। इसका एक ही समाधान है कि किसानो को उनकी मेहनत का सही दाम मिले और कृषि की लागत और उपज की सही कीमत को सुनिशिचित करें। जिससे ये सुविधाए उन्हें किसी वरदान की तरह लगे और वे खेती करना नहीं छोड़े बल्कि उसके प्रति उनका रुजान और ज्यादा बढे।

हरित क्रांति का प्रभाव

हरित क्रांति जिसमे कृषि में तिव्र वृद्धि करने के लिए रासानिक उर्वरक तथा अत्यधिक बीजों का उत्पादन होता है हरित क्रांति कहलाती हैं। भारत में हरित क्रांन्ति का प्रारंभ सन् (1966-1967) में हुआ था। स्वामी एम. एस. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति की शुरुआत की थी।

स्वतंत्रता के समय देश की जनसंख्या का लगभग 75% जनता कृषि पर ही निर्भर थी। पहले भारत मानसून पर निर्भर था इसलिए मानसून की अनियमितता के कारण किसानों को खेती से सम्बंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता था।

आजादी के समय भारत प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में काफी पीछे था क्योंकि भारत अपनी पिछड़ी तकनीक में पुराने कृषि औजारों का प्रयोग करता था इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र उत्पादन बहुत कम होता था।

स्वतंत्रता के पहले भारतीय कृषि पर अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुनितिया अविकसित होने के कारण भारत कृषि के क्षेत्र में पिछड़ गया था। इसी वजह भारत में भुखमरी जैसे हालत उत्पन्न हो गये जिसने हरित क्रांति को जन्म दिया।

आज हरित क्रांति के प्रभाव से कृषि के क्षेत्र में प्रभावशाली वृद्धि हुई है। भारत की कृषि में उत्पादन बढ़ने से खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भरता हो गया है।

हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि में बढ़ोतरी होने से गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फ़सलों के प्रति हेक्टेअर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है। आज भारत अपने साथ साथ दुसरे देशो का भी पेट भरने में सक्षम है।

2.12  निष्कर्ष (Conclusion)

कृषि भारत का भविष्य है क्योंकि देश का विकास मनुष्य करता है और मनुष्य को कार्य के लिए भोजन चाहिए जो कृषि के कारण ही मिलता है। कृषि किसान की ही रोजी रोटी नहीं है बल्कि खेत में काम करने वाले करोड़ मजदूरो का रोजगार है।

भारत में किसानो के लिए सरकार भी कड़े कदम उठा रही है ताकि भारत के किसान की सभी समस्यां समाप्त हो जाए और किसान खेती करते हुए भारत के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।

तो ये था भारतीय कृषि के बारे में निबंध। उम्मीद करता हूँ भारतीय कृषि पर निबंध ( Essay on Indian Agriculture In Hindi)    आपको जरुर पसंद आया होगा । अगर पसंद आये तो इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें।

Essay on Sustainable Agriculture | Hindi

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Here is a compilation of essay on ‘Sustainable Agriculture’ for class 8, 9, 10, 11, 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Sustainable Agriculture’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Sustainable Agriculture

Essay Contents:

  • टिकाऊ कृषि के उपाय (Strategy for Sustainable Agriculture)

Essay # 1. धारणीय कृषि अथवा ईको-फार्मिंग (Meaning of Sustainable Agriculture):

ADVERTISEMENTS:

धारणीय कृषि को टिकाऊ कृषि एवं ईको-फार्मिग कहते हैं । टिकाऊ कृषि की बहुत-सी परिभाषायें दी जाती है । एक परिभाषा के अनुसार धारणीय कृषि ऐसी कृषि को कहते हैं जो वर्तमान समय की आवश्यकताओं की आपूर्ति करें तथा भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं की भी आपूर्ति हो सके और परितन्त्र स्वास्थ्य रूप में बना रहे ।

करोड़ों की तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या को आनाज की तथा कृषि-आधारित उद्योगों के लिये कच्चे माल की आपूर्ति के लिये कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने की आवश्यकता है तथा पारिस्थितिकी तन्त्र को विशेष क्षति न हो इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाना है ।

ईको-फार्मिंग (Eco-Farming) में गोबर, कम्पोस्ट तथा हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है । साथ ही साथ फसलों का हेर-फेर (Rotation of Crops) वैज्ञानिक ढंग से किया जाये अर्थात् मृदा उत्पादकता कम करने वाली फसलों के पश्चात दलहन की फसलें लगाना ।

संक्षेप में, धारणीय कृषि (Sustainable Agriculture) उपलब्ध संसाधनों एवं प्रौद्योगिकी के साथ अधिकतम उत्पादन करना एवं परितन्त्र को टिकाऊ बनाये रखना ही धारणीय कृषि कहलाता है । इसमें मृदा संरक्षण एवं जैविक विविधता को संरक्षित किया जाता है ।

ADVERTISEMENTS: (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); Essay # 2. टिकाऊ कृषि की विशेषताएं ( Characteristics of Sustainable Agriculture):

धारणीय अथवा टिकाऊ कृषि में रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाइयों का कम से कम इस्तेमाल किया जाता है । गोबर, कम्पोस्ट तथा हरी-खाद के उपयोग पर बल दिया जाता है ताकि मृदा की उर्वरकता बनी रहे तथा पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े ।

धारणीय कृषि (Sustainable Agriculture) आधुनिक कृषि से भिन्न होती है । इन दो प्रकार की कृषि प्रणालियों एवं उनकी मुख्य विशेषताओं को संक्षेप में तालिका 12.1 में वर्णित किया गया है ।

Essay # 3. आधुनिक कृषि की समस्याएं (Problems of Modern Agriculture):

आधुनिक कृषि उद्योगों की भांति संसाधनों का शोषण करती है । बड़े उद्योगों तथा खनन से निष्काषित प्रदूषण से कृषि भूमि भी प्रदूषित हो रही है । रासायनिक खाद तथा कीटाणुनाशक दवाइयों से मिट्‌टी भूगर्त जल नदियों झीलों तथा जलाशयों में प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गई है । कृषि भूमि की उर्वरकता तीव्र गति से कम हो रही है ।

आधुनिक कृषि के प्रतिकूल प्रभाव पर नियन्त्रण पाना एक कठिन कार्य हो रहा है । आधुनिक कृषि के पारिस्थितिकी तथा समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को संक्षिप्त में नीचे दिया गया है ।

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आज   हम भारतीय कृषि पर निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) लिखेंगे। भारतीय कृषि पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

भारतीय कृषि पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

खेती और वानिकी के माध्यम से खाध पदार्थो का उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि प्रतेक मानव जीवन की आत्मा होती है। सम्पूर्ण मानव जाती का अस्तित्त्व ही कृषि पर निर्भर है और भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में कृषि करना केवल कृषि करना नहीं बल्कि एक कला है। कृषि पर ही पूरा देश आश्रित है। कृषि अगर नहीं, तो ना कोई अनाज होगा और ना ही हम मानव के लिए भोजन मिलेगा।

बिना कृषि के भोजन कहा से प्राप्त होगा। हमारे देश मे जमीन का कुल क्षेत्रफल का 11 प्रतिशत भाग ही कृषि करने योग्य है। जबकि भारत के 51 प्रतिशत क्षेत्रफल में कृषि की जाती है।

कृषि का अर्थ

कृषि का अंग्रेजी शब्द Agriculture है, जो की लेटिन भाषा के दो शब्द AGRIC+CULTURA से हुआ है। जिसमे AGRIC का शाब्दिक अर्थ मृदा या भूमि है, जबकि CULTURA का शाब्दिक अर्थ है कर्षण करना। अर्थात मृदा का कर्षण करना ही कृषि (AGRICULTURE) अथवा खेती कहलाता है।

कर्षण एक बहुत ही व्यापक शब्द है। जिसमे फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन व् वानिकी आदि सभी पहलुओं को सम्मिलित किया जा सकता है। कृषि एक प्रकार से एक कला, एक विज्ञान, एक वाणिज्य है। कृषि इन सब के जुड़ने से इनके योग से ही बनती है।

कृषि की परिभाषा

भूमि के उपयोग से फसल उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि वह कला है, जिसमे विज्ञान और उद्योग हे। जो मानव उपयोग के लिए पोधो व् पशुओ के विकास का प्रबंध करती है।

पी. कुमार एस. के.शर्मा तथा जसबीर सिंह के अनुसार

कृषि फसलोत्पादन से अधिक व्यापक है। यह मानव द्वारा ग्रामीण पर्यावरण का रूपांतरण है। जिससे कुछ उपयोगी फसलों एवं पशुओं के लिए सम्भव अनुकूल दशाएं सुनिश्चित की जा सकती है। इनकी उपयोगिता सतर्क चयन से बढ़ाई जाती है।

इनमें उन सभी पद्धतियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका प्रयोग कृषक कृषि के विभिन्न तत्वों को विवेकपूर्ण ढंग से संगठित करने और प्रशस्त उपयोग में करता है। अतः विस्तृत अर्थ में कृषि का अभिप्राय भौतिक वातावरण के पौधे, पशु पालन, वनारोपण, प्रबन्ध तथा मत्स्य पालन आदि करने से है।

इस प्रकार कृषि को ऊर्जा के रूपांतरण तथा पुनरोद्भव (regeneration) द्वारा भूतल पर जीविकोपार्जन (earning) हेतु फसलोत्पादन एवं पशुपालन क्रियाओं के रूप में देखा जा सकता है।

जवाहरलाल नेहरू जी के कृषि पर विचार

हमारे देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा उद्धत किया गया कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि इंतजार नहीं कर सकती। यह आश्चर्य की बात नहीँ है कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म मे देवी अन्नपूर्णा आहार और पोषण की देवी हैं।

भारतीय कृषि का हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान

कृषि हमारा प्राचीन और प्राथमिक व्यवसाय है। इसमें फसलों की खेती तथा पशुपालन दोनों ही सम्मिलित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान व् योगदान निम्नलिखित अर्थो से देखा जा सकता है।

हमारे देश की कृषि जंहा अपनी 2/3 जनसंख्या का भरण पोषण करती है, वही भारतीय कृषि से संसार की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या का पोषण हो रहा है। भारतीय कृषि में लगभग 2/3 श्रम शक्ति लगी हुई है।

इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में भी अनेक लोगो को रोजगार मिला है। लोग या तो दस्तकारी में लगे है, या गाँवों में कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे – छोटे उद्योग धंधो में लगे है। देश में वस्त्रो की जरूरतों को पूरा करने के लिए कच्चा माल कृषि से ही मिलता है।

कपास, जूट, रेशम, उन एवं लकड़ी की लुगदी से ही वस्त्रो का निर्माण होता है। चमड़ा उद्योग भी कृषि क्षेत्र की ही देंन है। कृषि उत्पादों पर निर्भर प्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग, जुट उद्योग, खाध तेल उद्योग, चीनी एवं तम्बाकू उद्योग आदि है। कृषि उत्पादों पर आधारित आय में कृषि का योगदान लगभग 34 प्रतिशत है।

भारतीय कृषि देश की बढ़ती जनसंख्या का भरण-पोषण कर रही है। कृषि पदार्थो से ही भोजन में कार्बोहाइट्रेड, संतुलित आहार हेतु प्रोटीन, वसा, विटामिन आदि प्राप्त होते है। संक्षेप में हम यहीं कह सकते है की भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

इसकी सफलता या विफलता का प्रभाव देश के खाध समस्या, सरकारी आय, आंतरिक व् विदेशी व्यापार तथा राष्टीय आय पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। इसीलिए कहा जाता है की मानव जीवन में जो महत्व आत्मा का है, वही भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का है।

कृषि की प्रमुख उपज

  • खरीफ की फसल

खाधान्न फसले

नकद या व्यापारिक फसले

खरीफ की फसले

ये वो फसले है जो वर्षा ऋतू के शुरू (जून -जुलाई) में बोई जाती है और दशहरे के बाद शरद ऋतू के अंत (अक्टूबर – नवंबर) तक तैयार हो जाती है। जैसे चावल, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, कपास, पटसन, तीली व् मूंगफली आदि।

रबी की फसले

ये वो फसले है जो शरद ऋतू के आगमन पर दशहरे के बाद (अक्टूबर – नवम्बर) में बोई जाती है और ग्रीष्म ऋतू के शुरू में (मार्च – अप्रेल) होली पर तैयार हो जाती है। जैसे गेंहू, चना, जौ, सरसो व् तम्बाकू आदि।

यह फसले विशेषतः ग्रीष्म ऋतू में पैदा की जाने वाली सब्जियों और हरे चारे की खेती आदि है।

ये वो फसले है जो भोजन के लिए मुख्य पदार्थ का कार्य करती है। जैसे चावल, गेंहू, ज्वार, मक्का, बाजरा चना, अरहर व् अन्य दाल।

ये वो फसले है जो प्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिए पैदा नहीं की जाती। किन्तु उन्हें बेचकर नकद राशि प्राप्त की जाती है। जैसे कपास, जुट, चाय, कॉफी, तिलहन, सोयाबीन, गन्ना, तम्बाकू व् रबर आदि।

भारत में कृषि विकास हेतु किये गए सरकारी प्रयासों के अंतर्गत सन 1966-67 में हरित क्रांति द्वारा तकनीकी परिवर्तन कर कृषि क्षेत्र में नए युग का शुभारम्भ हुआ था। हरित क्रांति का तातपर्य कृषि उत्पादन में उस तीव्र वृद्धि से है, जो अधिक उपज देने वाले बीजो, रासायनिक उर्वरको व् नई तकनीकों के प्रयोग के परिणामस्वरूप हुई है।

कृषि के प्रकार

हमारे देश भारत मे कृषि के प्रकार कुछ इस प्रकार है।

  • स्थानांतरित खेती
  • निर्वाह खेती
  • बागवानी कृषि
  • व्यापक कृषि
  • वाणिज्यिक कृषि
  • एक्वापोनिक्स
  • गीले भूमि की खेती
  • सुखी भूमि की खेती

कृषि और भारतीय किसान

भाग्यवादी होना भारतीय किसान के जीवन की सबसे बड़ी विडंबंना है। की वह कृषि उत्पादन और उसकी बर्वादी को अपना भाग्य और दुर्भाग्य की रेखा मानकर निराश हो जाता है। वह भाग्य के सहारे आलसी होकर बेठ जाता है। वह कभी भी नहीं सोचता है की कृषि कर्मक्षेत्र है। जंहा कर्म ही साथ देता है भाग्य नहीं।

वह तो केवल यही मानकर चलता है की कृषि – कर्म तो उसने कर दिया है, अब उत्पादन होना न होना तो विधाता के वश की बात है, उसके वश की बात नहीं है। इसलिए सूखा पड़ने पर पाला मरने पर या ओले पड़ने पर वह चुपचाप ईश्वराधीन का पाठ पढ़ता है।

इसके बाद तत्काल उसे क्या करना चाहिए या इससे पहले किस तरह से बचाव या निगरानी करनी चाहिए थी इसके विषय में प्रायः भाग्यवादी बनकर वह निशिचन्त बना रहता है। कृषि में किसान का सबसे अधिक महत्व होता है। क्योंकि कृषि पर निर्भर किसान ही हैं, जो कृषि को एक महत्वपूर्ण स्थान देता है।

रूढ़िवादिता ओर परम्परावादी होना भारतीय किसान के स्वभाव की मूल विशेषता है। यह शताब्दी से चली आ रही कृषि का उपकरण या यंत्र है। इसको अपनाते रहना उसकी वह रूढ़िवादिता नहीँ है तो ओर क्या है।

इसी अर्थ में भारतीय किसान परम्परावादी दृष्टिकोण का पोषक ओर पालक है, जिसे हम देखते ही समझ लेते हैं। आधुनिक कृषि के विभिन्न साधनों ओर आवश्यकताओ को विज्ञान की इस धमा चौकड़ी प्रधान युग मे भी न समझना या अपनाना भारतीय किसान की परम्परावादी दृष्टिकोण का ही प्रमाण हैं।

इस प्रकार भारतीय किसान एक सीमित ओर परम्परावादी सिधान्तो को अपनाने वाला प्राणी है। अंधविश्वासी होना भी भारतीय किसान के चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है।अंधविश्वासी होने के कारण भारतीय किसान विभिन्न प्रकार की सामाजिक विषमताओं में उलझा रहता है।

हरित क्रांति से कृषि का आत्मनिर्भर बनना

भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमण के कारण, जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण, समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था न हो सकने के कारण, नवीनतम उपयोगी औजारों व अन्य साधनों के प्रयोग न हो सकने के कारण तथा विदेशी शासकों की सोची- समझी राजनीति व कुचलो का शिकार होने के कारण कई बार अकाल का शिकार हुआ है।

जब लोंगो के भूखे मरने की नोबत आने लगी, तब देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात सोची जाने लगी और एक नए युग का सूत्रपात हुआ। जो की हरित क्रांति का युग था। तभी हरित क्रांति ने शीघ्रता से चारों ओर फैलकर देश को हरा भरा बना दिया।

अर्थात खाद्य अनाजों के बारे में देश को पूर्णया आत्मनिर्भर कर दिया है। हरित क्रांति से हमारे देश की कृषि ने एक अलग ही मुकाम पा लिया है, जो कि कृषि के लिए एक अलग ही मुकाम बनाने में कामयाब हुआ है।

कृषि हमारे देश की वो जड़ है, जिसके खत्म होते ही अनाज और बहुत सारे व्यक्तियो के रोज़गार का भी अतं हो जाएगा। क्योंकि कृषि करना ओर अनाज उगाना ना केवल किसान के लिए उसकी रोज़ी रोटी है, बल्कि उसके परिवार का भरण पोषण का एक बहुत जरुरी जरिया है। जिसके नहीँ होने से ना केवल उसके परिवार बल्कि पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ता है।

इन्हे भी पढ़े :-

  • भारतीय किसान पर निबंध (Indian Farmer Essay In Hindi)
  • एक किसान की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of Farmer Essay In Hindi)
  • 10 Lines On Farmer In Hindi Language

तो यह था भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि भारतीय कृषि पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Indian Agriculture) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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कृषि पर निबंध | Essay On Agriculture In Hindi

Essay On Agriculture In Hindi : नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज हम भारतीय कृषि पर निबंध फार्मिंग इन इंडिया पर सरल भाषा में निबंध, अनुच्छेद, भाषण, लेख उपलब्ध करवा रहे हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली कृषि व्यवस्था के प्रकार, इतिहास, महत्व, लाभ आदि के बारे में इस आर्टिकल में जानकारी दी गई हैं.

कृषि पर निबंध Essay On Agriculture In Hindi

कृषि पर निबंध | Essay On Agriculture In Hindi

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. कृषि और सहायक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-20 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जबकि लगभग 60 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. भारत में कृषि उत्पादन मानसून पर निर्भर करता हैं.

सभी जीवधारियों को भोजन की आवश्यकता होती हैं. अधिकांश भोज्य पदार्थ हमें कृषि, बागवानी एवं पशुपालन से प्राप्त होते हैं.

भोजन की आवश्यकता पूरी करने के लिए अन्न तथा अन्य कृषि उत्पादों की आवश्यकता होती हैं. ये पदार्थ किसान खेती करके प्रदान करता हैं.

एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते है, तो इसे फसल कहते हैं. फसलें विभिन्न प्रकार की होती हैं जैसे अन्न, सब्जियाँ एवं फल आदि. अन्न व अन्य फसल उत्पादन का कार्य कृषि उत्पादन कहलाता हैं. देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं.

फसल उगाने के लिए किसान को अनेक क्रियाकलाप करने पड़ते हैं. ये क्रियाकलाप अथवा कार्य कृषि पद्धतियाँ कहलाते हैं.

किसान, हल, कुदाली, फावड़ा, हंसिया, खुरपी, बैल, बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कम्बाइन, थ्रेसर आदि कृषि उपकरणों की सहायता से विभिन्न कृषि कार्य करता हैं. कृषि कार्य निम्न हैं.

मिट्टी तैयार करना या जुताई करना – फसल उगाने से पहले मिट्टी तैयार करना प्रथम चरण है. इसके लिए किसान मिट्टी को पलट कर उसे पोला बनाने का कार्य करता हैं. इससे जड़े भूमि में गहराई तक जा सकती हैं.

पोली मिट्टी में गहराई से घंसी जड़े भी सरलता से श्वसन कर सकती हैं. पोली मिट्टी में रहने वाले केंचुओं और सूक्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायता करती हैं.

ये जीव किसान के मित्र होते है, क्योंकि ये मिट्टी में ह्यूमरस का निर्माण करते हैं, जिससे वह अधिक उपजाऊ हो जाती हैं.

इसके अतिरिक्त मिट्टी को उलटने पलटने व पोला करने से पोषक पदार्थ ऊपर आ जाते हैं व पौधे उन पोषक पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं.

मिट्टी को उलटने पलटने एवं पोला करने की क्रिया जुताई कहलाती हैं. जुताई के कार्य के लिए हल, कुदाली व कल्टी वेटर आदि कृषि उपकरण काम में लिए जाते हैं.

बुआई करना : बुआई का आशय बीज बोने से हैं. इस प्रक्रिया में भूमि में वांछित फसल के अधिक उपज व गुणवत्ता वाले बीज बोए जाते हैं. बुआई के लिए काम आने वाले औजार निम्न हैं.

  • ओरणा – कीप के आकार के इस औजार में बीजों को कीप के अंदर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पाइप से गुजरते है. ये सिरे मिट्टी को भेदकर बीज को भूमि में स्थापित कर देते हैं. ओरणा को हल के पीछे बांधकर बिजाई की जाती हैं.
  • सीड ड्रिल – इसके द्वारा बीजों को समान दूरी व गहराई बनी रहती हैं. यह ट्रैक्टर द्वारा संचालित होती हैं. सीड ड्रिल द्वारा बुआई करने से समय एवं श्रम दोनों की बचत होती हैं. बीजों के बीच आवश्यक दूरी होना आवश्यक हैं. इससे पौधों को सूर्य का प्रकाश, पोषक पदार्थ एवं जल पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होते हैं.
  • पाटा चलाना – खेती करते समय यह आवश्यक है कि बुआई के बाद बीज मिट्टी द्वारा ढक जाए. अतः पाटा चलाकर मृदा के ढेलों को तोडा जाता हैं. तथा बोये गये बीजों को भी इस क्रिया से दबाया जाता हैं.
  • खाद एवं उर्वरक मिलाना- सामान्यतया पौधों के लिए सोलह पोषक तत्व आवश्यक माने जाते हैं. ये तत्व हैं कार्बन, हाइड्रो जन, ओक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा, सल्फर, क्लोरिन, जिंक, बोरोन, ताम्बा और मोलिविडनम. इनके अभाव में पौधों पर इनके अभाव के लक्षण प्रदर्शित होते हैं. अधिक मात्रा में होने पर ये हानि भी पहुचाते हैं. प्रत्येक जाति के पौधों के लिए इनकी अलग अलग मात्रा निर्धारित करते हैं. उक्त पोषक तत्वों को हम खाद या उर्वरक के रूप में पौधों को देते हैं.

भारतीय कृषि का इतिहास History of Agriculture in India

आज हमारे देश में कृषि का जो स्वरूप देखने को मिल रहा हैं वह परम्परागत एव आधुनिक कृषि का संयुक्त रूप हैंइसे विकसित करने में कई सदियाँ लगी हैं.

कुछ सदी पूर्व तक हम अपने लोगों का पेट भरने योग्य अन्न नहीं उपजा पाते थे, मगर कृषि के क्षेत्र में आई हरित क्रांति एवं आधुनिक तकनीक के उपयोग ने न केवल हमे कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि अब हम आयात के स्थान पर बड़ी मात्रा में अन्न का निर्यात करते हैं.

भारत में कृषि का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव सभ्यता का. आदिमानव भोजन के प्रबंध के लिए वनों एवं जगली जीवों के शिकार पर निर्भर था, वह अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दर दर भटकता रहता था.

मगर कृषि व फसल उगाने के ज्ञान के बाद वह एक स्थान पर संगठित रहकर खेती करने लगा. माना जाता हैं. कि पश्चिम एशिया में सर्वप्रथम मानव ने गेहूं और जौ की फसल उगानी शुरू की. वह कृषि के साथ साथ गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि पशुओं को भी पालने लगा था.

लगभग 7500 ई पू मानव ने प्रथम बार कृषि करना आरम्भ किया था, 3000 ई पू आते आते वह उन्नत तरीकों के साथ खेती करने लगा. इस दौर में मिश्र व सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों ने कृषि को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाया था,

वैदिक काल में लोहे के हथियारों के उपयोग ने इसे अधिक सुविधाजनक बना दिया. धीरे धीरे सिंचाई की पद्धतियों का जन्म हुआ, अब नदी या अन्य जल स्रोतों के निकट अधिक खेती की जाने लगी.

नदी के किनारे कृषि करने के दो फायदे थे एक तो सिंचाई के लिए जल आसानी से उपलब्ध था, वही भूमि की उर्वरता भी अधिक थी, अतः इन स्थानों पर चावल व गन्ने की बुवाई बड़े स्तर पर की जाने लगी.

अंग्रेजी काल से पूर्व तक भारतीय कृषक अधिकतर खाद्यान्न फसलें उगाते थे. अंग्रेजों ने किसानों को वाणिज्यिक कृषि से परिचय करवाया,

जिसके परिणामस्वरूप न केवल किसानों की आमदनी बढ़ी बल्कि देश के व्यापारियों को भी व्यापक स्तर पर कच्चा माल आसानी से मिलने लगा.

जूट, नील, चाय, रबर तथा कोफ़ी की वाणिज्यिक खेती की जाने लगी. इसका बड़ा नुकसान यह हुआ कि भारत में खाद्य संकट उत्पन्न हो गया.

कृषि के प्रकार

  • मिश्रित कृषि – कृषि एवं पशुपालन एक साथ साथ करना.
  • शुष्क या बारानी कृषि – शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल का सुनियोजित संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व शीघ्र पकने वाली फसलों की कृषि करना.
  • झुमिंग कृषि- पहाड़ी व वन क्षेत्रों में वन एवं पेड़ पौधों को जलाकर जमीन साफ़ करना तथा उस पर 2-3 वर्ष खेती करने के पश्चात उसे छोड़कर किसी अन्य स्थान पर इसी तरह कृषि कार्य करना.
  • समोच्च कृषि – पहाड़ी क्षेत्रों में समस्त कृषि कार्य और फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत करना ताकि वर्षा से होने वाले मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके, समोच्च कृषि कहलाती हैं.
  • पट्टीदार खेती- ढालू भूमि में मृदा क्षरण को कम करने वाली तथा अन्य फसलों को एक के बाद एक पट्टियों में ढाल के विपरीत इस प्रकार बोना कि मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके.
  • कृषि वानिकी – कृषि के साथ साथ फसल चक्र में पेड़ों, बागवानी व झाड़ियों की खेती कर फसल व चारा उत्पादित करना.
  • रोपण कृषि – एक विशेष प्रकार की खेती जिसमे रबड़, चाय, कहवा आदि बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं.
  • रिले क्रोपिंग – एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें लेना.

  • भारतीय कृषि का इतिहास महत्व
  • नए कृषि कानून क्या है विवाद
  • आदिमानव का इतिहास

उम्मीद करता हूँ दोस्तों Essay On Agriculture In Hindi का यह निबंध आपकों पसंद आया होगा,

यहाँ हमने कृषि पर निबंध के बारे में जानकारी दी हैं. यह जानकारी आपकों कैसी लगी हमें कमेंट कर जरुर बताएं.

One comment

Thank you very much. For providing facts of agriculture .

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ESSAY KI DUNIYA

HINDI ESSAYS & TOPICS

Essay on Agriculture in Hindi – कृषि पर निबंध

March 29, 2018 by essaykiduniya

Get information about Agriculture in Hindi. Here you will get Paragraph and Short Essay on Agriculture in Hindi Language for School Students and Kids of all Classes in 150, 225 and 300 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में कृषि पर निबंध मिलेगा।

agriculture essay in hindi

Short Essay on Agriculture in Hindi Language – कृषि पर निबंध (150 Words) 

भारत के राष्ट्रीय आय में से लगभग 34% कृषि व्यवसायों का योगदान करते हैं। यह सच है कि माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्रों के एक त्वरण के साथ कृषि की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। कृषि से आय की प्रतिशत हिस्सेदारी में इस तरह की गिरावट से देश के आर्थिक विकास की मात्रा का संकेत मिलता है।

जनगणना 1971 की जनगणना के अनुसार, भारत में हर 10 व्यक्तियों में से 7 अभी भी कृषि पर आजीविका का मुख्य स्रोत निर्भर करता है। यह 1901 के बाद से 66% का अनुपात निरंतर बना हुआ है और कम से कम कुछ और दशकों तक ऐसा रहने की संभावना है। यह तथ्य कृषि के महत्व पर भी प्रतिक्रिया करता है। विकसित देशों में, स्थिति सिर्फ रिवर्स है। चाय, कॉफी, रबड़ आदि जैसे वृक्षारोपण उद्योग कृषि पर सीधे निर्भर करते हैं। ऐसे कई अन्य उद्योग हैं जिनके पर निर्भरता कृषि पर निर्भर है।

Short Essay on Agriculture in Hindi Language – कृषि पर निबंध (225 Words) 

कृषि मूल रूप से भोजन, ईंधन, फाइबर, दवाइयों और कई अन्य चीजों के उत्पादन के लिए पौधों की खेती है। जो मानव जाति के लिए आवश्यक बन गए हैं। कृषि में जानवरों के प्रजनन भी शामिल है कृषि के विकास ने मानव सभ्यता के लिए एक वरदान साबित कर दिया क्योंकि यह अपने विकास के लिए रास्ता भी प्रदान करता है। कृषि को एक कला, विज्ञान और वाणिज्य कहा जाता है, क्योंकि यह सभी तीनों में शामिल कारकों के लिए पर्याप्त है। यह एक कला कहा जाता है क्योंकि इसमें फसल और पशुपालन के विकास, विकास और प्रबंधन शामिल है।

इस क्षेत्र में अच्छे परिणाम पाने के लिए इसके लिए धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है और केवल इस व्यक्ति को इस कला को प्राप्त कर सकते हैं। कृषि के नए सुधारित तरीकों के साथ आने के लिए प्रजनन और आनुवांशिकी का ज्ञान नियोजित है। क्षेत्र में कई आविष्कार और अन्वेषण किए जा रहे हैं। यह कभी विकसित हो रहा है और इस प्रकार विज्ञान के रूप में उत्तीर्ण है। कृषि किसी अन्य क्षेत्र की तरह अर्थव्यवस्था का समर्थन करती है और इस प्रकार निस्संदेह इस श्रेणी में भी आती है। लगभग दो-तिहाई भारतीय जनसंख्या कृषि पर सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर होती है, इसे देश के आर्थिक विकास का आधार माना जाता है। यह सिर्फ भारत में आजीविका का एक स्रोत नहीं है बल्कि जीवन का एक तरीका है।

Short Essay on Agriculture in Hindi Language – कृषि पर निबंध (300 Words)

“कृषि” शब्द का कोई कठोर परिभाषा नहीं है यह कई लोगों द्वारा बहुत व्यापक रूप से समझाया गया है। कृषि को मिट्टी की खेती के विज्ञान और कला के रूप में परिभाषित किया गया है, और यह परिभाषा कृषि में पौधों के उत्पादन की प्राथमिक प्रकृति पर जोर देती है।

इसके अलावा, ऐसा अक्सर होता है कि एक ही व्यक्ति बढ़ते पौधों के प्राथमिक कार्यों और पौधों को पौधों को खिलाने का माध्यमिक एक करता है कि इन दोनों उद्योगों को कृषि के रूप में एक साथ समूहीकृत किया जाता है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि कृषि में न केवल मिट्टी की खेती के कारण फसलों का उत्पादन शामिल है, बल्कि पशुधन के पालन भी शामिल है। इस प्रकार, दूध, मांस और ऊन गेहूं, चावल और कपास के रूप में ज्यादा कृषि उत्पाद हैं। जॉर्ज ओ ब्रायन के शब्दों में, इसलिए, कृषि शब्द में “हर उद्योग जिसका उद्देश्य मिट्टी की खेती से सब्जियों या जानवरों का उत्पादन करना है।”

इसलिए, कृषि भूमि से उत्पाद जुटाने का व्यवसाय है। उठाया गया उत्पादों या तो पौधों और उनके उत्पादों या जानवरों और उनके उत्पादों हो सकता है। पूर्व प्रत्यक्ष उत्पाद हैं, जबकि उत्तरार्द्ध भूमि के अप्रत्यक्ष उत्पाद हैं। कृषि उत्पादों जटिल और विविध हैं, प्रकृति में, और जैसे, कृषि को जटिल उद्योग माना जा सकता है। आधुनिक कृषि केवल भूमि की खेती की कला और विज्ञान की तुलना में व्यापक है। यह घर और विदेश में बढ़ती आबादी के लिए भोजन और फाइबर की आपूर्ति का पूरा व्यवसाय है। कृषि में फिर से हम मिट्टी के उत्पादन के सभी रूपों, वन से लेकर कांच-घर की संस्कृति तक, मत्स्य से कृत्रिम गर्भाधान तक, और प्रजनन से बागवानी तक शामिल करते हैं।

हम आशा करेंगे कि आप इस निबंध  ( Essay on Agriculture in Hindi – कृषि पर निबंध )  को पसंद करेंगे।

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कृषि का महत्व पर निबंध

agriculture essay in hindi

By पंकज सिंह चौहान

importance of agriculture in hindi

भारत में कृषि मुख्य व्यवसाय है। दो-तिहाई आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।

यह केवल आजीविका का साधन नहीं है बल्कि जीवन का एक तरीका है। यह भोजन, चारा और ईंधन का मुख्य स्रोत है। यह आर्थिक विकास का मूल आधार है।

आजादी के दौरान प्रति हेक्टेयर और प्रति मजदूर उत्पादकता बहुत कम थी।

हालांकि, 1950-51 के बाद से आर्थिक नियोजन की शुरुआत और विशेष रूप से 1962 के बाद कृषि विकास पर विशेष जोर देने के कारण स्थिर कृषि का पिछला रुझान पूरी तरह से बदल गया था।

  • खेती के अंतर्गत क्षेत्र में लगातार वृद्धि देखी जाती है।
  • खाद्य फसलों में पर्याप्त वृद्धि चिह्नित की गयी है।
  • योजना अवधि के दौरान प्रति हेक्टेयर उपज में लगातार वृद्धि हुई थी।

कृषि का महत्व (Importance of agriculture in hindi)

भारत कृषि प्रधान देश है। 71% लोग गाँवों में रहते हैं और इनमें से अधिकांश कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए कृषि के विकास से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। कृषि की प्रगति के बिना उद्योग, व्यापार और परिवहन की प्रगति असंभव है। कीमतों की स्थिरता कृषि विकास पर भी निर्भर करती है।

कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन पर इसका गहरा प्रभाव है।

जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में,

“कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता की आवश्यकता थी क्योंकि अगर कृषि सफल नहीं होगी तो सरकार और राष्ट्र दोनों ही विफल हो जाएंगे ”

यद्यपि उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, फिर भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

इसे निम्न तथ्यों और आंकड़ों द्वारा मापा और देखा जा सकता है:

1. राष्ट्रीय आय पर कृषि प्रभाव:

सकल घरेलू उत्पाद की ओर पहले दो दशकों के दौरान कृषि का योगदान 48 से 60% के बीच रहा। वर्ष 2001-2002 में, यह योगदान घटकर केवल 26% रह गया।

2. सरकारी बजट में योगदान:

प्रथम पंचवर्षीय योजना से कृषि को केंद्र और राज्य दोनों के बजट के लिए प्रमुख राजस्व संग्रह क्षेत्र माना जाता है। हालाँकि, सरकारें कृषि और इसकी सहयोगी गतिविधियों जैसे मवेशी पालन, पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन इत्यादि से भारी राजस्व कमाती हैं। भारतीय रेलवे राज्य परिवहन प्रणाली के साथ-साथ कृषि उत्पादों के लिए माल ढुलाई शुल्क के रूप में एक सुंदर राजस्व भी कमाती है, दोनों अर्ध-समाप्त और समाप्त कर दिया।

3. कृषि बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन का प्रावधान करती है:

भारत जैसे जनसंख्या श्रम अधिशेष अर्थव्यवस्थाओं के अत्यधिक दबाव और भोजन की मांग में तेजी से वृद्धि के कारण, खाद्य उत्पादन तेज दर से बढ़ता है। इन देशों में भोजन की खपत का मौजूदा स्तर बहुत कम है और प्रति व्यक्ति आय में थोड़ी वृद्धि के साथ, भोजन की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है (दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विकासशील देशों में भोजन की मांग की आय लोच बहुत अधिक है)।

इसलिए, जब तक कृषि खाद्यान्नों के अधिशेष के विपणन में लगातार वृद्धि करने में सक्षम नहीं होती, तब तक एक संकट उभरने जैसा है। कई विकासशील देश इस चरण से गुजर रहे हैं और मा के लिए बढ़ती खाद्य आवश्यकताओं के लिए कृषि का विकास किया गया है।

4. पूंजी निर्माण में योगदान:

आवश्यकता पूंजी निर्माण पर सामान्य सहमति है। चूंकि भारत जैसे विकासशील देश में कृषि सबसे बड़ा उद्योग है, इसलिए यह पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि यह ऐसा करने में विफल रहता है, तो पूरी प्रक्रिया आर्थिक विकास को झटका देगी।

कृषि से अधिशेष निकालने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ ली जाती हैं:

  • खेत गैर-कृषि गतिविधियों से श्रम और पूंजी का हस्तांतरण।
  • कृषि का कराधान इस तरह से होना चाहिए कि कृषि पर बोझ कृषि को प्रदान की गई सरकारी सेवाओं से अधिक हो। इसलिए, कृषि से अधिशेष की पीढ़ी अंततः कृषि उत्पादकता को बढ़ाने पर निर्भर करेगी।

5. कृषि आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति:

कृषि विभिन्न कृषि आधारित उद्योगों जैसे चीनी, जूट, सूती वस्त्र और वनस्पती उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इसी तरह कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए इन उद्योगों का विकास पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है।

6. औद्योगिक उत्पादों के लिए बाजार:

औद्योगिक विकास के लिए ग्रामीण क्रय शक्ति में वृद्धि बहुत आवश्यक है क्योंकि दो-तिहाई भारतीय आबादी गांवों में रहती है। हरित क्रांति के बाद बड़े किसानों की क्रय शक्ति उनकी बढ़ी हुई आय और नगण्य कर बोझ के कारण बढ़ गई।

7. आंतरिक और बाहरी व्यापार और वाणिज्य पर प्रभाव:

भारतीय कृषि देश के आंतरिक और बाहरी व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों में आंतरिक व्यापार सेवा क्षेत्र के विस्तार में मदद करता है।

8. कृषि रोजगार पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

भारत में कम से कम दो-तिहाई श्रमिक आबादी कृषि कार्यों के माध्यम से अपना जीवन यापन करती है। भारत में अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ने में विफल रहे हैं।

9. श्रम शक्ति की आवश्यकता:

निर्माण कार्यों और अन्य क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कुशल और अकुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस श्रम की आपूर्ति भारतीय कृषि द्वारा की जाती है।

10. अधिक से अधिक लाभ:

कम कृषि लागत और इनपुट आपूर्ति में आत्मनिर्भरता के कारण भारतीय कृषि को निर्यात क्षेत्र में कई कृषि वस्तुओं में लागत लाभ है।

11. भोजन का मुख्य स्रोत:

कृषि राष्ट्र के लिए भोजन प्रदान करती है। 1947 से पहले हमारे पास भोजन की कमी थी, लेकिन 1969 के बाद कृषि में हरित क्रांति ने हमें खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया। 2003-04 में चावल का उत्पादन 870 लाख मीट्रिक टन और गेहूं का 721 लाख मीट्रिक टन था।

12. परिवहन:

खेतों से उपभोक्ताओं और कृषि कच्चे माल को बाजारों और कारखानों में ले जाने के लिए परिवहन के साधनों की आवश्यकता होती है। बाजार और कारखानों से रासायनिक खाद, बीज, डीजल और कृषि उपकरण लेने के लिए भी परिवहन की आवश्यकता है।

13. बचत का स्रोत:

हरित क्रांति ने उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है और किसान समृद्ध हो गए हैं। इन किसानों द्वारा अर्जित अतिरिक्त आय को बचाया जा सकता है और बैंकों में निवेश किया जा सकता है।

14. पूंजी निर्माण:

कृषि पूंजी निर्माण में भी मदद करती है। कृषि उत्पादन से अधिशेष आय को अन्य स्रोतों जैसे बैंक, शेयर आदि में निवेश किया जा सकता है। ट्रैक्टर और हार्वेस्टर का उपयोग पूंजी निर्माण को बढ़ाता है।

15. अंतर्राष्ट्रीय महत्व:

भारत मूंगफली और गन्ने के उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है। चावल और स्टेपल कॉटन के उत्पादन में इसका दूसरा स्थान है। तंबाकू के उत्पादन में इसका तीसरा स्थान है। हमारे कृषि विश्वविद्यालय अन्य विकासशील देशों के लिए रोल मॉडल के रूप में काम कर रहे हैं।

कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Importance of agriculture in Indian economy in hindi)

निम्नलिखित बिंदु भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि की सात प्रमुख भूमिकाओं को उजागर करते हैं।

1. सकल घरेलू उत्पाद (राष्ट्रीय आय) में योगदान:

1950-51 में कृषि ने लगभग 55 फीसदी भारत की राष्ट्रीय आय (GDP) में योगदान दिया था।

हालाँकि, प्रतिशत धीरे-धीरे घटकर 19.4 पर 2007-08 में आ गया था। अन्य देशों में, राष्ट्रीय आय में कृषि का प्रतिशत योगदान बहुत कम है।

दुनिया के अधिकांश विकसित देशों में- जैसे यूके, और यूएसए, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया- यह 5 फीसदी से नीचे है।

वास्तव में, जीडीपी की क्षेत्रीय संरचना किसी देश के विकास के स्तर को इंगित करती है। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और संबद्ध गतिविधियों का योगदान जितना अधिक होगा, उतना ही आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ देश होना चाहिए। इस प्रकार, भारत के राष्ट्रीय उत्पादन में कृषि का प्रसार पिछड़ेपन का एक लक्षण है।

2. रोजगार सृजन:

भारत में अधिकांश लोग अपनी आजीविका कृषि से प्राप्त करते हैं। कृषि अभी भी सबसे प्रमुख क्षेत्र है क्योंकि कृषि पर निर्भर जनसंख्या का एक उच्च अनुपात अभी भी काम कर रहा है। भारत में कृषि के आधार पर कामकाजी आबादी का प्रतिशत 1961 और 1971 के सेंसर के अनुसार 69.7 था।

तब से प्रतिशत कम या ज्यादा अपरिवर्तित रहा है। 2001 में, यह घटकर 57 फीसदी हो गया। अधिकांश औद्योगिक रूप से उन्नत देशों में प्रतिशत 1 और 7 के बीच भिन्न होता है। इसके विपरीत, यह सबसे विकासशील देशों में 40 और 70 के बीच होता है। चीन में, प्रतिशत शायद सबसे अधिक (72) है, इसके बाद भारत (52.7), इंडोनेशिया (52), म्यांमार (50) और मिस्र (42) हैं।

3. औद्योगिक विकास में योगदान

कृषि एक अन्य कारण से भी महत्वपूर्ण है। यदि यह उचित गति से विकसित होने में विफल रहता है, तो यह औद्योगिक और अन्य क्षेत्रों की वृद्धि पर एक प्रमुख बाधा साबित हो सकता है। इसके अलावा, कृषि औद्योगिक वस्तुओं के लिए एक प्रमुख बाजार बनकर औद्योगिक विस्तार का मकसद प्रदान कर सकता है।

भारत में, कृषि सभी जूट और सूती वस्त्र, चीनी, वनस्पती, और वृक्षारोपण जैसे बुनियादी उद्योगों के लिए कच्चे माल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। इसके अतिरिक्त, कुछ उद्योग अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करते हैं जैसे कि छोटे पैमाने पर और कुटीर उद्योग जैसे हथकरघा बुनाई, तेल पेराई, चावल की भूसी, और इतने पर।

ऐसे कृषि आधारित उद्योग- जो अपने कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर हैं – भारत के द्वितीयक (विनिर्माण) क्षेत्र में उत्पन्न आय का आधा हिस्सा हैं।

4. विदेश व्यापार में योगदान:

भारत के बाहरी व्यापार में कृषि ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के पारंपरिक निर्यात की तीन प्रमुख वस्तुएं, चाय, जूट और सूती वस्त्र, कृषि आधारित हैं। अन्य वस्तुओं में चीनी, तिलहन, तम्बाकू, और मसाले शामिल हैं।

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पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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कृषि (एग्रीकल्चर) क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसके प्रकार, लाभ व विशेषताएं

मानवीय सभ्यता का सर्वाधिक प्राचीन व्यवसाय कृषि (agriculture in hindi) ही है ।

कृषि (एग्रीकल्चर) के माध्यम से मानव की सर्वाधिक बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र, इंधन एवं पशुओं के लिए चारे आदि की पूर्ति की जाती है ।

एक व्यवसाय के रूप में  कृषि (agriculture in hindi)  का बहुमुखी विकास हुआ है तथा इसके अनेक व्यवहारिक आयाम स्पष्ट हुए हैं जैसे -

  • खेती किसानी
  • बागवानी
  • वानिकी
  • पशुपालन आदि ।

इनमें सामान्यत: खेती किसानी को कृषि (agriculture in hindi) का विशुद्ध रूप माना जाता है जबकि अन्य इसके सहायक अथवा उप व्यवसाय है ।

ऐतिहासिक रूप से खेती किसानी का विकास आदि काल से आधुनिक काल तक निरंतर होता रहा है एवं इस विकास को खेती (kheti) की विभिन्न विधियों के रूप में रेखाकृत किया जा सकता है ।

कृषि का क्या अर्थ है? | meaning of agriculture in hindi

प्रो० चैम्बर विश्वकोष में एस० जे० वाटसन ने कृषि का अर्थ (agriculture hindi meaning) "मृदा संस्कृति" से लगाया है ।

जबकि प्रो० ई० डब्लू० जिम्मरमैन (E.W. Zimmermann) ने कृषि शब्द का अर्थ (agriculture in hindi meaning) भूमि से जुड़े हुए सभी मानवीय कार्य, जैसे - खेत का निर्माण, जुताई, बुआई, फसल उगाना, सिंचाई करना, पशुपालन, मत्स्य पालन, वृक्षारोपण एवं उनका संवर्धन आदि सम्मिलित है ।

कृषि शब्द का अर्थ (meaning of agriculture in hindi) -

हिन्दी के 'कृषि' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की 'कृष्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'जोतना' अथवा 'खींचना' है ।

इसके अंग्रेजी पर्याय 'Agriculture' की रचना लैटिन भाषा के दो शब्दों 'Agre' अर्थात् Land या Field तथा 'Cultura' अर्थात् The care of या Cultivation से हुई है जिसका अर्थ है 'भूमि को परिष्कृत करके फसलोत्पादन करना' ।

'Agriculture' एक लैटिन भाषा का शब्द है अर्थात् वे सभी शब्द जिनमें 'Culture' का प्रयोग होता है वह सभी लैटिन भाषा के शब्द ही कहे जाते हैं ।

कृषि की परिभाषा लिखिए? | definition of agriculture in hindi

खाद्य एवं कृषि संगठन (F.A.O.) के प्रतिवेदन के अनुसार कृषि (definition of agriculture in hindi) अन्तर्गत फसल क्षेत्र, वृक्ष क्षेत्र, स्थायी घास के मैदान तथा रेंच के अतिरिक्त अन्य चरागाह भी सम्मिलित किये जाते हैं ।

कृषि की परिभाषा (krishi ki paribhasha) प्रमुख विद्वानों ने निम्न प्रकार दी है -

1. प्रो० डी० ह्विटलसी के कथनानुसार -.

“पादप एवं पशु मूल के उत्पादों की प्राप्ति के उद्देश्य से किये गये मानवीय प्रयास कृषि कहलाते हैं ।"

2. हेरोल्ड एच० मैकार्टी के कथनानुसार -

“फसलों एवं पशुओं की सोद्देश्य देख - रेख को कृषि की संज्ञा प्रदान की जाती है ।"

3. लेसली सायमन्स के कथनानुसार -

“यह पशुपालन की भाँति भूमि पालन की मानवीय प्रक्रिया है ।"

कृषि क्या है यह कितने प्रकार की होती है इसके लाभ व विशेषताएं लिखिए?

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि कृषि (agriculture in hindi) का व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है तथा इसके अंतर्गत उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनकी सहायता से भोजन और कच्चे माल की प्राप्ति के लिए मिट्टी का उपयोग होता है ।

भूमि के इस उद्देश्यपूर्ण उपयोग में प्रमुख रूप से भूमि की जुताई, सिंचाई, उर्वरकों की आपूर्ति, मृदा संरक्षण, हानिकारक तत्वों से फसलों की रक्षा आदि के उपाय सम्मिलित किये जाते हैं ।

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कृषि क्या है? | krishi kya hai?

ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार - 'एग्रीकल्चर' मृदा कर्षण एवं खेती बाड़ी का विज्ञान है, जिसमें विभिन्न क्रियायें जैसे - संगग्रहण, पशुपालन, जुताई आदि सम्मिलित की जाती हैं ।

कृषिविदों ने कृषि के अंतर्गत फसल उत्पादन तथा पशुपालन (animal husbandry in hindi) दोनों को ही सम्मिलित किया है ।

डी० ग्रिग के कथनानुसार -

“फसलें उत्पन्न करने के लिए मिट्टी - की जोताई - बुआई का कार्य कृषि कहलाता है ।"

कृषि कितने प्रकार की होती है? | types of agriculture in hindi

कृषि प्रणालियाँ या अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु, मृदा, उच्चावच, भू स्वामित्व जोत का आकार एवं अन्य तत्त्वों से नियन्त्रित होती हैं ।

अतः विश्व की कृषि अर्थव्यवस्था विभाजन में डी० ह्वीटलसी ने कृषि अधिभोग के आधार पर कृषि के प्रकार (type of agriculture in hindi) बतलाये हैं ।

कृषि के प्रमुख प्रकार (krishi ke prkar) निम्नलिखित है -

  • स्थानान्तरणशील कृषि
  • प्रारम्भिक स्थायी कृषि
  • व्यापारिक पशुपालन
  • चलवासी पशुचारण
  • चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषि
  • चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषि
  • व्यापारिक बागाती कृषि
  • भूमध्य सागरीय कृषि
  • व्यवस्थाव्यापारिक खाद्यान्न उत्पादन कृषि
  • व्यापारिक शस्य व पशु उत्पादक कृषि
  • जीविकोपार्जन फसल व पशु उत्पादक कृषि
  • व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषि
  • विशिष्टीकृत उद्यान कृषि

इन सभी कारकों के सम्मिलित स्वरूप से उत्पन्न प्रणाली या अर्थव्यवस्था का अध्ययन अत्यन्त जटिल कार्य है किन्तु इससे विश्व में प्रचलित अनेक प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) को पहचानने में सर्वाधिक सहयोग मिलता है ।

वास्तव में, एक ही क्षेत्र में एक से अधिक कृषि प्रकारों के समावेश से क्षेत्रीय जटिलता का स्वरूप उभरता है । कृषि के प्रकारों (krishi ke parkar) के इसी सम्मिलित रूप को वृहद क्षेत्र पर विस्तृत होने से प्रणाली का जन्म होता है ।

अत: कृषि की प्रणालियाँ अनेक कृषि पद्धतियों या प्रकारों के कारण विकसित होती हैं । इस प्रकार एक ही प्रणाली के अन्तर्गत अनेक कृषि के प्रकार हो सकते हैं और साथ ही वृहद कृषि प्रकार में बहुत सी प्रणालियाँ भी मिल सकती हैं ।

वैश्विक धरातल पर विघमान‌ प्रमुख कृषि के प्रकारों का वर्णन

स्थानान्तरणशील कृषि ( shifting cultivation ).

इस प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन अफ्रीका के काँगो बेसिन, द० पू० एशिया एवं पूर्वी द्वीप समूह के विषम उच्च भू - भागों में विशेष रूप से प्रचलित है ।

इस प्रकार की कृषि (krishi) को भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे मलाया एवं हिन्देशिया में लंदांग, फिलीपीन्स में कैनजीन, श्रीलंका में चेना, अमेरिका एवं अफ्रीका में मिलपा, सूडान में नगासू । यह कृषि व्यवस्था उष्णार्द्र कटिबन्धीय प्रदेशों में , जहाँ वर्ष भर ऊँचा तापमान एवं अत्यधिक वर्षा के कारण सघन वन पाये जाते हैं , मिलती है ।

सर्वप्रथम इस प्रकार की कृषि के लिए वन (forest in hindi) के सीमान्तीय भागों में क्षेत्र का चयन करके, आग द्वारा जलाकर खेत तैयार किया जाता है । खेत का औसत क्षेत्रफल 2 हेक्टेयर तक होता है । खेती में मानव श्रम का उपयोग होता है । खाद (manure in hindi) एवं पूँजी का निवेश मिलता है । खेत व्यक्तिगत नहीं होते बल्कि सार्वजनिक होते हैं ।

दो वर्ष तक ही कृषि की जाती है, तदुपरांत उसे छोड़कर दूसरा खेत बनाते हैं क्योंकि अत्यधिक वर्षा के कारण मृदा अपक्षरण की गति तीव्र होती है जिससे मृदा की उर्वरता (soil fertility in hindi) शीघ्र ही क्षीण हो जाती है । उत्पादन कम होता है, परिश्रम अधिक करना पड़ता है और उत्पादित फसलों का उपयोग स्थानीय होता है । केवल खाद्यान्न फसलों का ही उत्पादन होता है जिसमें मक्का, ज्वार - बाजरा, धान मुख्य हैं ।

प्रारम्भिक स्थायी कृषि ( Rudimental Sedentary Tillage )

यह व्यवस्था अनुकूल स्थलों पर चलवासी या स्थानान्तरणीय समुदाय के लोगों के बस जाने से प्रारम्भ होती है या इसे स्थानान्तरणीय या चल वासी कृषि व्यवस्थाओं का विकसित रूप कहा जा सकता है ।

विश्व में इस प्रकार की अर्थव्यवस्था मध्य अमेरिका के पठारी एवं पहाड़ी भागों में, पश्चिमी द्वीप समूह के कुछ द्वीपों पर, एण्डीज श्रेणी के उष्ण कटिबन्धीय भागों, घाना, नाइजीरिया, कीन्या तथा पूर्वी अफ्रीका के पठारों तथा हिन्दचीन एवं पूर्वी द्वीप समूह के बिखरे हुये द्वीपीय भागों मे जनजातियाँ स्थायी रूप से बस गयी हैं । कृषि आदिम प्रकार की है । उर्वरकों की कमी के कारण भूमि को परती छोड़ना पड़ता है ।

उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र, उष्ण कटिबन्धीय ऊँचे पठार तथा पहाड़ी भागों, उष्ण कटिबन्धीय मौसमी जलवायु वाले मैदानों जहाँ जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक है , वहाँ यह कृषि (agriculture in hindi) पायी जाती है । उन भागों में, जहाँ वर्षा कम तथा शुष्कता अधिक होती है, प्रारम्भिक स्थायी कृषि होती है ।

चलवासी पशुचारण ( Nomadic Herding )

इसे घुमक्कड़ या खानाबदोश अर्थव्यवस्था भी कहते हैं । यह अर्थव्यवस्था उन क्षेत्रों में पायी जाती है जहाँ भौगोलिक दशायें फसलों के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसके अंतर्गत पशुओं के चारे के लिए प्राकृतिक घास उपलब्ध हो जाती है । मुख्यतया इसके क्षेत्र शुष्क प्रदेशों में मिलते हैं ।

सहारा से अरब तक के शुष्क प्रदेश, मध्य - एशियाई देश, तिब्बत, मंगोलिया एवं टुण्ड्रा हैं जहाँ इस प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती है । पशु ही जीवन - निर्वाहन के स्रोत हैं । पशुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर चराना मुख्य व्यवसाय है ।

स्थानान्तरणशीलता, इस अर्थ व्यवस्था का मुख्य अंग है । चारे की प्राप्ति के लिए पशुओं के साथ यह आवश्यक प्रक्रिया है । एक स्थल पर ठहरने की अवधि प्राकृतिक चारे एवं जल द्वारा निर्धारित होती है ।

इस अर्थव्यवस्था में कबीले, कज्जाक, खिरगीज, खैप, कालमैक्स तथा मंगोल आदि खानाबदोश जातियाँ मिली हैं । इनका निवास तम्बू, गुफा या हिम - झोपड़ी होती है जिसे सुगमतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है या हटाया जा सकता है । वर्तमान समय में इस प्रकार की आर्थिक व्यवस्था में क्रमशः ह्रास हो रहा है ।

व्यापारिक पशुपालन ( Livestock Ranching )

विश्व के अर्द्धशुष्क प्रदेश में, जहाँ फसलों की अपेक्षा प्राकृतिक घास पशुओं के लिए विशेष उपयुक्त है, वहाँ व्यापारिक दृष्टि से पशुपालन (animal husbandry in hindi) प्रारम्भ किया गया है ।

व्यापारिक पशुपालन का श्रेय यूरोप आप्रवासियों की है । ये नयी दुनियाँ के प्राकृतिक घास प्रदेशों में भू - स्वामित्व प्राप्त करके स्थायी रूप से बस गये । इन निजी चरागाहों को जो चारों ओर से घिरे रहते हैं - रेंच  कहते हैं ।

इस प्रकार का व्यापारिक पशुपालन न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग में विकसित हुआ है, बल्कि अर्जेन्टाइना, यूरुग्वे, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिणी अफ्रीका में भी कृषि (krishi) का महत्त्वपूर्ण अंग है ।

इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से व्यापारिक पशुपालन प्रदेशों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • समशीतोष्ण घास क्षेत्र एवं
  • उष्ण सवाना विस्तृत क्षेत्र ।

समशीतोष्ण घास क्षेत्र के अन्तर्गत उत्तरी अमेरिका का मध्य उत्तरी मैदान एवं पठार, दक्षिणी अमेरिका का दक्षिणी पूर्वी भाग, दक्षिणी मध्य आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड का दक्षिणी पूर्वी भाग तथा दक्षिणी अफ्रीका के पठारी भाग को सम्मिलित करते हैं । दूसरा घास क्षेत्र उष्ण सवाना का है जो अफ्रीका के 10 से 20° दक्षिणी गोलार्द्ध में विस्तृत हैं ।

चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषि ( Intensive Subsistence Tillage with Rice )

विश्व के गहन चावल उत्पादक भागों में वर्ष पर्यन्त ऊँचा तापमान तथा वार्षिक वर्षा 200 सेमी० से अधिक मिलती है । भौगोलिक दशाओं की उपयुक्तता के कारण ही वर्ष में तीन बार तक चावल की कृषि होती है । चावल की इस कृषि व्यवस्था को ' सावाह ' कृषि के नाम से जाना जाता है । मानसून एशियाई देश विश्व का लगभग 90% चावल उत्पन्न करते हैं ।

मुख्य चावल उत्पादक देश चीन (30%), भारत (21%), इण्डोनेशिया (8.5%), बांग्लादेश (5.6%), थाईलैण्ड (3.8%), वियतनाम (3.7%), म्यामांर (2.5%) एवं जापान (2.3%) है ।

इन उपर्युक्त सभी देशों में चावल की कृषि (agriculture in hindi) डेल्टाई भागों, बाढ़ के मैदानों, सीढ़ीदार तथा निम्नवर्ती भागों में की जाती है । मुख्य चावल उत्पादित भागों में - गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी मीमांग, सीक्यांग, यांगटिसिक्याँग के निचले मैदानी एवं डेल्टाई भाग है ।

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  • फसल प्रणाली किसे कहते है एवं इसके प्रकार
  • फसल किसे कहते है यह कितने प्रकार की होती है 

चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषि ( Intensive Subsistence Tillage without Rice )

मानसून एशिया के ऐसे भाग जहाँ 100 सेमी० से कम वर्षा एवं निम्न तापक्रम होता है, वहाँ चावल के अतिरिक्त अन्य फसलें भी उत्पन्न की जाती हैं । ऐसे भागों में शुष्क कृषि (dry farming in hindi) की प्रधानता होती है जिसमें ज्वार, बाजरा, मक्का अरहर आदि फसलें उगायी जाती हैं । जहाँ सिंचाई की सुविधा है, जहाँ गेहूँ, एवं कपास का भी उत्पादन होता है ।

इस प्रकार तापमान एवं वर्षा की मात्रा के अनुसार गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि फसलों में से किसी एक ही फसल की प्रधानता रहती है ।

दक्षिणी पूर्वी एशिया विश्व का लगभग 60% पीनट, 57% ज्वार - बाजरा, 40% सोयाबीन, 20% गेहूँ तथा 16% जौ उत्पन्न करता है ।

मौसमी परिवर्तन के फलस्वरूप जीविकोपार्जन कृषि को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -

  • ग्रीष्म कालीन मौसम की फसलें
  • वर्षा कालीन मौसम की फसलें
  • शीत या शुष्क मौसम की फसलें ।

व्यापारिक बागाती कृषि ( Commercial Plantation Tillage )

यह विदेशी प्रणाली है जिसका इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है । इस व्यवस्था में अनेक उपजें (चाय, कहवा, नारियल, गन्ना, केला, मसालें, कोको, रबर आदि) बागानों में व्यापारिक दृष्टि से उत्पन्न की जाती हैं ।

इस कृषि का विकास एवं प्रोत्साहन समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों को निर्यात करने के उद्देश्य से अनेक उष्ण कटिबन्धीय देशों में उपनिवेशवाद के दौरान किया गया था । चाय, कपास एवं तम्बाकू जैसी कुछ फसलें उपोष्ण कटिबन्धीय देशों में भी उपजायी जाती हैं । विश्व में बागाती कृषि के प्रमुख तीन क्षेत्र लैटिन अमेरिका, अफ्रीका एवं दक्षिणी - पूर्वी एशिया है ।

भूमध्य सागरीय कृषि व्यवस्था ( Mediterranean Agriculture )

इस व्यवस्था का नामकरण किसी फसल विशेष पर आधारित न होकर प्राकृतिक एवं भौगोलिक विशेषताओं पर आधारित है । यह कृषि व्यवस्था 30 से 45° उत्तरी दक्षिणी अक्षांशों के मध्य, महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर पाई जाती है ।

इसका सर्वाधिक विस्तार भूमध्य सागर के तट पर है जिसमें स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, इटली, ग्रीक, टर्की, सीरिया, लेबनान, इजराइल मोरक्को, अल्जीरिया तथा टयूनिशिया के तटीय क्षेत्र सम्मिलित हैं । इस कृषि - व्यवस्था के अन्तर्गत निर्वाहन, व्यापारिक, पशुपालन, गर्मी में सिंचाई पर आधारित फसलों का उत्पादन, जाड़े की वर्षा पर आधारित फसलोत्पादन, फल , सब्जी खाद्यान्न का उत्पादन आदि अनेक पद्धतियाँ अपनाई जाती है ।

कृषि में अनेक पद्धतियाँ भौगोलिक कारकों की देन हैं क्योंकि विश्व का यही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ उच्च पर्वतीय भू - भाग, सागर तटीय मैदान, सँकरी घाटियों तथा छोटे - छोटे मैदानी क्षेत्र एक ही साथ मिलते हैं । क्षेत्रीय भिन्नता के कारण कृषि (agriculture in hindi) से सम्बन्धित अनेक प्रकार के उद्यम - खाद्यान्न, फसलोत्पादन तथा भेड़ - बकरी पालन आदि इन क्षेत्रों में अपनाये जाते हैं ।

व्यापारिक खाद्यान्न उत्पादन कृषि ( Commercial Grain Farming )

यह कृषि व्यवस्था तकनीकी विकास की देन है । इस प्रकार की कृषि मध्य अक्षांशीय आर्द्र एवं शुष्क प्रदेशों के मध्य विस्तृत घास मैदानों में मिलती हैं जहाँ की मिट्टी वनस्पति तथा हिमयुग के निक्षेपण से अधिक उर्वर है । अन्य कृषि (krishi) व्यवस्थाओं की तुलना में इस कृषि में सीमित क्षेत्र सम्मिलित हैं । संसार में इस प्रकार के कृषि क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाड़ा के प्रयेरी प्रदेश, अर्जेन्टाइना के पम्पास, आस्ट्रेलिया एवं रूस के स्टैपी भागों में पाये जाते हैं ।

इस कृषि व्यवस्था में निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं -

  • विस्तृत क्षेत्र में कृषि
  • कृषि में यन्त्रीकरण का सर्वाधिक उपयोग
  • अत्यधिक बड़े - बड़े कृषि फार्मों पर खेती
  • एक फसल का विशिष्टीकरण
  • पूँजी का अधिकतम निवेश ।

इस कृषि प्रणाली (krishi pranali) की एक मात्र फसल गेहूँ है । इसकी खेती विस्तृत कृषि पद्धति के अन्तर्गत बड़े आकार के फार्मों पर की जाती हैं ।

व्यापारिक शस्य व पशु उत्पादक कृषि ( Commercial Crops and Livestock Faming )

इस व्यवस्था में शस्योत्पादन तथा पशुपालन कार्य साथ - साथ व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है । इसे मिश्रित कृषि (mixed farming in hindi) भी कहते हैं । इस कृषि का जन्म यूरोप में ही हुआ है । यह व्यवस्था पश्चिमी यूरोप से एक लम्बी पेटी के रूप में साइबेरिया तक फैली है ।

इस पेटी में जैसे - जैसे पूरब जाते हैं, यह पेटी क्रमश: पतली होती जाती है । सर्वाधिक चौड़ाई 1200 किमी ० यूक्रेन एवं फिनलैण्ड के मध्य पायी जाती है । संयुक्त राज्य मे ओहियो, इण्डियाना, इलिनायस, इयीवा, नेब्रास्का, वर्जीनिया, टैनसी, जार्जिया तथा आल्कोहामा का कुछ भाग इस प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) के अन्तर्गत आता है ।

इस कृषि व्यवस्था में निम्नलिखित विशेषतायें मिलती हैं -

फसलों का उत्पादन तीन दृष्टियों से किया जाता है -.

  • पशुओं को हरे चारे के रूप में
  • अन्न खिलाने की दृष्टि से और
  • व्यापार के लिए ।

( ब ) मिश्रित कृषि में फार्म अपेक्षाकृत बड़े - बड़े होते हैं । औसत फार्मों का क्षेत्रफल 60 हेक्टेयर है ।

( स ) कृषि भूमि उपयोग में फसल चक्र की पद्धति यहाँ की कृषि की प्रमुख विशेषता है । यह परिवर्तन मिट्टी की उर्वर शक्ति को बनाये रखने में मदद करती है ।

( द ) मिश्रित कृषि व्यवस्था में पूँजी का अधिकाधिक विनियोग होता है । इस कृषि में पूँजी एवं श्रम दोनों की आवश्यकता पड़ती है ।

जीविकोपार्जन फसल व पशु उत्पादक कृषि ( Subsistence Livestock Crop Faming )

इस कृषि का जन्म उत्तरी यूरोप में हुआ था । यह व्यवस्था कुछ हद तक उपर्युक्त कृषि (krishi) व्यवस्था से मिलती - जुलती है, क्योंकि इसमें कुछ ही फसलें फार्मों पर उत्पन्न की जाती है । अन्तर केवल इतना है कि उत्पादन बहुत अल्प विक्रय के लिए बचता है जबकि उपर्युक्त व्यवस्था में विक्रय मुख्य उपागम है । इसमें कुछ फार्मों पर तो बिल्कुल ही उत्पादन का विक्रय सम्भव नहीं हो पाता है । विश्व में इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत बहुत ही अल्प क्षेत्र पाया जाता है ।

आज इस तीव्र विकास के युग में इतनी प्रगति हो गयी है विश्व में इस प्रकार की कृषि व्यवस्था व्यापारिक शस्य एवं पशु उत्पादन कृषि के रूप में बदल गयी है । इस प्रकार की कृषि पश्चिमी एशियाई अर्थात् टर्की, उत्तरी ईरान, मध्यवर्ती एशिया तथा उत्तरी साइबेरिया में जहाँ भौगोलिक दशायें विशेष अनुकूल नहीं है, विकसित हुई हैं । इन कृषि व्यवस्था में वर्ष में एक फसल के कारण बाध्य होकर पशुपालन (animal husbandry in hindi) को अपनाना पड़ता है ।

व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषि ( Commercial Dairy Farming )

व्यापारिक पशुपालन कृषि का प्रधान उद्देश्य दूध एवं दूध से बने पदार्थों के व्यापारिक उत्पादन हेतु खेती करना है । यह सर्वोच्च कृषि व्यवस्था है । फसलोत्पादन की अपेक्षा इस व्यवस्था में अधिक श्रम, पूँजी, कृषि एवं मशीनों तथा सामयिक सक्रियता और सजगता की आवश्यकता पड़ती है ।

यह उद्यम उन्हीं भागों में सफल है जहाँ शहरी बाजारों की निकटता, दूध, क्रीम, मक्खन, पनीर तथा माँस बेचने की सुविधाएँ सुलभ हैं । साथ ही परिवहन के साधन विशेष रूप से सुलभ हों । इस ढंग की कृषि का प्रसार विशेषकर बड़े पैमाने पर समशीतोष्ण जलवायु प्रदेश में हुआ है । उष्ण प्रदेशों, विशेषकर शहरी केन्द्रों के समीपवर्ती क्षेत्रों, में भी दुग्ध पशुपालन कार्य सम्पन्न किया जाता है ।

विश्व में यह व्यवस्था निम्न तीन प्रदेशों में विशेष रूप से विकसित हुई है -

  • पश्चिमी यूरोप के उत्तरी भाग में अंध महासागर तट से लेकर मास्को तक
  • उत्तरी अमेरिका में बड़ी झीलों के पश्चिमी प्रेयरी प्रदेश से अंध महासागर तट तक
  • आस्ट्रेलिया के दक्षिणी - पूर्वी भाग, तस्मानिया एवं न्यूजीलैण्ड में ।

विशिष्टीकृत उद्यान कृषि ( Specialized Horticulture )

इस कृषि के अन्तर्गत सब्जी, फल एवं फल का उत्पादन सम्मिलित है जो लगभग सभी देशों के औद्योगिक एवं शहरी विकास की देन है । प्राय: शहरी मकानों के पीछे एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव के चारों तरफ साग - सब्जी, फूल - फल का उगाया जाना सामान्य बात है । बड़े - बड़े नगरों के सीमान्तीय क्षेत्रों पर फूल - फल, साग - सब्जी की कृषि सघन रूप से की जाती है ।

विश्व में इस प्रकार की कृषि (krishi) विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, ग्रेट ब्रिटेन, डेनमार्क, बेल्जियम, हालैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों की घनी बस्ती वाले भागों में सम्पन्न होती है । इस व्यवस्था का प्रसार तीव्र वाहन तथा रेफ्रीजरेटर के विकास के बाद व्यापक रूप से हुआ । रेफ्रीजरेटर की व्यवस्था से जलयानों, रेल के डिब्बों, ट्रकों में भर कर ताजी साग - सब्जी, फूल - फल दूर तक पहुँच जाते हैं ।

भारत में भी इस व्यवस्था के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ (पर्याप्त तापमान, सौर प्रकाश, उचित वर्धन काल, नम जलवायु एवं मिट्टी की उपयुक्तता आदि) मिलती है । इसी उपयुक्तता के फलस्वरूप साग - सब्जियों , फूल - फल छोटे - छोटे खेतों तथा बाग - बगीचों में उत्पन्न किये जाते हैं । दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कलकत्ता आदि बड़े नगरों के समीपस्थ क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि (एग्रीकल्चर इन हिंदी) देखी जा सकती है । साथ ही इससे हुई उत्पादन वृद्धि के फलस्वरूप भारत से आलू , प्याज आदि सब्जियों का निर्यात पश्चिमी एशियाई देशों को होने लगा है ।

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि वैश्विक धरातल पर विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियाँ परिस्थितियों, आवश्यकताओं, मांग एवं प्रौद्योगिकी के स्तर के आधार पर प्रचलित हैं ।

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कृषि के क्या लाभ है? | benefits of agriculture in hindi

भारतीय कृषि के लाभ (krishi ke labh) को देश की अर्थव्यवस्था से स्पष्ट किया जा सकता है ।

कृषि के प्रमुख लाभ (krishi ke labh) निम्नलिखित है -

  • भारतीय कृषि राष्ट्रीय आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है ।
  • सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 67% भाग अपनी आजीविका कृषि से ही प्राप्त करता है ।
  • देश के कुल भू - क्षेत्र में लगभग 49.8% भाग में खेती की जाती है ।
  • कृषि देश का लगभग 103 करोड़ जनसंख्या को भोजन तथा 36 करोड़ पशुओं को चारा प्रदान करती है ।
  • देश के महत्त्वपूर्ण उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आश्रित हैं ।
  • चाय, जूट, लाख, शक्कर, ऊन, रुई, मसाले, तिलहन आदि के निर्यात से देश को पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है ।
  • कृषि देश के आन्तरिक व्यापार का प्रमुख आधार है । कृषि एवं कृषि वस्तुएँ केन्द्र एवं राज्य सरकारों को राजस्व उपलब्ध कराती है ।
  • कृषि उत्पादन यातायात को पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करता है ।
  • विश्व कृषि अर्थव्यवस्था में भारतीय कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

भारतीय कृषि की क्या विशेषताएं हैं? | characteristics of Indian agriculture in hindi

भारत एक प्राचीन एवं कृषि - प्रधान देश है, जहाँ हजारों वर्षों से निरन्तर कृषि - कार्य होता चला आ रहा है । फलत: कृषि भारतीयों के जीवन का एक मुख्य अंग बन गई है ।

भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ -

  • प्रकृति पर निर्भरता
  • कृषि की निम्न उत्पादकता
  • जीविका का प्रमुख साधन
  • भूमि का असमान वितरण
  • जोत की अनार्थिक इकाइयाँ
  • मिश्रित खेती
  • जीवन - निर्वाह के लिए कृषि
  • कृषि की अल्पविकसित अवस्था
  • उत्पादन की परम्परागत तकनीक
  • वर्ष भर रोजगार का अभाव
  • श्रम - प्रधान
  • खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता

देश की अपनी मौलिक परिस्थितियों एवं विशेषताओं के सन्दर्भ में भारतीय कृषि की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं ।

जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है -

( 1 ) प्रकृति पर निर्भरता -.

भारतीय कृषि (agriculture in hindi) को प्रायः भाग्य का खेल कहा जाता है, क्योंकि कृषि मुख्यत: वर्षा की स्थिति पर निर्भर करती है । यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक मात्रा में प्रभावित करती है । अर्थव्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र, चाहे वह उद्योग धन्धे हो अथवा व्यापार, प्राकृतिक प्रभावों से कभी अछूता नहीं बचता ।

( 2 ) कृषि की निम्न उत्पादकता -

भारत में कृषि (krishi) पदार्थों का प्रति एकड़ उत्पादन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है । 2005-06 के अनुमानों के अनुसार भारत में एक हेक्टेयर भूमि में केवल 2,607 किग्रा गेहूँ, 2,093 किग्रा चावल, 375 किग्रा कपास तथा 1,176 किग्रा मूंगफली पैदा होती है । प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि (agriculture in hindi) श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 450 डॉलर है ।

( 3 ) जीविका का प्रमुख साधन -

सन् 2001 ई० की जनगणना के अनुसार कार्यशील जनसंख्या का लगभग 67% भाग कृषि (agriculture in hindi) से आजीविका प्राप्त करता है ।

( 4 ) भूमि का असमान वितरण -

भारत में केवल 10% व्यक्तियों के पास कुल कृषि योग्य भूमि का 51.7% स्वामित्व है, जबकि दूसरी ओर 10% कृषक ऐसे हैं, जिनके पास कृषि योग्य भूमि का केवल 0.18% भाग उपलब्ध है । इतना ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 14% लोग भूमिहीन हैं । देश में औसत प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धि मात्र 0.91% एकड़ है ।

( 5 ) जोत की अनार्थिक इकाइयाँ -

भारतीय कृषि की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहाँ कृषि बहुत छोटे - छोटे क्षेत्रों (खेतों) पर की जाती है । सरैया सहकारी समिति के मतानुसार, भारतीय कृषि के उत्पादन में सबसे बड़ी बाधा अनुत्पादक व अलाभकारी जोते हैं । राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, यद्यपि सम्पूर्ण भारत में कृषि जोतों का औसत आकार 5-34 एकड़ है; तथापि लगभग 70% कृषक परिवार ऐसे हैं, जिन्हें कृषि भूमि का केवल 16% भाग ही प्राप्त है । भारत में कृषि जोतों का आकार केवल छोटा ही नहीं है अपितु व्यक्तिगत जोतें बहुत बिखरी हुई है ।

( 6 ) मिश्रित खेती -

मिश्रित कृषि (mixed farming in hindi) भारतीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है । इसका अभिप्राय यह है कि एक खेत में भारतीय कृषक एक से अधिक फसलें बोता है । पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में एक ही में जौ आदि उगाया जाता है । इस प्रकार की कृषि के स्थान पर विशिष्ट कृषि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ।

( 7 ) जीवन - निर्वाह के लिए कृषि -

हमारे सामाजिक जीवन में कृषि जीवन की एक पद्धति है । व्यक्ति इसलिए खेती (kheti) नहीं करता कि उसके पास जीवन - यापन का कोई अन्य साधन नहीं है । कृषि उपज का अधिकांश भाग वह प्रयोग में ले लेता है । वस्तुत: वह कृषि (krishi) इसी अभिप्राय से करता है कि उसके परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए । वाणिज्यीकरण की ओर वह विशेष ध्यान नहीं देता । यही कारण है कि अभी तक केवल कुछ ही व्यापारिक फसलों का वाणिज्यीकरण सम्भव हो सका है ।

( 8 ) कृषि की अल्पविकसित अवस्था -

निरन्त प्रयासों के बावजूद भारतीय कृषि आज भी पिछड़ी हुई अवस्था में है । दुर्भाग्य से डॉ० क्लाउस्टन के कथन, "भारत में पिछड़ी हुई जातियाँ हैं, पिछड़े वर्ग हैं, पिछड़े उद्योग हैं और दुर्भाग्यवश कृषि उनमें से एक है" में आज भी सत्यता का कुछ अंश विद्यमान है ।

( 9 ) उत्पादन की परम्परागत तकनीक -

कृषि में उत्पादन के लिए अभी भी पुरातन तकनीकों का प्रयोग किया जाता है । यद्यपि आधुनिक युग में आधुनिक एवं नवीन तकनीकों का काफी विकास हुआ है तथापि भारतीय कृषक आज भी हल और खुरपी का प्रयोग करता है ।

( 10 ) वर्ष भर रोजगार का अभाव -

भारतीय कृषि कृषकों को वर्ष भर रोजगार प्रदान नहीं करती, भारतीय कृषक वर्ष में 140 से लेकर 270 दिन तक बेकार रहते हैं । इसी कारण कृषि में अर्द्ध - बेरोजगारी तथा अदृश्य बेरोजगारी की समस्या रहती है ।

( 11 ) श्रम - प्रधान -

भारतीय कृषि श्रम - प्रधान है अर्थात् भारत में पूँजी के अनुपात में श्रम की प्रधानता है ।

( 12 ) खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता -

भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है । देश के कुल कृषि के 75% भाग में खाद्यान्न तथा 25% भाग में व्यापारिक फसलों का उत्पादन होता है ।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय कृषि (indian agriculture in hindi) की अपनी कुछ निजी विशेषताएँ हैं, जिनके कारण भारतीय कृषि ने एक विशिष्ट स्थिति प्राप्त कर ली है ।

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भारतीय कृषि का महत्व एवं कार्य क्षेत्र | impotance & scope of agriculture in hindi

भारत गांवों का देश है । जनगणना 2011 के अनुसार भारत के कुल 6,40,867 गाँवों में देश की कुल जनसंख्या 1,21,01,93,422 का 68.8 प्रतिशत अर्थात् 83,30,87,662 लोग निवास करते हैं ।

इन गाँववासियों का प्रमुख व्यवसाय खेती - किसानी अर्थात् कृषि है । आर्थिक समीक्षा 2011-12 के अनुसार देश की श्रम - शक्ति का 59.70 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से ही आजीविका प्राप्त करता है ।

विगत तीन दशकों से भी अधिक अवधि में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में हुए संगठित प्रयास के बावजूद भारतीय सामाजिक - आर्थिक व्यवस्था में कृषि (agriculture in hindi) का प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण स्थान बना हुआ है ।

देश के उद्योग - धन्धे, विदेशी व्यापार संतुलन, विदेशी मुद्रा अर्जन, विभिन्न योजनाओं की सफलता यहाँ तक की देश का राजनीतिक - सामाजिक स्थायित्व भी कृषि (krishi) पर निर्भर है ।

इसके बावजूद भारतीय कृषि की दशा अधिक अच्छी नहीं है तथा यह अनेक समस्याओं से ग्रस्त है ।

यहाँ तक कि देश के अनेक भागों में किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हैं तथा अपने बच्चों को यथासंभव कृषि (agriculture in hindi) से दूर रखना चाहते हैं ।

भारत में कृषि का क्या महत्व है? | Importance of agriculture in india in hindi

प्राचीन काल से ही कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख क्षेत्र रहा है ।

प्रधान व्यवसाय होने के कारण कृषि भारत जैसे विकासशील देश की राष्ट्रीय आय का सबसे बड़ा स्रोत, रोजगार एवं "जीवन - यापन का प्रमुख साधन, औद्योगिक विकास, वाणिज्य एवं विदेशी व्यापार का आधार है ।

वस्तुत: कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ तथा विकास की कुंजी है । इसी आधार पर महात्मा गाँधी कृषि को 'भारत की आत्मा' मानते थे तथा भारत के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में कहा था, “कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की आवश्यकता है ।"

कृषि विकास का क्या महत्त्व है? | importence of agricultural development in hindi

कृषि विकास के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कोल एवं हूवर का कथन है,

“सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कृषि का विकास पहले होना चाहिए और यदि किसी क्षेत्र के अविकसित होने से दूसरे क्षेत्र के विकास में बाधा पड़ती है तो वह अविकसित क्षेत्र कृषि (agriculture in hindi) ही होगा जो अन्य क्षेत्रों के विकास को बाधित करेगा ।"

जबकि प्रो० शुल्ट्ज का मत है, "कोई भी अल्पविकसित राष्ट्र कृषि में आत्म - निर्भरता प्राप्त किए बिना आर्थिक विकास की कल्पना नहीं कर सकता ।"

भारत में कृषि की आवश्यकता क्यों है? need of agriculture in india in hindi

भारत जैसे विकासशील राष्ट्र, जिनका प्रमुख व्यवसाय कृषि है अपने सीमित साधनों द्वारा आर्थिक विकास की ऊँची दर तब तक प्राप्त नहीं कर सकते जब तक कि वे आधारभूत कृषि उद्योग का विकास न कर लें ।

प्राकृतिक संसाधनों (natural resources in hindi) की पर्याप्तता के बावजूद पूँजीगत एवं अन्य विशिष्टता प्राप्त संसाधनों की अपर्याप्तता के फलस्वरूप भारत जैसे विकासशील देश में औद्योगिकरण की धीमी प्रगति एवं तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण उत्पन्न श्रमशक्ति को रोजगार मात्र औद्योगिक क्षेत्र के बलबूते उपलब्ध नहीं कराया जा सकता वरन इसके लिए कृषि (krishi) एवं सम्बद्ध क्षेत्र को विकसित करके ही रोगजार के अवसर सृजित करने होंगे ।

दूसरे शब्दों में देश की आर्थिक प्रगति एवं बेरोजगारी दूर करने के लिए कृषि के विकास का अत्यधिक महत्त्व है ।

भारत में आर्थिक विकास के लिए कृषि (agriculture in hindi) विकास पर इसलिए भी विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है क्योंकि कृषि क्षेत्र में पूँजी- -उत्पाद अनुपात अधिक ऊँचा नहीं है ।

फलस्वरूप कम पूँजी लगाकर कृषि क्षेत्र में अधिक मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त कृषि (krishi) विकास के लिए विदेशी मुद्रा की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी कि औद्योगिक विकास के लिए होती है ।

यही कारण है कि हमारे देश के योजनाकारों ने देश की प्रगति के लिए जो रूपरेखा तैयार की उसमें औद्योगिकरण के साथ ही कृषि के विकास पर विशेष बल दिया गया ।

डॉ० वी० के० आर० वी० राव ने भारत में कृषि की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा था, “यदि पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत विकास के विशाल पहाड़ को लांघना है तो कृषि (agriculture in hindi) के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना आवश्यक है ।"

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भारतीय किसान पर निबंध 10 lines (Indian Farmer Essay in Hindi) 100, 150, 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

agriculture essay in hindi

 भारतीय किसान पर निबंध (Indian Farmer Essay in Hindi) – एक किसान हमें जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन प्रदान करने के लिए अथक परिश्रम करता है। कड़ी मेहनत के बावजूद, कई किसानों को खराब मिट्टी की गुणवत्ता, आधुनिक तकनीक तक पहुंच की कमी और अपर्याप्त सरकारी सहायता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों ने किसानों के बीच व्यापक गरीबी और संकट को जन्म दिया है। हालांकि, सरकार की पहल और तकनीक की मदद से स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। किसान अब बेहतर बीज, सिंचाई और वित्तीय सहायता प्राप्त करने में सक्षम हैं। इससे फसल की पैदावार में वृद्धि हुई है और कई लोगों की आजीविका में सुधार हुआ है।

भारतीय किसान पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines on Indian Farmer in Hindi)

  • 1) भारत को गाँवों की भूमि कहा जाता है और गाँवों में रहने वाले लोग ज्यादातर खेती में शामिल हैं।
  • 2) भारत के किसानों को “अन्नदाता” या राष्ट्र का अन्नदाता कहा जाता है।
  • 3) किसान पूरे देश का पेट भरते हैं क्योंकि वे जो उगाते हैं उसे पूरी आबादी खाती है।
  • 4) किसान अपने खेतों में खाने के साथ-साथ अपनी आजीविका के लिए खाद्यान्न उगाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं।
  • 5) किसान खेतों में अनाज उगाते हैं और पकने के बाद उन अनाजों को पास की “मंडियों” में बेचते हैं।
  • 6) 1970 के दशक के दौरान, भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था और अमेरिका से खाद्यान्न आयात करता था।
  • 7) पूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने सैनिकों और किसानों को महत्व देते हुए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया।
  • 8) विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ कृषि में भारी बदलाव आया, जिसके परिणामस्वरूप भारत में ‘हरित क्रांति’ हुई।
  • 9) गाँवों में ऐसे कई परिवार हैं जहाँ हर सदस्य खेती से जुड़ा हुआ है और अपने परिवार के लिए आजीविका कमाता है।
  • 10) गाँवों में खेती ही मुख्य व्यवसाय है जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा है।

भारतीय किसान पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

भारतीय किसान देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और कृषि भारतीय आबादी के बहुमत के लिए आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। भारतीय किसान मेहनती और लचीले व्यक्ति हैं जो हमारे देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। हालाँकि, भारत में किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें ऋण तक पहुँच की कमी, आधुनिक तकनीक तक पहुँच की कमी और सिंचाई और जल प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण भी भारत में किसानों को प्रभावित कर रहे हैं। भारत सरकार और समाज को इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए कदम उठाने चाहिए और देश के लिए एक स्थायी और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए भारतीय किसान का समर्थन करना चाहिए।

इनके बारे मे भी जाने

  • Education System In India Essay
  • Essay On Swami Vivekananda
  • Gandhi Jayanti Essay
  • Good Manners Essay

भारतीय किसान पर 150 शब्दों का निबंध (150 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

भारत में खेती एक महत्वपूर्ण कार्य है जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था को ठीक से काम करता रहता है। यह न केवल देश के नागरिक को भोजन प्रदान करता है बल्कि रोजगार भी प्रदान करता है। देश के लगभग 40% नियोजित लोग कृषि क्षेत्र और उसके सहायक क्षेत्र के नियोक्ता हैं। खेती में बहुत श्रम की आवश्यकता होती है।

काम श्रमसाध्य है और इसके लिए अनुशासन और धैर्य की आवश्यकता होती है। किसानों के पास यह समझने का काम है कि मानसून भारतीय उपमहाद्वीप में कब और कैसे दस्तक देगा। मानसून के अनियमित होने से फसल की उपज और फसल की वृद्धि में भारी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। इस क्षति को अधिक होने से रोकने के लिए, कृषि में शामिल ग्रामीण लोगों को वैज्ञानिक रूप से खेती सिखाई जा रही है।

कई गैर-सरकारी संगठन देश की कृषि भूमि का दौरा करते हैं और उन्हें सिखाते हैं कि सही तरीके से बीज कैसे बोएं और खेती के लाभों को कैसे प्राप्त करें। वे किसानों को यह भी सिखाते हैं कि वितरकों को बेचने से पहले फसल की सही कीमत कैसे लगाई जाए।

भारतीय किसान पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

भारतीय किसान देश की अर्थव्यवस्था और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, जैसे कि खराब बुनियादी ढांचा, ऋण और बाजारों तक पहुंच की कमी, और अप्रत्याशित मौसम, वे देश को खिलाने के लिए अथक रूप से काम कर रहे हैं। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण भारत की कृषि की रीढ़ है, जो अधिकांश आबादी के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है। भारतीय किसान लचीलापन और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, और देश में उनके योगदान को पहचाना और मनाया जाना चाहिए।

अर्थव्यवस्था में भारतीय किसानों की भूमिका

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और भारतीय किसान देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कृषि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 17% है और देश के कर्मचारियों की संख्या का लगभग 50% कार्यरत है। भारतीय किसान न केवल फसलें उगाते हैं बल्कि पशुधन भी पालते हैं, जो कई परिवारों के लिए भोजन और आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

देश के निर्यात में कृषि का प्रमुख योगदान है, चावल, गेहूं और कपास जैसी फसलें कुछ प्रमुख निर्यात वस्तुएँ हैं। इसके अलावा, भारतीय किसान देश की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है, और देश में किसान चावल, गेहूं, मक्का, गन्ना और फलों और सब्जियों सहित कई प्रकार की फसलों का उत्पादन करते हैं।

भारतीय किसान पर 250 शब्दों का निबंध (250 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

वर्तमान समय और युग में, सरकार किसानों का बहुत ध्यान रख रही है। ऐसी कई लाभकारी योजनाएँ हैं जो न केवल किसानों को आसान ऋण प्रदान करती हैं बल्कि उन्हें कच्चा माल भी देती हैं जिससे वे खेती की प्रक्रिया को नया रूप दे सकते हैं। भारत के बाहर कई देशों में, कृषि तकनीक उन्नत और अत्यधिक वैज्ञानिक हो गई है।

देश में कई हिस्से ऐसे थे जहां कृषि योग्य भूमि को बढ़ाने के लिए वनों को काटकर जलाना अब भी जारी है। इसी विवेकपूर्ण सोच के तहत हमें कृषि गतिविधियों को विनियमित करना होगा। भारत में रहने वाले अधिकांश किसान गरीब हैं। उन्हें नियमित राशन का लाभ नहीं मिल पाता है। किसान निराशाजनक परिस्थितियों में रहते हैं और अक्सर भूख से मर जाते हैं। हाल के युग में किसानों के बीच आत्महत्या अधिक आम हो गई है।

सरकार ने कृषि गतिविधियों में शामिल लोगों के जीवन पर लगातार नजर रखी है। जीवन शैली में सुधार के लिए सरकार नई योजनाएं लेकर आई है। किसानों को सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इन ऋणों पर वापसी की अवधि भी लंबी होती है।

कई कृषि गतिविधियाँ अभी भी आदिम तरीकों से की जाती हैं। हाल के वर्षों में सिंचाई को लोकप्रिय बनाया गया है। कई कॉलेजों में दशकों से कृषि विज्ञान पढ़ाया जा रहा है। यह केवल अब है कि ऐसे पाठ्यक्रमों में नामांकन बढ़ रहा है। अंग्रेजों के शासन में किसानों को भी कष्ट उठाना पड़ा।

अंग्रेजों ने कई उद्योगों को भी नष्ट कर दिया जिनका कच्चा माल कृषि गतिविधियों द्वारा प्रदान किया जाता था। हालांकि किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ, लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि देश को बनाए रखने में उनकी नौकरियां कितनी महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय किसान पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

मुझे लगता है कि किसान हमारे देश के लिए वही भूमिका निभाता है जो मानव शरीर के लिए रीढ़ निभाता है। समस्या यह है कि यह रीढ़ (हमारा किसान) कई समस्याओं से जूझ रहा है। कभी-कभी, उनमें से कई एक दिन में दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाते हैं। तमाम कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उनमें से कुछ की चर्चा नीचे की गई है।

भारतीय किसान का महत्व

  • वे देश के खाद्य उत्पादक हैं

1970 के दशक के अंत से पहले भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन करने में सक्षम नहीं था। दूसरे शब्दों में, भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था। हम विदेशों से (मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से) बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात करते थे। कुछ समय तक तो ठीक चला लेकिन बाद में अमेरिका ने हमें व्यापार पर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।

उन्होंने खाद्यान्न की आपूर्ति पूरी तरह से बंद करने की धमकी भी दी। तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने चुनौती स्वीकार की और “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया और कुछ कठोर उपाय किए, जिसके परिणामस्वरूप हरित क्रांति हुई और उसके कारण हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बने और यहां तक ​​कि शुरुआत भी की। अधिशेष उत्पादन का निर्यात करना।

उसके बाद से भारत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हमारे किसानों ने कई समस्याओं का सामना करने के बावजूद हमें कभी निराश नहीं होने दिया। वे बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने में सक्षम हैं।

  • भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक

किसान भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 17% योगदान करते हैं। इसके बाद भी वे गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके कई कारण हैं। यदि हम विभिन्न बाधाओं को दूर करने में सक्षम हैं, तो इस प्रतिशत में सुधार होने की अच्छी संभावना है।

  • सभी किसान स्वरोजगार हैं

किसान रोजगार के लिए किसी अन्य स्रोत पर निर्भर नहीं हैं। वे स्वयं नियोजित हैं और दूसरों के लिए रोजगार भी पैदा करते हैं।

आजादी के बाद से हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मुझे यकीन है कि अगर हम ईमानदारी से काम करेंगे तो हम आज जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन पर काबू पा सकेंगे और ईश्वर की कृपा से हमारे गांव उतने ही सुंदर और समृद्ध बनेंगे, जितने कि बॉलीवुड फिल्मों में दिखाए जाते हैं।

भारतीय किसान पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay on Indian Farmer in Hindi)

भारतीय किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अधिकांश भारतीय आबादी के लिए कृषि आजीविका का प्राथमिक स्रोत है, और किसान देश के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस तथ्य के बावजूद कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा है, भारत में किसान हाल के वर्षों में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

भारतीय किसानों के सामने चुनौतियां

देश की अर्थव्यवस्था में भारतीय किसान द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, भारत में किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारतीय किसानों के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक ऋण तक पहुंच की कमी है। भारत में कई किसान छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास आधुनिक कृषि तकनीकों में निवेश करने के लिए वित्तीय संसाधन नहीं हैं। नतीजतन, वे अक्सर उन साहूकारों पर भरोसा करने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो अत्यधिक ब्याज दर वसूलते हैं, जिससे उनके लिए अपने ऋण चुकाना मुश्किल हो जाता है।

भारतीय किसानों के सामने एक और बड़ी चुनौती आधुनिक तकनीक तक पहुंच की कमी है। भारत में कई किसान अभी भी पारंपरिक खेती के तरीकों पर भरोसा करते हैं, जो श्रम-गहन हैं और अक्सर कम पैदावार का कारण बनते हैं। इसके अलावा, भारत में किसानों को सिंचाई और जल प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। देश के कई हिस्सों में, किसान अपनी फसलों के लिए मानसून की बारिश पर निर्भर हैं, जो अप्रत्याशित हो सकती है और फसल की विफलता का कारण बन सकती है।

शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) की कहानी

सुभाष पालेकर भारत के महाराष्ट्र राज्य के एक किसान हैं। उन्होंने कम उम्र में ही खेती करना शुरू कर दिया था, लेकिन भारत के कई किसानों की तरह उन्हें भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें कम उपज और वित्तीय कठिनाइयाँ शामिल थीं। हालाँकि, सुभाष ने हार मानने के बजाय मामलों को अपने हाथों में लेने का फैसला किया और खेती की विभिन्न तकनीकों के साथ प्रयोग करना शुरू किया।

उनके द्वारा विकसित तकनीकों में से एक शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) थी। खेती की यह विधि मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों, जैसे गाय के गोबर और गोमूत्र का उपयोग करने और कीटों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों पर निर्भर रहने के सिद्धांतों पर आधारित है। सुभाष की पद्धति न केवल अधिक टिकाऊ थी, बल्कि इससे फसल की पैदावार भी बढ़ी और किसानों की लागत भी कम हुई।

सुभाष की ZBNF पद्धति ने क्षेत्र के अन्य किसानों का ध्यान आकर्षित किया, और जल्द ही, वे देश भर में यात्रा कर रहे थे, अन्य किसानों को अपनी तकनीकों के बारे में सिखा रहे थे। उनके काम ने हजारों किसानों को उनकी उपज में सुधार करने और उनकी आय बढ़ाने में मदद की है।

सुभाष की कहानी भारत में कई किसानों के लिए एक प्रेरणा है, और उनके काम को भारत सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा मान्यता दी गई है। 2018 में, उन्हें कृषि में उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

उनकी कहानी से पता चलता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति बदलाव ला सकता है और कई लोगों के जीवन को बदल सकता है। शून्य बजट खेती का उनका तरीका अब भारत के कई राज्यों में लोकप्रिय है और किसान इसका लाभ उठा रहे हैं। सुभाष पालेकर की कहानी भारतीय किसान के लचीलेपन और दृढ़ संकल्प का एक वसीयतनामा है, और कई अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है जो समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

भारतीय किसान पर अनुच्छेद पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

किसान क्या करते हैं, और उनका प्राथमिक काम क्या है.

फ्रैमर भारतीय आर्थिक संरचना का एक अभिन्न अंग हैं। वे हमें फसलें प्रदान करते हैं जिससे हम अपना भोजन बनाते हैं। वे फसल की उपज को अधिकतम करने के तरीके खोजते हैं। फसल की पैदावार को किसानों द्वारा अनुकूलित करने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे देश की जनसंख्या बहुत अधिक है। वर्षों तक बिना असफल हुए इतने लोगों का मुंह खिलाना एक कठिन काम है।

क्या किसान आत्महत्या भारत में एक महत्वपूर्ण समस्या है?

हां, भारत में किसान आत्महत्या एक महत्वपूर्ण समस्या है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया है। रिपोर्ट किए गए किसान आत्महत्याओं की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है।

सरकार ने किसानों की मदद के लिए कौन सी योजनाएँ बनाई हैं?

भारत सरकार ने किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। इन योजनाओं में किसान विकास पत्र और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शामिल हैं।

किस मौसम का भारतीय खेती पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है?

Hindi Essay

Essay on Agriculture in Hindi | कृषि पर निबंध

Essay on agriculture in hindi.

कृषि पर निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) बच्चों और छात्रों के लिए सरल हिंदी और आसान शब्दों में लिखा गया है। यह (Essay on Agriculture in Hindi) हिंदी निबंध कृषि के बारे में बताता है कि इसकी कृषि हमारे लिए क्या है और यह हमारे लिए क्यों खास है। छात्रों को अक्सर उनके स्कूलों और कॉलेजों में कृषि पर निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) लिखने के लिए कहा जाता है। और यदि आप भी यही खोज रहे हैं, तो हमने कृषि पर 100 – शब्दों, 150 – शब्दों, 250 – शब्दों और 500 – शब्दों में निबंध दिया है।

छात्रों को सिखाने का एक प्रभावी तरीका हिंदी में कृषि पर एक निबंध (Essay on Agriculture in Hindi) के माध्यम से होगा। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5 और 10 के लिए कृषि के इस विषय पर निबंध लेखन के माध्यम से बच्चे तथ्यों को इकट्ठा करना और उन्हें अपने शब्दों में लिखना सिख पाएंगे।

निबंध – 100 शब्द

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यह केवल आजीविका का साधन नहीं बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। प्राचीन काल से हम कृषि करते आ रहे हैं। आजादी के बाद अनाज की मांग को पूरा करने के लिए हमे दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन, हरित क्रांति ने भारत को आत्मनिर्भर बना दिया है।

किसान अन्न उगाने के लिए कृषि क्षेत्र में बहुत ही मेहनत करते हैं। हमारे किसान हमे अन्न देकर हर परिस्थिति में हमारे लिए खड़े रहते हैं। कृषि की सहायता के बिना मनुष्य जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। कृषि करने के कई प्रकार है जैसे स्थानांतरित खेती, अनाज खेती, मछली पालन, डेयरी फार्मिंग, आदि। पर्यावरण पर गलत प्रकार से कृषि करने के कुछ बुरे प्रभाव भी देखने को मिले हैं जैसे किटनाशक, उर्वरकों और खाद से प्रदूषण होना।

निबंध – 150 शब्द

कृषि का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। किसान खेतो में केवन अन्य नहीं उगाते, बल्कि यह दुसरो को रोज़गार और व्यापार के अवसर प्रदान करते है। कृषि के अंतिम उत्पादों के उपभोग हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करता है। इसकी सहायता के बिना मनुष्य का पेट भरना असंभव है। कृषि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करता है।

कृषि किसी भी देश के आर्थिक विकास में एक अहम् भूमिका निभाती है क्योंकि कई उद्योग अपने कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं। कृषि क्षेत्र में क्रांति आने से औद्योगिक क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है। इसके अलावा, जब कृषि क्षेत्र में उत्पादन में वृद्धि होगी तो रोजगार के अधिक अवसर भी पैदा होंगे और फसल उगाने से लेकर, कृषि विस्तार में प्रत्यक्ष रोजगार और अन्य क्षेत्रों में भी काम प्रदान करता है।

लेकिन कृषि को गलत तरीके से करने से इसके कई घातक परिणाम भी होते है। यह प्रदूषण का प्रमुख स्रोत भी है, क्योंकि कीटनाशक, उर्वरक और अन्य जहरीले कृषि रसायन पानी, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र, मिट्टी, और हवा को जहरीला कर सकते हैं।

निबंध – 250 शब्द

कृषि भारत में अधिकांश आबादी के लिए प्राथमिक आजीविका का स्रोत है। यहाँ पर 70 प्रतिशत से अधिक लोग कृषि पर निर्भर करते है। प्राचीन कल से कृषि अस्तित्व में है और आज के युग में यह नई तकनीकों और उपकरणों के साथ विकसित हुई है जिसने पुरानी पारंपरिक खेती के तरीकों को बदल दिया है।

आज भी कुछ किसान पारंपरिक खेती पद्धति का उपयोग करते हैं क्योंकि उनके पास शिक्षा और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए संसाधनों और समझ की कमी है। आज के समय में भारत दूसरा सबसे बड़ा चावल, गेहूं, कपास, फल, चाय, और सब्जियां का उत्पादक है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के मसालों की कृषि होती है और दिनिया भर में इन मसालों को भेजा जाता है।

कृषि क्षेत्र की वृद्धि एवं विकास

हम कृषि लंबे समय से करते आ रहे है फिर भी यह अभी तक अविकसित रही। आजादी के बाद भी देश की मांग को पूरा करने के लिए हम दूसरे देशों से खाद्यान्न आयात करते थे। लेकिन, हरित क्रांति के कारण अब हम आत्मनिर्भर हो गए और अपना अधिशेष दूसरे देशों को निर्यात करते है। हमारी सरकार भी इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।

पहले हम कृषि के लिए पूरी तरह से मानसून पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब हमने नहरों, बांधों, ट्यूबवेलों और पंप-सेटों का निर्माण किया है। इसके अलावा, अब बेहतर किस्म के कीटनाशक, उर्वरक और बीज हैं जो अधिक अन्न उगाने में मदद करते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था का कृषि महत्वपूर्ण क्षेत्र है। कृषि क्षेत्र में लगातार हो रहे बदलाव, विकास और लागू की गई नीतियों के साथ यह अग्रसर हो रहा है। यह भारत की आर्थिक वृद्धि में हमेशा एक महत्वपूर्ण कारक बना रहेगा।

निबंध – 500 शब्द

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था और किसानो के रोजगार का प्रमुख क्षेत्र है। कृषि कार्य हजारों सालों से मौजूद है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह बहुत विकसित हुआ है। आज के युग में नई अविष्कारों, तकनीकों और उपकरणों के उपयोग ने खेती के लगभग सभी पारंपरिक तरीकों को बदल दिया है। लेकिन, आज भी कुछ किसान जानकारी के आभाव में कृषि के पुराने पारंपरिक तरीकों का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि वे आधुनिक तरीकों का उपयोग करने के में असमर्थ है। कृषि ने न केवल अपने बल्कि देश के अन्य क्षेत्र के विकास में भी योगदान दिया है।

आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका

देश के आर्थिक विकास में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह देश के आजीविका के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। आज भी 3/4 जनसंख्या कृषि पर आधारित है और पहले हम कृषि के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करते थे, लेकिन अब नहरों, बांधों, ट्यूबवेलों, और पंप सेटों का निर्माण हो चूका है।

कृषि क्षेत्र से उद्योगों को कच्चा माल की प्राप्ति होती है जिस पर दूसरे व्यवसाय निर्भर करते है, इसलिए अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर निर्भर करता है। कृषि अधिकांश लोगों को देश में रोजगार के अवसर प्रदान करती है। 

यह भारतीय निर्यात में योगदान देती है और विदेशी मुद्रा बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अन्य देशों को भारत मसाले, कॉफ़ी, तम्बाकू, चाय, और सब्जियाँ, आदि जैसी वस्तुओं का निर्यात करता है। 

कृषि के प्रकार

कृषि कई प्रकार की जाती है जैसा कि नीचे बताया गया है:

अनाज की खेती – यह जानवरों और मनुष्यों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए की जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार की फसलें बोने की प्रक्रिया होती है जिसे बाद में मौसम के अंत में काटा जाता है।

बागवानी एवं फलों की खेती – इस प्रक्रिया में फलों एवं सब्जियों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह मुख्य रूप से व्यवसाय के उदेश्य से किया जाता है।

डेयरी फार्मिंग – यह दूध के उत्पादन से संबंधित है। इस प्रक्रिया में मिठाई, दही, पनीर आदि जैसे उत्पादों का उत्पादन किया जाता है।

कृषि के नकारात्मक प्रभाव

हालाँकि कृषि देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार के दृष्टिकोण से बहुत फायदेमंद है लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। ये कृषि क्षेत्र में शामिल लोगों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं।

पहला, अधिकांश रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रयोग ने भूमि के साथ-साथ आस-पास के जल निकायों को भी प्रदूषित और जहरीला करते हैं। इसके इतेमाल से ऊपरी मिट्टी का ह्रास होता है और भूजल प्रदूषित होता है।

दूसरा, वनों की कटाई भी कृषि का नकारात्मक प्रभाव है कृषि भूमि फैलावे के लिए कई जंगलों को काटकर उन्हें कृषि भूमि में बदल दिया गया है। साथ ही, नदी के पानी का अधिक उपयोग सिंचाई के रूप में करने से कई छोटी नदियाँ और तालाब सूख जाते हैं जिससे प्राकृतिक का संतुलन में बाधा आती है।

कृषि ने देश को बहुत कुछ दिया है। अन्न से लेकर व्यवसाय तक, लेकिन कृषि के कुछ अपने फायदे और नुकसान हैं जिन्हें हम अनदेखा नहीं कर सकते। सरकार उचित कृषि की वृद्धि और विकास के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। साथ ही, सरकार को कृषि पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के लिए कुछ करने की आवश्यकता है।

ये भी देखें –

  • Essay on My Brother in Hindi
  • Essay on G20 in Hindi
  • Essay on Animals in Hindi

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Essay on Agriculture for Students and Children

500+ words essay on agriculture.

Agriculture is one of the major sectors of the Indian economy. It is present in the country for thousands of years. Over the years it has developed and the use of new technologies and equipment replaced almost all the traditional methods of farming. Besides, in India, there are still some small farmers that use the old traditional methods of agriculture because they lack the resources to use modern methods. Furthermore, this is the only sector that contributed to the growth of not only itself but also of the other sector of the country.

Essay on Agriculture

Growth and Development of the Agriculture Sector

India largely depends on the agriculture sector. Besides, agriculture is not just a mean of livelihood but a way of living life in India. Moreover, the government is continuously making efforts to develop this sector as the whole nation depends on it for food.

For thousands of years, we are practicing agriculture but still, it remained underdeveloped for a long time. Moreover, after independence, we use to import food grains from other countries to fulfill our demand. But, after the green revolution, we become self-sufficient and started exporting our surplus to other countries.

Besides, these earlier we use to depend completely on monsoon for the cultivation of food grains but now we have constructed dams, canals, tube-wells, and pump-sets. Also, we now have a better variety of fertilizers, pesticides, and seeds, which help us to grow more food in comparison to what we produce during old times.

With the advancement of technology, advanced equipment, better irrigation facility and the specialized knowledge of agriculture started improving.

Furthermore, our agriculture sector has grown stronger than many countries and we are the largest exporter of many food grains.

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Significance of Agriculture

It is not wrong to say that the food we eat is the gift of agriculture activities and Indian farmers who work their sweat to provide us this food.

In addition, the agricultural sector is one of the major contributors to Gross Domestic Product (GDP) and national income of the country.

Also, it requires a large labor force and employees around 80% of the total employed people. The agriculture sector not only employees directly but also indirectly.

Moreover, agriculture forms around 70% of our total exports. The main export items are tea, cotton, textiles, tobacco, sugar, jute products, spices, rice, and many other items.

Negative Impacts of Agriculture

Although agriculture is very beneficial for the economy and the people there are some negative impacts too. These impacts are harmful to both environments as the people involved in this sector.

Deforestation is the first negative impact of agriculture as many forests have been cut downed to turn them into agricultural land. Also, the use of river water for irrigation causes many small rivers and ponds to dry off which disturb the natural habitat.

Moreover, most of the chemical fertilizers and pesticides contaminate the land as well as water bodies nearby. Ultimately it leads to topsoil depletion and contamination of groundwater.

In conclusion, Agriculture has given so much to society. But it has its own pros and cons that we can’t overlook. Furthermore, the government is doing his every bit to help in the growth and development of agriculture; still, it needs to do something for the negative impacts of agriculture. To save the environment and the people involved in it.

FAQs about Essay on Agriculture

Q.1 Name the four types of agriculture? A.1 The four types of agriculture are nomadic herding, shifting cultivation, commercial plantation, and intensive subsistence farming.

Q.2 What are the components of the agriculture revolution? A.2 The agriculture revolution has five components namely, machinery, land under cultivation, fertilizers, and pesticides, irrigation, and high-yielding variety of seeds.

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Essay on Farmer in Hindi- किसान पर निबंध

In this article, we are providing Kisan Par Nibandh | Essay on Farmer in Hindi.  किसान पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 150, 200, 250, 300 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Kisan | Farmer Essay in Hindi लिखा है किसान पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है।

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Short Kisan Essay in Hindi- किसान पर निबंध ( 120 words )

समाज का श्रेष्ठ बन्धु किसान है। किसान मौसम के अनुकूल अन्न पैदा करता है। वे कड़ी धूप, सर्दी और वर्षा में कठिन परिश्रम करते हैं। फसल के समय इन्हें दिनभर में विश्राम के लिए थोड़ा भी समय नहीं मिलता है। सुबह कलेवा तथा दोपहर का भोजन इन्हें खेत में ही करना पड़ता है। किसान ही धान, जौ, गेहूँ, चना, मटर, सरसों, आलू, गोभी, बैगन, कपास, जूट आदि पैदा करते हैं।

किसान गाँवों के कच्चे मकानों एवं घास-पूस की झोपड़ियों में रहते हैं। हल, हेंगा, कुदाल, खुरपी, हँसिया आदि ही इनके खेती के औजार हैं।

किसान का जीवन अत्यन्त सरल होता है। किसान अन्न पैदा करते हैं। इनका पहनावा भी साधारण होता है। किसान ही हमारे देश के प्राण हैं। इनकी उन्नति के बिना देश का कल्याण असम्भव है।

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Essay on Farmer in Hindi – किसान पर निबंध ( 150 words )

किसान खेतों में मेहनत करता है। वह अन्न उगाता है । किसान को ‘भूमिपुत्र’ कहते हैं।

वह अपने परिवार के साथ छोटी सी झोपड़ी में रहता है। रूखी, सूखी खा कर वह अपना और अपने परिवार का पेट भरता है।

किसान हर दिन बड़े सबेरे जागता है। अपने बैलों को लेकर खेत में जाता है । वहाँ दिन भर वह परिश्रम करता है। उसकी पत्नी और बच्चे भी खेती के काम में उसकी मदद करते हैं। वह हर मौसम में कड़ी मेहनत कर अन्न उगाता है। इसी अन्न से राष्ट्र की जनता का पेट भरता है । किसान ना हो तो अन्न कौन उगाएगा ?

लेकिन जनता का पेट भरनेवाला किसान खुद अधभूखा रहता है। उसे गरीबी में दिन काटने पड़ते हैं। इसलिए उसके अन्न की उसे सही कीमत मिलनी चहिए।

किसान सुखी होगा, तो देश खुशहाल होग।

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Kisan Par Nibandh- Hindi Essay on Farmer ( 200 words )

दिन-रात परिश्रम करके तरह-तरह की फल-सब्जी और अनाज को अपने खेतों में किसान उगाता है। किसान समाज का अन्नदाता है।

धूप-वर्षा, आँधी-पानी, सर्दी-गर्मी – चाहे कोई भी मौसम हो, वह दिन-रात खेतों में जुटा रहता है। किसान के प्यारे साथी हैं – हल और बैल।

किसान खेतों में हल चलाता है, बीज बोता है और उन्हें सींचता है। वह पशु-पक्षियों से खेतों की रक्षा करता है। जंगली पौधों को खेतों में से उखाड़ता है। धीरे-धीरे पौधे बढ़ते हैं। किसान उन्हें बढ़ता देखकर खुश होता है। अब फसल पकती है। पकने के बाद उन्हें काटता है। किसान का सारा परिवार लगातार खेतों में जुटा रहता है। इतने परिश्रम के बाद किसानों के खलिहान भरते हैं। किसान की मेहनत सफल होती है। वह रात को चैन की नींद सोता है। अनाज को मंडी पहुँचाता है और धन पाता है।

अब फिर समय आता है – खेतों में बुआई करने का। किसान फिर हल और बैल लेकर खेत पहुँच जाता है। उसे फिर आँधी-तूफ़ान की चिंता सताने लगती है। वह फसल को अपने पसीने से सींचता है। इसलिए कहा गया है, ‘जय किसान’।

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Farmer Essay in Hindi- किसान पर निबंध हिंदी में ( 250 words )

हमारा देश गाँवों में अधिक है। गाँवों के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है। इसलिए हमारे दश के अधिक लोग किसान हैं। हमको जो भोजन खाने को मिलता है। उसे किसान ही उगाते हैं। इसीलिए किसान को अन्नदाता कहा जाता है।

हमारे अन्नदाता किसान को अन्न उपजाने में कितना श्रम करना पड़ता है—क्या आपने कभी सोचा है। किसान प्रातःकाल उठता है। अपने गाय-बैलों को दाना पानी देता है। उनके रहने के स्थान की सफाई करता है। गोबर उठाकर एक स्थान पर जमा करता है। गाय भैसों का दूध निचोड़ता है।

थोड़ा सा नाश्ता पानी करके खेतों की ओर चल पड़ता है। उसके कंधे पर हल होता है और हाथ में बैलों की रस्सी। ठीक समय पर दिन भर हल चलाता है। दोपहर का भोजन उसकी पत्नी खेतों पर लेकर आती हैं भोजन लेकर वह थोड़ा आराम कर लेता है। फिर बैलों को लेकर खेत जोतने लगता है।

खेत जोत लेने पर उनमें बीज डालता है। पौधे निकल जाने पर उसकी रखवाली करता है। पौधे बड़े होने पर उसकी प्रसन्नता बढ़ती जाती है। पौधों में फूल आते हैं और दाने भरने लगते हैं। अन्त में फसल पक जाती

अब किसान का काम फिर बढ़ जाता है। उसे फुर्सत ही नहीं रहती। फसल काटना, खलिहान में जमाना, भूसे से अनाज अलग करना, बड़े परिश्रम के काम हैं। इसमें भी बैलों से सहायता लेता है।

खलिहान से अनाज घर आ जाने पर किसान को कुछ दिनों आराम रहता है। वर्षा प्रारंभ होते ही उसकी फिर से वही दिनचर्या हो जाती है।

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इस लेख के माध्यम से हमने Kisan Par Nibandh | Long & Short Essay on  Farmer in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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